नोटबंदी - वरदान या अभिशाप ? - हरिहर शर्मा
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अगर कोई मुझसे पूछे कि
मौजूदा सरकार के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौती क्या है – तो मेरा जबाब होगा – अंध भक्ति
और अंध विरोध !
जी हाँ ये ही दो बातें हैं,
जिनके कारण सरकार को सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा है | कोई कह सकता है कि
अंधविरोध तो समस्या बताना ठीक है, अंध भक्ति से क्या समस्या है ?
लेकिन सचाई यह है कि सरकार
को विरोधियों से ज्यादा भक्तों ने पशोपेश में डाला है | आज ही के दिन 8 नवम्बर 2016
को सरकार ने काले धन और भ्रष्टाचार से जूझने के संकल्प के साथ 500 और 1000 के
नोटबंद करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया था | आज पूरे देश में विरोधी दल नोटबंदी को
सदी का सबसे बड़ा घोटाला बताते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं | इसके पीछे कहा जा
रहा है कि सरकार ने दावा किया था कि बड़े पैमाने पर काला धन, भ्रष्ट लोगों की
तिजोरियों में ही सड जाएगा, जबकि अधिकाँश धनराशि वापस बैंक में आ गई |
अब जरा याद कीजिए एक वर्ष
पूर्व के घटनाचक्र का | क्या सरकार ने ऐसा कोई दावा किया था ? सचाई यह है कि सरकार
ने नहीं, सोशल मीडिया पर अंधभक्तों ने इस विषय को बेतरतीब ढंग से सबसे अधिक तूल
दिया था | अगर उस समय यह तूमार खड़ा नहीं किया जाता तो आज विरोधियों के पास कहने को
कुछ होता ही नहीं |
आज समाचार पत्रों में
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने और अन्य पत्रकारों ने भी नोटबंदी के जो लाभ गिनाये हैं,
उनसे साफ़ है कि काले धन की जड़ पर प्रहार करने की यह योजना काफी हद तक सफल हुई है |
आईये इस महत्वपूर्ण विषय का
सांगोपांग विवेचन करें –
8 नवम्बर 2016 को कुल 17.77
लाख करोड़ मुद्रा प्रचलन में थी, जिसमें से 500 और 1000 रु. के बड़े नोट अनुमानित
15.44 लाख करोड़ के थे | इनमें से 30 जून 2017 तक 15.28 लाख करोड़ के नोट वापस बैंक
में जमा हुए | अर्थात 16 हजार करोड़ की काली कमाई व्यर्थ हो गई |
इस दौर में 15,497 करोड़ की
अघोषित आय की स्वीकारोक्ति हुई | सरकारी एजेंसियों द्वारा 13,716 करोड़ रुपये की
अघोषित आय की पहचान की गई |
बैंक में जमा हुई धनराशि
में से, आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय प्राथमिक रूप से 1.7 लाख करोड़ रुपये के
ट्रांजेक्शन को संदिग्ध मानकर जांच कर रहा है | संदिग्ध खातों की कुल संख्या तीन
लाख इकसठ हजार दो सौ चौदह है |
छप्पन लाख नए करदाताओं ने
पहली बार अपने रिटर्न दाखिल किये | गैर कार्पोरेट अग्रिम कर भुगतान कर्ताओं की
संख्या में 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई | यह संख्या निश्चय ही और अधिक बढ़ेगी |
जिन शैल कंपनियों द्वारा
कालेधन को सफ़ेद करने का कुचक्र चलाया जाता था, ऐसी 2.24 लाख कंपनियों का पंजीकरण
निरस्त किया गया | इनके बैंक खातों को फ्रीज कर देनलेन प्रतिबंधित किया गया |
इनमें से कई कंपनियों के तो 100 से अधिक खाते हैं | एक कम्पनी के तो 2,134 बैंक
खाते होने का खुलासा हुआ | यह इस बात का प्रमाण है कि देश की अर्थ व्यवस्था को किस
प्रकार खोखला किया जा रहा था | इन कंपनियों के माध्यम से लगभग 13,300 करोड़ की
ब्लेकमनी व्हाईट की गई थी |
एक और बात ध्यान देने योग्य है और वह यह कि नोटबंदी के समय सरकार की ओर से कहा गया था कि देश में तीन लाख करोड़ रुपए की ब्लैकमनी नकदी के रूप में मौजूद है। अब तक नोट बंदी के कारण कुल दो लाख बारह हजार करोड़ की काली कमाई सामने आ चुकी है | जबकि अभी यह सिलसिला रुका नहीं है | अतः कहा जा सकता है कि सरकार का अनुमान यथार्थपरक और वास्तविक था |
कहाँ एक ओर तो 1.76 लाख करोड़ का टू जी घोटाला, 70 हजार करोड़ का सीडब्लूजी घोटाला, 1.86 लाख करोड़ का कोयला घोटाला, और कहाँ यह दो लाख बारह हजार करोड़ की शुद्ध आय ?
आयकर में वृद्धि, म्यूचुअल
फंड और जीवन बीमा में जबरदस्त वृद्धि, डिजिटल भुगतान की आदत आदि तो हुए ही |
देश का खजाना तेजी से भर
रहा है | अब यह जनता के ऊपर है, कि वह इसकी चाबी किसे देना चाहती है ? प्रमाणिक
लोगों को या प्रमाणित भ्रष्टाचारियों को ?
यथास्थितिवाद की जड़ता को तोड़कर देश को मजबूत और सक्षम बनाने को कृतसंकल्प मोदी जी के विरुद्ध चल रहे फरेबी कुचक्रों से सावधान रहने और आमजन को सावधान करने की आवश्यकता है |
जागो भारत जागो |
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