कोलारस और मुंगावली उपचुनाव बनाम महल की मिली जुली कुश्ती – हरिहर शर्मा


वर्षों पहले स्व. कुशाभाऊ ठाकरे जी ने महल को लेकर मेरे तल्ख़ तेवरों से आजिज आकर कहा – “हरिहर हम शिवपुरी गुना में संगठन को शून्य मानकर चलते हैं, अतः महल के समर्थन से जो इक्का दुक्का संगठन निष्ठ विधायक जीत जाएँ, उतने में ही संतोष कर लेते हैं |”

अनुभवहीन तरुण ही था, उनको जबाब नहीं दे पाया | किन्तु आज सोचता हूँ कि तवसे अब तक बदला क्या है ? स्व. माधवराव जी के कांग्रेस में जाने के बाद भाजपा संगठन आज तक इसी विकट समस्या से जूझता आया है | 

ठाकरे जी अगर संगठन को शून्य मानकर चलते थे, तो उसमें एक विवशता थी, साथ ही स्थिति बदले यह इच्छा भी | यही कारण है कि महल की अनिच्छा के बाद भी स्व. सुशील बहादुर अष्ठाना को लगातार न केवल टिकिट मिलता रहा, बल्कि उन्हें पूर्ण समर्थन भी मिलता रहा | किन्तु आज क्या हो रहा है ? उस समय तो राजमाता जैसा विराट व्यक्तित्व था, आज उस हैसियत का कौन है ?

आईये अब बात करते हैं, महल की रणनीति की | इस अंचल में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो कहते हैं कि हमें पार्टी फार्टी से कोई मतलब नहीं, हम तो महल के हैं | सार्वजनिक जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह कि बड़ी संख्या में ऐसे लोग ही कांग्रेस व भाजपा दोनों पार्टियों के पदाधिकारी भी हैं | जब भी कोई राजपरिवार का व्यक्ति चुनाव मैदान में उतरता है फूल छाप कांग्रेसी और पंजा छाप भाजपाई उनके समर्थन में मूल पार्टी से कहीं ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं | दुर्भाग्य से दोनों ही राजनैतिक दलों ने इस स्थिति को सहज स्वीकार कर लिया है |

उलटे मजा यह कि जो महल निष्ठ अपनी मूल पार्टी की पीठ में जितना गहरा घाव करता है, उसे उतना ही अधिक सम्मान मिलता है | दूसरे शब्दों में कहा जाये तो जो जितना बड़ा गद्दार, वह उतना बडा नेता | महल की कुटिल नीति के चलते भाजपा संगठन में खुद्दार घटते गए, गद्दार बढ़ते गए |

यह तो हुई उस स्थिति की बात जब राजपरिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ रहा हो, किन्तु जब उनका कोई गुर्गा चुनाव लड़ता है तब क्या ? दूसरी पार्टी के राजपरिवार सदस्य का प्रयत्न होता है कि उसके सामने कमजोर प्रत्यासी उतरे | अगर पार्टी नहीं मानी व उनकी इच्छानुसार टिकिट नहीं दिया गया तो फिर वही होता है – दोनों पार्टियों के महल निष्ठ एकजुट होकर महल की इच्छानुसार काम करते हैं | यह मिलीजुली कुश्ती ही शिवपुरी गुना क्षेत्र का भाग्य बन गया है | 

इसी तारतम्य में आईये शिवपुरी जिले के कोलारस तथा अशोकनगर जिले के मुंगावली उपचुनाव की चर्चा करें | 

इन दोनों ही सीटों पर घनघोर महल निष्ठ विधायक आसीन थे, जिनके असामयिक निधन के कारण निकट भविष्य में उपचुनाव होने जा रहे हैं | किसको टिकिट मिलगा, कौन जीतेगा, इसकी अटकलें लगने लगी हैं | कांग्रेस व भाजपा दोनों के लिए ये उपचुनाव महत्वपूर्ण हैं | ये चुनाव 2018 में होने वाले विधानसभा चुनावों का सेमीफाईनल माने जा रहे हैं | कांग्रेस की और से संभावित मुख्यमंत्री पद के दावेदार ज्योतिरादित्य जी स्वाभाविक ही एडीचोटी का जोर लगायेंगे वहीँ दूसरी ओर अगर भाजपा को चौथी बार अपनी सरकार बनाना है तो ये चुनाव जीतने ही होंगे अन्यथा उल्टी गिनती शुरू मानी जायगी | इन चुनावों का असर केवल 2018 के विधानसभा ही नहीं, बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव पर भी पडेगा |

