रेलवे से भी पैदा हो रहा है अरबों का काला धन ! कौन रोकेगा ?
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ज्यादातर लोगों को इस बात
की जानकारी ही नहीं है कि भारतीय रेलवे में भी खाने पीने की हर बस्तु के लिए रेट
लिस्ट होती है तथा मीनू कार्ड भी होता है | लेकिन जानकारी के अभाव में पेंट्री कार
वालों से कोई भी मीनू कार्ड नहीं मांगता | कोई सिरफिरा उन तक पहुंचकर मांगता भी है
तो वे लोग बहाने बनाकर टरका देते हैं | सहयात्रियों में से कोई उसकी आवाज में आवाज
मिलाता नहीं है और उसकी अकेली आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती है |
असलियत यह है कि जिस वेज
थाली के वे लोग यात्रियों से 120 रूपये बसूलते हैं, उसकी रेलवे द्वारा निर्धारित
वास्तविक कीमत है महज 50 रुपये | तथा जिस नोन वेज खाने के वे लोग 140 रूपए ठगते
हैं, उसकी रेलवे द्वारा निर्धारित कीमत महज 55 रुपये होती है | तो भला वे क्यों
बताएं रेट लिस्ट या मीनू कार्ड | केवल खाना ही नहीं नाश्ते और चाय कोफ़ी में भी
यात्रियों की जेब से खरे पसीने की कमाई हरामखोरों द्वारा लूटी जाती है |
भारतीय यात्री तो जागरुक
हैं ही नहीं और रेलवे अधिकारियों तक तो लूट का हिस्सा पहुँच ही जाता है, तो वे
क्यों इस आपाधापी को रोकने की जहमत उठायें ?
यात्रीगण सोचते हैं कि कौन
सी हमें रोज रोज यात्रा करना है, साल में एक दो बार ही तो लम्बी यात्रा करना है,
सो ज्यादा दे भी दिया, तो कौनसी आफत आ गई | यात्रियों की “कौन झंझट में पड़े” वाली
मानसिकता के चलते वेंडरों की लूट आराम से चलती रहती है |
जरा कल्पना कीजिए कि यह लूट
कितनी होती है | मान लीजिये कि एक ट्रेन दिल्ली से झारखंड जा रही है, तो गंतव्य तक
पहुंचते पहुंचते न्यूनतम डेढ़ लाख रूपये की आय इन लोगों को ओवर चार्जिंग से हो जाती
है | मजे की बात यह है कि यह सारा धन ब्लैक मनी ही होता है, क्योंकि सभी लोग केश
पेमेंट करते हैं, कोई भी चैक तो देने से रहा | भारत में प्रतिदिन लगभग सात हजार ट्रेन
प्रतिदिन चलती हैं | अगर मान लिया जाए कि केवल दो हजार ट्रेनों में ही पेंट्री कार
की सुविधा है तो भी प्रतिदिन लगभग 20 से 30 करोड़ रुपये का काला धन पैदा होता है |
अगर महीने की बात की जाए तो यह आंकड़ा अरबों में पहुँच जाएगा | पूरे साल की तो बात
ही बेमानी है |
कैसे रुकेगा कालेधन का यह
अजस्त्र प्रवाह, जब कुए में ही भंग डली हुई हो ?
केन्द्रीय रेल मंत्री
कमसेकम यह तो अनिवार्य कर ही सकते हैं कि ठेकेदारों द्वारा उपभोक्ता को खाद्य
सामग्री की रसीद देना अनिवार्य कर दें | कमसेकम वेज और नॉन वेज थाली के लिए तो यह आसानी
से किया ही जा सकता है | लेकिन क्या वे करेंगे ?
पूरे देश में काले धन के
खिलाफ बड़ी बड़ी बातें की जा रही हैं | अगर वे महज जुमले नहीं हैं तो छापेमारी के
अलावा भी करने को बहुत कुछ है | यह तो महज बानगी है |
अगर सत्ताधीश नहीं करते हैं तो नागरिकों में ही जागरूकता आये तथा वे खाने की रसीद मांगना प्रारम्भ करें | और देने से इनकार किया जाए तो सामूहिक हंगामा हो | कुछ सामजिक कार्यकर्ता या संस्थाएं अगर योजनाबद्ध यही आन्दोलन चला दें तो शायद व्यवस्था में कुछ सुधार आ जाये |
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