हिन्दू धर्म पर मुख्य आक्षेप और समाधान - भाग 2

SHARE:

गतांक से आगे - प्रश्न 6. कई हिन्दू धर्म पुस्तकें कहती है कि मूर्ति पूजा अल्प यानि मंद बुद्धि वालों के लिए, जिनमे निराकार ब्रह्म को समझने...



गतांक से आगे -

प्रश्न 6. कई हिन्दू धर्म पुस्तकें कहती है कि मूर्ति पूजा अल्प यानि मंद बुद्धि वालों के लिए, जिनमे निराकार ब्रह्म को समझने की योग्यता नहीं है ! इसका अर्थ हुआ कि मुहम्मदी लोग जो केवल निराकार ब्रह्मा (अल्लाह) की उपासना करते है, आध्यात्म के ऊंचे शिखर पर पहुँच चुके है और उनकी कुरआन उच्च-स्तरीय आध्यात्म की पुस्तक है ! सो, क्योँ नहीं सभी पढ़े लिखे समझदार हिन्दू इस्लाम, यानि कुरआन और मुहम्मद की शरण में आ जाते ? मुहम्मद और कुरआन के आगे सभी हिन्दू देवी-देवता और अनगिनत हिन्दू धर्म पुस्तकें अर्थहीन और मिथ्याचार लगते है !

उत्तर- यह मुहम्मदियों का मिथ्या दंभ है ! एक ओर यह अल्लाह (परमात्मा) को सर्व शक्तिमान, सर्व व्यापक मानते है और दूसरी ओर उसी परमात्मा की कृतियों (गैर-मुसलमानों) की, उसके जीवों की, ह्त्या करने और नष्ट करने में अपना गौरव समझते है ! मक्का, मदीना और उसके आस पास के अरबी भाषा भाषियों के लिए ही लिखी गयी पुस्तक को सारे विश्व में जबरदस्ती लादने में जुटे हुए है ! यह तो स्वयं परमात्मा का अपमान है ! यदि परमेश्वर चाहता तो कुरआन को केवल अरबी भाषा में क्योँ बनाता, क्योँ अरब को रेगिस्तान, कहीं जंगल, कहीं पहाड़; कहीं सूखा, कहीं बरसात क्योँ करता ? क्योँ कुछ को काला, कुछ को गोरा बनाता ? जैसा पहले बताया गया है. ‘मूर्तिपूजा’ का प्रचलन उसी निराकार परमेश्वर को नित्य प्रति और प्रत्येक क्षण याद रखने के निमित्त मात्र साधन के रूप में प्रचलित है ! अल्प बुद्धि वालों के लिए मूर्ति पूजा की बात अन्य सन्दर्भ में कही गयी है ! वह चाणक्य नीति का निम्न श्लोक है –

“अग्निदेवो द्वीजातिनां, मुनीनाम हदि देवतम |
प्रतिमा स्वल्पबुद्धिनाम, सर्वत्र समदर्शिना ||”

अर्थात द्विजातियों (जिनकी जनेऊ संस्कार सहित शिक्षा-दीक्षा पूरी हो चुकी है) के लिए परमात्मा का निवास अग्नि में है, क्यूंकि वे दैनिक हवन-पूजा में प्रभु के निमित्त अग्नि में आहुति डालने के बाद भोजन आदि ग्रहण करते है; मुनिजनों यानि समस्त मानव जाति के कल्याण की कामना करने वालों का परमेश्वर उनक हृदयों में बस्ता है, इसी प्रकार समस्त प्राणियों में समदृष्टि रखने वालों, योगी, तपस्वी, सच्चे राजपुरुषों, को सभी में, सभी ओर, परमात्मा के दर्शन होते है, किन्तु जिनकी शिक्षा दीक्षा नहीं हुई और जिनका ज्ञान इतना विकसित नहीं हुआ उन्हें परमेश्वर का दर्शन मूर्ति के माध्यम से होता है ! मुहम्मदी इतिहास साक्षी है कि उन्हें एक ग्रन्थ कुरान और एक पैगम्बर मुहम्मद के अलावा सब कुफ्र (झूठ) दिखाई देता है, और यदि दिखाई देता है तो उन्हें मारने, काटने, लूटने का भाव पैदा होता है !

