हिंदुओं के सम्मुख गंभीर संकट - ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) जी बी रेड्डी


हिंदुओं को अपनी मातृभूमि पर सुरक्षित और जीवित रहने का पूर्ण अधिकार है |

यह ऐतिहासिक सन्दर्भों से स्वप्रमाणित है कि इस्लामी कट्टरवाद सदैव से हिंदू धर्म के अस्तित्व पर खतरे के रूप में मंडराता रहा है । इस तथ्य को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि पडौसी पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुत्व समाप्त प्राय है, जबकि किसी जमाने में ये स्थल प्राचीन हिंदू सभ्यता के प्रमुख स्थल थे ।

हाल के दिनों में सहारनपुर, मेरठ, हाशिमपुरा, मुजफ्फरनगर आदि स्थानों पर सांप्रदायिक झड़पों में वृद्धि हुई है । 2016 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2014 से 2015 तक सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है ।

पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के बशीरहाट में स्थित बुडुरिया नवीनतम सांप्रदायिक विस्फोट का शिकार हुआ, जहाँ फेसबुक पर एक आपत्तिजनक पोस्ट के नाम पर साम्प्रदायिक हिंसा का जो नग्न तांडव हुआ, वह भविष्य के लिए खतरे की घंटी है । मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एक छात्र ने कथित तौर पर अपनी एक फेसबुक पोस्ट में पैगंबर मोहम्मद और मक्का में काबा शरीफ के कुछ "आपत्तिजनक चित्र" प्रसारित किये, जो वायरल हो गए । बस फिर क्या था, मुस्लिमों के गिरोहों ने हिंदू दुकानों और मकानों को तोड़ना और वाहनों को आग लगाना शुरू कर दिया | एक नौजवान कार्तिक की ह्त्या कर दी गई ।

सबसे हैरत की बात यह है कि उक्त युवक कार्तिक घोष के मारे जाने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूरी तरह चुप्पी साध ली | यह चुप्पी राजनीति में उनके मुस्लिम तुष्टीकरण की रीति-नीति को दर्शाती है तथा इससे भारत विभाजन के समय हुए भीषण सांप्रदायिक नरसंहार की याद ताजा हो जाती है ।

तुष्टीकरण की राजनीति

नोआखाली दंगों की कहानी, अर्ध-संगठित नरसंहार की श्रृंखला, बलात्कार, अपहरण, हिंदुओं का जबरन मुस्लिम धर्मांतरण और हिंदू संपत्तियों की आगजनी, किसने किया था यह सब ? ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के एक साल पहले, अक्टूबर-नवंबर 1 9 46 में बंगाल के चटगांव खंडमें, जोकि अब बांग्लादेश में है, अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के आव्हान पर मुस्लिम समुदाय द्वारा नोआखाली जिले में फंसे हिन्दुओं के साथ यही बर्बर अत्याचार तो किया गया था । क्या उसे भुलाया जा सकता है ?

आखिरकार, पड़ोसी बांग्लादेश में आईएसआईएस की जड़ें जमती जा रही हैं, जिसका खामियाजा पश्चिम बंगाल और असम को भी निकट भविष्य में भोगना पडेगा, क्योंकि अतिवादियों के लिए पहले आसान निशाने वे ही होंगे ।

यदि ममता बनर्जी अपने छद्म धर्मनिरपेक्ष प्रमाण पत्र को अपने माथे पर चिपकाए, इसी प्रकार कार्य करती रहीं, तो कोई हैरत की बात नहीं कि कुछ समय बाद उनका उपनाम "बनर्जी" के स्थान पर "बेगम" हो जाए । आखिरकार ममता बनर्जी हैं तो मूलतः कांग्रेस की ही ।

बीते दिनों कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में छद्म धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों और उनके नेताओं ने अपनी वोट बैंक की राजनीति के कारण अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की हद पार कर दी थी ।

यदि इसे अभी भी जारी रहने दिया गया, तो दक्षिण एशिया में सभ्यताओं का संघर्ष अपरिहार्य हो जाएगा और कट्टरवादी समूह अपने सांप्रदायिक मंसूबों के साथ ध्रुवीकृत हो जायेंगे ।

