असंतुष्ट भाजपाई बनाम खंडो बल्लाल – हरिहर शर्मा



शिवाजी के अत्यंत प्रिय और वफादार चिटनिस (सचिव) बालाजी आवजी के छोटे बेटे थे – खंडो बल्लाल । उनका जन्म अनुमानतः 1666 के आस पास माना जाता है । उन्होंने जहाँ घुड़सवारी और तलवारबाजी में निपुणता प्राप्त की, वहीँ उस समय की पर्याप्त शिक्षा भी अर्जित की | खंडो बल्लाल की कदकाठी अत्यंत विशाल थी तथा वे बहुत शक्तिशाली थे ।

शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद का दौर सत्ता संघर्ष और राजनैतिक उठापटक का दौर था | शिवाजी की दो पत्नियां थीं | पहली पत्नी सई बाई से उत्पन्न बड़े बेटे शम्भाजीराव शिवाजी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी थे | किन्तु उनकी विमाता और शिवाजी द्वारा घोषित महारानी सोयराबाई अपने नाबालिग पुत्र राजाराम को सिंहासन पर बिठाने को अड़ी हुई थीं | मराठा इतिहास का वह समय ठीक बैसा ही था, जैसे सूर्यास्त के बाद तारों के प्रकाश में मार्ग ढूँढना | 

शम्भाजी ने सत्तासूत्र तो संभाल लिए, किन्तु चाटुकारों और स्वार्थी लोगों ने उन्हें गिरफ्त में ले लिया | स्वामीभक्त व ईमानदार लोग उनकी राह के सबसे बड़े रोड़े थे | स्वाभाविक ही चापलूसों ने शम्भाजी के कान भरने शुरू कर दिए | परिणाम यह हुआ कि अगस्त 1681 में स्वयं शम्भाजी के आदेश पर शिवाजी के विश्वासपात्र व स्वामीभक्त बालाजी आवजी, उनके भाई शामजी वाल और बड़े बेटे आवजी का सर कलम कर दिया गया | खंडो बल्लाल और नीलोबल्लाल को जानवरों का भोजन बनने के लिए निहत्था जंगल में छोड़ने का भी आदेश दिया गया | 

किन्तु “जाको राखे साईयाँ, मार सके ना कोय”, विधाता को कुछ और ही मंजूर था | शम्भाजी की पत्नी महारानी येशूबाई को समय पर सूचना मिल गई तथा उन्होंने संभाजी को वास्तविकता से अवगत करा दिया | इस पूरे षडयंत्र की जानकारी मिलने पर शम्भाजी को भारी पश्चाताप हुआ तथा उन्होंने प्रायश्चित स्वरुप खंडो बल्लाल को ही अपना निजी सहायक नियुक्त किया | 

बाद में एक बार जब वर्षाकाल में शम्भाजी घोड़े पर सवार होकर नदी पार करने का प्रयत्न कर रहे थे, तब नदी के तेज प्रवाह में उनकी जान पर बन आई | तब खंडो बल्लाल ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया और उन्हें सकुशल अपनी पीठ पर लादकर नदी से बाहर निकाला | 

औरंगजेब के हाथों शम्भाजी की क्रूर ह्त्या के बाद एक बार फिर सत्ता संघर्ष छिड़ा | शम्भाजी के सौतेले भाई राजाराम ने स्वयं को छत्रपति घोषित कर दिया | शम्भाजी के बेटे शाहू जी और पत्नी येशूबाई मुगलों के कब्जे में लम्बे समय तक कैद रहे | राजाराम भी मुगलों की कैद में फंस जाते अगर खंडोबल्लाल ने उन्हें न बचाया होता | 

जरा विचार कीजिए | अपने पिता की हत्या करने वालों के साथ आजीवन बफादार रहना क्या आसान काम है ? किन्तु खंडो बल्लाल रहे | 

क्यों ?

हिन्दवी स्वराज्य के प्रति निष्ठा के कारण !

आज नरेंद्र मोदी और भाजपा हिंदुत्व के प्रतीक हों, न हों, किन्तु तथाकथित सेक्यूलर दल हिन्दू द्रोह के पर्याय अवश्य है |

ऐसे में अगर स्वयं को हिन्दुत्व का झंडाबरदार घोषित करने वाले महानुभाव, महज पूछपरख ने होने के कारण भाजपा की पराजय पर प्रसन्न और विजय पर खिन्नता का प्रदर्शन करें, तो इसे क्या कहा जाएगा ?

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