प्रश्न 7. समस्त पृथ्वी पर,मानव जीवन जेने की कला सिखाने वाला एक मात्र ग्रन्थ कुरान है जिसे स्वयं अल्लाह परमेश्वर ने अपने अंतिम रसूल (दूत) मुहम्मद के द्वारा मानव जाति के लिए भेजा ! प्रत्येक व्यक्ति को इसी के अनुसार चलना चाहिए !

उत्तर- इस प्रश्न का समुचित उत्तर तो १९वी शताब्दी के प्रकांड वैदिक विद्वान् स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी विश्व प्रसिद्द पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के 14वे समुल्लास में दिया है ! सबसे पहल उन्होंने यह प्रमाणित किया है कि कुरान परमेश्वर की कृति या वाणी नहीं है ! कुरान के पहले अध्याय (सूरा 1, अलफातिहा) का पहला वाक्य है, “आरम्भ करता हूँ नाम अल्लाह के, क्षमा करने वाला दयालु !” यह आइन की तरह साफ़ है कि कुरान का रचियता अल्लाह नहीं, कोई अल्लाह का भक्त है !

दूसरी बात यह है कि कुरआन के ही सूरा 6, आयत ९२ और सूरा 42, आयत 7 में स्पष्ट कहा गया है कि कुरआन नामक पुस्ताकरबी भाषा में मक्का, मदीना और उसके आसपास के, अरबी भाषी लोगों के लिए बनायी गयी है ! कुरान की इस अवधारणा को ताक पर रख कर सारे विश्व में जोर-जबरदस्ती से कुरानी आदेशों को लागू करना स्वयं कुरान की अवहेलना करना है ! यह मुहम्मदी लोगों की साम्राज्यवादी मनोवृत्ति का परिचायक है, न कि मानव कल्याण का !

तीसरी बात यह है कि कुरान में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि हजरत मोहम्मद अल्लाह अथवा परमेश्वर का अंतिम पैगम्बर या सन्देश वाहक है और उसके बाद अल्लाह कोई पैगम्बर नहीं भेजेगा ! यह मान्यता जबरदस्ती की ठूंस-ठांस है ! इससे तो स्वयं अल्लाह के हाथ-पाँव बंध जाते है ! इसे मानें तो परमेश्वर सर्वशक्तिमान कहाँ रहा ? मुल्लाओं और मौलवियों द्वारा प्रचारित इस अंधविश्वास ने तो परमेश्वर को भी उनका गुलाम बना दिया ! यानि चाहकर भी वह नयी रौशनी में, नयी समस्याओं के सन्दर्भ में, कुरान के न आगे जा सकता है, न पीछे !

प्रश्न 8. क्या पैगम्बर रूप में मुहम्मद के आने की पूर्व सूचना या भविष्यवाणी हिन्दू धर्म ग्रंथों में की गयी है ?

उत्तर- यह प्रश्न जानबूझकर मुहम्मदी विद्वानों ने हिन्दू धर्मियों को भटकाने के लिए बनाया है और स्वयं ही इसका उत्तर हाँ में दिया है ! अपने समर्थन में वे भविष्यपुराण के कुछ संदिघ्द श्लोकों का हवाला देते है ! याद रखने की बात है कि वर्तमान काल में उपलब्ध पुराणों की रचना 300-900 एडी तक की है (काने, धर्म शास्त्र का इतिहास खंड 1, पृ. 15) और इनमे इस्लामिक राज्य स्थापित होने के बाद (11वी शती) तक और बाद में भी जोड़-तोड़ की जाती रही ! इसलिए हो सकता है कि उस काल में किसी ने मुहम्मद संबंधी श्लोक गड कर भविष्य पुराण में जोड़ दिए हो ! मुसलमानी राज्यकाल में ही किसी संस्कृत और अरबी के ज्ञाता द्वारा एक नए उपनिषद “अल्लोपनिषद” का भी निर्माण हुआ ! इसका मूल पाठ और खंडन स्वामी दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश के चौदहवे समुल्लास में विस्तार से किया है ! तथापि, मुहम्मदी मत वाले यदि ‘कुरान’ को ईश्वरीय वाणी मानते हुए अन्य धर्म-मतवालों का भी अपने-अपने मत के ग्रन्थ के ईश्वरीय मानने का अधिकार स्वीकार करें तो कोई हर्ज नहीं !

प्रश्न 9. जबकि प्रत्येक हिन्दू धर्म प्रचारक वैश्विक प्रेम, वसुंधैव कुटुम्बकम, अहिंसा और विश्व शान्ति की ही बातें करता है, उनकी धर्म पुस्तक ‘गीता’ तो हिंसा का ही प्रचार करती है ! यह विरोधाभास क्योँ ?