बढ़ता ख़तरा

मैं एक बार फिर दोहराना चाहता हूँ कि कट्टर मुस्लिम अनुयायियों का मानना ​​है कि इस्लाम एक उत्कृष्ट धर्म है जो उत्कृष्टता का दावा भी करता है। वे अन्य धार्मिक अनुयायियों को "काफिर" कहते हैं | इससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि यह सबसे तेजी से बढ़ता हुआ प्रमुख धर्म है | उच्चतम प्रजनन दर के कारण, इसकी वृद्धि रोकी नहीं जा सकती । एक अनुमान के अनुसार 2050 के बाद तो इसकी गति वैश्विक प्रतिस्थापन दर से दूनी से भी अधिक (2.1 प्रति महिला) हो जायेगी । 

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुमानों के मुताबिक, 2050 तक मुसलमानों की संख्या (280 करोड़, या दुनिया की 30 प्रतिशत जनसंख्या) और ईसाई जनसंख्या (290 करोड़ या 31 फीसदी) पहली बार निकट समानता में होंगे।

दीवार पर स्पष्ट लिखा है कि दक्षिण एशिया में इस्लाम और ईसाईयत में वैश्विक स्तर पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की प्रतियोगिता होगी, और दोनों के निशाने पर होगा हिंदुत्व । केवल अंधे छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी ही इस दीवार लेखन को पढ़ने में असमर्थ हैं ।

सबसे महत्वपूर्ण बात, 1947 के विभाजन के समय दोनों पड़ोसी देशों में सांप्रदायिक नरसंहार के प्रचुर प्रमाण उपलब्ध हैं । लेकिन उसके बाद हुआ क्या ? क्या शासन द्वारा पीड़ित हिन्दू अल्पसंख्यकों की रत्ती भर भी सहायता की गई ? उलटे आतताईयों का वित्त पोषण हुआ, सऊदी अरब द्वारा ।

विक्षिप्त सांप्रदायिकता

आगे हम और क्या उम्मीद कर सकते है, जब हम आज भी अल्पसंख्यक राजनेताओं को लोकतंत्र के नाम पर पागलपन की हद तक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति में शामिल पाते हैं? उदाहरण के लिए, ओवैसी बंधू - शिष्ट प्रतीत होने वाला किन्तु हद दर्जे का कट्टरपंथी असदुद्दीन और उसका फायरब्रांड भाई अकबरुद्दीन- घाटी में कश्मीर अलगाववादियों के नेताओं के साथ कई बार, पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना से भी ज्यादा हिन्दूओं के प्रति नफरत भरे भाषण देते दिखाई देते हैं ।

पूर्व में एक समय दिल्ली की रॉयल मस्जिद के शाही इमाम सैय्यद अब्दुल्ला बुखारी, वोट बैंक के मुस्लिम ध्रुवीकरण की अगुआई करते थे, उस समय कांग्रेस पार्टी ने उन्हें मंत्री पद का रुतबा दे रखा था।

मुस्लिम अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में बाम पंथी भी किसी से पीछे नहीं | केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने तो हद ही कर दी, जब उन्होंने इजरायल को एक "आतंकवादी राज्य" बताते हुए, भारत-इजरायल गठबंधन बनाने की कोशिश में जुटे नरेंद्र मोदी की आलोचना जैसे बयान दिए । उसी का नतीजा यह निकला कि स्वाभाविक ही केरल के मुस्लिम युवा आईएसआईएस की ओर आकृष्ट होने लगे । आखिर आप, "पवित्र जिहाद" की वैचारिक लाइन पर चलकर आईएसआईएस में शामिल होने वाले लोगों से रातों रात धर्मनिरपेक्षवादी होने की उम्मीद तो नहीं कर सकते।

शक्ति और धन की खातिर, कई क्षेत्रीय राजनीतिक दल और नेता, अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण जैसी "कट्टरपंथी इस्लामवादियों" की मांग का समर्थन करते दिखाई देते हैं | उदाहरण के लिए, तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसी राव ने राज्य में उनके लिए 12 प्रतिशत आरक्षण की मांग को स्वीकार कर लिया है। अधिकांश राजनीतिक दल मुस्लिमों के लिए भव्य "इफ्तार" पार्टियों का आयोजन करते हैं, जबकि बैसा उत्साह अन्य धर्मों के लिए कभी दिखाई नहीं देता ।

हैरानी की बात है कि मुस्लिम और ईसाई विचारकों द्वारा, हिंदू समाज को विघटित और कमजोर करने का एक समान षडयंत्र चलाया जा रहा है, और वह है प्रलोभन द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समूहों को अपनी ओर आकृष्ट करना ।

