अनवर जलालपुरी : मैं जा रहा हूँ मेरा इन्तेज़ार मत करना हिंदी - उर्दू कविता की वाचिक परंपरा के एक युग का अंत - संजय तिवारी

SHARE:

मैं जा रहा हूँ मेरा इन्तेज़ार मत करना मेरे लिये कभी भी दिल सोगवार मत करना मेरी जुदाई तेरे दिल की आज़माइश है इस आईने को कभी शर्म...


मैं जा रहा हूँ मेरा इन्तेज़ार मत करना
मेरे लिये कभी भी दिल सोगवार मत करना
मेरी जुदाई तेरे दिल की आज़माइश है
इस आईने को कभी शर्मसार मत करना
फ़क़ीर बन के मिले इस अहद के रावण
मेरे ख़याल की रेखा को पार मत करना
ज़माने वाले बज़ाहिर तो सबके हैं हमदर्द
ज़माने वालों का तुम ऐतबार मत करना
ख़रीद देना खिलौने तमाम बच्चों को
तुम उन पे मेरा आश्कार मत करना
मैं एक रोज़ बहरहाल लौट आऊँगा
तुम उँगलियों पे मगर दिन शुमार मत करना

और इंसानी जिस्म को छोड़कर वह चले ही गए। सोगवार न होने की कसम दिला कर। ख़याल की रेखा में बाँध कर। लौट कर आने का वादा कर गए। सच है , हिंदी - उर्दू मंचों की वाचिक परंपरा के एक युग का अंत हो गया। अनवर जलालपुरी नहीं रहे। राम की अयोध्या से प्रवाहित सरयू की गोद में पावन तमसा के उसी तट पर 6 जुलाई 1947 को जन्म लिया था , जिस तमसा के तट पर आदिकवि बाल्मीकि ने रामायण रचा था। अनवर जलालपुरी इसी तट पर जलालपुर कसबे की माटी की उपज थे। तुलसी , मीरा , कबीर और रसखान से लेकर ग़ालिब , फैज और मेरे तक की परंपरा को साँसों में समाहित कर मिसरे , शेर और अशआरों की गढन में मशगूल अनवर ने जब गीता को जनभाषा दी तो कमाल ही कर गए। 

यही से उनकी पहचान ने नई शक्ल ले ली, जब उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता को उर्दू शायरी में उतारने का मुश्किल काम किया। इस काम को महज अनुवाद कहना समझदारी न होगी. ‘‘लोकों का सार उन्होंने निहायत आसान जुबान में पेश किया है। इसे पढ़ते वक्त साफ लगता है कि गीता को जैसे उन्होंने एक आम आदमी को समझने लायक बनाने की जिद-सी पकड़ ली है। उनकी अर्धांगिनी, आलिमा खातून का भी इसमें अद्भुत योगदान रहा। चार साल तक चले इस उपक्रम की वह कदम-कदम की गवाह हैं। रात-रात भर जगकर एक-एक लफ्ज, मिसरे और शेर को सुनकर पहली श्रोता के रूप में यथास्थान उन्होंने तब्दीली भी कराई। अब तो उन्होंने उमर खय्याम की 72 रुबाइयों और टैगोर की गीतांजलि का भी इतनी ही आसान जबान में अनुवाद पेश कर दिया है। विगत वर्ष ही लखनऊ में मोरारी बापू और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसका लोकार्पण किया था। यह भी विडम्बना ही है कि हिंदी के स्वनामधन्य प्रकाशकों नेइस कालजयी कृति को छापने लायक ही नहीं समझा। अंत में छोटे-से प्रकाशन से 500 प्रतियां छपवाकर वे इसे पाठकों के सामने ला सके। 