उत्तर – इस प्रश्न के उत्तर में एक बहुचर्चित हिन्दू विद्वान ने बताया कि गीता में श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को युद्ध करने हेतु कहा गया क्यूँकि यह उसका धर्म था, इसलिए नहीं कि उसे अपने प्रतिद्वंदियों से घृणा थी ! इसका थोड़ा और स्पष्टीकरण आवश्यक है ! हिन्दू धर्म ग्रंथों में अहिंसा पर बहुत बल दिया गया है ! मनु स्मृति (अध्याय 6, श्लोक 92) में धर्म के 10 लक्षण यूं बताये गए है “धृति: क्षमा दमो स्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह: । धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम् । (धैर्य, क्षमा, सहनशीलता, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रीयों को वश में न रखना, बुद्धिपूर्वक काम करना, सत्य बोलना, विद्या प्राप्त करना, क्रोध न करना, ये दस धर्म के लक्षण है !) कहीं कहीं अन्य धर्म ग्रंथों में इन दस में ‘अहिंसा’ शब्द का प्रयोग मिलता है ! किन्तु यह अत्याचारी, अन्यायी अपहरणकर्ता के सामने तो ये सब नहीं चलेगा ! गीता में धर्म के लिए युद्ध का सन्देश ऐसी स्थिति में दिया गया है ! इस विषय पर अध्याय 11 – जब युद्ध ही धर्म है, पलायन पाप है – में काफी प्रकाश डाला गया है ! हिन्दू धर्म ग्रंथों में सत्य और न्याय की स्थापना हेतु और दृष्टों के संहार की स्पष्ट आज्ञा है ! इस सन्दर्भ में पापी के प्रति क्रोध और अन्याय के विरुद्ध प्रतिकार की भावना स्वाभाविक है ! कोई विरला योगी ही इससे मुक्त हो सकता है, राजा और राजपुरुष नहीं ! अपने महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ में गोस्वामी तुलसीदास ने श्री राम के दंडकारण्य वन में राक्षसों द्वारा मारे गए ऋषि-मुनियों की अस्थियों के ढेर देखने के बाद उनके मुख से कहलाया है –“निशिचर हीन करऊँ महि, भुज उठाई पान कीन्ह | सकल मुनिन के आश्रमनिह जाइ जाइ सुख दीन्ह ||” “श्री राम ने भुजा उठा कर प्राण किया कि वे इस प्रथ्वी को राक्षस विहीन करेंगे, और इस आश्वासन के साथ सब मुनियों के आश्रमों में जा-जाकर उन्हें सुख प्रदान किया, (अरण्यकाण्ड, दोहा 9) श्री राम ने अपना वचन पूर्णतः निभाया ! उसी दंडकारण्य में सीताहरण के बाद अपने भक्त गृध्रराज जटायु के देहांत के बाद उसकी अंत्येष्टि अपने हाथों की, शबरी नामक बनवासी दलित स्त्री का आतिथ्य स्वीकार कर उसके, शिक्षा-दीक्षा-संस्कार हीन होने के बावजूद, उत्तम चरित्र के कारण उसे “मोक्ष” का अधिकारी बना दिया जो योगियों को भी दुर्लभ है i इन और ऐसे ही अन्य जनकल्याण के कृत्यों के कारण श्री राम को विष्णु के अवतार के रूप में प्रतिस्ठा प्राप्त हुई ! विष्णु परमात्मा के पालन-पोषण-संरक्षण कृत्य के रूपक है ! इसलिए उनके स्वरुप के चित्रण में चार हाथ दिखाए जाते है जिनमे से एक में गदा दुष्टों को दंड का प्रतीक, एक में कमल, शांति सुचिता का प्रतीक, एक में शंख, चेतावनी का प्रतीक, एक में चक्र, व्यवस्थित गतिशीलता का प्रतीक है ! एक आदर्श राजा में भी यह गुण होने से, उसे विष्णु का प्रतिनिधि माना गया है ! जिस किसी व्यक्ति में यह गुण प्रचुरता से होते है, जिसने अत्यंत कठोर परिस्तिथि में राष्ट्र को या सज्जन समुदाय को सुरक्षा प्रदान की हो, न्याय दिलाया हो और पैशाचिक अथवा शैतानी शक्ति को नष्ट किया हो उसे विष्णु का अवतार कहा जा सकता है !

