कांग्रेस की भ्रष्ट हांडी के एक चावल – अर्जुनसिंह !


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह का जन्म 5 नवंबर 1930 को हुआ तथा 4 मार्च 2011 को उन्होंने अपनी जीवन यात्रा पूर्ण की । दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका निधन हुआ ।

वे तीन बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे तथा पंजाब के राज्यपाल भी नियुक्त हुए । वे पी.वी. नरसिंह राव कैबिनेट में केन्द्रीय मंत्री भी रहे, लेकिन बाद में उन्होंने इस्तीफा देकर पूर्व केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के साथ मिलकर अखिल भारतीय इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) का गठन भी किया | लेकिन उनका यह प्रयोग बुरी तरह असफल रहा, तथा 1991 में वे सतना से लोकसभा चुनाव भी हार गए । यह वह समय था, जब मध्य प्रदेश और केंद्र दोनों जगह कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई ।

अपने असफल प्रयोग से थके अर्जुनसिंह कांग्रेस में वापस लौटे, किन्तु दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा, तथा वे एक बार फिर मध्य प्रदेश में होशंगाबाद से लोकसभा चुनाव हार गए । 

कलंक का टीका -

अपने जीवन काल में अर्जुनसिंह के माथे पर कई कलंक के टीके लगे | एक तो बहुचर्चित युनियन कार्बाईड काण्ड तथा दूसरा चुरहट लाटरी काण्ड |

भोपाल में हुआ युनियन कार्बाईड गैस काण्ड -

जब अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उसी समय 2 और 3 दिसंबर 1 9 84 की मध्य रात्री में यूनियन कार्बाइड कारखाने से घातक गैस रिसाव हुआ। यह व्यापक रूप से आरोप लगाया जाता है कि उस घातक रात को, जब गैस का रिसाव हुआ, तो अर्जुन सिंह भोपाल के बाहर स्थित अपने केरवा बांध पैलेस से भी भाग गए, ताकि खुद को गैस के घातक प्रभाव से बचा सकें | संकट के इस दौर में जबकि उन्हें प्रशासन का नेतृत्व करना चाहिए था, उनकी यह कायरता खासी चर्चित हुई |

7 जून 2010 को भोपाल के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने फैसले में अर्जुन सिंह सरकार की कटु निंदा भी की । देश की मीडिया ने वॉरेन एंडरसन की रिहाई में उनकी भूमिका के बारे में भी गंभीर सवाल उठाए। विशेष रूप से, विमान के पायलट के उस बयान के बाद, जिसमें कहा गया था कि गैस रिसाव के बाद वारेन एंडरसन को भारत से बाहर ले जाने के लिए उड़ान की अंतिम मंजूरी अर्जुन सिंह के कार्यालय से हुई थी।

चुरहट लॉटरी केस और केरवा बांध महल

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए 1982 में चुराहट लॉटरी घोटाला हुआ । अर्जुनसिंह के बेटे अजय सिंह और नजदीकी लोगों द्वारा चुरहट चिल्ड्रंस वेलफेयर सोसाइटी की स्थापना की गई और उस सोसायटी के लिए लॉटरी के माध्यम से धन जुटाने की अनुमति दी गई | जब मदर टेरेसा ने चुरहट जिले में बच्चों के एक अस्पताल की नींव का पत्थर रखा- कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह का मानो एक सपना सच हो गया । अस्पताल के नाम पर बेशुमार धन जुटाने के आरोप लगते रहें, बला से ।

मजा यह कि स्पष्ट तौर पर हुए इस जुए की राशि को दान बताते हुए, कर में राहत भी दी गई । बड़े पैमाने पर आरोप लगे कि उस काली कमाई से ही भोपाल के नजदीक भव्य कैरवा बांध महल का निर्माण हुआ । इस सोसायटी को दान देने वालों में यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वार्नर एंडरसन भी शामिल थे, जिन्हें भोपाल में हुए गैस रिसाव के बाद देश छोड़ने की अनुमति कथित तौर पर अर्जुन सिंह के कार्यालय द्वारा दी गई थी ।

लेकिन अर्जुनसिंह पर सबसे गंभीर आरोप लगाया सुब्रमण्यम स्वामी ने | अपनी बहुचर्चित पुस्तक "The Assassination of Rajiv Gandhi -- Unanswered Questions and Unasked Queries" ("राजीव गांधी की हत्या - अनुत्तरित प्रश्न और ना की गई जांच ") में डॉ. स्वामी ने अर्जुनसिंह की ओर भी शक की सुई घुमाई है। ध्यान देने योग्य बात है कि डॉ. स्वामी और स्व. राजीव गांधी की मित्रता जगजाहिर थी |