अनवर जलालपुरी अंग्रेजी के प्रवक्ता थे लेकिन भाषा को वह लोक माफिक ही बनाना चाहते थे। वह अपनी शायरी के माध्यम से समाज को हमेशा बड़े पैग़ाम देने की कोशिश करते रहे। नयी पीढ़ी के लिए उनकी शायरी किसी टीचर की तरह राह दिखाती है। वह हर वक्त एक ऐसी दुनिया का ख्वाब देखते हैं, जिसमे ज़ुल्म, ज्यादती की कोई जगह नहीं है। वह खुद बताते थे - छात्र जीवन से उनके दिमाग में एक बात बैठी हुई थी कि कुरान तो पढ़ी ही है, फिर हिंदू परंपरा की किताबें भी क्यों न पढ़ ली जाएं। उसके बाद उन्होंने गीता, रामायण और उपनिषदों का अध्ययन किया। उनके अनुसार "सन 1983 के आसपास उन्हें गीता का अध्ययन करते समय लगा कि इसकी तो तमाम बातें कुरान और हदीसों से मिलती-जुलती हैं। जब उन्होंने काम शुरू किया तो यह इतना विस्तृत विषय हो गया तब मैंने सोचा कि मैं ये काम कर नहीं पाऊंगा। मैं चूंकि शायर हूं इसलिए मैंने सोचा कि अगर मैं पूरी गीता को शायरी बना दूं, तो यह ज़्यादा अहम काम होगा। उसके बाद तय किया इसे जन सामान्य की भाषा में लिखा जाना चाहिए। बात यदि उनके शब्दों में की जाये, तो "मुझे और अधिक शह उस वक्त मिली, जब मोरारी बापू ने भी चाहा कि मुझे ऐसा जरूर करना चाहिए। बापू ने देखा कि एक आदमी जब गीता का आसान भाषा में तर्जुमा कर सकता है तो मानस का भी कर सकता है. उन्हें मेरे टैलेंट पर इतना विश्वास था कि उन्होंने इशारतन दुआ के तौर पर मुझसे एक बात कह दी। बापू ने मुझे मेरी बाकी जिंदगी के लिए एक पवित्र काम दे दिया. इसके बाद गीता के अन्य उर्दू अनुवाद की किताबें मैंने संकलित कीं। उनमें गीता पर रजनीश के शब्दों ने मुझे प्रभावित किया। इसके बाद गीता का उर्दू अनुवाद कुछ इस तरह क्रमशः आगे बढ़ता गया। पहले अन्य टीकाओं का अध्ययन करता, फिर उनके सारांश मिसरे और शेर में उतारता गया। गीता में तहदारी बहुत है। उसका एक श्लोक, अर्थ और व्याख्या पढ़िए, और कुछ दिन बाद फिर पढ़िए तो उनके जुदा-जुदा मायने निकलने लगते हैं। गीता में कृष्ण जिस शैली में बात करते हैं, वह मुझे बहुत पसंद आई। यही कुरान का स्टाइल है। पिछले 200 सालों के दौरान कविता के रूप में गीता के करीब दो दर्जन अनुवाद हुए हैं, पर पुराने ज़माने की उर्दू में फ़ारसी का असर ज़्यादा होता था। 

अनवर साहब कहते थे - जब किसी दर्शन से, किसी फलसफे से, व्यक्ति से या आइडियॉलॉजी से आपको इश्क हो जाए, इश्क में बड़ी पवित्रता है और आखिरी सीमा तक जाने का संघर्ष है. तो गीता में कृष्ण जिस दैविक शैली में बात करते हैं, वह शैली मुझे बहुत पसंद आई. यही कुरान का डिवाइन स्टाइल है. खुदा इंसानों को मुखातिब होके कहता है कि ये दुनिया, ये पहाड़, ये जमीन, ये आसमान, ये चांद-सूरज...अगर ये मेरा जलवा नहीं, ये मेरी निशानियां नहीं तो किसकी हैं? बताओ ऐ इंसानों, मेरी कौन कौन-सी नेमतों को झुठलाओगे? कृष्ण इसी स्टाइल में बोलते हैं। 

उन्होंने कहा था -गीता के पहले ही पहले श्लोक में अंधे धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं कि मैदान में क्या हो रहा है? मैंने यूं शुरू कियाः धृतराष्ट्र आंखों से महरूम थे, मगर ये न समझें कि मासूम थे। इसकी जो दूसरी लाइन है वह रजनीश ने दी है। वे कहते हैं कि अंधे होने से ये न समझिए कि वासनाएं-इच्छाएं खत्म हो जाती हैं। शेक्सपियर के ड्रामों में जिस तरह से मानव मनोविज्ञान की एनालिसिस है, शायद यह बड़ी बात हो जाए कहना, मुझे लगता है कि शेक्सपियर ने गीता जरूर पढ़ी होगी।