सन्दर्भ वश कहना आवश्यक है कि केवल “विष्णु” का ही अवतार समय-समय पर होता है. “रूद्र” प्रलय प्रतीक, और “ब्रह्मा”, उत्पत्ति प्रतीक, का नहीं ! पिछली कुछ शताब्दियों से कई स्वार्थी, धूर्तों और कपटमुनियों ने अपने आपको अथवा अपने “गुरु” को भगवान् शिव अथवा रूद्र या ब्रह्मा का अवतार घोषित किया है ! अज्ञानी हिन्दू उनकी छल, प्रपंच वाली बातों, संतों वाले रूप-रंग और बाजीगरी जैसे चमत्कारों के प्रभाव में आकर अपना मूल्यवान समय और धन तो बर्वाद कर ही रहे है, साथ ही हिन्दू-धर्म और हिन्दू समाज को बहुत हानि पहुंचा रहे है !

यहाँ एक बात भगवती पूजन के विषय में भी कहना उचित होगा ! इसका मूल तत्व देवी भागवत और दुर्गा सप्तशती में दिया हुआ है ! कभी कभी ऐसा अवसर भी आता है कि जब आसुरी शक्ति इतनी प्रबल हो जाती है कि अकेले सातवीं वैष्णवी शक्ति उसे समाप्त करने में असमर्थ होती है ! ऐसे समय में वैदिक अथवा हिन्दू धर्म के सभी सम्प्रदायों के मनीषी, संत, देशभक्त विद्वान सामूहिक रूप से सभी शक्तियों वैष्णवी, ब्राह्मी और रूद्री अर्थात सात्विक ही नहीं, राजसिक और तामसिक शक्तियों, का भी आवाहन करते है और उनकी सम्मिलित शक्ति ही महाशक्ति, महाकाली, महादुर्गा आदि कहलाती है और वह सम्मिलित शक्ति अजेय हो चुकी आसुरी शक्ति का नाश करती है, जिसके बाद उसका लोप हो जाता है ! उस प्रक्रिया का आलंकारिक वर्णन दुर्गा-सप्तशती में विस्तार से किया गया है ! इसका भोंडा प्रदर्शनात्मक भजन-पूजन नवरात्रों में एक रूढी की भांति किया जाता है जिसका फल सांस्कृतिक मनोरंजन से अधिक कुछ नहीं होता ! कभी कभी हानि अवश्य हो जाती है !

दुर्गा सप्तशती के दुसरे अध्याय में वर्णन है कि कैसे महिषासुर ने देवताओं को स्वर्ग से भगाकर पृथ्वी पर भेज दिया और स्वयं इन्द्र बन गया ! कैसे पराजित हुए सभी देवता गण ब्रह्मा जी को साथ लेकर वहां गए जहाँ भगवान् शंकर (रूद्र) और विष्णु भी विद्यमान थे ! दवताओं ने उन्हें महिषासुर की करतूते सुनाते हुए उसके वध की प्रार्थना की ! उनका वृतांत सुनकर विष्णु और रूद्र रुपी शिव को अतीय क्रोध हुआ ! इसी प्रकार अन्य दवताओं को भी उत्तेजना हुई ! उन सभी देवताओं के शरीर से जो महातेज निकला वह एक ज्वलंत विशाल पर्वत का रूप धारण कर गया जिसकी ज्वालाएं चारों दिशाओं में फ़ैल गईं ! दुर्गा नाम से प्रसिद्द उन्ही अतुल तेज पुंज की ज्वालाओं ने नारी रूप धारण कर लिया ! उसी समन्वित शक्ति पुंज ने विश्वव्यापी महायुद्ध के बाद महिषासुर का वध किया ! मां दुर्गा, ‘देवताओं’ यह वर देकर, कि जब कभी ऐसी विपत्ति काल में वे समन्वित भाव से पुकारेंगे तो वह फिर प्रकट होकर उनका कष्ट निवारण करेंगी, अंतर्ध्यान हो गयीं ! उस दुर्गा सप्तशती की रचना इस्लामी राज्यकाल में एक अलौकिक कथानक के रूप में हुई थी क्यौंकी किसी और ढंग में ऐसी कृति को रचना और सार्वजनिक रूप में पढ़ना संभव नहीं था ! किन्तु, आज उसका निहित अर्थ भूलकर केवल कलेवर मात्र की पूजा हो रही है !

