मी लार्ड अचानक से लोकतंत्र खतरे में कैसे ?



जो बात भारत की जनता को पहले से मालूम थी वह आज खुद सुप्रीम कोर्ट के 4 न्यायाधीशों ने बंगले में बैठकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके और भी स्पष्ट कर दी है। यह घटना भारतीय न्यायिक व संवैधानिक इतिहास का एक ऐसा बदनुमा दाग है जो कभी भी न्यायाधीशों के कपाल से मिटने वाला नही है। जिन 4 न्यायधीशों ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा जी के खिलाफ विद्रोह किया है उनके नाम है - जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन लोकुर यदि कोई यह समझ रहा है कि इन 4 न्यायाधीशों ने सामने आकर भारत की जनता की बहुत भलाई की है और ये सत्यवादी हैैं तो यह आपकी बड़ी भूल होगी। यह विद्रोह इसलिये हुआ है ताकि सर्वोच्च अदालत की संवैधानिक शक्ति को कमजोर किया जा सके और जनता में भ्रम बनाया जा सके ताकि सर्वोच्च न्यायालय की कलम से भविष्य में निकलने वाले निर्णयों की नैतिकता समाप्त हो सके। यह सभी चार न्यायाधीश कांग्रेस द्वारा भारत मे पिछले चार दशकों से स्थापित भ्रष्ट इको सिस्टम की पैदाइश हैं और आज भी इनकी श्रद्धा व निष्ठा, भारत के संविधान या राष्ट्र के प्रति न होकर कांग्रेस के प्रति है। 

आज जिस तरह से गांधी परिवार का चारणभाट वामपंथी पत्रकार शेखर गुप्ता, इन चारों न्यायाधीशों को लेकर पत्रकारों के बीच पहुंचा था उससे यह स्पष्ट है कि यह प्रेस कांफ्रेस, भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं व संवैधानिक संस्थाओं को तोड़ने के उद्देश्य से की गई है। न्यायधीशों ने कांफ्रेंस और अपने लिखे पत्र से यही दिखाने का प्रयत्न किया है कि सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा जी के आने के बाद से ही सर्वोच्च न्यायालय के तन्त्र में खराबी आयी है लेकिन जनता यह जानती है कि यह तन्त्र तो पिछले कई दशकों से भ्रष्ट न्यायतंत्र की दीमकों ने खोखला किया हुआ है। 

मुझे लगता है कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा जी पर आक्रमण दो कारणों से हुआ है। पहला यह कि जस्टिस मिश्रा ने 1984 के सिख दंगो के केस फिर से खोले जाने का निर्णय लिया है जो कांग्रेस को बिल्कुल पसंद नही आ रहा है और दूसरा यह कि वे रामजन्म भूमि के मुकदमे को देख रहे हैैं। यह सारी कवायद इसलिये है ताकि जस्टिस मिश्रा दबाव में आकर रामजन्मभूमि के मुकदमे को आगे बढ़ा दे और यदि वह कोई निर्णय देते हैैं तो उस निर्णय को संदिग्ध बताया जा सके | साक्ष्यों के आधार पर पूर्ण संभावना है कि निर्णय रामजन्मभूमि के पक्ष में आएगा, ऎसी परिस्थिति में निर्णय को वर्तमान की मोदी सरकार के दबाव में लिया गया निर्णय करार देने का ही यह मूलतः षडयंत्र प्रतीत होता है । ये लोग न्यायाधीश न होकर कांग्रेस वामपंथी सेक्युलर गिरोह के ही हिस्से हैैं। यह विद्रोह कोई साधारण घटना नहीं है, इसने एक संवैधानिक संकट खड़ा कर दिया है और यह मोदी जी की सरकार को मिली अब तक की सबसे बड़ी चुनौती भी है।