प्राचीन काल से हिन्दू समाज का शास्वत जीवन मूल्य है - "सहिष्णुता", आज के शातिर राजनेता उस शब्द का मखौल बना रहे हैं । और वह भी ऐसे समय में जबकि दुनिया भर में कट्टरपंथी इस्लाम एक गंभीर खतरे के रूप में महसूस किया जा रहा है, उसके विघटनकारी और विनाशकारी प्रभाव से सभी दहल रहे हैं । खतरे के बादल भारत पर सबसे घने मंडरा रहे हैं |

वस्तुतः पश्चिम बंगाल और केरल में भारतीय समाज की संरचना में बड़ा परिवर्तन हुआ है | यहाँ के कुछ जिले / क्षेत्र, मुस्लिम बहुल हो गए है, यहाँ तक कि वे सत्ता की कुर्सी पर कौन बैठे, इसके भी नियामक बन गए हैं ।

प्रमुख चिंता

वास्तविक चिंता यह है कि मुस्लिम विकास दर 24.64 प्रतिशत हो रही है। भारत की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में मुस्लिम आबादी 18.4 करोड़ हो गई (134 करोड़ में से)। बडबोले नेता असदुद्दीन ओवैसी ने तो दावा किया है कि आज देश में मुस्लिमों की संख्या 18 प्रतिशत अर्थात लगभग 23 करोड़ है।

पश्चिम बंगाल और असम में मुस्लिम आबादी के विकास का आंकड़ा तो निश्चित रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय है। पश्चिम बंगाल में जहाँ 1951 में मुस्लिमों की संख्या 1 9 .85 प्रतिशत थी; वह 2011 आते आते 27.01 प्रतिशत हो गई, अर्थात कुल 9.12 करोड़ में से 2.45 करोड़ |

मुस्लिमों की सबसे अधिक सांद्रता बांग्लादेश के सीमावर्ती तीन जिलों में है: मुर्शिदाबाद - 66.28 प्रतिशत; मालदा - 51.27 प्रतिशत और उत्तर दिनाजपुर - 50.92 प्रतिशत |

2011 की जनगणना के अनुसार, इस्लाम असम में सबसे तेजी से बढ़ता धर्म है 1951 में मुसलमानों ने 0.199 करोड़ थे, जो कुल आवादी का 17.62 प्रतिशत था। 2011 की जनगणना के मुताबिक, 3.12 करोड़ की कुल आबादी में मुसलमानों की संख्या 1.068 करोड़ हो गई, जो कि कुल आबादी का 34.22 प्रतिशत है।

बांग्लादेश की सीमा के नजदीकी 27 जिलों में से नौ में अब मुस्लिम बहुसंख्यक हैं (50 प्रतिशत से ज्यादा): धुबरी - 79.67 प्रतिशत; बारपेटा - 70.74 प्रतिशत; दाररंग - 64.34 प्रतिशत; हेलकंडी - 60.31 प्रतिशत; गोलपाड़ा - 57.52 प्रतिशत; करीमगंज - 56.36 प्रतिशत; नागाँव - 55.36 प्रतिशत; मोरीगांव- 52.56 प्रतिशत; और बोंगईगांव - 50.22 प्रतिशत |

तीन जिलों में मुस्लिम आबादी 30 प्रतिशत से अधिक है: कचार - 37.71 प्रतिशत; कामरूप - 39.66 प्रतिशत; और नलबारी - 35.96 प्रतिशत |

इसी प्रकार केरल में भी मुसलमानों की बढ़ोतरी हुई ही | 2001 में वे 0.78 करोड़ थे, जो 2011 में 0.88 करोड़ हो गए । जबकि 2001 में हिंदू जनसंख्या 1.82 करोड़ थी जो घटकर 2011 में 1.78 करोड़ हो गई। मुस्लिमों द्वारा जिन जिलों में चुनाव परिणामों को प्रभावित किया जाता है, वे हैं : मल्लपुरम - 70.24 प्रतिशत; कोझीकोड - 39.24 प्रतिशत; कासरगोड- 37.24 प्रतिशत; कन्नूर - 29.43 प्रतिशत; पलक्कड़ - 28.93 प्रतिशत; और वायनाड - 28.65 प्रतिशत |

संक्षेप में, हिंदू सभ्यता की गगनचुंबी इमारत पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं । इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि, दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी नेता को चारों ओर से चुनौतियां मिल रही हैं – यह स्वाभाविक है | 

(देखना है कि वे चक्रव्यूह में अभिमन्यु बनते हैं, या अर्जुन के समान शत्रु उन्मूलन में समर्थ होते हैं – सम्पादक)
(लेखक हैदराबाद निवासी रणनीतिक विशेषज्ञ है)


साभार : ओर्गेनाईजर

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