मेरी इजराईल यात्रा – पूर्व सेनाध्यक्ष श्री वीपी मलिक



मुझे आश्चर्य हुआ जब कुछ विपक्षी राजनेताओं ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की इजरायल यात्रा की पूर्व संध्या पर, विरोध प्रदर्शन किए । मुझे नहीं पता कि उनमें से कितने यह तथ्य जानते हैं कि 1 9 62 में भारत-चीन युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर इसराइल ने हमें 81 मिमी और 120 मिमी मोर्टार तथा होवित्जर आर्टिलरी गन प्रदान कर उस समय मदद की थी, जब हमें उनकी अत्याधिक आवश्यकता थी । नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी के समय भी यही हुआ, 1 9 67 के भारत-पाक युद्ध के दौरान इज़राइली मैस्टेयर और एगोन 13 विमानों और एएमएक्स -13 टैंकों के कलपुर्जे प्राप्त हुए । इसराइल ने हमारी परोक्ष मदद भी की | 1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान इजराईल ने पाकिस्तानी एफ -86 साबर विमान भेजने में विलम्ब किया, जो कि वहाँ रखरखाव के लिए भेजे गए थे |

यह तो तब था, जब कि उन दिनों, दोनों देशों के बीच सैन्य संबंध अत्यंत गुप्त थे, कारण हम समझ ही सकते हैं, मुख्य रूप से अरब और अन्य मुस्लिम देशों के साथ भारत के संबंध न बिगड़ें, यही मानसिकता रहती आई । हालांकि, 1 9 78 के कैंप डेविड समझौते तथा उसके बाद 26 मार्च, 19 7 9 को अनवर सदात और मेनाकेम बेगिन के बीच हुई मिस्र-इजरायल शांति संधि के बाद भू-राजनीतिक स्थिति में काफी बदलाव आया । 1 99 1 में तत्कालीन प्रधान मंत्री पी.वी. नरसिंह राव ने भारत में पहली बार एक प्रभावशाली यहूदी नेता ईसा लिब्लर को भारत में श्रोताओं को संबोधित करने की अनुमति दी । बैसे भी मीडिया की बढ़ती सक्रियता के कारण गोपनीय सम्बन्ध कायम रखना संभव नहीं रह गया था । और अब तो सोशल मीडिया के युग में यह कतई संभव नहीं बचा |

जून 1996 में, भारतीय रक्षा मंत्री के तत्कालीन वैज्ञानिक सलाहकार एपीजे अब्दुल कलाम ने इसराइल का दौरा किया | उसके एक महीने बाद, एयर चीफ मार्शल एस.के. सरीन भी वहां गए । इसके बाद इजरायल नौसेना प्रमुख वाइस एडमिरल एलेक्स टैल ने नवंबर 1 99 6 में भारत की यात्रा की। जनवरी 1 99 7 में इज़राइली राष्ट्रपति एज़र वीज़मैन ने भी भारत की एक सप्ताहभर की राजकीय यात्रा की। इन यात्राओं का कहीं कोई विरोध भी नहीं हुआ, केवल 8 नवम्बर 1 99 8 को जब मैं आधिकारिक तौर पर इसराइल का दौरा करने गया, तब अरब लीग ने उसका विरोध किया था | 

1 9 67 में इज़राइली जनरल डेविड शॉतिएल की भारत यात्रा के बाद, पहली बार कोई भारतीय सेना प्रमुख इज़राइली सेना प्रमुख अम्नॉन लिपकिन-शाहक के निमंत्रण पर "सद्भावना मिशन" पर मेरे रूप में गया था । मेरी यात्रा का मुख्य उद्देश्य इज़राइली रक्षा बलों (आईडीएफ) संगठनों को समझना, प्रशिक्षण और सीमा पर घुसपैठ की रोकथाम के उपाय सीखना था; यह जानना था कि कैसे इजरायल ने अपना रक्षा उद्योग विकसित किया है और भविष्य में दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग की क्या संभावना है ।

आईडीएफ द्वारा हमारे रक्षा सहायक के परामर्श से, विचार विमर्श का पूरा खाका तैयार किया गया था | यह कितना मुश्किल था इसका अनुमान इस बात से लगाएं कि पूरा अभियान किसी भी समारोह से रहित रहा, केवल एक छोटे से गार्ड ऑफ़ ओनर में जनरल लीपकिन-शाहक और मैंने एक साथ सलामी ली। तय हुआ कि आईडीएफ द्वारा मुझे प्रतिदिन सुबह सैन्य प्रतिष्ठानों, सीमावर्ती इलाकों में लेजाकर अपने नए उपकरणों का प्रदर्शन किया जाएगा । और उसके बाद वे मुझे आधिकारिक रात के खाने से एक घंटे से भी पहले वापस लाएंगे। इजरायल के अधिकारियों ने बहुत ही मैत्रीपूर्ण ढंग से मैं जो जानना चाहता था, वह सब मुझे बताया | उनका व्यवहार बहुत ही अच्छा था।

मेरी यात्रा नई दिल्ली से “सजग रहने के संदेश” के साथ शुरू हुई। पहले दिन, तेल अवीव में हमारे राजदूत रंजन मथाई (बाद में भारत के विदेश सचिव) और मुझे सूचित किया गया कि अरब लीग राष्ट्रों ने भारत सरकार से इजरायल की मेरी यात्रा का विरोध किया है । हमने विदेश मंत्रालय को बताया कि मैं लेबनान के इजरायली-कब्जे वाले इलाकों या गोलान पहाड़ियों का जमीनी दौरा नहीं करूंगा, जिन पर सीरिया को आपत्ति हो सकती है। हमने एक हेलीकाप्टर से इन क्षेत्रों पर उड़ान भरी |