जहाँ तक जजों की कार्यप्रणाली की बात है जस्टिस चेलमेश्वर और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा जी के बीच की प्रतिद्वंदिता के विषय में न्याय पालिका से जुडा हर व्यक्ति जानता है। आज जो टशन बाहर आई है उसका आधार वो 46 मेडिकल कॉलेज थे जिनको फर्जी तरीके से मान्यता दी गयी थी और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजों की दखलंदाजी भी मानी जाती है। मगर बात इतनी सी नही है। जिस मेडिकल फर्जीवाड़े का केस जस्टिस मिश्रा ने पलटा, दरअसल उसके पीछे कई षड्यंत्र हैं। इस केस को प्रशांत भूषण देख रहा है। इस प्रशांत भूषण ने चुपचाप जस्टिस चेलमेश्वर के पास जाकर इस केस को अपने पसंदीदा जजों की बेंच को भिजवा दिया। अब चूंकि मेंशनिंग का ये अधिकार सिर्फ चीफ जस्टिस का होता है तो चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा जी ने इसे पलट दिया। इस पर प्रशांत भूषण चिल्लाता हुआ जस्टिस दीपक मिश्रा जी के कोर्ट में जब पहुंचा तो वहां पहले से ही बार कौंसिल मौजूद थी। प्रशांत भूषण ने इतनी बदतमीजी की कि बार काँसिल के सेक्रेटरी ने प्रशान्त भूषण का लाइसेंस रद्द करने की मांग कर दी। इस पर जस्टिस दीपक मिश्रा जी को प्रशान्त भूषण से कहना पड़ा कि यहां पहले तुम जैसे वकील ही केस के जज तय करते थे। इसलिए अब भी करना चाह रहे हो। 

बात यहाँ ही खत्म नही होती। जस्टिस दीपक मिश्रा जी ही वो जज हैं जिन्होंने मुम्बई ब्लास्ट के दोषसिद्ध आरोपी याकूब मेमन पर अंतिम फैसला दे उसे फांसी लगवाई थी। तब भी प्रशान्त भूषण, ग्रोवर, सिब्बल आदि NGO गैंग के साथ मिलकर उसकी माफी की मांग कर रहे थे। यहां तक कि कई जज भी। ये लोग तब देर रात को पहुंच गए थे और वहां अपनी बेइज्जती करवा आये थे तबसे जस्टिस दीपक मिश्रा इन्हें खटक रहे हैं। और जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया, राम मंदिर का केस भी फाइनल होने वाला है जो जस्टिस दीपक मिश्रा जी के अधीन होगा | इन लोगों का पूरा जोर है कि ये जस्टिस दीपक मिश्रा जी के रहते पूरा न हो बल्कि इनके किसी चहेते के अधीन आये, ताकि ये उसे अगले लोकसभा के बाद तक खींच पाएं। इस मामले में भी धवन और सिब्बल जस्टिस दीपक मिश्रा जी को कोर्ट में ही धमकी दे आये थे और बेंच के जज की संख्या भी ज्यादा चाहते थे, जिसे जस्टिस दीपक मिश्रा जी ने मना कर दिया था। इसके अलावा जिन राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, वो केस भी जस्टिस दीपक मिश्रा जी की अदालत में चल रहा है जिस पर पूरी उम्मीद है कि वहां हिन्दूओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलेगा। इसके अलावा चिंदम्बरम का मैक्सिस केस भी जस्टिस दीपक मिश्रा जी के पास है जिस पर नियमित सुनवाई चलेगी। ट्रिपल तलाक़ पर मुँह की खाये ये कांग्रेस पोषित गिरोह के लोग जानते हैं कि उपरोक्त केस में इनका क्या होगा और फिर आगे इनकी राजनीति का क्या होगा? 

जस्टिस लोया के नाम पर जो बहाना ये जस्टिस बना रहे हैं, उसका आधार भी अमित शाह को घेरना है ताकि मीडिया में माहौल बनाया जा सके और जस्टिस दीपक मिश्रा जी के आगे के जजमेंट्स को प्रभावित किया जा सके। ये कांग्रेस द्वारा पहली बार नही किया जा रहा। पिछले कितने जजों के उदाहरण हैं जिन्होंने कांग्रेस के भले के लिए काम किया और फिर मलाई खाई। उन पर लिखने पर ये लेख एक पूरी किताब बन जाएगा। ये जो 4 जज तहलका मचाने के चक्कर में हैं, इनकी पृष्टभूमि जानना भी जरूरी है तभी न्यायपालिका के इतिहास की इस गंभीर घटना को ठीक से समझा जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट के 4 जज जो आज मीडिया के सामने आये और वो भी कुख्यात वामपंथी पत्रकार शेखर गुप्ता के साथ, और ये जज कह रहे हैं कि देश का लोकतंत्र खतरे में है, चीफ जस्टिस हमारी बात नहीं मानते, देश को बचाइए, देश खतरे में है। 