पुस्तक के अनुसार "राजनीतिज्ञों में अर्जुन सिंह और मीडिया में वीर संघवी (द हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक) उन लोगों में से थे, जिन्होंने अमेरिकी एजेंसी सीआईए या इजरायल की मोसाद को या दोनों को या हत्या के मास्टरमाइंड को जानकारियाँ प्रदान करने का अभियान संचालित किया । 

डॉ. स्वामी ने आगे लिखा है कि अर्जुन सिंह ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री अपने पद से हटाने का भी षडयंत्र रचा, किन्तु लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति जैल सिंह के कारण वे अपनी योजना में सफल नहीं हुए; तथा राजीव गांधी को समय पर जानकारी मिल गई |

डॉ. स्वामी ने अपनी पुस्तक में एक टेप का भी उल्लेख किया है जिसका विवरण "सन्डे" पत्रिका में प्रकाशित किया गया था | यह टेप कथित तौर पर जैन आयोग के सम्मुख किसी राजेन्द्र जैन ने प्रस्तुत किया था, जिसकी बाद में रहस्यमय तरीके से मृत्यु हो गई | टेप में खुलासा किया गया था कि तत्कालीन कानून मंत्री एचआर भारद्वाज ने किस प्रकार अर्जुन सिंह को प्रधान मंत्री बनाने का प्रयास किया |

डॉ. स्वामी के अनुसार अर्जुन सिंह नेहरू परिवार से नफ़रत करते थे | 

अब सवाल उठता है कि आखिर क्यों ?

अर्जुनसिंह स्वयं को शाही परिवार का बताते थे, किन्तु सचाई यह थी कि उनके पिता शिव बहादुर सिंह महज एक जागीरदार थे तथा अर्जुनसिंह उनके छोटे बेटे थे जिन्हें संपत्ति में अपने बड़े भाई रणबहादुर सिंह की तुलना में काफी कम हिस्सा हाथ लगा था | नेहरू जी के शासनकाल में ही उनके पिता एक डायमंड व्यापारी से रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े गए और बाद में जेल में ही उनकी मौत हुई ।

इसलिए हो सकता है कि डॉ. स्वामी के दावों में सचाई भी हो और सच में ही अर्जुनसिंह ने प्रधानमंत्री बनने का सपना पाला हो | नेहरू परिवार से बदला और प्रधान मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा दोनों साथ में | आम के आम गुठली के दाम |

आखिर यह सवाल भी तो अपनी जगह है कि जो अर्जुन सिंह 1982 में अपने ट्यूबवेल ऋण का भुगतान करने में भी असमर्थ थे, कैसे भोपाल में केरवा पैलेस और अन्य संपत्तियों के मालिक बन गए ? रबर पाउच कारखाना बेंगलुरु, सोलन हिमाचल प्रदेश में एप्पल गार्डन और जेपी सीमेंट में बड़े शेयरधारक हो गए ? 

अर्जुन सिंह ने 1957 में रीवा राज्य के महाराजा मार्तंड सिंह द्वारा की गई आर्थिक मदद और समर्थन की दम पर पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और विजय प्राप्त की । उस समय वे इतने गरीब थे कि उनके पास चुनाव के लिए जमानत के पैसे भी नहीं थे और महाराजा मार्तंड सिंह ने ही उन्हें 50,000 / - रुपये का अनुदान दिया था। लेकिन अर्जुन सिंह ने उन्हीं महाराजा मार्तंडसिंह के साथ विश्वासघात किया और उनकी संपत्तियों को हड़पा (जैसा कि बाद में उनके भाई सज्जन सिंह के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले से स्पष्ट हुआ) | अंत में नवंबर 1994 में दुखी महाराज ने प्राण त्याग दिए ।

अर्जुन सिंह 1985 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और तत्काल बाद में चुरहट लॉटरी घोटाला हुआ, और फिर क्या था भोपाल में जेपी इंडस्ट्रीज के शेयरों के एक बड़े हिस्से की मदद से करोड़ों रुपये मूल्य का आलीशान केरवा महल बनकर तैयार हो गया । राज्य का पिछड़ापन बढ़ता गया और उसी अनुपात में अर्जुन सिंह समृद्ध होते गए।

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