अन्य प्रश्न 

उपरोक्त प्रश्नों के अलावा हमारे हिन्दू धर्मी बंधू भी प्रायः निम्नलिखित प्रश्न उठाते है, जिनका उत्तर प्रस्तुत है !

प्रश्न 10. सभी हिन्दू विचारक मानते है कि छुआछूत हिन्दू समाज का बहुत बड़ा कलंक है ! यह कितना शास्त्र-सम्मत है और क्योँ नहीं हट रहा जबकि अन्य बहुत सी पुरानी रूढ़ियाँ या मान्यताएं समाप्त हो चुकी है ?

उत्तर – इस समय प्रचलित जन्मजात छुआछूत की पद्धति न वेदों में है न प्रमाणिक शास्त्रों में ! हिन्दू धर्मशास्त्रों में कुछ विशेष अवसरों पर, विशेष व्यवसायों के सम्बन्ध में, शारीरिक सुचिता की दृष्टी से छुआछूत के कुछ नियम बनाए थे, जिनका जाती व्यवस्था से या वर्तमान पद्धति से कोई सम्बन्ध नहीं है ! उदाहरण के तौर पर आगे लिखे व्यक्ति अस्पृश्य (अछूत) कह गए, अर्थात जिनके संपर्क में आने पर स्नान करना आवश्यक किया गया –(1) वे जो परिवार में मृत्यु या प्रजनन प्रक्रिया के बीच म गुजर रहे हों, (2) रजस्वला (मासिक धर्म की स्थिति में) स्त्री, (3) भोजन करने के बाद या मल विसार्जन के बाद जिसने हाथ और मुहँ साफ़ न किया हो, (4) ऐसे व्यवसाय में लिप्त व्यक्ति जिसके शरीर या वस्त्र गंदे हो जाते है, यथा, पशु-बढ़, मल ढोना, (5) जिन्होंने अपना शास्त्रीय कर्त्तव्य त्याग दिया हो, (6) समाज द्वारा दूषित ठहराए गए कार्यों में लिप्त या अन्य प्रकार से समाज, राष्ट्र या राज्य्द्रोही क्रिया में संलग्न व्यक्ति ! किन्तु शास्त्रों में यह विधान है कि कुछ पवित्र स्थानों या विशिष्ट पर्वों पर यह अस्पृश्यता भी लागू नहीं होती, यथा, पुरी के रथोत्सव, राष्ट्रीय विपत्ति के समय (“Hinduism through Question and Anshwers”, by Swaami Harshananda, Published by Shri Ram Krishn Math, Mylapore, Madraas (Chinnai) -600004, Year 1936, PP. 56-57.)

सो, अस्पृश्यता के उपरोक्त नियम स्वास्थ्य और सफाई की दृष्टी से लगाए गए थे जो काल चक्र के कुसमय में जन्मजात जातिव्यवस्था के साथ जुड़ गए जिन्हें दूर करने का कोई कारगर उपाय नहीं हो पाया, यद्यपि पिछले 150 वर्षों से इस ओर काफी सुधार हो रहा है ! एक आध को छोड़कर सभी मंदिर समस्त हिन्दू धर्मियों के लिए खुल चुके है ! वास्तविकता यह है कि पिछले 60 वर्षों के दौरान चुनावी राजनीति ने जातीय विद्वेष को बहुत बढ़ावा दिया है जिसके कारण हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज में सुधारवादी आन्दोलन को अपार क्षति पहुंची है ! इसका कारण है ‘सेक्युलरिज्म’ और ‘सामाजिक न्याय’ के नाम पर हिन्दुस्तान की राजनीति की बागडोर हिन्दू द्रोही हाथों में होना !

प्रश्न 11. हिन्दू धर्म के अनगिनत सम्प्रदाय है जिनमे कई तो ‘गुरु’ (या गुरु मां) को परमेश्वर से भी ऊंचा स्थान देते है ! परमात्मा के अलावा हजारों देवी, देवताओं की पूजा, अर्चना चालु है, ध्यान और योग की सैकड़ों पद्धतियाँ प्रचलित है ! ऐसे में हिन्दू धर्म क्या है, क्योँ है, गुरु क्या है, देवता क्या है, परमात्मा क्या है, कर्मकांड कितना सही कितना गलत है, कौन मान्य है, कौन अमान्य है, प्रश्न नित्य उठते है और हिन्दू विरोधी लोग विभिन्न रूपों में हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज की भर्त्सना कर रहे है ! ऐसे में साधारण हिन्दू धर्मी क्या करे, कहाँ जाए ? 

