गौरी लंकेष की दुखद ह्त्या पर शोक उत्सव ' - मिलिंद अरोलकर

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किसी भी व्यक्ति की हत्या के बाद, नजदीकी लोगों द्वारा दु: ख और शोक व्यक्त करना समझ में आता है । लेकिन जब कोई वामपंथी कबीले के किसी व्यक्ति का खून बहता है, तो लाल संप्रदाय की पहली प्रतिक्रिया, अपने राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने की होती है | किसी की मौत उन्हें राजनैतिक लाभ का सुअवसर प्रतीत होती है और वे घटना का दुरुपयोग कर अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों को अपराधी घोषित कर शोक मनाते हैं। माओवादी वामपंथियों की हमेशा यही रणनीति रही है। इधर गौरी लंकेश की बर्बर हत्या हुई, और उधर उनके साथियों ने राष्ट्रवादी, हिंदू संगठनों को बहुत ही निम्नस्तरीय, अपमानजनक और अभद्र शब्दों में गरिया कर आनंद लेना प्रारंभ कर दिया । लगता है मानो कम्यूनिस्ट शोक नहीं जता रहे हैं, बल्कि गौरी लंकेष की ह्त्या का जश्न मना रहे हैं।

“लंकेश” पत्रिका की 55 वर्षीय सम्पादक गौरी लंकेश पत्रकारिता जगत में कोई बड़ा नाम नहीं थीं, उनकी अगर कोई खासियत बताई जा सकती है तो मात्र इतनी कि वे हिंदुत्व की मुखर आलोचक तथा माओवादी विचारधारा के प्रति अनन्य सहानुभूति रखने वाली महिला थीं | यहाँ तक कि उन्होंने खूंखार दरिन्दे आतंकवादियों के खूनी कृत्यों को जायज ठहराने वाले और 'भारत की बर्बादी' के नारे लगाने वाले कन्हैया कुमार और उमर खालिद को अपना पुत्र घोषित किया था ।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उनकी ह्त्या के बाद कुछ पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने राजराजेश्वरी नगर स्थित आइडियल होम्स कॉलोनी के गौरी के घर के आसपास कई बार एक मोटरसाइकिल पर दो संदिग्ध लोगों को देखा था । रात्री 8 बजे जिस समय यह घटना घटित हुई, गौरी लंकेश अकेली थीं और उनकी बुजुर्ग माँ कुछ दिन से उनकी बहिन के पास गई हुई थीं | बहुत नजदीक से गौरी की छाती में चार गोलियां मार दी गईं।

जिस समय लंकेश को दफनाया गया, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैय्या, गृह मंत्री रामलिंगा रेड्डी और अन्य अनेक नेता अंतिम सम्मान देने वहां उपस्थित थे। हैरत की बात है कि जो कम्यूनिस्ट आये दिन ज़रा ज़रा सी बात पर राज्य सरकार को दोषी ठहराते हैं और मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग करते रहते हैं, इतनी बड़ी घटना पर राज्य सरकार के खिलाफ एक शब्द नहीं बोले, कर्नाटक सरकार के खिलाफ असंतोष का कोई शब्द नहीं | 

एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि गौरी लंकेश ने अपनी भयावह हत्या बाले दिन ही सुबह 9 बजे और अपरान्ह 3 बजे कुछ ट्वीट्स किए थे, जो स्पष्टतः लाल खेमे की गुटबाजी को प्रदर्शित करते हैं ।

लंकेश ने लिखा: "मुझे क्यों लगता है कि हममें से कुछ आपस में ही लड़ रहे हैं? जबकि हम सभी जानते हैं हमारा "सबसे बड़ा दुश्मन" कौन है, क्या हम सबको उस पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए? "

एक और ट्वीट में, वह खुले तौर पर वामपंथीयों के झूठ को उजागर करते हुए लिखती है: ठीक है, हम में से कुछ नकली पोस्ट फैलाने जैसी गलती करते हैं। हमें चाहिए कि एक-दूसरे को समझाईस दे दें, किन्तु कामरेड्स उन्हें बेनकाब करने की गलती हमें नहीं करना चाहिए |

पाठकों को रोहित वमूला स्मरण होगा, वह पीएचडी छात्र जिसकी दुर्भाग्यपूर्ण आत्महत्या के बाद उसे एक दलित के रूप में चित्रित किया गया था, और दुःख व्यक्त करने के बहाने राष्ट्रवादी शक्तियों को नीचा दिखाने का करतब बखूबी निभाया गया था । जबकि वह दलित था ही नहीं | इसी प्रकार का खेल प्रचारतंत्र के माध्यम से महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता डा. दाभोळकर, जी.बी. पानसरे और एम.एम. कलबर्गि की हत्या के बाद खेला गया और अब गौरी लंकेश की अज्ञात हमलावरों द्वारा की गई ह्त्या को अपने राजनैतिक हितों की दृष्टि से उपयोग किया जा रहा है | कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सब शोर जानबूझकर माओवादियों को बचाने के लिए मचाया जा रहा है, जिसकी कि संभावना लंकेश के भाई ने भी जताई है ।

"लंकेश की ह्त्या दक्षिण पंथी तत्वों ने की है " तर्क के सिद्धांतों को दरकिनार कर इस प्रकार के ट्वीट्स सुनियोजित और व्यवस्थित रूप से किये जा रहे हैं। पीएचडी छात्र रोहित वमूला आत्महत्या मामले में इसी तरह की रणनीति अपनाई गई थी जब उसने 17 जनवरी 2016 को हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्रावास में आत्महत्या की थी, जहां से उसे और चार अन्य छात्रों को एक वर्ष पूर्व निलंबित कर दिया गया था और अनुशासनात्मक कार्रवाई के अनुसार विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कुछ प्रतिबन्ध भी लगाए गए थे । जबकि अपने आत्महत्या पत्र में, वेमूला ने 'एएसए परिवार' से उन्हें निराश करने के लिए माफी मांगी थी । इसी प्रकार लंकेश ने भी अपने ट्वीट्स में अपने माओवादियों के साथ जुड़े होने व वामपंथी खेमे के बीच की उथलपुथल को व्यक्त किया है ।

गौरतलब है कि, गौरी के भाई ने गौरी हत्याकांड की सीबीआई जांच की मांग की है, तथा कहा है कि उन्हें कर्नाटक के गृह मंत्रालय पर भरोसा नहीं है | हैरत की बात है कि राहुल गांधी ने बिना जांच के ही उन हत्यारों को खोज भी लिया है और जगजाहिर भी कर दिया है । कांग्रेस ने भी उनके सुर में सुर मिलाते हुए आरएसएस की विचारधारा का दोषी बता दिया और "असहमति के स्वर कुचलने की साजिश” घोषित भी कर दिया । इस बीच, बेंगलुरु पुलिस ने लंकेस के निवास से वह सीसीटीवी फुटेज हासिल कर लिया है, जोकि हत्यारों को पहचाने जाने की सबसे महत्वपूर्ण कुंजी है ।

किन्तु शवभक्षी गीधों की तरह राजनीतिज्ञ इस मौके को हाथ से जाने देना नहीं चाहते | आम आदमी पार्टी ने गौरी लंकेष की हत्या को "भारत के बहुलतावादी विचार" की हत्या कहा है, तो इस्लामी आतंक के समर्थक राणा अय्यूब ने "हर गली में गोडसे" को ढूंढ लिया है और ट्वीट्स किया : इस देश की हर गली में गोडसे हैं; उसे हर दक्षिणपंथी समूह से धमकी मिली । क्या अब भी भारत शर्मिंदा नहीं ?

जब राणा अयुब यह घोषित कर रहे हैं कि लंकेश को हर दक्षिणपंथी समूह से धमकी मिल रही थी, तो यह तो एक बयान हुआ, जिसके माध्यम से पुलिस हत्यारों तक पहुँच सकती है । कर्नाटक पुलिस को तुरंत इस मूर्खतापूर्ण आरोप स्पष्टीकरण के लिए अय्यूब को हिरासत में लेना चाहिए।

सरदेसाई-घोष पति पत्नी तो स्वयं ही सनसनीखेज आरोपों के लिए मशहूर राष्ट्रीय रियलिटी शो चलाते हैं- जस्ट कांट बिलीव (आप भरोसा नहीं करेंगे) ...। लेडी सरदेसाई ने लंकेश को 'हिंदुत्ववादी राजनीति के खिलाफ निडर आवाज' बताते हुए उस की प्रशंसा की तो उनके पतिदेव सरदेसाई ने दो कदम आगे बढ़कर जताया कि वे 'हिंदुत्व राजनीति की आलोचक' की हत्या के कारण परेशान हैं!