आईए इन जजों के बारे में जानते हैं कि ये लोग कौन हैं और इनकी पृष्टभूमि क्या है, पहले इन्होने क्या किया है? ताकि आपको स्पष्ट हो जाये की असल स्थिति है क्या। ये सभी जज कांग्रेस के राज में जज बने थे। इनमे से एक जज हैं जोसेफ कुरियन - ये वही सज्जन हैं, जिन्होंने रविवार को रखे गए प्रधानमंत्री मोदी के एक ज्यूडिशरी के कार्यक्रम पर यह कहकर ऐतराज़ जताया था कि उन्हें तो रविवार को चर्च जाना है। इस प्रकार मोदी जी को ईसाई विरोधी साबित करते हुए कार्यक्रम का बहिष्कार किया, मसलन जज साहब के लिए काम नहीं बल्कि ईसाइयत यानि मजहब पहले है। 

दूसरे जज हैं जस्टिस चेलमेश्वर, इनके बारे में पहले ही बहुुुत कुछ लिखा जा चुका है ये वो जज है जो कांग्रेस के काफी करीबी माने जाते हैं और हाल ही में इन्होंने 'आधार' का भी विरोध किया था, कांग्रेस 'आधार' का विरोध कर रही है। 'आधार' से भ्रष्टाचारियों की नींद उड़ी हुई है चूँकि उससे सब कुछ कनेक्ट किया जा रहा है, कई तरह के फर्जीवाड़े 'आधार' से बंद हो चुके हैं और कई बन्द हो रहे हैं। 

एक अन्य जज हैं जस्टिस गोगोई - ये असम के हैं और असम के पूर्व मुख्यमंत्री केशवचंद्र गोगोई के पुत्र है, केशवचंद्र गोगोई कांग्रेस के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, और ये जज साहब कांग्रेसी मुख्यमंत्री के पुत्र हैं। और इन लोगों के साथ घूम रहा है पत्रकार शेखर गुप्ता जैसा अफ़ज़ल प्रेमी, अवार्ड वापसी गैंग का कुख्यात पत्रकार, और ये लोग कह रहे हैं कि देश का लोकतंत्र खतरे में है। 

भैया 2018 का साल है, 2019 में चुनाव हैं, अब ऐसे सभी लोग सामने आते रहेंगे, क्योंकि 2019 में कांग्रेस को चाहिए - सत्ता। इसलिए अब लोकतंत्र इत्यादि सब रोज खतरे में आएगा। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ 4 जजों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद राहुल गाँधी का मीटिंग करना, डी राजा का जस्टिस चेलमेश्वर के घर जाना, सलमान खुर्शीद का बड़बड़ाना काफी कुछ साबित करता है। 

क्या चीफ जस्टिस अपनी मर्जी से बेंच का गठन कर रहे हैैं इसलिए न्यायपालिका और लोकतंत्र खतरे में है। औऱ जब यही न्यायपालिका किसी के साथ बचपन में हुए अपराध का न्याय बुढापे में देती है तब लोकतंत्र खतरे में नहीं पड़ता। चारा घोटाले के आधे से अधिक आरोपी फैसले से पहले ही मर जाते हैं तब लोकतंत्र खतरे में नहीं आता, जिस रोज बिहार के तमाम जनसंहार के आरोपी बाइज्जत बरी हो गये थे तब लोकतंत्र और न्यायपालिका खतरे में नहीं आयी थी। जब मुम्बई के चार लोगों पर कार चढ़ा देने का आरोपी बाइज्जत बरी हो गया तब न्याय पर खतरा उपस्थित नहीं हुआ था। यह सब सोच का फर्क है। समाधान सिर्फ पॉलिटिकल आरोप-प्रत्यारोप में नहीं, जड़ को पहचानने और उसका समाधान करने में है।

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