उतरप्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान दूसरे धर्मों में गए हिन्दुओ की घर वापसी एक बड़ा मुद्दा बन कर उभरी थी। इधर भाजपा की सरकार बनी और...
उतरप्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान दूसरे धर्मों में गए हिन्दुओ की घर वापसी एक बड़ा मुद्दा बन कर उभरी थी। इधर भाजपा की सरकार बनी और उधर वह मुद्दा भी सो गया। अब घर वापसी की किसी को कितनी चिंता है इसका ताज़ा उदाहरण इसी दशहरे के दिन देखने को मिला है। राजधानी से बिलकुल सटे कानपूर देहात के पुखराया कसबे में २५ हजार दलितों ने बौद्ध धर्म अपना लिया। हिन्दू समाज से इतनी बड़ी संख्या में हुए पलायन पर न तो भाजपा ने कुछ बोला ना ही उस सरकार ने जो इसी मुद्दे पर सत्ता में आयी है। ताज्जुब होता है कि सरकार की ठीक नाक के नीचे इतना बड़ा घर्म परिवर्तन डंके की चोट पर बाजे गाजे के साथ होता है और सरकारी तंत्र को खबर तक नहीं लगती।
पूरे प्रकरण को ठीक से समझने के लिए थोड़ा पीछे देखना जरुरी है। वर्ष 2014 में बीजेपी के केंद्र में सत्ता पर काबिज होते ही देशभर में हिंदुओं की कथित घर वापसी की मुहिम तेज हो गई थी। खासतौर पर देश के हर उस राज्य में जहां बीजेपी सत्ता संभाल रही है, वहां ऐसी मुहिम जोर-शोर से चलाई गयी। झारखंड में आरएसएस और इससे जुड़े संगठन काफी अरसे से राज्य के सुदूरवर्ती आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में ऐसे अभियान चला रहे थे. इन जगहों पर इनके निशाने पर वैसे परिवार थे, जिन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार किया। वैसे यहां मौजूद ईसाई मिशनरीज पर भी प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने के आरोप लगते रहे थे। झारखंड के आदिवासी बहुल खूंटी जिले के अड़की प्रखंड के सुदूरवर्ती गांव सिंदरी के एक स्कूल में आरएसएस से जुड़े संगठन ने कुछ आदिवासी परिवारों की घर वापसी कराई. विश्व हिंदू परिषद् के कार्यकर्ताओं ने इसके लिए पहले ग्राम पंचायत का आयोजन कर लोगों को समझाया, जिसके बाद हिंदू रीति रिवाज से पंडित के द्वारा मंत्रोचार और शुद्धिकरण कर ढोल नगाड़े के साथ बाइज्जत हिंदू धर्म में शामिल किया गया।
दरअसल हिंदू संगठनों का आरोप था कि इन परिवारों को प्रलोभन देकर ईसाई धर्म स्वीकारने पर मजबूर किया गया था. ऐसे में अब इन परिवारों को वापस हिंदू धर्म में लाया जा रहा है. वहीं धर्म परिवर्तन के आरोपों के बाबत संगठन का कहना है कि ये कोई धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि हिंदुओं की घर वापसी है. अब तक करीब 50 परिवारों की घर वापसी करवाई गई।
उस समय ऐसे ही एक कार्यक्रम में आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत भी शामिल हुए थे. दरअसल झारखंड में गरीबी और पिछड़ेपन के शिकार आदिवासी इलाकों में ईसाई मिशनरीज पर ये आरोप भी लगते रहे हैं कि वे अपने सेवा कार्यों की आड़ में प्रलोभन देकर आदिवासियों को धर्म परिवर्तन करा ईसाई बनाने में लगे हैं. हालांकि ईसाई धर्म से जुड़े लोग जबरन धर्म परिवर्तन के आरोपों से इंकार करते रहे हैं. किन्तु इस सचाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन इलाको में बीते कुछ दशक में धर्म परिवर्तन की घटनाओं में इजाफा हुआ।
विश्व हिंदू परिषद् (वीएचपी) का ‘घर वापसी’ कार्यक्रम अब भी जारी है। वर्ष 2016 में वीएचपी ने केरल में पांच परिवार के 27 सदस्यों की हिन्दू धर्म में वापसी कराई । वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने उस समय कहा था कि वीएचपी का ‘घर वापसी’ कार्यक्रम जारी रहेगा। वरनापल्ली के पास एक मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में इन लोगों का धर्मांतरण कराया। वीएचपी नेताओं ने कहा कि इन लोगों के पुरखों को सालों पहले ईसाई धर्म अपनाना पड़ा था। ऐसे में अब धर्मांततरण कर इन लोगों के पास अपने इष्ट को पूजने की आजादी है। वीएचपी के जिला नेता प्रताप जी पडीक्कल ने कहा कि ये लोग हिन्दू धर्म में वापसी करना चाहते थे। इन लोगों की इस इच्छा पर ही हमने ‘घर वापसी’ कार्यक्रम कर इन लोगों की अपने धर्म में वापसी करवाई।
