भारत में किसानों की आत्महत्या को लेकर वरिष्ठ भाजपा नेता सरताज सिंह जी द्वारा की गई पाकिस्तान की प्रशंसा पर प्रतिक्रिया - हरिहर शर्मा



आज समाचार पत्रों में भाजपा के पूर्व मंत्री व वर्तमान विधायक श्री सरताज सिंह जी का बयान पढकर हैरत हुई | श्री सिंह के अनुसार भारत में किसान पाकिस्तान से ज्यादा बदहाल हैं | इसका प्रमाण यह है कि भारत में किसान आत्महत्या के समाचार लगातार सुनाई पड़ते हैं, जबकि पाकिस्तान से किसान आत्महत्या के कोई समाचार पढ़ने को नहीं मिलते |

बात चुभने वाली थी, अतः स्वाभाविक ही जिज्ञासा हुई और मैंने गूगल बाबा का सहारा लेकर मामले को समझने की कोशिश की | जो कुछ लब्बो लुआब निकला, वह कुछ इस प्रकार था –

यह कहना कि पाकिस्तान में किसान आत्महत्या होती ही नहीं है, नितांत भ्रामक है | हाँ इतना अवश्य है कि इस्लाम में आत्महत्या निषिद्ध होने के कारण इसे आमतौर पर छुपाया जाता है | यहाँ तक कि राष्ट्रीय स्तर पर आत्महत्या के आंकड़े भी इकट्ठे नहीं किये जाते और ना ही आधिकारिक तौर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया जाता है | 

अब ७७ वर्षीय बुजुर्गवार सरताज सिंह जी को कहाँ से पढने को मिलेगा कि पाकिस्तान में किसानों ने आत्महत्या की अथवा नहीं ? 

खैर बात पाकिस्तान की – विगत दो वर्षों में पाकिस्तान के 35 विभिन्न शहरों में 3000 से अधिक आत्मघाती मौतें हुईं। निष्कर्षों से पता चलता है कि आत्महत्या करने वाले पुरुषों की संख्या महिलाओं से लगभग दूनी है | अधिकांश आत्महत्या करने वालों की उम्र 30 वर्ष से कम थी और आत्महत्या के लिए मुख्य कारण बेरोज़गारी, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, गरीबी, बेघर, पारिवारिक विवाद, अवसाद और सामाजिक दबाव इत्यादि रहे । आत्महत्या करने के लिए फांसी, कीटनाशकों और आग्नेयास्त्रों का इस्तेमाल किया गया ।

अब बात करते हैं पाकिस्तानी किसानों की, जोकि सरताज सिंह जी के अनुसार भारत से बेहतर है –

पाकिस्तान के मशहूर समाचार पत्र एक्सप्रेस ट्रिब्यून में एक आलेख प्रकाशित हुआ, जिसका शीर्षक था “The plight of poor pakistani farmers” अर्थात पाकिस्तान के गरीब किसानों की दुर्दशा | उक्त आलेख का सार कुछ इस प्रकार है –

पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर एजुकेशन एंड रिसर्च (पीआईएलईआर) द्वारा एक सर्वेक्षण किया गया, जिसके निष्कर्षों ने अधिकांश ग्रामीण किसानों की बदहाली और गम्भीर असमानताओं को उजागर किया ।

ग्रामीण सिंध और बलूचिस्तान के नसीराबाद खंड के गांव आज भी सामंतों के प्रभाव में हैं| 70 से 85 प्रतिशत भूमि जमींदारों के अधिपत्य में है, जिसमें गांववाले शेयरधारक व्यवस्था के अनुसार खेती करते हैं । इसी प्रकार दक्षिणी पंजाब में, बड़े पैमाने पर बड़े किसानों की जमीन पर आम किसान पट्टे पर खेती करने को विवश है, मेहनत इन बेचारे छोटे किसानों की और मुनाफा जमींदारों का । हालात इतने बुरे हैं कि ग्रामवासी दैनिक मजदूरी पर काम की तलाश में बड़े शहरों का रुख कर रहे हैं । सर्वेक्षण से यह भी स्पष्ट हुआ कि 88 फीसदी गरीब किसानों के पास कुल भूमि के महज 12.5 फीसदी से भी कम की हिस्सेदारी है, जबकि 150 एकड़ जमीन से अधिक के स्वामित्व वाले १.५ फीसदी शक्तिशाली किसानों के पास कुल कृषि भूमि के 8 प्रतिशत से अधिक है । 

इस असमानता के चलते सर्वाधिक शोषण महिलाओं का होता है । ग्रामीण जनसंख्या का अधिकाँश कीचड़ भरे मार्ग और पुआल की झोपड़ियों का आनंद उठाता है | बुनियादी सुविधाएँ जैसे, पक्की सड़कों, पेयजल - स्वच्छता व शैक्षिक और स्वास्थ्य सुविधाओं का तो सवाल ही कहाँ उठता है ?

ऐसे में जब कभी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, तो फिर कहना ही क्या है | 2010 और 2011 में आई बाढ़ ने ग्रामीण इलाकों में भारी कहर बरपाया | बड़े और प्रभावी किसान तो आम तौर पर ऊंचाई वाली जमीनों पर कब्जा जमाये होते हैं, अतः स्वाभाविक ही उनके घर और जमीन बाढ़ के विनाश से सुरक्षित होती है जबकि छोटे किसानों और बटाई पर खेती करने वाले गरीबों को ही प्राकृतिक मार अधिक भुगतनी पड़ती है ।

अतः माननीय सरताज सिंह जी, अपने क्षोभ को प्रदर्शित करने के लिए पाकिस्तान का महिमा मंडन तो ना ही कीजिए | भारत और पाकिस्तान की कोई तुलना संभव नहीं है | 

स्मरणीय है कि पिछले दिनों सिवनी मालवा में सरताज सिंह जी के खिलाफ एवीव्हीपी ने उग्र प्रदर्शन कर उनका पुतला दहन भी किया था | अब ना तो मध्यप्रदेश सरकार उन्हें मंत्री बना रही, और कयास लगाए जा रहे हैं कि संभवतः उन्हें अगले चुनाव में टिकिट भी नहीं मिलेगा, जबकि दूसरी तरफ स्थानीय कार्यकर्ताओं की नाराजगी, बापडे सरताज सिंह जी क्षुब्ध ना हों तो क्या करें | आज के माहौल में ७७ क्या ९९ वर्ष की आयु तक राजनेताओं का सत्ता मोह छूटने से रहा |

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