उत्तर – इस विशाल हिन्दू देश हिन्दुस्तान, जिसके वर्तमान खंडित भाग में, (जैन,बौद्ध, सिख मिलाकर), आज भी ८५ करोड़ हिन्दू धर्मी रह रहे है, की राजसत्ता एक हजार वर्षों से अहिंदू और हिन्दू विरोधी तत्वों के हाथ में रही है ! उन्होंने प्रयत्नपूर्वक हिन्दू धर्म व हिन्दू समाज को विगठित और कुत्सित करते हुए समूल नष्ट करने का हर संभव उपाय किया ! यहाँ तक कि धन और झूठे मान,सम्मान के लालच में बहुत से हिन्दू धर्मी विद्वान उनके लिए कार्य कर रहे है- कुछ खुले रूप से, कुछ छद्म रूप में ! इस सबके द्वारा हिन्दू धर्म में अराजकता की स्थिति बन गयी है ! सो, हिन्दू समाज में एक सर्वमान्य सुव्यवस्था लाना परमावश्यक है ! उसके लिए राज सत्ता का हिन्दू हितैषी हाथों में होना आवश्यक है ! कुछ व्यक्ति और संगठन निजी तौर पर इस काम में लगे है किन्तु संचार माध्यमों के भी हिन्दू विरोधी होने के कारण उनके प्रयत्नों को पर्याप्त प्रचार और सहयोग नहीं मिल पा रहा है ! इसलिए एक व्यापक सार्वभौम हिन्दू धर्म सभा की आवश्यकता है !

तथापि, यह कहना समीचीन होगा कि गुरु वह है जो व्यक्ति में अज्ञान के अन्धकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश जगाये ! सही गुरु के दिशा निर्देश के बिना अध्यात्म या सम्यक जीवन का मार्ग पाना असंभव तो नहीं है पर कठिन अवश्य है ! सही गुरु वहीँ है जिसे शास्त्रीय ज्ञान के साथ परमात्मा में आस्था हो और लोक कल्याण की भावना हो ! शिष्य वह है जो ऐसे गुरु की सेवा में रत होकर शिक्षा ग्रहण करने का इच्छुक हो और उस पर निष्ठापूर्वक आचरण करने का प्रयास करे ! इष्ट देवता परमात्मा का ही एक पक्षीय रूप है जिसे अध्यात्म मार्ग का पथिक ध्यान और धारणा के निम्मित चुनता है ! यह रूप व्यक्ति स्वयं चुन सकता है या अपने गुरु से प्राप्त कर सकता है ! 

प्रत्येक इष्ट देवता का एक मंत्र होता है जिसके आरम्भ में ‘ओ३म’ शब्द होता है फिर देवता विशेष का नाम और उसके विश्लेषण आते है ! कुल मिलाकर इसे ही बीजमंत्र कहते है ! गुरु द्वारा इष्ट देवता का बीज मंत्र देने की क्रिया को ही दीक्षा कहते है ! इस बीजमंत्र का निरंतर जाप करने से मानसिक बल की प्राप्ति होती है; कई मानसिक क्लेश और शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिलता है, पूरा नहीं तो, इनमे भारी कमी तो अवश्य ही होती है ! बहुत से गुरु इस प्रकार की दीक्षा के नाम पर बड़ी-बड़ी धन राशि या अन्य दान लेते है, जो अनुचित है ! वे गुरु या गुरु मांएं जो परमात्मा के स्थान पर अपनी पूजा करवाएं, प्रतिष्ठा करवाएं, अपनी मूर्ति स्थापित करायें, ये ढोंगी है ! उनसे बचना चाहिए ! ऐसे गुरुओं से तो अच्छा है कि अच्छी धर्म पुस्तक पढ़ें ! अपने गुरु आप बनें और परमात्मा पर एकनिष्ठ विश्वास कर सत्य मार्ग पर चलें !

