केरल का मारड नरसंहार: एक स्पष्ट सांप्रदायिक षड्यंत्र, जिसमें कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठन शामिल थे"



2 जनवरी 2002 को भाजपा कार्यकर्ता शिमजीत और कुंजुमोन नारायणन की हत्या से कट्टरपंथी तत्व संतुष्ट नहीं हुए | मुस्लिम लीगी और एनडीएफ के इस्लामी आतंक का कहर कोझीकोड इलाके में मारड के समुद्र तट पर एक बार फिर टूटा । 2 मई 2003 की अंधेरी घातक रात में नौकाओं से आये करीब सौ सशस्त्र इस्लामवादी कट्टरपंथी, मारड जुमा मस्जिद के पास एक घर में पहले से एकत्रित हुजूम के साथ जा मिले । उसके बाद तलवारों और कुल्हाड़ों से लैस इस भीड़ ने उन आठ बीजेपी कार्यकर्ताओं को घेर लिया, जो दिन भर मछली पकड़ने के बाद, थककर समुद्र तट पर आराम कर रहे थे |

इन नृशंस हत्यारों ने चंद्रन, दासन, गोपालन, कृष्णन, माधवन, प्रजेश, पुष्पाराज और संतोष की न केवल हत्या कर दी, बल्कि उनके शरीर भी विकृत कर दिए । यहां तक ​​कि उनके गुप्तांग भी काट दिए । इसके बाद हत्यारे स्थानीय जामा मस्जिद में पहुँच गए।

अपराधी बड़ी संख्या में लोगों को मारना चाहते थे, इसी उद्देश्य से उन्होंने बम भी फेंका था, किन्तु सौभाग्य से वह फटा नहीं । घटना के बाद पुलिस ने तलवार, चाकू और बमों का एक बड़ा जखीरा मराड जुमा मस्जिद से बरामद किया, जो वहां किसी बड़े नरसंहार के इरादे से इकट्ठा किया गया था । स्पष्टतः यह नरसंहार केरल में तेजी से पनपते धार्मिक कट्टरवाद का प्रमाण था, जिसके लिए जांच एजेंसियाँ पहले से ही सरकार को सतर्क करती आ रही थीं और इस सांप्रदायिक षड्यंत्र में जिहादी और आतंकवादी संगठन शामिल थे |

पूर्व पुलिस आयुक्त के मुताबिक, यह हमला योजनाबद्ध ढंग से, एक प्रशिक्षित आतंकी संगठन द्वारा संचालित किया गया था। यही कारण है कि मात्र 10 मिनट में वे जो करना चाहते थे, कर गये ।

केरल क्राइम ब्रांच के एक विशेष जांच दल ने अपराध में भागीदारी या सहयोग के आरोप में 147 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की । (मारड आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, कोझीकोड पुलिस आयुक्त द्वारा तैयार किए गए नोट्स में उल्लेख किया गया कि जब पुलिस मस्जिद में छुपे अपराधियों को पकड़ने पहुंची तब सैकड़ों स्थानीय मुस्लिम महिलाओं ने पुलिस को मस्जिद में प्रवेश करने और हत्यारों को गिरफ्तार करने से रोका)

स्मरणीय है कि एके एंथोनी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ केरल की तत्कालीन यूडीएफ सरकार ने न्यायिक जांच मांग भी तब मानी, जब इसके लिए बड़े पैमाने पर जन आन्दोलन हुआ, धरने प्रदर्शन हुए । जन दबाव के चलते अंततः थॉमस पी जोसेफ (जिला और सत्र न्यायाधीश) का एक सदस्यीय जांच आयोग नियुक्त किया गया, जिसने अपनी रिपोर्ट, फरवरी 2006 में प्रस्तुत की गई और एलडीएफ सरकार ने सितंबर 2006 में उस रिपोर्ट को प्रकाशित किया ।

न्यायिक आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, यह एक सांप्रदायिक षड्यंत्र था, जिसे कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठनों ने मिलकर अंजाम दिया था । आयोग ने दंगों में विदेशी एजेंसियों की भागीदारी के बारे में सीबीआई जांच की भी सिफारिश की थी, जो कभी नहीं हुई ।


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