गौ संरक्षण ही, भारत में गौरक्षा के नाम पर बढ़ती हिंसा को रोकने का सबसे व्यावहारिक तरीका है - उपानंद ब्रह्मचारी



सर्वोच्च न्यायालय को निष्पक्ष होकर 'गौरक्षकों' की हिंसा समाप्त करने के लिए, भारत में 'गौ संरक्षण' का विकल्प सुझाना चाहिए ।

गौ जागरूकता के नाम पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने हेतु दिए गए अपने आदेश का पालन न करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों से जवाब मांगा ।

सर्वोच्च न्यायालय, मोहनदास करमचंद गांधी के पड़पोते तुषार गांधी द्वारा दायर एक अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कहा गया था कि तीन राज्यों ने पिछले साल 6 सितंबर के उच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किया है।

अक्सर तुषार गांधी जैसे नादान इस तरह की 'हिंसा' के मूल कारणों को समझने में विफल रहते है | इस हिंसा का मूल कारण है, कायदे क़ानून को ताक पर रखकर, बहुसंख्यकों की भावना को चोट पहुंचाते हुए नृशंस हत्यारों द्वारा बर्बरता पूर्वक की जाने वाली गौहत्या | दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि उसे रोकने के प्रयत्न में ही अक्सर क्रूरता और हैवानियत का प्रदर्शन भी देखने में आता है और फिर शुरू होता है, संविधान की गूंगी बहरी न्यायपालिका के समक्ष ही न्याय का चीर हरण और बलात्कार |

तुषार जैसे कपूतों को ना तो भारत में गौ संरक्षण के प्रति अत्याधिक संवेदन शील अपने महान दादाजी की परवाह है, और ना ही उनके दर्शन और मिशन की चिंता । गांधीजी स्वतंत्रता पाने के बाद सबसे पहले भारत में गौहत्या को रोकने और रामराज्य लाने के लिए कानून बनाना चाहते थे। जबकि तुषार नामक यह गद्दार उन्हीं गांधी के नाम का इस्तेमाल कर, गाय को यातना देने वाले, गौहत्या करने वाले गाय तस्करों का समर्थन करता है और गौ रक्षा का प्रयत्न करने वालों का विरोध करता है | यही उसकी हर गतिविधि का गुप्त उद्देश्य हैं। भारत में गायों की कटाई रोकने के गांधी जी के स्वप्न को पूरा करने के लिए क्यों तुषार गांधी ने कभी अदालत के दरवाजे पर दस्तक नहीं दी ? लेकिन गाय संरक्षण के आमजन के प्रयासों को चुनौती देकर गौहत्यारों के होंसले बढ़ाने के लिए बार बार अदालतों की चौखट पर दिखाई देता है ।

आईये थोड़ी देर के लिए, तुषार के गंदे नाम और कार्य को बलाए ताक रखकर विचार करें - कई बार यह दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य दिखाई देता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक समस्याओं के मूल कारणों पर चिंतन करते हुए, उनका निवारण करने के अपने संतुलन को खो दिया है।

निश्चय ही यह एक चिंता का विषय है कि असामान्य सतर्कता बरतते हुए कतिपय गौ रक्षकों द्वारा कुछ सामान्य या निर्दोष लोगों को गौ तस्कर या गौ हत्यारा मानकर उन्हें पीड़ा पहुंचाई गई । क़ानून को अपने हाथ में लेना कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता । तुषार और उनकी टीम की इस बात के लिए सराहना की जा सकती है, कि उन्होंने इस तरह के दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाई । लेकिन उन लोगों का क्या, जो गायों और मवेशियों की तस्करी कर रहे हैं, जानवरों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते हैं, सभी कायदे, कानूनों, नियमों और विनियमों का उल्लंघन करते हुए गौ वंश का विनाश करते हैं | क्या वे समाज के लिए अच्छा कर रहे हैं? यह देखकर प्रतिक्रया स्वरुप ही संवेदनशील लोग ज्यादा गुस्से में आकर क़ानून हाथ में लेकर गौ-संरक्षक बन रहे हैं | फिर क्यों न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधानमंडल की पूरी व्यवस्था गौ तस्करों और गौ हत्यारों के खिलाफ तो गूंगी बहरी बनी हुई है और गौ हत्या के खिलाफ सजग समाज को डराने पर आमादा है ? भारत में 'गौ संरक्षण' की अपने दादा की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए तुषार गांधी की भूमिका क्या है?

