क्या महाभारत काल में टेलीपैथिक विद्या से परिपूर्ण थे संजय ? – दिवाकर शर्मा

टेलीपैथी को हिंदी में दूरानुभूति कहते हैं ! टेली शब्द से ही टेलीविजन, टेलीफोन आदि शब्द बने हैं ! ये सभी दूर के सन्देश और चित्र को पकड़ने वाले यंत्र हैं ! हमारे मस्तिष्क में भी इस तरह की क्षमता होती है लेकिन हम उसे पहचान नहीं पाते ! कोई व्यक्ति जब किसी के मन की बात जान ले या दूर घट रही घटना को पकड़ कर उसका वर्णन कर दे तो उसे पारेंद्रिय ज्ञान से संपन्न व्यक्ति कहा जाता है ! आपको जानकार आश्चर्य होगा कि जिस टेलीपैथिक विद्या का ज्ञान आधुनिक युग में 1882 में फैड्रिक डब्लू.एच.मायर्स ने विश्व को कराया उसे हमारे श्रेष्ठ ऋषि मुनि महाभारत काल में ही प्राप्त कर चुके थे ! 

महाभारत युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था ! यह सत्य और असत्य के मध्य हुआ महायुद्ध था ! महाभारत के अनुसार इस युद्ध में आर्यावृत के प्रायः सभी जनपदों ने भाग लिया था ! महाभारत व अन्य वैदिक साहित्यों के अनुसार यह प्राचीन आर्यावृत में वैदिक काल के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था ! इस युद्ध में लाखों क्षत्रिय योद्धा मारे गये जिसके परिणामस्वरूप वैदिक संस्कृति तथा सभ्यता का पतन हो गया था ! इस युद्ध में सम्पूर्ण भारत वर्ष के राजाओं के अतिरिक्त बहुत से अन्य देशों के क्षत्रिय वीरों ने भी भाग लिया और सब के सब वीर गति को प्राप्त हो गये ! इस युद्ध के परिणामस्वरुप भारत में ज्ञान और विज्ञान दोनों के साथ-साथ वीर क्षत्रियों का अभाव हो गया ! एक तरह से वैदिक संस्कृति और सभ्यता जो विकास के चरम पर थी उसका एकाएक विनाश हो गया ! प्राचीन भारत की स्वर्णिम वैदिक सभ्यता इस युद्ध की समाप्ति के साथ ही समाप्त हो गयी ! इस महान युद्ध का उस समय के महान ऋषि और दार्शनिक भगवान वेदव्यास ने अपने महाकाव्य महाभारत में वर्णन किया, जिसे सहस्राब्दियों तक सम्पूर्ण भारतवर्ष में गाकर एवं सुनकर याद रखा गया !

महाभारत ग्रन्थ को पढने पर हम यह पाते है कि भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपरा है ! भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से हजारों वर्ष पूर्व हो चुका था ! जिस समय यूरोप में घुमक्कड़ जातियाँ अभी अपनी बस्तियाँ बसाना सीख रही थीं, उस समय भारत में सिंध घाटी के लोग सुनियोजित ढंग से नगर बसा कर रहने लगे थे ! उस समय तक भवन-निर्माण, धातु-विज्ञान, वस्त्र-निर्माण, परिवहन-व्यवस्था आदि उन्नत दशा में विकसित हो चुके थे ! हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से भी भारत की प्राचीनतम वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है ! प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट , ब्रह्मगुप्त और आर्यभट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है ! इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है ! 

महाभारत एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमे भारतीय ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का रहस्य छुपा हुआ है ! महाभारत में कई घटना, सम्बन्ध और ज्ञान-विज्ञान के रहस्य छुपे हुए है ! महाभारत में उल्लेखित बर्बरीक, अश्वत्थामा, भीम, भीष्म, कृष्ण, सहदेव, सन्जय, कर्ण आदि कई ऐसे पात्र है जो जो उस समय कई विद्याओं से परिपूर्ण थे ! इन्ही पात्रों में से हम आज एक ऐसे व्यक्ति सन्जय एवं उन्हें प्राप्त टेलीपैथिक विद्या के बारे में बताने जा रहे है ! 