दिग्विजय सिंह और जावेद अख्तर कैसे चूकते, उन्हें तुरंत दाभोलकर, पानसारे और कलबर्गि याद आये और पूछा कि एक ही तरह के लोग क्यों मारे गए हैं; और कैसे लोग मारे जा रहे हैं... आदि

भारत-विरोधी राजनीति के अग्रगण्य हस्ताक्षर और आतंकवादियों के घोषित मित्र प्रशांत भूषण भला आरएसएस के खिलाफ विषवमन का यह अवसर किस चूकते ? उन्होंने लिखा - "बेंगलूर में भाजपा का पर्दाफाश करने वाली लंकेश को उनके ही घर में गोली मार दी गई है!"

एक हैं सिद्धार्थ भाटिया, उनका शंखनाद सुनिये - सभी पत्रकारों के लिए यह समय और भी मजबूती से दृढ और निडर होने का है। नफरत फैलाने वाले कट्टर किन्तु कायर तत्वों से मजबूती से निबटना होगा । दिलचस्प यह है कि माओवादी और वामपंथी दलों के अनुसार, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पाकसाफ है, जबकि भाजपा हत्यारी । मजेदार बात यह भी है कि श्रीमान भाटिया साहब गौरी लंकेस की हत्या के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हेतु सडकों पर आकर संघर्ष करने हेतु कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों को उकसा रहे हैं । उनकी नजर में कांग्रेस पर कोई शकोसुबहा बेकार है और मुख्यमंत्री सिद्धरमैया भी प्रदर्शन में सम्मिलित हो गए । सवाल उठता है कि जब सरकार उनकी, तो प्रदर्शन किसके खिलाफ कर रहे हैं ? हिंदुत्व समर्थक, दक्षिणपंथी, बीजेपी, आरएसएस सभी दाभोलकर, पंसारे, कलबर्गि और अब लंकेश के हत्यारे बन गए हैं। वामपंथी उदारवादियों द्वारा इस बार अपने एजेंडे से रोहित वेमूला को त्याग दिया गया है क्योंकि उच्च न्यायालय का निर्णय आ चुका है कि वेमुला कोई दलित नहीं था, इसलिए कम्यूनिस्टों के लिए उनकी आत्महत्या का अब और उपयोग नहीं बचा।

आपिस्टों जैसे कुछ उदारवादी वामपंथी लंकेश की हत्या पर अपनी पीड़ा को अधिक परिष्कृत तरीके से व्यक्त करते हैं।

एक जयकुमार ने ट्विटर पर लिखा है: 'नागपुर के सभी आरएसएस वाले ब्राह्मणों को मार डालो, तभी स्थितियों नियंत्रित की जा सकेंगी ।' इस शांतिपूर्ण संदेश द्वारा एक तीर से दो निशाने साधे गए हैं -ब्राह्मणों से नफरत का इजहार और अपने खूनी विचारों का प्रचार | भला इसके लिए लंकेश की ह्त्या से अधिक बेहतर अवसर कब मिलेगा आपियों को ? "भारत अब ब्राह्मणिक विचारधारा को कभी बर्दाश्त नहीं करेगा। मैं 2019 में भाजपा और ब्राह्मणवादी विचारधारा को मारने के लिए सभी भारतीयों से अनुरोध करता हूं ... ... मारने के लिए .. हहहहः ! तो हिंसा का विरोध कितना शांतिपूर्ण ?

एक 'कॉमरेड नांबियार' ने सुझाव दिया कि " अन्य दलों को केरल जाकर सीपीएम से रणनीति सीखना चाहिए ..."। कौन नहीं जानता कि क्या है केरल की कम्यूनिस्ट रणनीति? आरएसएस के, भाजपा के, राजनीतिक विरोधियों दलों के कार्यकर्ताओं को अपने बेरहमी से क़त्ल करना !

भाजपा, आरएसएस और पूरी हिंदुत्व विचारधारा पर इसी तरह के झूठे, अपमानजनक और निराशावादी हमले हो रहे हैं । अपने स्वयं के गिरोह में से किसी की भी हत्या या आत्महत्या का इस्तेमाल राष्ट्रवादी संगठनों को बदनाम करने के लिए एक पूर्व योजनाबद्ध अभियान के साथ किया जाता है।

जब कोई भी अपराध होता है, तब जांचकर्ता द्वारा सबसे पहले अनुसन्धान इस बात का होता है कि. हत्या या घटना का उद्देश्य क्या है, या फिर इस घटना से किसे लाभ होगा ? इसी आधार पर सबसे पहले मारे गए व्यक्ति के रिश्तेदारों और नजदीकी लोगों से पूछताछ की जाती है और फिर संदिग्धों की सूची बनाई जाती है | इस सूची में सबसे ऊपर वह नाम होता है, जिसे उस मृत्यु से तत्काल लाभ हुआ हो ।