आज मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और डी वाई चंद्रचूड की पीठ ने नोटिस जारी कर 3 अप्रैल तक तीन राज्यों से जवाब मांगा है ।

तुषार गांधी की तरफ से उपस्थित वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंग ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद, इन तीनों राज्यों के विभिन्न हिस्सों में अभी भी हिंसक घटनाएं देखी जा रही हैं। ये तीनों ही राज्य - राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश भाजपा शासित है।

पीठ ने कहा कि तुषार गांधी द्वारा दायर की गई मुख्य याचिका के साथ ही अवमानना ​​याचिका पर भी सुनवाई होगी।

पिछले साल 6 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों से गाय सुरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिए कठोर उपाय करने को कहा था, जिसमें एक सप्ताह के भीतर प्रत्येक जिले में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को नोडल अधिकारी के रूप में नियुक्त करना और क़ानून हाथ में लेने वाले कथित गौ रक्षकों के विरुद्ध त्वरित कार्यवाही करना शामिल था |

वाह, क्या खूब ? सर्वोच्च न्यायालय गौ रक्षकों द्वारा की जाने वाली हिंसा को रोकने के लिए, प्रत्येक जिले में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को नियुक्त करने के लिए तो स्पष्ट रूप से निर्देशित कर सकता है, लेकिन, हे मी लार्ड, भारत के मुख्य न्यायाधीश, आपकी अदालत ने गौमाता और गौभक्त हिन्दुओं के साथ कानूनसम्मत कभी कोई न्याय नहीं किया | उनके लिए कभी इस प्रकार प्रत्येक जिले में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को नियुक्त करने के लिए नहीं कहा | न्याय के इस उच्चतम मंदिर में इस विषय में सैकड़ों मामलों की सुनवाई हो चुकी है और आदेश देकर निबटाये जा चुके हैं!

गौमाता और बहुसंख्यक गौ भक्त हिंदुओं के साथ हुए इस भीषण अन्याय के लिए आखिर किसे दोषी ठहराया जा सकता है? निश्चय ही ना तो गद्दार तुषार को, और ना ही न्यायमूर्ति मिश्रा, जस्टिस खानविलकर या न्यायमूर्ति चंद्रचूड को । सक्षम हिंदू, विशेष रूप से हिंदू वकील, जो सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था को रोबोट की तरह सक्रिय कर सकते हैं और क़ानून के साथ खेल सकते हैं, इन गौ हत्याओं, गौ यातनाओं और गौ रक्षा करते हुए बलिदान हुए हिंदुओं की हत्या के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं। तुषार गांधी और उनकी मित्र मंडली जिनमें कसाई कुरेशी और बीफ खाने वाले शामिल हैं, भारतीय न्यायिक व्यवस्था की रोबोट प्रणाली से यांत्रिक मेमोरी और बौद्धिकता की मदद से कुशलता पूर्वक खेलना जानते हैं | उनके पास रिकॉर्ड, उद्धरण, कार्यवाही, कानूनी उपकरण, संविधान की बाध्यता सब कुछ उपलब्ध रहता है, सिवाय न्यायशास्त्र की नैतिकता और मूल्यों |

एक रोबोट की तरह संचालित न्यायिक अदालत ने जो घटित हुआ, वह तो देखा और उस पर कार्रवाई भी की, लेकिन अन्याय को समाप्त करने के लिए लोग क़ानून को हाथ में लेने को आखिर विवश क्यूं हुए, इसके मूल कारण को जानने की कोई कोशिश नहीं की |

गौर तलब है कि तुषार गांधी ने कार्य का जो कारण बताया, उसी अनुसार अदालती कार्रवाई हुई, यह अलग बात है कि सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संविधान की धारा 48 के अनुसार गाय और मवेशियों की रक्षा करने में न केवल विफल रहा, बल्कि उसके रुख के चलते गौ रक्षकों और गौ हत्यारों के बीच का संघर्ष भी हमेशा बरकरार रहेगा।

सर्वोच्च न्यायालय और भारत की सजावटी न्यायिक व्यवस्था के प्रति अपना पूर्ण सम्मान व्यक्त करते हुए मेरा तर्क है कि, अदालतों को अपनी मानसिकता पर पुनर्विचार करने की जरूरत है | यह कहाँ तक उचित है कि गौ रक्षकों तो सजा दी जाए, जबकि गैरकानूनी तरीके से गाय की हत्या करने और पशुओं के साथ क्रूरता पूर्ण व्यवहार करने वालों के खिलाफ कोई भी उचित कार्रवाई न की जाए, वह भी भारत में ।

यदि जनता के सामने पशुओं के साथ क्रूरता करना, हिंदूओं के सामने गायों को मारकर साम्प्रदायिक उन्माद का प्रदर्शन करना, सड़कों पर गोमांस भोज के राजनैतिक आयोजन, गायों का अपवित्र व्यापार और सबसे बढ़कर भारतीय कृषि-अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य को चौपट कर, भारत के पशु संसाधनों को नष्ट करने की खतरनाक साजिश में कुछ भी गलत नहीं है, तो फिर जागरुक गौरक्षकों की सक्रियता को हिंसा मानना कहाँ तक जायज है?

सर्वोच्च न्यायालय ने गौ जागरूकता को रोकने के लिए केवल उत्तर प्रदेश, हरियाणा, यूपी और राजस्थान से ही क्यों प्रतिक्रिया मांगी है? वह चाहे तो पूरे राष्ट्र से प्रतिक्रिया मांग सकते हैं | यदि गौ जागरूकता में होने वाली हिंसा को हमेशा के लिए सच में समाप्त करना है, तो गौ संरक्षण का नया युग लाना होगा, उसके लिए सभी वैध और व्यावहारिक तरीके पहले सुनिश्चित किये जाने चाहिए ।
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