इस स्थिति को समझकर भाजपा ने फूंकफूंक कर पाँव रखना शुरू कर दिया है | क्षेत्र में बड़ी संख्या में ऐसे पत्रकार भी हैं जो महल के इशारे पर आग में घी डालते हैं तथा उनका उद्देश्य केवल महल समर्थक वातावरण बनाना होता है | जैसे की अब शुरू हो गया है – भाजपा में यशोधरा जी की अनदेखी, यशोधरा समर्थक नाराज आदि आदि | उनका उद्देश्य केवल एक ही है कि इस बार कांग्रेस समर्थक वातावरण बने, महल निष्ठ ग्रामवासियों तक महल की इच्छा पहुंचे | महल समर्थक राजनैतिक कार्यकर्ताओं को संभालना तथा मीडिया मेनेजमेंट करना सचमुच भाजपा के सामने एक बड़ी चुनौती है |

मुंगावली स्व. राव देशराजसिंह का कार्यक्षेत्र रहा है, जिन्होंने स्व. माधवराव सिंधिया तथा ज्योतिरादित्य जी दोनों के विरुद्ध लोकसभा चुनाव लडे | वे मुंगावली से ही तीन बार विधायक भी रहे तथा गुना जिला भाजपाध्यक्ष भी | वे पिछला चुनाव अवश्य हारे किन्तु इसकी भी एक अलग कहानी है | अति आत्मविश्वास में उन्होंने ज्योतिरादित्य जी को चुनौती दे डाली कि दम हो तो मुंगावली से उनके खिलाफ लड़ कर बताएं | ज्योतिरादित्य जी ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर अपने नजदीकी महेंद्रसिंह कालूखेडा को चुनाव लड़वाया और महलनिष्ठ भाजपाई और कांग्रेसियों ने इस जीवट के धनी योद्धा को पराजित करने में सफलता पाई | आज फलक पर न तो महेंद्र सिंह है, और ना ही देशराज | देखना होगा कि जन सहानुभूति स्थानीय स्व. देशराज सिंह जी के साथ रहती है या बाहरी महेंद्रसिंह कालूखेडा के साथ | इसमें तो कोई दो राय हो ही नहीं सकती कि महल का प्रभाव होते हुए भी वहां भाजपा की जड़ें मजबूत हैं | 

इसी प्रकार कोलारस से भी भाजपा प्रत्यासी जीतते रहे हैं, यहाँ भी भाजपा का पर्याप्त जनाधार है | कोलारस से भाजपा के जगदीश वर्मा, कामता प्रसाद बेमटे, ओमप्रकाश खटीक व देवेन्द्र जैन विधायक रह चुके हैं | यहाँ से कांग्रेस जिलाध्यक्ष रामसिंह यादव पिछला चुनाव जीते थे, किन्तु इसकी भी एक अलग कहानी है | 2008 के चुनाव में भाजपा के देवेन्द्र जैन ने रामसिंह यादव को पुनर्मतगणना के बाद महज 238 वोटों से पराजित किया था | रामसिंह का इलाके के यादव समाज में पर्याप्त सम्मान था तथा उन्हें दादा कहकर पुकारा जाता था | जबकि देवेन्द्र जैन इलाके के करोडपति पत्ता व्यवसाई हैं | उस समय आम तौर पर जनचर्चा फैली कि रामसिंह को धनबल से पराजित किया गया है | नतीजा यह हुआ कि 2013 के अगले चुनाव में जब एक बार फिर दोनों के ही बीच मुकाबला हुआ, तो जन सहानुभूति की इतनी तेज आंधी चली कि देवेन्द्र जैन पत्ते वाले, किसी पत्तेके ही समान उड़ते नजर आये | उन्हें 24953 मतों के विशाल अंतर से पराजय का सामना करना पड़ा |

एक बार फिर कांग्रेस स्वर्गीय रामसिंह दादा के किसी परिजन को चुनाव लड़ाकर पिछली बार जैसी ही सहानुभूति लहर की उम्मीद बांध रही है | लेकिन क्या वह आसान होगा ?

मेरा निजी अनुमान है कि मुंगावली तो निश्चय ही भाजपा जीतेगी, कोलारस भी जीत जाएँ तो कोई अचम्भा नहीं | क्षेत्र यादव बहुल तो है किन्तु शेष समाज उनकी सामाजिक दबंगई को ख़ास पसंद नहीं करता | रामसिंह जी अपवाद थे, उनकी टक्कर का कोई और सर्वमान्य नेता अब कांग्रेस के पास नहीं | यदि महल से कोई वास्ता न रखने वाले कार्यकर्त्ता ही एकजुट हो जायें तो भाजपा को जीतने से कोई नहीं रोक सकता |

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