इज़राइली मुझे आईडीएफ के उत्तरी और दक्षिणी कमान में ले गये। मैंने उस क्षेत्र के उनके कमांडरों और सैनिकों से बातचीत की और घुसपैठ विरोधी उच्च तकनीकी प्रणालियों और अभिनव रणनीतियां को देखा – समझा, जिनके इज़राइल-लेबनान की सीमाएं घुसपैठियों से सुरक्षित है। आईडीएफ प्रशिक्षण स्कूल में, मुझे उनकी सुविधाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की जानकारी दी गई । टेंक क्रूज द्वारा उनके 65 टन मर्कवा टैंक का उल्लेखनीय प्रदर्शन किया गया ।

टैंक बंदूकधारियों के प्रशिक्षकों में अधिकांश युवा महिलायें थीं | जबकि कुछ टैंक ड्राइवर थे | हमने मानव रहित एयरबोर्न वाहन (यूएवी) सर्चर -2 का प्रदर्शन भी देखा, (जिसे अब हमने इसराइल से खरीदने का फैसला किया है) | थर्मल इमेजिंग स्टैंड अलोन सिस्टम (टीआईएसएएस), हाथ में पकड़ने वाला थर्मल इमेजर, लॉंग-रेंज रिकानेंसेंस और ओबजर्वेशन सिस्टम (LORROS), नाइट विजन डिवाइस और आर्टिलरी रडारका भी अवलोकन किया । मैंने यरूशलेम में इजरायल के रक्षा मंत्री यित्ज्क मोर्दचाई से मुलाकात की और तेल अवीव में इजरायल के राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय में छात्रों को संबोधित किया।

आईडीएफ से मैं सबसे अधिक उनके बेहद पेशेवर और अनौपचारिक अंदाज से प्रभावित हुआ | मुख्यालय और क्षेत्र में पुरुष और महिला सैनिकों के बीच कुछ भी "अनर्गल" नहीं था। कोई प्रोटोकॉल नहीं था - केवल कार्यक्षमता मुख्य थी | सबसे अच्छा उदाहरण जो मैं दे सकता हूं वह यह है कि मेरी पत्नी को आईडीएफ परिवारों, चिकित्सा प्रतिष्ठानों और उनकी रूचि के अन्य स्थानों पर सहजता से ले जाया गया । उसके लिए कोई हेलीकाप्टर या सशस्त्र एस्कॉर्ट्स नहीं लगाये गए थे | कार में एक महिला मेजर, एक अंग्रेजी बोलने वाला ड्राइवर-सह-गाइड और एक युवा फोटोग्राफर उनके साथ रहे । रास्ते में उन सबने एक साथ, एक ही टेबल पर भोजन लिया या कोई पेय ग्रहण किया । सब अपनी पानी की बोतल स्वयं साथ लेकर चलते थे |

मेरी टीम और मैं तोप, बंदूक और अन्य सैन्य उपकरणों का निर्माण करने वाले कई औद्योगिक प्रतिष्ठानों में गया | बहुत पढ़ने या जानकारी रखने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है अंतर्दृष्टि, जोकि इस यात्रा के दौरान मुझे मिली | स्पष्टतः इज़राइली रक्षा उद्योग ने इलेक्ट्रॉनिक्स में उत्कृष्ट क्षमता हासिल की है और साथ ही किसी भी पुरानी हथियार प्रणाली को अपग्रेड करने में भी उनको महारत हासिल है ।

उसके अगले साल जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ, तो हमने यूएवी सर्चर -1 को शीघ्र देने के विषय में इजरायल सरकार से पूछा, जिसके लिए पहले से ही आदेश दिए गए थे। यूएवी सही समय पर मिल गए | राजस्थान में परीक्षण के दौरान, एक यूएवी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गया। तब हमें एहसास हुआ कि हमारे यूएवी क्र्यू उन्हें इस्तेमाल करने के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं हैं । मैंने जनरल लिपकीन-शाहक और निर्माता, इजरायल एयर इंडस्ट्रीज को कुछ यूएवी टीमें, भारत में हमारे कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए तत्काल भेजने का अनुरोध किया । दोनों ने तुरंत जवाब दिया | हमने कुछ गोला-बारूद और उपग्रह चित्रों की त्वरित आपूर्ति के लिए भी आग्रह किया । यह भी स्वीकार कर लिया गया । इजरायल के उपकरण, यूएवी प्रशिक्षण टीमें, जरूरी गोला-बारूद, और सैटेलाइट तस्वीरें सभी युद्ध के दौरान हमें अविलम्ब प्राप्त हुईं |

कारगिल युद्ध के अठारह साल बाद, मेरा मानना ​​है कि मेक इन इंडिया कार्यक्रमों में भारत-इजरायल रक्षा सहयोग और संयुक्त उद्यम की अपार संभावनाएं हैं। प्रधान मंत्री मोदी की यह यात्रा तकनीकी, कृषि पद्धति, जल, स्मार्ट शहरों और डिजिटल भारत जैसे कार्यक्रमों में भी पारस्परिक सहयोग को और गहरा कर सकती है। चुनावी राजनीति की तुलना में भारत के राष्ट्रीय हित अधिक महत्वपूर्ण हैं, यह सबको समझना चाहिए ।
साभार - http://indianexpress.com/article/opinion/columns/my-journey-to-israel-4735753/

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