ये दोनों उदाहरण यहाँ देना इसलिए जरुरी था क्योकि इसी के जरिये पूरी कहानी को समझा जा सकता है। संघ , विहिप और भाजपा के लिए धर्मपरिवर्तन बहुत बड़ा और गंभीर मुद्दा रहा है। हर बार चुनाव में भी यह मुद्दा उठता है। इस बार के प्रदेश विधानसभा के चुनाव के समय खुद योगी आदित्यनाथ ने ही इस पर कई भाषण दिए थे। हिदुओ की घरवापसी उनके लिए खुद भी हमेशा गंभीर मुद्दा रहा है , ऐसा उनके भाषणों से लगता है लेकिन आश्चर्य है कि आज जब वह खुद सूबे के मुख्यमंत्री है , उन्ही के कार्यकाल में , राजधानी में सरकार की नाक के नीचे ही इतना बड़ा धर्म परिवर्तन हो गया लेकिन अभी तक इस पर न तो सरकार कुछ बोल रही है और नहीं भाजपा , संघ या विहिप।
धर्म परिवर्तन में अब तक की सबसे बड़ी संख्या
हिन्दू समाज से एकसाथ दूसरे धर्म में शामिल होने वाली यह अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। पूरी कहानी जो सामने आ रही है उसके अनुसार दशहरे के पर्व के दिन कानपुर देहात के पुखरायां कस्बे में 25000 हजार दलित समाज के लोगों ने धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म अपना लिया। इस मौके पर लोगों ने पहले विधि-विधान से पूजा-अर्चना की और बौद्ध बन गए। इसके पूरे कस्बे में जुलूस निकाला। राष्ट्रीय दलित पैंथर के प्रदेश अध्यक्ष धनीराम पैंथर ने बताया कि सम्राट अशोक ने विजयदशमी के दिन ही बौद्ध धर्म अपनाया था और डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने भी बौद्ध की दिक्षा गृहण कर ली थी। धर्म परिवर्तन करने के सवाल पर पैथर ने कहा कि हमारी जाती के लोगों को लोग गलत नजर से देखते हैं। इसी के चलते हमलोग धर्म परिवर्तन करने को मजबूर हो रहे हैं।
धनीराम पैंथर इतने पर ही नहीं रुके, उन्होंने आगे जो कहा वह उनके मंसूबों को स्पष्ट कर देता है | वे फरमाते हैं कि हमारे पूर्वज हिंदु नहीं थे, हम पर जबरन इस धर्म को थोपा गया था। साथ ही यह भी कहा जितने भी चमार धानुक धोबी आदि हम लोग हैं, वे हिंदु है ही नहीं, न ही हम भगवान राम को मानते हैं। इसीलिए हम लोग रावण के पुतले के दहन का विरोध करते आ रहे हैं। क्योंकि वो गलत इंसान नहीं था। साथ ही श्रीराम को भी हम भगवान नहीं मानते। सबसे हैरत अंगेज धनीराम पेंथर का यह कथन है कि ” बसपा की नेता मायावती से दलितों को उम्मीद थी, लेकिन उन्होंने भी हमारे साथ छल किया”।
अब मूल प्रश्न – क्या धर्म बदल जाने के बाद आरक्षण का हक़ ख़त्म होगा ?
धर्म परिवर्तन के बाद क्या बौद्ध बन चुके लोगो को वही आरक्षण का लाभ मिलेगा जो पहले हिन्दू दलित के रूप में उन्हें मिलता रहा है ? यह एक बड़ा सवाल भी है और इसके उत्तर में ही, इस प्रकार की घटनाओं पर रोकथाम का भविष्य भी टिका है । वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक नारायण धर दुबे तथा अन्य संविधान के जानकारों के अनुसार किसी भी जाति विशेष को हिन्दू धर्म में व्याप्त छुआछूत व भेदभाव के कारण आरक्षण का लाभ दिया जाता है। जब वे दूसरे धर्म में चले गए तो बतौर हिन्दू ,उनका सारा अधिकार स्वतः समाप्त हो गया। अब उन्हें केवल वे लाभ मिल सकेंगे जो उनके नए धर्म के लोगो के लिए संविधान में निहित है। सीधी सी बात है कि जब तक कोई व्यक्ति हिन्दू है, तब तक ही वह हिन्दुओं की जाति को मिलने वाले लाभ का हकदार है। जिस दिन वह हिन्दू नहीं रहा उसी दिन से उसका हिन्दू धर्म की उस जाति को मिलने वाला अधिकार भी ख़त्म हो जाता है।
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