चुनावी चकल्लस से दूर - भारत की एक बड़ी कामयाबी - चाबहार - उमाकांत मिश्रा


आम तौर पर मोदी विरोधी उनकी विदेश यात्राओं को लेकर उन पर निशाना साधते रहे हैं | लेकिन अब उनके प्रयत्नों से जो भारत, अफगानिस्तान और ईरान का त्रिभुज बना है, उससे भारत विरोधियों में तो हड़कंप है ही, साथ साथ मोदी विरोधियों की भी बोलती बंद कर दी है |
मई 2016 में अपनी ईरान यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो 12 समझौते किये थे, उनमें सबसे महत्वपूर्ण था, चाबहार बंदरगाह समझौता | चीन पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट बना रहा है, उसका माकूल जबाब था यह समझौता | माना गया था कि चाबहार के इस रणनैतिक बंदरगाह के निर्माण और परिचालन संबंधी वाणिज्यिक अनुबंध से भारत को ईरान में अपने पैर जमाने और पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान, रूस और यूरोप तक सीधी पहुँच बनाने में मदद मिलेगी | इसीलिए भारत ने चाबहार बंदरगाह के विकास हेतु 500 मिलियन डॉलर का निवेश भी किया |
और इसका नतीजा भी ३० अक्टूबर को सामने आया जब भारत का एक जहाज भारत के कांडला (गुजरात) बंदरगाह से सामान लेकर ईरान के चाबहार बंदरगाह की तरफ रवाना हुआ। वहां से इसे ट्रकों से अफगानिस्तान भेजा जाएगा। भारत की ओर से अफगानिस्तान के लोगों की मदद के लिए ११ लाख टन गेहूं भेजा जाने वाला है और ये इसकी पहली खेप है।
पहली नजर में इस समाचार का महत्व समझ में नहीं आता, क्योंकि एक देश से दूसरे देश में व्यापार होना कोई नई बात नहीं है। लेकिन भारत से अफगानिस्तान में चाबहार के रास्ते माल पहुंचना वास्तव में बहुत बड़ी बात है। अफगानिस्तान चारों तरफ से ज़मीन से घिरा हुआ देश है। इसकी सीमा कहीं भी समुद्र से नहीं लगती है। इसका अपना कोई बंदरगाह नहीं है। दुनिया के अन्य देशों से व्यापार करना हो, तो अफगानिस्तान के पास सिर्फ एक ही विकल्प था- पाकिस्तान में कराची का बंदरगाह। अफगानिस्तान के ट्रक वहां से माल लादकर कराची तक लाते थे और यहां से जहाजों में भरकर वह सामान दुनिया के अन्य देशों को भेजा जाता था। इस कारण अफगानिस्तान का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पूरी तरह पाकिस्तान के नियंत्रण में था।
अफगानिस्तान का बहुत-सा व्यापार भारत के साथ होता है। उसका एक बड़ा हिस्सा अपने अमृतसर के पास वाघा सीमा से आता है। अफगान ट्रक पाकिस्तान से होते हुए भारत-पाकिस्तान की वाघा-अटारी सीमा तक आते थे और यहां से अफगानी सामान भारतीय ट्रकों में लादकर अपने देश में आता था। लेकिन इसके बदले उन खाली ट्रकों में भारत का माल भरकर वापस अफगानिस्तान नहीं जाता था, बल्कि केवल पाकिस्तान का माल ही अफगानिस्तान जाता था। ऐसा क्यों? इसका जवाब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच २०१० में हुए एक व्यापारिक समझौते में है।
२०१० में पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने आपस में व्यापार बढ़ाने के लिए एक द्विपक्षीय समझौता किया। इसका नाम है - अफगानिस्तान-पाकिस्तान ट्रांज़िट ट्रेड एग्रीमेंट (आप्टा)। २०१० का यह आप्टा समझौता वास्तव में अमरीका के दबाव में हुआ था। उस समय अमरीका का दखल अफगानिस्तान में वैसे भी बहुत ज़्यादा था, ये तो आप जानते ही हैं। इस समझौते के अनुसार अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि वे व्यापारिक उद्देश्य के लिए एक-दूसरे को अपने बंदरगाहों, हवाई अड्डों, सड़कों और रेलमार्गों का उपयोग करने देंगे। लेकिन किसी तीसरे देश को यह सुविधा नहीं मिलेगी। इस समझौते में इस बात का विशेष उल्लेख किया गया था कि अफगानिस्तान के ट्रक अपना सामान वाघा सीमा से भारत भेज सकते हैं, लेकिन भारत का सामान पाकिस्तान होते हुए अफगानिस्तान नहीं जाने दिया जाएगा।
इसका परिणाम ये हुआ कि अफगानिस्तान से तो भारत में बड़ी मात्रा में सामान आता था, लेकिन भारत से बहुत कम मात्रा में ही सामान भेजा जा सकता था। यह असंतुलन वास्तव में बहुत ज्यादा था। अफगानिस्तान के कुल निर्यात का लगभग ४६% सामान अकेले भारत में आता था, लेकिन अफगानिस्तान के कुल आयात में भारत की हिस्सेदारी केवल २ प्रतिशत थी। मतलब हम अफगानिस्तान से हर साल लगभग १४ अरब रुपये का सामान खरीदते थे, लेकिन केवल ४ अरब रुपये का माल ही अफगानिस्तान को बेच पाते थे। सबसे ज्यादा वहां ईरान, पाकिस्तान, चीन और कज़ाकिस्तान से सामान आता था।
इस समझौते से एक तरफ तो भारत और अफगानिस्तान को तो आपसी व्यापार में दिक्कत आ रही थी, लेकिन दूसरी तरफ इसके द्वारा पाकिस्तान को अफगानिस्तान के रास्ते पूरे मध्य एशिया तक जाने का रास्ता मिल गया था और पाकिस्तान का सामान अफगानिस्तान होते हुए ईरान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान तक जा सकता था। लेकिन अफगानिस्तान ने भी समझौते में यह शर्त लगा दी थी कि पाकिस्तान इन देशों को अफगानिस्तान के रास्ते अपना माल भेज तो सकेगा, लेकिन वहां से मंगवा नहीं सकेगा।
चाबहार, ईरान का एकमात्र समुद्री बंदरगाह है, तथा यह पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है। इस बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच वाजपेई जी के शासन काल, २००३ से ही चर्चा चल रही थी। लेकिन ईरान पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण बात अटकी हुई थी। जनवरी २०१६ में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हटते ही मोदी सरकार ने इस विषय पर तेजी से कार्य किया और मई २०१६ में भारतीय प्रधानमंत्री ख़ास इस कार्य के लिए ईरान की यात्रा पर गए । अब जब यह बंदरगाह प्रारंभ हो गया है, तो भारत से यूरोप तक माल भेजने में लगने वाला समय और खर्च भी इसके कारण आधा हो जाएगा।
लेकिन अफगानिस्तान के संदर्भ में भी इसका एक बहुत बड़ा लाभ है। कराची और अफगानिस्तान की तुलना में चाबहार और अफगानिस्तान की दूरी ८०० किमी कम है। इसलिए उसी यात्रा के दौरान ईरान, भारत और अफगानिस्तान ने यह पारस्परिक समझौता भी किया कि भारत और अफगानिस्तान अब इसी बंदरगाह के रास्ते व्यापार करेंगे।
इससे पाकिस्तान को तगड़ा झटका लगा है। केवल कराची बंदरगाह के माध्यम से ही व्यापार होने के कारण अफगानिस्तान के व्यापार पर पूरी तरह से पाकिस्तान का नियंत्रण था। अब वह खत्म हो गया। अफगानिस्तान भारत को माल बेचता तो तक, लेकिन भारत से माल लेने में उसे दिक्कत होती थी, अब वो खत्म हो जाएगी। तीसरा उसे पाकिस्तान से माल खरीदना पड़ता था, जिसमें पाकिस्तान का फायदा और भारत का नुकसान हो रहा था। लेकिन अब भारत का माल भी अफगानिस्तान जाने लगेगा, तो वो लोग पाकिस्तान का सामान क्यों खरीदेंगे? इसलिए पाकिस्तान के लिए यह भी बड़ा नुकसान है। इस तरह एक नया बंदरगाह बनने के कारण न सिर्फ भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार बढ़ेगा, बल्कि मध्य एशिया और यूरोप तक पहुंचने के लिए भारत के लिए नए रास्ते खुलेंगे। इसके अलावा ईरान के साथ कुछ और समझौते भी हुए हैं, जिसके कारण पाकिस्तान का महत्व भी कम हो रहा है और शक्ति भी।
अब सबसे ख़ास बात - पिछले हफ्ते अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने पाकिस्तान के साथ अपना यह व्यापारिक समझौता खत्म करने की भी घोषणा कर दी है!
सचमुच  भारत से चाबहार तक माल लादकर एक जहाज भेजना वास्तव में बहुत बड़ी घटना है, यह केवल एक देश से दूसरे देश तक सामान भेजने की कोई सामान्य घटना नहीं है | कुल मिलाकर चाबहार बंदरगाह आने वाले समय में भारत के लिए बहार लाने वाला है |

लखनऊ निवासी लब्ध प्रतिष्ठित लेखक व राजनैतिक विश्लेषक

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें