तेलंगाना भी चल पड़ा अलगाववाद के मार्ग पर - सुरेंद्र कुंती


स्व. मोहनदास करमचंद गांधी द्वारा खिलाफत आंदोलन के समर्थन का ही नतीजा था, भारत विभाजन, क्योंकि उसके कारण ही मुस्लिम अलगाववादी एजेंडे को बल मिला था । तेलंगाना राज्य सरकार द्वारा मुस्लिमों को खुश करने के लिए आज जो कदम उठाये जा रहे हैं, उनका परिणाम भी वही होगा, अर्थात अलगाववादी प्रवृत्तियों का पोषण । हमें यह याद रखना चाहिए कि किस प्रकार शुरूआत में एमआईएम पार्टी के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अलग तेलंगाना के विचार का विरोध किया था, लेकिन बाद में तब सहमति जताई, जब मुस्लिम बहुल कुरनूल और अनंतपुर जिलों को भी इसमें शामिल किया गया । हाल ही में, एआईएमआईएम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने घोषित किया है कि उनकी पार्टी 201 9 के आम चुनावों में भी पुनः टीआरएस के साथ गठबंधन करेगी। कारण साफ़ है - क्योंकि तेलंगाना सरकार का हर निर्णय, मुसलमानों को खुश करने के उद्देश्य से हो रहा है | राज्य सरकार पर परोक्ष नियंत्रण ओबेसी बंधुओं का और प्रकारांतर से आजादी के पूर्व की रजाकार मानसिकता का है |

यही कारण है कि तेलंगाना सरकार अन्य समुदायों की कीमत पर राज्य में मुस्लिमों को मजबूती देने के प्रयास में सारी सीमायें लांघ रही है, जिसके कारण न केवल राजनैतिक माहौल विकृत हो रहा है, बल्कि सामाजिक सौहार्द्र को भी खतरा उत्पन्न हो रहा है | 

किसी भी वाहन चालक को सदैव सतर्क और सावधान रहना चाहिए। उसकी छोटी सी भूल उसके साथ साथ अन्य सहयात्रियों के जीवन को भी संकट में डाल सकती है । किसी राज्य के मुख्यमंत्री की भूमिका भी वाहन चालक जैसी ही होती है | तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने राज्य की दूसरी भाषा के रूप में उर्दू की घोषणा करके, ऎसी ही एक गलती की है, जिसके दुष्परिणाम भावी पीढ़ियों को भी भोगने पड़ेंगे । हाल के दिनों में तेलंगाना सरकार द्वारा लिए गए कुछ अन्य प्रमुख निर्णयों से भी राज्य के समग्र कल्याण के स्थान पर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का ही आभास मिलता है ।

9 नवंबर को केसीआर ने तेलंगाना की दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में उर्दू को मान्यता प्रदान करने की घोषणा की । उन्होंने यह भी घोषणा की कि एक विशेष जिला चयन समिति (डीएससी) का गठन किया जायगा, जो 70 दिन की समय सीमा में 900 उर्दू शिक्षकों की भर्ती करेगी। इन पदों के लिए पात्रता का मापदंड उर्दू अकादमी और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा तय किया जाएगा । 

केसीआर ने 66 उर्दू भाषी अधिकारियों को सरकार में विभिन्न प्रमुख विभागों में पदस्थ भी किया है। राज्य विधानसभा, परिषद के अध्यक्ष, मुख्य सचिव और 17 अन्य मंत्रियों के कार्यालयों में अनिवार्यतः एक उर्दू भाषी अधिकारी नियुक्त होगा । इसी तरह, विधानसभा प्रशासन, राज्य परिषद, सूचना और जनसंपर्क विभाग, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) का कार्यालय, हैदराबाद शहर पुलिस आयुक्त और सभी नए 31 जिला कलेक्टर कार्यालयों में भी उर्दू बोलने वाले अधिकारियों की विशेष भर्ती की जायेगी |

तेलंगाना सरकार ने मुस्लिम तुष्टीकरण की दौड़ में सबसे आगे रहने की कोशिश में हैदराबाद के बाहरी इलाके कोकपेट के 10 एकड़ क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का “हैदराबाद इंटरनॅशनल इस्लामिक कल्चरल कन्वेंशन सेंटर” निर्माण करने का प्रस्ताव किया है । उन्होंने मुसलमानों के लिए एक अलग औद्योगिक गलियारा स्थापित करने का भी निर्णय लिया है | क्या ये समस्त कदम देश के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विपरीत नहीं है ?

तेलंगाना सरकार ने नौकरियों और शिक्षा में भी धार्मिक आधार पर मुसलमानों का कोटा 4% से बढ़ाकर 12% कर दिया है। तेलंगाना अल्पसंख्यक आवासीय शैक्षिक संस्थान (TMREIS) द्वारा, 6723 करोड़ रुपये की लागत से 120 नए स्कूल प्रारम्भ करने की योजना बनाई गई है। 71 ऐसे आवासीय विद्यालय (39 लड़कों के लिए और 32 लड़कियां के लिए) पहले से ही चल रहे हैं और शेष अगले चरणों में प्रारम्भ होंगे । इन स्कूलों में 75% सीटें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं। इन स्कूलों में मुस्लिम बच्चों के लिए उर्दू अनिवार्य विषय है, जबकि गैर-मुस्लिम छात्र विकल्प के रूप में तेलुगु चुन सकते हैं |

2015-16 में अल्पसंख्यकों के लिए “मुख्यमंत्री ओवरसीज छात्रवृत्ति योजना” शुरू की गई थी, जिसके अंतर्गत उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले अल्पसंख्यक छात्रों को 10 लाख रूपए प्रति विद्यार्थी और एक तरफ़ का विमान किराया प्रदान किया जाता है । 2015-16 में ही “तेलंगाना अल्पसंख्यक स्टडी सर्किल” का भी गठन किया गया, जो टीएसपीएससी द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए केवल अल्पसंख्यकों को प्रशिक्षण देने पर ध्यान केंद्रित करेगा। स्मरणीय है कि इसके द्वारा देश के शीर्ष संस्थानों में ऑल इंडिया सर्विसेज परीक्षा के लिए तैयारी कर रहे 100 अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को भी प्रायोजित किया जाता है।

आधिकारिक तौर पर, उपर्युक्त सभी पहल अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं के तहत की जाती है, लेकिन मुख्य उद्देश्य तो एक ही है - सत्तारूढ़ दल की मुस्लिम वोट बैंक पालिसी । आधिकारिक सूत्रों के अनुसार राज्य में पहले से ही 1,561 उर्दू-माध्यम मदरसे चल रहे हैं, जिनमें 1.31 लाख छात्र अध्ययन कर रहे हैं।

तेलंगाना की उर्दू अकादमी महज हज कार्यक्रमों और धार्मिक सेमिनारों के आयोजन में व्यस्त है। उर्दू अकादमी के पास कोई भी शैक्षणिक कामकाज नहीं है। 

इन मदरसों की लाभ हानि पर देश में पहले से ही व्यापक चर्चा होती रही है | कई उदाहरण हैं, जहां मदरसे कट्टरपंथियों की पौधशाला प्रमाणित हुए हैं, जहाँ बच्चों में अलगाववाद के बीज बोये जाते हैं | इन बच्चों की जहन में बचपन से ही देश के कानून के स्थान पर इस्लामिक क़ानून का कट्टरपंथी जहर भर दिया जाता है, जिसका घातक परिणाम राज्य और देश के सामाजिक तानेबाने को नुकसान पहुंचाने वाला सिद्ध होता है ।

किसी भी मदरसे से निकले किसी भी विद्यार्थी द्वारा आज तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रत्तीभर भी कोई योगदान दिया हो, इसका कोई प्रमाण नहीं है। इसके विपरीत, मदरसों ने अरब देशों और एशिया में धार्मिक राज्य की स्थापना के लिए असीम योगदान दिया है। यदि दुनिया भर के इस्लामी मदरसों का यही इतिहास है तो सहज कल्पना की जा सकती है कि हैदराबाद का इस्लामी केंद्र भी क्या और किस तरह का अनुसंधान करेगा? 

ऐतिहासिक सबूत सरल और स्पष्ट है | यह संस्थान भी वही करेगा और देश के स्कूलों और कॉलेजों में इस्लामिक सिद्धांत की आपूर्ति करेगा। आने वाले दशक में, सरकार की मंजूरी के साथ, अलगाववाद की आवाज और ज्यादा बुलंद होगी और यह काम होगा तेलंगाना की जनता के गाढे खून पसीने की कमाई द्वारा ! यह संभावना इसलिए भी बहुत ज्यादा है, क्योंकि इन मदरसों में क्या पढाया जा रहा है, इसे नियंत्रित करने और इनकी गतिविधि के नियंत्रण का देश में कोई तंत्र ही नहीं है ।

आने वाले दिनों में भाषा की समस्या भी सरकारी अधिकारियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जायेगी, क्योंकि उर्दू में लिखे को पढ़ना और समझना उनके लिए टेढ़ी खीर होगा | ओवैसी जैसे नेता आसानी से इन स्कूलों का अपहरण कर अपने अनुसार इतिहास पढ़ाएंगे, पाठ्य पुस्तकों में निजाम और मुग़लों का चित्रण नायक के समान होगा । स्मरणीय है कि मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव तो पहले से ही 1 9 48 में हैदराबाद के विलय के दौरान किये गए निजाम और रजाकारों के अत्याचारों को नकारते आये हैं । कुल मिलाकर तेलंगाना सरकार की यह सुव्यवस्थित कार्रवाई केवल और केवल मुस्लिम अलगाववाद के बीज को विराट वृक्ष बनायेगी ।

मुसलमानों के लिए एक अलग औद्योगिक गलियारा आज कागजों पर है, लेकिन जल्द ही 201 9 के आम चुनावों में इसे घोषणापत्र क एजेंडे में स्थान मिल जायगा । अक्टूबर में, सऊदी अरब के राजदूत सोद मोहम्मद अलसती ने तेलंगाना में निवेश करने की इच्छा व्यक्त की थी । ऐसे धर्म-आधारित निवेश का सन्देश साफ़ है | इसका असर तेलंगाना सहित पूरे देश पर होगा । मुसलमानों के लिए एक विशेष औद्योगिक गलियारे का केसीआर का वादा अन्य प्रदेशों में भी ऐसी ही मांगों को जन्म देगा और चूंकि इस तरह के गलियारे में ज्यादातर उर्दूभाषी लोगों को प्राथमिकता मिलेगी, तो धीरे धीरे पृथक मुस्लिम फंड और बाद में इस्लामिक बैंकिंग पर भी जोर दिया जा सकता हैं।

किसी एक समुदाय को निरीह और दूसरे को सबल बनाने का प्रयत्न ही सामजिक विद्वेष को जन्म देता है और नतीजा होता है दंगे फसाद, वर्ग संघर्ष । विज्ञान और आधुनिक कंप्यूटर आधारित शिक्षा पर जोर देकर मदरसों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश करने के बजाय, तेलंगाना सरकार विपरीत दिशा में चल रही है | हैदराबाद के मदरसों में अरबी शैली की वेशभूषा और बुरखा पहने हुए बच्चे मुसलमानों को मुख्यधारा से अलग करती हैं। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ मुस्लिम तुष्टीकरण, राजनेताओं की इसी शैली ने मुस्लिमों को पूरे देश में लगभग अलग-थलग कर दिया है और हालत यहाँ तक पहुँच गई कि मदरसों में स्वतंत्रता दिवस मनाने से भी परहेज किया जाने लगा । 

अगर समय रहते राज्य में राष्ट्रवादी ताकतों को शक्ति न मिली तो अलगाववादी तत्वों की जड़ें अत्याधिक मजबूत हो जायेंगी । यह कार्य कोई और नहीं, जागृत जनशक्ति ही कर सकती हैं | केंद्र सरकार द्वारा यदि कोई प्रयास किया भी गया तो उसे देश भर में मुस्लिम विरोधी घोषित किया जाएगा | इसके पूर्व कि यह विषबेल पूरे दश में फैले और समाज को गंभीर नुकसान पहुंचाये, हर राष्ट्रभक्त नागरिक, पार्टी और संगठन का दायित्व है कि इसका प्रभावी प्रतिवाद करे ।

सुरेंद्र कुंती
सह संयोजक, विश्व संवाद केंद्र, तेलंगाना

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