चलिए व्यावहारिक रूप से सोचते हैं। दाभोलकर, पंसारे, कलबर्गि और अब लंकेश की हत्याओं से लाभ किसे हुआ ? क्या भाजपा और हिंदुत्व की सेनाओं को कोई लाभ हैं? निश्चित रूप से नहीं! वास्तव में, सभी मौतों का उपयोग तात्कालिक और नियोजित सोशल मीडिया अभियानों के लिए हुआ है जिसमें आरएसएस, मोदी, बीजेपी और तथाकथित राइट विंग के खिलाफ अपशब्द और गालियों का खुलकर प्रयोग हुआ है। इसमें सभी वामपंथी, उदारवादी, आजादी गिरोह, 'भारत तेरे टुकडे होंगे' गिरोह, माओवादी समर्थक और सच्चे माओवादी आम आदमी पार्टी और सबसे महान नेता की महान पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसे सभी सम्मिलित हैं। हाल के वर्षों में सोशल मीडिया पर इन लोगों का प्रचार तंत्र ठप्पप्राय हो गया था | लुटियन गिरोह की साख निरंतर गिरती जा रही थी | अब इनकी बन फबी है और उपर्युक्त गिरोह अपनी पूरी दमखम के साथ, हिंदू संगठनों को अपराधी घोषित करते हुए, हैशटैग और भाषणबाजी के साथ सोशल मीडिया पर बमबारी कर रहा है, जिसे #gauri lankesh murder पर देखा जा सकता है |

किसी भी बामपंथी हिंदुत्वविरोधी शख्सियत की मृत्यु के बाद, राष्ट्रवादी ताकतों को कठघरे में खड़ा किया जाता है, उन पर सवालिया निशान लगाए जाते हैं, इससे कौन लाभ उठाता है?

दाभोलकर हों या पानसारे या कलबर्गि और अब लंकेश सभी की हत्याएं एक ही तरीके से हुई हैं । तीनों मामलों में हत्यारे दो थे और मोटरबाइक पर सवार थे। सभी हत्याएं कांग्रेस शासित राज्यों में हुईं, किन्तु किसी भी मामले में कांग्रेस पार्टी के खिलाफ आवाज नहीं उठी और न ही मुख्यमंत्री का इस्तीफा ही मांगा गया । 

तो लाभ किसे हुआ?

निश्चित रूप से कमसेकम आरएसएस बीजेपी या तथाकथित राइट विंग को तो नहीं ही हुआ । लाभ कमाया बामपंथियों, उदारवादियों, आजादी गिरोह, 'भरत तेरे टुकडे होंगे' गिरोह, माओवादी समर्थक और सही-माओवादी आम आदमी पार्टी जैसों को ।

बैसे भी बामपंथियों के लिए अपने राजनीतिक लाभ के लिए खून बहाना कोई नई बात नहीं है | विश्व इतिहास में इस तरह के पागलपन भरे और अमानवीय कृत्यों के हजारों उदाहरण भरे पड़े हैं । तो जांच का एक एंगिल क्या यह नहीं होना चाहिए कि कहीं अपने राजनीतिक विरोधियों को कठघरे में खड़ा करने और उन्हें जनता में अलोकप्रिय बनाने के लिए तो किसी को 'शहीद' नहीं किया जा रहा ?

शायद इसीलिए गौरी लंकेश के भाई इंद्रजीत लंकेश ने सीबीआई जाँच की मांग की है, लेकिन पूरा मम्मी गिरोह इस दुखद ह्त्या पर, भावनात्मक तरीके से दुःख व्यक्त करने की बजाय, राजनैतिक विरोधियों को कैसे फंसाया जाए, इस उधेड़बुन में लगा है!

# गौरी लंकेष मर्डर शोक कम राष्ट्रवादी संगठनों को टक्कर देने के उत्सव में बदल गया है, दो चीजों से स्पष्ट है। पहला तो यह कि गौरी लंकेश दशकों से हिंदुत्व विरोध में लिखती आ रही थी, और उसका कोई महत्व नहीं था, सिवाय वितृष्णा पैदा करने के, जोकि भाजपा को लाभ ही पहुंचाता था | दूसरा रह कि गौरी लंकेश का रहस्यपूर्ण ट्वीट जो उसने ह्त्या के पूर्व किया और उसमें वह अपने वैचारिक कॉमरेड्स को ही संबोधित कर रही थी जो विश्वासघात के शानदार नमूने हैं |

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