सन्जय महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र थे ! संजय के पिता बुनकर थे अतः उन्हें सूत पुत्र माना जाता था ! संजय के पिता का नाम गावाल्यगण था ! संजय ने महर्षि वेद व्यास से दीक्षा लेकर ब्राह्मणत्व ग्रहण किया था ! वेदादि विद्याओं का अध्यन करके वे ध्रुतराष्ट्र की सभा में सम्मानित मंत्री बन गए थे ! आज के दृष्टिकोण से वे टेलीपेथिक विद्या में पारंगत थे ! कहा जाता है कि गीता का उपदेश दो लोगों ने सुना, एक अर्जुन ने दूसरा संजय ने, देवताओं के लिए दुर्लभ चतुर्भुज रूप का दर्शन भी सिर्फ इन दो लोगों ने ही किया था ! 

संजय अपनी स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्द थे ! संजय ध्रुतराष्ट्र के सलाहकार व सन्देश वाहक भी थे ! वह ध्रुतराष्ट्र को सही सलाह देते रहते थे ! एक ओर जहाँ वे शकुनी की कुटिलता से उन्हें सजग करते रहते थे वहीँ दूसरी ओर दुर्योधन द्वारा पांडवों के साथ किये जाने वाले असहिष्णु व्यवहार के प्रति भी धृतराष्ट्र को अवगत कराकर उन्हें चेताते रहते थे ! 

सन्जय को दिव्यदृष्टी प्राप्त थी, अतः वह युद्धक्षेत्र का समस्त दृश्य महल में बैठे ही देख लेते थे ! नेत्रहीन ध्रुतराष्ट्र ने महाभारत युद्ध का प्रत्येक अंश उनकी वाणी से सुना ! महाभारत युद्ध के पश्चात अनेक वर्षों तक संजय युधिष्ठिर के राज्य में रहे ! इसके पश्चात ध्रुतराष्ट्र, गांधारी और कुंती के साथ उन्होंने भी संन्यास ले लिया था ! बाद में ध्रुतराष्ट्र की मृत्यु के पश्चात वे हिमालय चले गए जहाँ से वह कभी नहीं लौटे !

कहा जाता है कि संजय को श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास द्वारा दिव्य दृष्टि का वरदान दिया गया था ! जिससे महाभारत युद्ध में होने वाली घटनाओं का आँखों देखा हाल बताने में संजय, सक्षम थे ! हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार महाभारत या परवर्ती ग्रंथों में नहीं मिलता, परन्तु माने हुए चिंतक और दार्शनिक ओशो रजनीश ने अपनी व्याख्या में संजय की दिव्य दृष्टि पर वैज्ञानिक तर्कों से ठोस बात की है ! 6 खंडों में हिंदी में उपलब्ध ओशो गीता दर्शन नामक ग्रंथ के पहले अध्याय में उन्होंने महाभारत की कथाओं का वर्णन करते हुए साबित किया कि किस तरह संजय दिव्य दृष्टि को उपलब्ध थे !

महाभारत को गौर से पढने पर उन समाजघातकों के मुंह पर करार तमाचा जड़ा जा सकता है, जो सदा भारत की वर्ण व्यवस्था को कोसने और उसकी चर्चा के माध्यम से समाज को बांटने का षडयंत्र रचते रहते हैं ! जो कहते है कि हमारे वेदों में शूद्र को धर्म ग्रंथों का पठन पाठन करने का अधिकार नहीं है ! इन महामूर्खों को इस बात को समझना बेहद आवश्यक है कि महाभारत जैसे महान ग्रन्थ के रचनाकार महर्षि वेद व्यास का जन्म भी एक धीवर मां के गर्भ से हुआ था, परन्तु उन्होंने वेदों का पठन-पाठन कर ब्राह्मणत्व को ग्रहण किया ! ऐसी कुंठित मानसिकता के लोगों को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि आज बड़े से बड़ा प्रकांड विद्वान् भी प्रवचन देने जिस गद्दी पर बैठता है, उसे व्यास पीठ कहा जाता है !

टेलीपैथी का विज्ञान –

हमारा भविष्य क्या है इसकी जानकारी कर लेना भी टेलीपैथिक विद्या के अंतर्गत ही आता है ! अक्सर कुछ लोग दूसरे को देखकर उसके मन की बात भांप लेते हैं ! यह सब मोटे तौर पर टेलीपैथी के तहत ही आता है ! दो व्यक्तियों के बीच विचारों और भावनाओं के आदान-प्रदान को हम टेलीपैथी कहते हैं ! इस तकनीक में हमारी पांचों ज्ञानेंद्रियों का इस्तेमाल नहीं होता ! इसमें देखने, सुनने, सूंघने, छूने और चखने की शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया जाता ! यह तो हमारे मन और मस्तिष्क की शक्ति होती है ! इसे हम ध्यान तथा योग के अभ्यास से हासिल कर सकते हैं !

ऐसा माना जाता है कि जिस व्यक्ति में यह छठी ज्ञानेंद्रिय होती है वह जान लेता है कि दूसरों के मन में क्या चल रहा है ! यह परामनोविज्ञान का विषय है जिसमें टेलीपैथी के कई प्रकार बताए जाते हैं ! हमारी कल्पनाएँ तथा भावनाएँ डिस्चार्ज ऑफ वाइटल फोर्स हैं ! यही डिस्चार्ज अंतःकरण में कभी-कभी फीलिंग्स या विशेष अहसास बनकर प्रकट होते हैं ! जब यह दो इंसानों के बीच होता है तो इसे टेलीपैथी कहते हैं ! यही अगर समय-सीमा से परे भविष्य की सूचना देता है तो इसका आधारभूत कारण कॉस्मिक अवेयरनेस अर्थात ब्राह्मी चेतना होता है ! इसी चेतना का जिक्र आइंस्टीन के सापेक्षवाद के सिद्धांत में मिलता है ! उन्होंने इसमें लिखा था कि यदि प्रकाश की गति से भी तीव्र गति वाला कोई तत्व हो तो वहाँ समय रुक जाएगा ! वहाँ बीते कल, आज और आने वाले कल में कोई अंतर नहीं रहेगा ! दरअसल हम सभी में थोड़ी बहुत टेलीपैथी होती है ! लेकिन कुछ लोगों में यह इतनी ज्यादा होती है कि वह अपनों के साथ घटने वाली अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की घटनाओं को आसानी से जान लेते हैं ! वैसे अभी तक प्रामाणिक रूप से ऐसी कोई उपलब्धि वैज्ञानिकों को हासिल नहीं हो सकी है, जिसके आधार पर टेलीपैथी के रहस्यों से पूरा पर्दा उठ सके !

टेलीपैथी सीखने के तरीके 

टेलीपैथी विकसित करने के तीन तरीके बताये जाते है, 1. ध्यान, 2. योग, 3. आधुनिक तकनीक

1. ध्यान

लगातार ध्यान करते रहने से मन स्थिर होने लगता है ! मन के स्थिर और शांति होने से साक्षीभाव आने लगता है ! यह संवेदनशिल अवस्था टेलीपैथी के लिए जरूरी होती है ! ध्यान करने वाला व्यक्ति किसी के भी मन की बात समझ सकता है ! कितने ही दूर बैठे व्यक्ति की स्थिति और बातचीत का वर्णन कर सकता है !

2. योग

योग में मन: शक्ति योग के द्वारा इस शक्ति हो हासिल किया जा सकता है ! ज्ञान की स्थिति में संयम होने पर दूसरे के मन का ज्ञान होता है ! यदि मन शांत है तो दूसरे के मन का हाल जानने की शक्ति हासिल हो जाएगी ! योग में त्राटक विद्या, प्राण विद्या के माध्यम से भी आप यह विद्या सीख सकते हैं !


3. आधुनिक तरीका

आधुनिक तरीके के अनुसार ध्यान से देखने और सुनने की क्षमता बढ़ाएंगे तो सामने वाले के मन की आवाज भी सुनाई देगी ! इसके लिए नियमित अभ्यास की आवश्यकता है ! सम्मोहन के माध्यम से भी अपने चेतन मन को सुलाकर अवचेतन मन को जाग्रत किया जा सकता है !

दिवाकर शर्मा 

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