1857 की क्रांति, अर्थात अंग्रेंजो (ईस्ट इंडिया कंपनी) के दमनकारी शासन के खिलाफ बुलंद हुई वह आवाज, जिसने स्वतंत्रता की बुनियाद रखी । यदि ...
तो क्या 1857 का वह महासंग्राम केवल इन राजपरिवारों के अधिकारों के कारण हुआ ? तो कलकत्ता की बैटकपुर छावनी का वह प्रसंग विचारणीय है, जो भारत के हिन्दू समाज की कमजोरी और खूबी दोनों को दर्शाता है । यह वह समय था जबकि सवर्ण लोग दलितो की छाया तक से बचते थे। एक ब्राह्मण सैनिक ने वहां से झाडू लेकर गुजर रहे सफाई कर्मी से कहा कि जरा दूर होकर निकलो, कहीं तुम्हारी छाया हम पर न पड़ जाए। सफाईकर्मी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि यहां तो मेरी छाया से भी बचते हो मगर क्या तुम्हे पता है कि जो नई कारतूस आ रही है उसमें सुअर व गाय की चर्बी लगाई जा रही है जिसे तुम लोगों को अपने मुंह से खोलना पड़ेगा।
कुल 150 लोग मारे गए। अंग्रेंजो ने शहर पर कब्जा करने के बाद जम कर कत्लेआम किया। बताते हैं कि चंद दिनों के अंदर ही 6,000 लोग मारे गए। तमाम बागियो को चौराहों पर फांसी पर लटका दिया गया। बागियों से बीबीघर के खून से लथपथ फर्श को जीभ से चाट कर साफ करने को कहा गया। मुसलमानों के मुंह में सुअर व हिंदुओं के मुंह में गाय का मांस भरने का आदेश दिया गया। हिंदुओं को गाय व मुसलमानों को सुअर की खाल में सिलने का आदेश देते हुए जनरल हैक्टी है ब्लाक ने कहा कि मैं तुम्हें ऐसी सजा दूंगा कि मरने के बाद भी स्वर्ग के हकदार न हो पाओ।

मध्यप्रदेश समाचार
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