यह प्रश्न कि अनेकानेक गुरुओं और गुरु वाणियों में कौन सही है, कौन गलत, कौन सच है, कौन झूठ, यह एक अनपढ़ या कम पढ़ा लिखा किसान, मजदूर या अन्य व्यक्ति कैसे पहचान कर, लगभग १२५ वर्ष पूर्व स्वामी दयानंद सरस्वती के सम्मुख भी यह प्रश्न आया था ! उन्ही के उत्तर को हम संक्षेप में दोहराते है ! उन्होंने कहा कि देखो भिन्न-भिन्न मतों के प्रचारक भी बहुत सी बातें एक जैसी ही कहते होंगे – जैसे, सच बोलो, ओरों को दुःख मत दो, बल्कि ओरों के दुःख दूर करने का प्रयत्न करो, किसी के धन का लालच मत करो, झूठ मत बोलो, धोखा मत करो आदि ! यह सब मानने और करने योग्य है ! जहाँ जहाँ उनमे मतभेद है, अर्थात किसी के साथ द्वेष करने, किसी को नुक्सान पहुंचाने, हमारा ही मत अच्छा है और सबका मत बुरा है, बिना हमारे मत के, अन्य मत के द्वारा, मुक्ति नहीं हो सकती, ये अमान्य है इनको छोड़ देना चाहिए !

विद्वत समाज के मार्ग दर्शन के लिए यह जानना उचित होगा कि हिन्दू धर्म के सभी सम्प्रदायों का मूल स्त्रोत वैदिक वाडमय है ! इसी के आधार पर सत्य असत्य का निर्णय करना चाहिए !

साभार - हिन्दू जागरण क्योँ और कैसे , लेखक - रामगोपाल , डॉ. के बी पालीवाल 

COMMENTS

नाम

अखबारों की कतरन,40,अपराध,3,अशोकनगर,24,आंतरिक सुरक्षा,15,इतिहास,158,उत्तराखंड,4,ओशोवाणी,16,कहानियां,40,काव्य सुधा,64,खाना खजाना,21,खेल,19,गुना,3,ग्वालियर,1,चिकटे जी,25,चिकटे जी काव्य रूपांतर,5,जनसंपर्क विभाग म.प्र.,6,तकनीक,85,दतिया,2,दुनिया रंगविरंगी,32,देश,162,धर्म और अध्यात्म,244,पर्यटन,15,पुस्तक सार,59,प्रेरक प्रसंग,80,फिल्मी दुनिया,11,बीजेपी,38,बुरा न मानो होली है,2,भगत सिंह,5,भारत संस्कृति न्यास,30,भोपाल,26,मध्यप्रदेश,504,मनुस्मृति,14,मनोरंजन,53,महापुरुष जीवन गाथा,130,मेरा भारत महान,308,मेरी राम कहानी,23,राजनीति,90,राजीव जी दीक्षित,18,राष्ट्रनीति,51,लेख,1126,विज्ञापन,4,विडियो,24,विदेश,47,विवेकानंद साहित्य,10,वीडियो,1,वैदिक ज्ञान,70,व्यंग,7,व्यक्ति परिचय,29,व्यापार,1,शिवपुरी,911,शिवपुरी समाचार,331,संघगाथा,57,संस्मरण,37,समाचार,1050,समाचार समीक्षा,762,साक्षात्कार,8,सोशल मीडिया,3,स्वास्थ्य,26,हमारा यूट्यूब चैनल,10,election 2019,24,shivpuri,2,
ltr
item
क्रांतिदूत : हिन्दू धर्म पर मुख्य आक्षेप और समाधान - भाग 2
हिन्दू धर्म पर मुख्य आक्षेप और समाधान - भाग 2
https://3.bp.blogspot.com/-wMAUTMAJwJg/WdOJZ0I6KHI/AAAAAAAAIt8/Z8t82YEx8PIuNsS7anjOuifNWKH_0H2nwCLcBGAs/s640/dharmo%2Brakshati%2Brakshit.jpg
https://3.bp.blogspot.com/-wMAUTMAJwJg/WdOJZ0I6KHI/AAAAAAAAIt8/Z8t82YEx8PIuNsS7anjOuifNWKH_0H2nwCLcBGAs/s72-c/dharmo%2Brakshati%2Brakshit.jpg
क्रांतिदूत
https://www.krantidoot.in/2017/10/Main-objections-and-solutions-on-Hindu-religion-Part-2.html
https://www.krantidoot.in/
https://www.krantidoot.in/
https://www.krantidoot.in/2017/10/Main-objections-and-solutions-on-Hindu-religion-Part-2.html
true
8510248389967890617
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS CONTENT IS PREMIUM Please share to unlock Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy