भारत के चतुर सुजान नरेंद्र मोदी को कम मत समझो - हैरी जी ब्रॉडमैन

अमरीका की प्रतिष्ठित पत्रिका फ़ोर्ब्स में दो दिन पूर्व एक आलेख प्रकाशित हुआ, जिसमें प्रसिद्ध अर्थशास्त्री व कोलम राईटर हैरी जी ब्रॉडमैन ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अमरीका यात्रा का निष्पक्ष आंकलन किया |

इस हफ्ते प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन यात्रा ने अनेक अमेरिकियों के भी कान खड़े कर दिए और वे उस भारतीय नेता की क्षमता से परिचित हुए, जो मई 2014 में पूरे भारत का दिल जीतकर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ । केवल एक ऊर्जावान नेता के रूप में नहीं, बल्कि दुनिया की दूसरी सबसे आबादी वाले देश की अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के उनके कार्यक्रमों की सफलता ने अमरीकियों को प्रभावित किया, जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर चीन की तुलना में अधिक हो गई है। यह अलग बात है कि मीडिया की सुर्खियाँ वह फोटो बना, जिसमें मोदी किसी भालू के समान, डोनाल्ड ट्रम्प के गले पड़ते प्रतीत हो रहे हैं ।

किन्तु सचाई यह है कि मोदी ने ट्रंप को उनकी ही शैली में जबाब देकर अमेरिका के अकडू राष्ट्रपति को हैरान कर दिया था | अभी तक ट्रंप की आदत थी कि वे हाथ मिलाने के बहाने प्रमुख लोगों के हाथ अपनी गिरफ्त में लेकर जोर जोर से हिलाते थे | किन्तु पहली बार किसी ने उन्हें उनके ही अंदाज में मजा चखाया ।

लोगों को इस बात से हैरानी हुई कि मोदी ने ट्रंप के साथ अपने विचार विमर्श में एच 1 वीजा जैसा विवादास्पद मुद्दा नहीं उठाया, जिससे भारतीय (और अन्य विदेशी) श्रमिकों की अमरीकी फर्मों के साथ नौकरियों के प्रवाह को नियंत्रित किया गया है । और ना ही मोदी ने पेरिस के ग्लोबल वार्मिंग समझौते से यू.एस. प्रशासन के पीछे हटने पर अपना विरोध दर्ज कराया । जबकि ट्रम्प और उनकी टीम भी यह मानकर बैठी थी कि मोदी इन मुद्दों पर जरूर जोर देंगे | लेकिन वे भी अपना सिर खुजाने पर विवश हुए कि आखिर मोदी की प्राथमिकता क्या है ?

मेरे ख्याल से तो चतुर मोदी पहले व्हाइट हाउस में अपने पैर ज़माना चाहते हैं । एच 1 वीजा और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर दोनों पक्षों की अलग राय, पहले से जानी बूझी थी, और उन पर जोर देने से किसी को कुछ हासिल होने वाला नहीं था । अतः इस नकारात्मक जोखिम के स्थान पर मोदी ने अपना ध्यान अमेरिका के साथ व्यापार संभावनाएं बढाने और निवेशकों के साथ अपनी गैर-सरकारी बैठकों पर केन्द्रित किया – जोकि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कहीं अधिक महत्वपूर्ण है |उन्होंने अपनी आलोना निंदा की परवाह किये बिना, अपने देशहित को सर्वोच्च माना |

व्हाइट हाउस में मोदी अपनी प्राथमिकता भली प्रकार से जानते थे, और वह थी एक बेहद जटिल, बहु-स्तरीय, और लम्बे समय तक अस्थिर रही भारतीय अर्थव्यवस्था का जीर्णोद्धार | अगर उनकी पूरी कार्यप्रणाली को ध्यान से देखें तो हम पायेंगे कि हमारे जन्म के बाद किसी भारतीय नेता ने इतने गंभीर प्रणालीगत सुधार हेतु स्वयं को समर्पित नहीं किया ।

मोदी ने देश में भी अपने अल्प शासन काल में ही कभी पूर्वानुमानित तो कभी अप्रत्याशित, चतुर आर्थिक नीति का परिचय दिया है। वह एक ऐसा खाका खींच रहे हैं, जो अगर अच्छी तरह से निष्पादित किया जा सकेगा तो भारतीय अर्थव्यवस्था का पूरी तरह आधुनिकीकरण का दौर प्रारम्भ हो जाएगा । लेकिन वस्तुतः यह "अगर" बहुत बड़ा है, और खासकर तब, जबकि भारतीय संसद जो दशकों पुरानी वैश्विक अर्थव्यवस्था के पक्ष में इतनी पूर्वाग्रही, अस्पष्ट और अत्यधिक संरक्षणवादी है | लेकिन अभी तक तो मोदी ने सुधार कानून को पारित कराने में सफलता पाई ही है । आगे आगे देखते हैं, कि क्या होता है ?

मोदी के कार्यकाल में भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में उच्च वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की गई है: भारत की विकास दर 2013 में 6.5% से बढ़कर 2015 में 7.9% हो गई, हालांकि 2016 में विकास दर 6.8% तक धीमी हुई। किन्तु 2017 में भारत की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.2% पर पहुँच गई, और 2018 में बढ़कर 7.7% हो गई। इसके विपरीत, चीन की जीडीपी में वास्तविक वृद्धि दर 2013 में 7.8% से 2015 तक 6.9% रह गई, आगे 2016 में 6.7%, और 2017 में 6.6% की गिरावट दर्ज करने का अनुमान आईएमएफ ने लगाया है | इतना ही नहीं तो 2018 में इसके 6.2% तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि भारत को चीन के मुकाबले तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था क्यों कहा जाता है।

भारत का आर्थिक प्रदर्शन इस दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण है, जबकि विश्व तेल की कीमतों में भारी गिरावट का सामना कर रहा है । भारत अपनी कच्ची तेल की जरूरतों के लिए 80% तेल आयात करता है, जबकि चीन अपनी जरूरतों का केवल 65% ही आयात करता है, सस्ते तेल के कारण ही उसकी अर्थव्यवस्था थोड़ी बहुत मजबूत दिख रही है । शायद यही कारण है कि चीन इतना ईर्ष्यादग्ध और झल्लाया हुआ नजर आ रहा है |

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें