केंद्र सरकार ने आम बजट से ठीक पहले बुधवार को फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) को लेकर तीन बड़े फैसले लिए हैं । ये फैसले तब आये हैं जब...

केंद्र सरकार ने आम बजट से ठीक पहले बुधवार को फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) को लेकर तीन बड़े फैसले लिए हैं । ये फैसले तब आये हैं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावोस सम्मलेन में जाने की तैयारियों में भी जुटे हैं। विश्व के आर्थिक विशेषज्ञों की नजर में भारत सरकार ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ़्तार बढ़ाने के लिए इसकी अनिवार्यता थी। ऐसा अनुमान है कि अब भारत चीन के मुकाबले काफी बड़ी आर्थिक ताकत बन कर उभरने जा रहा है। इस बदलाव को मोदी सरकार की बाहर बड़ी उपलब्धि के रूप में भी देखा जा रहा है। यह पहला अवसर है कि २० साल के बाद भारत के प्रधानमंत्री विश्व आर्थिक सम्मलेन में भाग लेने के लिए दावोस जा रहे हैं। इस यात्रा से पूर्व ही ये बड़े निर्णय लेकर मोदी सरकार ने विश्व आर्थिक समुदाय को बहुत बड़ा सन्देश भी दे दिया है।
अब थोड़ी नजर डालते हैं उन क्षेत्रो पर जिनके बारे में सरकार ने ये कदम उठाये हैं। सिंगल ब्रैंड रीटेल, कंस्ट्रक्शन सेक्टर में ऑटोमेटिक रूट से 100% के साथ एयर इंडिया में 49% एफडीआई को मंजूरी दे दी है । सरकार ने 2014 में ही सिंगल ब्रांड रिटेल में 100 % एफडीआई को मंजूरी दे दी थी। हालांकि इसके लिए सरकार से मंजूरी लेनी होती थी। इसके बाद विदेशी रिटेल कंपनियां जैसे आईकिया और नाइकी ने भारत के बाजार में एंट्री की थी। अब सिंगल ब्रांड रिटेल में ऑटोमैटिक रूट से100% एफडीआई का मतलब है कि अब विदेशी कंपनियों को क्लीरिएंस की प्रोसेस से नहीं गुजरना होगा। दूसरे बड़े निर्णय में कैबिनेट ने एयर इंडिया में 49% एफडीआई के प्रपोजल को अप्रूवल रूट से मंजूरी दी। सरकार एयर इंडिया को घाटे से उबारने के लिए डिसइन्वेस्टमेंट की प्लानिंग पर काम कर रही थी। मौजूदा समय में एयर इंडिया पर कुल 52,000 करोड़ रुपए का कर्ज है। इसमें 22,000 करोड़ रुपए एयरक्राफ्ट लोन है बाकी वर्किग कैपिटल लोन और दूसरी लायबलिटिीज हैं। यूपीए सरकार एयर इंडिया को पहले ही 10 साल के लिए बेलआउट पैकेज दे चुकी है। इसके तहत एयर इंडिया को 30,213 करोड़ रुपए मिलने थे। इसके लिए शर्त एयरइंडिया के लिए अपने प्रदर्शन में सुधार करने की शर्त रखी गई थी। हालांकि अब तक एयर इंडिया का प्रदर्शन तय मानकों के अनुरूप नहीं है। अपने तीसरे निर्णय में कैबिनेट कैबिनेट ने क्लैरीफाई किया है कि रीयल एस्टेट ब्रोकिंग सर्विस रीयल एस्टेट बिजनेस में नहीं आता है ऐसे में रीयल एस्टेट ब्रोकिंग सर्विस में ऑटोमैटिक रूट से 100 फीसदी एफडीआई को इजाजत दी जाती है।
यह दीगर है कि ट्रेड बॉडी कंफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) ने सिंगल ब्रांड रिटेल में ऑटोमैटिक रूट से 100 फीसदी एफडीआई को मंजूरी देने के फैसले का विरोध किया है। सीएआईटी का कहना है कि सरकार के इस कदम से मल्टी नेशनल कंपनियों को भारत में रिटेल कारोबार में आसानी से एंट्री मिलेगी। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष में रहते हुए सरकार के इन कदमो का तब बहुत विरोध किया था। आज के वित्तमंत्री अरुण जेटली उस समय खुद ही खुदरा व्यापार में 100 फीसदी एफडीआई के विरोध में काफी तर्क प्रस्तुत कर रहे थे।सरकार के इस कदम का विरोध वालो का तर्क है कि विदेशी कंपनियां सस्ता सामान बेचकर लुभाएंगी। देशी दुकानदार मुकाबला नहीं कर पाएंगे ।रिटेल में विदेशी निवेश से छोटी दुकानें खत्म हो जाएगी और लोगों के समक्ष रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा। छोटे दुकानदारों का धंधा ठप हो जाएगा और किसानों को भी उनकी उपज का वाजिब मूल्य नहीं मिलेगा। विदेशी कंपनियां 70 प्रतिशत सामान अपने बाजार से ही खरीदेगी और ऐसे में घरेलू बाजार से नौकरी छिनेगी। यह भी डर है कि बड़ी विदेशी कंपनियां बाजार का विस्तार नहीं करेंगी बल्कि मौजूदा कंपनियों का अधिग्रहण कर बाजार पर ही काबिज हो जाएंगी। हालांकि इन आशंकाओं को सरकार सिरे से खारिज कर रही है। जानकारों का मानना है कि एफडीआई से अगले तीन साल में रिटेल सेक्टर में एक करोड़ नई नौकरियां मिलने की संभावना है। ऐसा माना जा रहा है कि किसानों को बिचौलियों से मुक्ति मिलेगी और अपने सामान की सही कीमत भी। सरकार मानती है कि रिटेल में एफडीआई से लोगों को कम दामों पर मिलेगा बेहतर सामान। शर्त के अनुसार विदेशी कंपनियां कम से कम 30 फीसदी सामान भारतीय बाजार से ही लेगी। इससे लोगों की आय बढ़ेगी और औद्योगिक विकास दर में भी सुधार होगा।
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संजय तिवारी संस्थापक- भारत संस्कृति न्यास - नयी दिल्ली वरिष्ठ पत्रकार |
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