कुछ दिन पहले मेरे परम आदरणीय एवं भारत सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं काँग्रेस के वरिष्ठ नेता (नाम लिखना उचित नहीं) ने मुझसे कहा कि...
उन्होंने ये बात मुझसे व्यंग्य में कही थी परंतु मैंने काँग्रेस के लिए एक कविता गंभीरता से लिख दी ....... और यदि काँग्रेसी इस कविता को सहन कर लेंगे और विचार करेंगे तो शायद उनके भी अच्छे दिन आ जाएं.....
जिसके नेता भारत के पर्याय बताए जाते थे...
चाहे जिसको बौना करते ,चाहे जिसको बड़ा किया
हर घर में ही वोट तुम्हारे , इसी देश मे होते थे
लेकिन वो थी काँग्रेस जो सच के संग में रहती थी
जिसके नेता सेवा दल में रहकर सेवा करते थे
देश धर्म से उनका सागर जितना गहरा नाता था
दुश्मन की छाती पर होता वार दिखाई देता था
हर घटना को वोटों की मंडी न तौला करते थे
उगते अटल बिहारी को भी ,मान दिया करते थे वो
सत्य सनातन मानबिन्दु को , नोंच नही सकते थे वो
कांग्रेस ही थी जो दिल से ,वंदे मातरम बोली थी
लेकिन ऐसा हुआ कि तुमसे डोर तुम्हारी छूट गयी
जनता के दिल को न जाना , अंदर जाना भूल गए
घोटालों घपलों बाला किरदार दिखाया इसीलिए
गौचर भूमि खैरातों में बंटवाई थी इसीलिए
यही काम तो काँग्रेस का काल हुआ है भारत में
काँग्रेस को वंशवाद का अंश बनाकर रख डाला
ये जो बाहें ऊपर करके ,किसके ऊपर वरष रहे हो??
गर वर्तमान में भाजपा भी यह गलती दोहराएगी

मध्यप्रदेश समाचार
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