नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस जनरल में छपे षोध-पत्र ने धरती पर जैविक विनाश की चिंतनीय चेतावनी दी है। लगभग साढ़े चार अरब साल उम्र की यह धरती अब तक...
पंचांग (कैलेण्डर) के शुरू होने से 18 वीं सदी तक प्रत्येक 55 वर्षों में एक वन्य पशु की प्रजाति लुप्त होती रही। 18 वीं से 20 वीं सदी के बीच प्रत्येक 18 माह में एक वन्य प्राणी की प्रजाति नष्ट हो रही है। एक बार जिस प्राणी की नस्ल पृथ्वी पर समाप्त हो गई तो पुनः उस नस्ल को धरती पर पैदा करना मनुष्य के बस की बात नहीं है। हांलाकि वैज्ञानिक क्लोन पद्धति से डायनासौर को धरती पर फिर से अवतरित करने की कोशिशों में जुटे हैं, लेकिन अभी इस प्रयोग में कामयाबी नहीं मिली है। साथ ही मनुष्य कभी प्रकृति से जीत नहीं पाया है। इसलिए मनुष्य यदि अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों के अहंकार से बाहर नहीं निकला तो विनाश या प्रलय आसन्न ही समझिए | प्रत्येक प्राणी का पारिस्थितिक तंत्र, खाद्य श्रृंखला एवं जैव विविधता की दृष्टि से विशेष महत्व होता है, जिसे कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। साफ है कि जैव-विविधता पर संकट गहराया हुआ है।

मध्यप्रदेश समाचार
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