मध्यप्रदेश में क्यूं दम तोड़ रही हैं कृषक कल्याणकारी योजनायें ?




कल की ही बात है, एक किसान से चर्चा हो रही थी | वह शिवपुरी जिले की कोलारस मंडी में उड़द बेचकर आया था | मायूस दिख रहा था, थोडा कुरेदा तो उसने बताया कि इस वर्ष मंडी में उड़द का भाव 34 सौ से 35 सौ रुपये क्विंटल चल रहा है ! शासन ने एमएसपी रेट 5000 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, अतः किसान को 1500 से 1600 रुपये प्रति क्विंटल शासन द्वारा सबसीडी क रूप में दिया जायगा | 

किसान ने कहा कि वर्ष 2015 में इन्हीं दिनों उड़द के भाव 9500 रुपये तक रहे थे, गत वर्ष 2016 में तो भाव 12 से 13 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक थे | अर्थात किसान को सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी के बाद भी अपनी फसल के आधे से भी कम दाम ही मिल रहे हैं | मंडी में समय से फसल बिक जाए, उसके लिए उसे कर्मचारियों को रिश्वत अलग देनी पड़ती है | वास्तविकता जो भी हो किसानों को व्यापारी और कर्मचारी यही समझा रहे हैं कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण मार्केट में मंदी आई है | यह केवल उड़द की बात नहीं है, हर फसल की यही कहानी है |

कमाल की बात यह है कि खाद्य पदार्थों की कीमत कम होने से आम उपभोक्ता को जो फायदा हुआ है, उसका प्रचार होने के स्थान पर किसानों और व्यापारियों का असंतोष ज्यादा चर्चा में है | सरकार के तो होम करते हाथ जल रहे हैं | सरकार अपने खजाने से सब्सिडी भी दे रही है और आलोचना भी झेल रही है | 

उपभोक्ता को खाद्य पदार्थ कम दाम पर मिलें, यह तो अच्छी बात है, किन्तु किसान को अगर अपनी फसल की कीमत लागत से भी कम मिले, तो यह तो घनघोर अन्याय हो जाएगा | सब्सिडी समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं है | 

ऐसे में एक ही उपाय बचता है और वह है लागत में कमी लाई जाए | यह कैसे होगा ? 

बीज और खाद के लिए मध्यप्रदेश में शून्य प्रतिशत ब्याज पर कर्जा दिया ही जा रहा है, क्या यह संभव नहीं है कि किसान को सिंचाई के लिए बिजली भी पूर्णतः निशुल्क प्रदान की जाए ? 

सर्वाधिक प्राथमिकता हर खेत में पानी पहुँचाने को दी जाए, ताकि प्रदेश का किसान स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बने | 

स्वाभिमान संपन्न समृद्ध किसान बनाने के लिए सब्सिडी की भीख के स्थान पर प्राथमिकता उसे आत्मनिर्भर बनाने को देना चाहिये |

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