गीता को लेकर वह वास्तव में बहुत संजीदा भी थे और उत्साहित भी। वह बताते थे कि आठ बरस पहले मैंने (जलालपुर में) अपने कॉलेज में कहीं यह बात कह दी थी. किसी चैनल वाले ने इस पर लखनऊ में शियाओं के सबसे बड़े आलिम कल्बे सादिक और सुन्नी आलिम खालिद रशीद, दोनों से राय ली। दोनों ने कहा कि बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, यह समय की जरूरत है। मुस्लिम इंटेलेक्चुअल्स ने भी ताईद की। इसमें खुदा इंसानों को मुखातिब होते हुए कहता है, ये दुनिया, ये पहाड़, ये जमीन, ये आसमान, ये चांद-सूरज, अगर ये मेरा जलवा नहीं, ये मेरी निशानियां नहीं तो किसकी हैं? गीता का कर्मयोग उनकी शायरी में कुछ इस तरह पेश किया गया है-

नहीं तेरा जग में कोई कारोबार।

अमल के ही ऊपर तेरा अख्तियार।

अमल जिसमें फल की भी ख़्वाहिश न हो।
अमल जिसकी कोई नुमाइश न हो।
अमल छोड़ देने की ज़िद भी न कर।
तू इस रास्ते से कभी मत गुज़र।
धनंजय तू रिश्तों से मुंह मोड़ ले।
है जो भी ताल्लुक उसे तोड़ ले।
फ़रायज़ और आमाल में रब्त रख।
सदा सब्र कर और सदा ज़ब्त रख।
तवाज़ुन का ही नाम तो योग है।
यही तो ख़ुद अपना भी सहयोग है।

अनवर जलालपुरी की कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। मसलन, ज़र्बे ला इलाह, जमाले मोहम्मद, खारे पानियों का सिलसिला, खुशबू की रिश्तेदारी, जागती आँखें, रोशनाई के सफीर आदि प्रकाशित कृतियाँ हैं । वह खुद को मीरो ग़ालिब और कबीरो तुलसी का असली वारिस मानते हुए दलील देते हैं-

कबीरो तुलसी ओ रसखान मेरे अपने हैं।

विरासते ज़फरो मीर जो है मेरी है।

दरो दीवार पे सब्जे की हुकूमत है यहाँ,
होगा ग़ालिब का कभी अब तो यह घर मेरा है।
मैंने हर अहेद की लफ्जों से बनायीं तस्वीर।
कभी खुसरो, कभी खय्याम, कभी मीर हूँ मैं।

वह हमेशा कहते थे - मीर, नजीर (अकबराबादी), मीर अनीस, गालिब, इकबाल के बाद धर्म के रास्ते पर देखा तो मौलाना आजाद और गांधी का कैरेक्टर मेरी जिंदगी को प्रभावित करता रहा है। गांधी के यहां कथनी-करनी में कोई फर्क नहीं। देश के ज्वलंत मुद्दों पर भी वह बेबाक राय रखते थे। एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि नई सरकार कॉमन सिविल कोड, धारा 370 और अयोध्या पर नई बहस छेड़ रही है। इन मुद्दों पर आपकी राय क्या है? अनवर साहब का स्पष्ट जवाब था -इन तीनों की अभी स्पष्ट व्याख्या की ही नहीं गई है। गोलमोल बातें हुई हैं। कॉमन सिविल कोड मुसलमानों के स्वीकारने की बात बाद में है, पहले उत्तर के, दक्षिण के, सवर्ण-दलित तो स्वीकारें और 370, मैं बगैर कश्मीर के हिंदुस्तान का नक्शा नामुकम्मल समझता हूं।

अनवर जलालपुरी ने अपने एक हालिया इंटरव्यू में कहा था -ये दुनिया इंसानों से ही नहीं चलती, कहीं और से भी चला करती है। हमारे दोस्त राहत इंदौरी का एक शेर हैः

तुझे खबर नहीं मेले में घूमने वाले, 

तेरी दुकान कोई दूसरा चलाता है। 

परिस्थितियां राजनैतिक तौर पर बदल गई हैं। जब बाबरी मस्जिद गिरी थी तो मुसलमानों में जागृति पैदा हुई थी। उन्होंने बच्चों की शिक्षा की तरफ ध्यान दिया। इन 23-24 बरस में हमारी सोच में काफी फर्क आया है। (नरेंद्र) मोदी जी बहुत कीमती जुमला बोल रहे हैः मैं 125 करोड़ हिंदुस्तानियों का प्रधानमंत्री हूं। मुझे सबके साथ न्याय करना है। उन्होंने यह भी कहा कि इस्लामी देशों से भी दोस्ती करनी है तो अगर मोदी जी को विश्व नेता बनना है, तो उनको संकीर्णता से ऊपर उठना पड़ेगा।

अनवर जलालपुरी की पार्थिव देह आज से हमारे साथ नहीं होगी लेकिन उनके अशआर , उनकी अक्षरदेह की उपस्थिति उनकी सख्शियत से रूबरू कराती रहेगी। परम्पाराओ की संस्कृति वाले इस देश में अनवर की यह यात्रा सदैव जारी रहेगी। ऐसे दार्शनिक शायर को सादर अर्पित हैं श्रद्धांजलि के फूल।

अनवर जलालपुरी की कुछ रचनाएं
ज़ुल्फ़ को अब्र का टुकड़ा नहीं लिख्खा मैं ने

आज तक कोई क़सीदा नहीं लिख्खा मैं ने

जब मुख़ातब किया क़ातिल को तो क़ातिल लिख्खा
लखनवी बन के मसीहा नहीं लिख्खा मैं ने
मैं ने लिख्खा है उसे मर्यम ओ सीता की तरह
जिस्म को उस के अजंता नहीं लिख्खा मैं ने
कभी नक़्क़ाश बताया कभी मेमार कहा
दस्त-फ़नकार को कासा नहीं लिख्खा मैं ने
तू मिरे पास था या तेरी पुरानी यादें
कोई इक शेर भी तन्हा नहीं लिख्खा मैं ने
नींद टूटी कि ये ज़ालिम मुझे मिल जाती है
ज़िंदगी को कभी सपना नहीं लिख्खा मैं ने
मेरा हर शेर हक़ीक़त की है ज़िंदा तस्वीर
अपने अशआर में क़िस्सा नहीं लिख्खा मैं ने
पराया कौन है और कौन अपना सब भुला देंगे

मता-ए-ज़िंदगानी एक दिन हम भी लुटा देंगे

तुम अपने सामने की भीड़ से हो कर गुज़र जाओ
कि आगे वाले तो हरगिज़ न तुम को रास्ता देंगे
जलाए हैं दिए तो फिर हवाओं पर नज़र रक्खो
ये झोंके एक पल में सब चराग़ों को बुझा देंगे
कोई पूछेगा जिस दिन वाक़ई ये ज़िंदगी क्या है
ज़मीं से एक मुट्ठी ख़ाक ले कर हम उड़ा देंगे
गिला शिकवा हसद कीना के तोहफ़े मेरी क़िस्मत हैं
मिरे अहबाब अब इस से ज़ियादा और क्या देंगे
मुसलसल धूप में चलना चराग़ों की तरह जलना
ये हंगामे तो मुझ को वक़्त से पहले थका देंगे
अगर तुम आसमाँ पर जा रहे हो शौक़ से जाओ
मिरे नक़्श-ए-क़दम आगे की मंज़िल का पता देंगे
अभी तो शाम है ऐ दिल अभी तो रात बाक़ी है 

अमीदे वस्ल वो हिजरे यार की सौग़ात बाक़ी है

अभी तो मरहले दारो रसन तक भी नहीं आये
अभी तो बाज़ीये उलफ़त की हर एक मात बाक़ी है
अभी तो उंगलियाँ बस काकुले से खेली हैं
तेरी ज़ुल्फ़ों से कब खेलें ये बात बाक़ी है
अगर ख़ुशबू न निकले मेरे सपनों से तो क्या निकले 
मेरे ख़्वाबों में अब भी तुम, तुम्हारी ज़ात बाक़ी है
अभी से नब्ज़े आलम रूक रही है जाने क्यों ‘अनवर’
अभी तो मेरे अफ़साने की सारी रात बाक़ी है

अभी आँखों की शमाऐं जल रही हैं प्यार ज़िन्दा है
खुदा का शुक्र है अब तक दिले खुद्दार ज़िन्दा है
कोई बैयत तलब बुज़दिल को जाकर ये ख़बर कर दे
कि मैं ज़िन्दा हूँ जब तक जुर्रते इन्कार ज़िन्दा है
सलीब-व-हिजरतो बनबास सब मेरे ही क़िस्से हैं
मेरे ख़्वाबों में अब भी आतशी गुलज़ार ज़िन्दा है
यहाँ मरने का मतलब सिर्फ पैराहन बदल देना
यहाँ इस पार जो डूबे वही उस पार ज़िन्दा हैं.
अभी मायूस मत होना अभी बीमार ज़िन्दा है
हज़ारों ज़ख्म खाकर भी मैं ज़ालिम के मुक़ाबिल हूँ


संजय तिवारी 
संस्थापक - भारत संस्कृति न्यास, नयी दिल्ली 
वरिष्ठ पत्रकार

COMMENTS

नाम

अखबारों की कतरन,40,अपराध,3,अशोकनगर,24,आंतरिक सुरक्षा,15,इतिहास,158,उत्तराखंड,4,ओशोवाणी,16,कहानियां,40,काव्य सुधा,64,खाना खजाना,21,खेल,19,गुना,3,ग्वालियर,1,चिकटे जी,25,चिकटे जी काव्य रूपांतर,5,जनसंपर्क विभाग म.प्र.,6,तकनीक,85,दतिया,2,दुनिया रंगविरंगी,32,देश,162,धर्म और अध्यात्म,244,पर्यटन,15,पुस्तक सार,59,प्रेरक प्रसंग,80,फिल्मी दुनिया,11,बीजेपी,38,बुरा न मानो होली है,2,भगत सिंह,5,भारत संस्कृति न्यास,30,भोपाल,26,मध्यप्रदेश,504,मनुस्मृति,14,मनोरंजन,53,महापुरुष जीवन गाथा,130,मेरा भारत महान,308,मेरी राम कहानी,23,राजनीति,90,राजीव जी दीक्षित,18,राष्ट्रनीति,51,लेख,1126,विज्ञापन,4,विडियो,24,विदेश,47,विवेकानंद साहित्य,10,वीडियो,1,वैदिक ज्ञान,70,व्यंग,7,व्यक्ति परिचय,29,व्यापार,1,शिवपुरी,911,शिवपुरी समाचार,331,संघगाथा,57,संस्मरण,37,समाचार,1050,समाचार समीक्षा,762,साक्षात्कार,8,सोशल मीडिया,3,स्वास्थ्य,26,हमारा यूट्यूब चैनल,10,election 2019,24,shivpuri,2,
ltr
item
क्रांतिदूत : अनवर जलालपुरी : मैं जा रहा हूँ मेरा इन्तेज़ार मत करना हिंदी - उर्दू कविता की वाचिक परंपरा के एक युग का अंत - संजय तिवारी
अनवर जलालपुरी : मैं जा रहा हूँ मेरा इन्तेज़ार मत करना हिंदी - उर्दू कविता की वाचिक परंपरा के एक युग का अंत - संजय तिवारी
https://4.bp.blogspot.com/-G2_q3qnrFF8/WktLPt0rVQI/AAAAAAAAJkI/dBPPsAZlDzwQybC6akqgVZVwXuCW6nPAwCLcBGAs/s1600/anwar%2Bjamalpuri.jpg
https://4.bp.blogspot.com/-G2_q3qnrFF8/WktLPt0rVQI/AAAAAAAAJkI/dBPPsAZlDzwQybC6akqgVZVwXuCW6nPAwCLcBGAs/s72-c/anwar%2Bjamalpuri.jpg
क्रांतिदूत
https://www.krantidoot.in/2018/01/Anwar-Jalalpuri-The-end-of-an-era-of-the-verbal-tradition-of-Urdu-poetry.html
https://www.krantidoot.in/
https://www.krantidoot.in/
https://www.krantidoot.in/2018/01/Anwar-Jalalpuri-The-end-of-an-era-of-the-verbal-tradition-of-Urdu-poetry.html
true
8510248389967890617
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS CONTENT IS PREMIUM Please share to unlock Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy