वाल्मीकि जयन्ती विशेष "ऋषि पुत्र वाल्मीकि"

वाल्मीकि जयन्ती के अवसर पर हम महान काव्य शास्त्र के प्रणेता का संक्षिप्त जीवन परिचय जानते हैं।
परिवार परिचय:- महर्षि कश्यप और माता अदिति के नवी संतान के रूप में प्रचेता जी का जन्म हुआ, ब्रह्मचर्य पूर्वक पूर्ण विद्या प्राप्त कर इनका विवाह संस्कार चार्ष्णि नामक ब्राह्मण कन्या से हुआ। जिनके दस पुत्र हुए, दसवे पुत्र के रूप में अग्निशर्मा (वाल्मीकि) जी का जन्म हुआ।

प्रचेतसोsहं दशम: पुत्रो राघवनन्दन।
मनसा कर्मणा वाचा भूतपूर्वं न किलविशम।। 

हे राम! मैं प्रचेता मुनि का दशवं पुत्र हूँ, और मैने अपने जीवन मे कभी भी मन वाणी और शरीर से पापाचार नहीं किया।। (ऐसी प्रतिज्ञा करने वाले महर्षि वाल्मीकि पर कुछ वामपंथी धर्मद्रोही अनावश्यक ही आरोप लगाते हैं कि वह नीच कुल से उत्पन्न एवं डाका डालने का कार्य करते थे)

मनुस्मृति के अनुसार नारद, वशिष्ठ, पुलस्त्य आदि इनके प्रचेता मुनि के पुत्र अर्थात वाल्मीकि जी के चाचा-ताऊ थे, ओर स्वयं वाल्मीकि जी के भाई भृगु ऋषि हुए तथा इनके शिष्य भारद्वाज हुए।

ब्रह्मचर्य से समाधि तक:- जैसा कि पूर्व में वर्णन कर चुके हैं की वाल्मीकि के बचपन का नाम अग्निशर्मा था, वे लम्बे काल पर्यन्त एक ही स्थान पर एक ही आसन पर तपस्या में रत समाधिस्थ रहे । आसन के जीर्ण शीर्ण होने पर दीमक का प्रकोप हो गया कालांतर में दीमक आसन सहित पूरे शरीर के ऊपर लग गया। अग्निशर्मा जी ने समाधि अवस्था को पूर्ण किया फिर बाम्बी को फोड़कर बाहर निकले बाम्बी को संस्कृत में वाल्मीक कहते हैं उसको फोड़कर बाहर निकलने के कारण इनका नाम वाल्मीकि पड़ा।

वाल्मीकि जी का शोक और रामायण महाकाव्य की रचना:- 

तमसा नदी के निकट बने आश्रम के कुलपति ऋषि वाल्मीकि जब भ्रमण कर रहे थे तो उन्होंने देखा एक बहेलिया न क्रोंच पक्षियों के मारा।

मा निषाद.........काममोहितं।।

वाल्मीकि उवाच- अरे बहेलिये! तूने काम मोहित क्रोंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति न होगी

इस श्लोक की रचना अनुष्टुप्छन्दः में हुई। पश्चात नारद जी से श्रीराम का वर्णन सुन तथा ब्रम्हा जी के आदेश पर अनुष्टुप छंद में सम्पूर्ण वाल्मीकि रामायण काव्य का निर्माण किया नारद ब्रम्हा के अतिरिक्त सर्वजन लोकहितकारी घटनाओं को वाल्मीकि जी ने एकत्र किया, श्री राम, लक्ष्मण, सीता आदि का तथा राष्ट्र सहित दशरथ जी का वृतांत उन्हों योग बल से जान लिया। 

स्मरण रहे वाल्मीकि जी ने राम जी के बाल्यकाल से वनगमन, रावण सँहार और पुनः राज्य ग्रहण तक का उल्लेख किया है, जो वर्तमान उत्तरकाण्ड है वह वाल्मीकि कृत नहीं। रामायण का अर्थ है- राम का अयन अर्थात अयोध्या से गमन और अयोध्या में आगमन। वाल्मीकि जी ने अपने महाकाव्य में सूर्य चंद्र तथा नक्षत्रों की स्थिति का वर्णन किया इससे ज्ञात होता है कि वह ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या के प्रकांड विद्वान थे। रामायण के अतिरिक्त योग वशिष्ठ नाम के धर्म शास्त्र की रचना भी वाल्मीकि जी के द्वारा की गयी !

प्रस्तुति - वैदिक संस्थान, शिवपुरी
संकलन कर्ता- धर्माचार्य- पंडित योगेश शर्मा "वैदिक"
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