लोकसभा का सेमीफाईनल कर्नाटक विधानसभा चुनाव !



आगामी अप्रैल मई में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इनमें सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण राज्य है कर्णाटक | वर्तमान में वहां कांग्रेस सरकार है व मुख्यमंत्री हैं सिद्धरमैया | चुनाव में भले ही अभी समय है, किन्तु चुनावी बिसात बिछनी शुरू हो गई है | आज से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का दौरा प्रारंभ होने वाला है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक सभा हो भी चुकी है | चुनावी गठजोड़ भी होने शुरू हो गए हैं | जनता दल सेक्युलर (जेडी (एस) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने गठबंधन की घोषणा कर एक तीसरे मोर्चे को जन्म दे दिया है, तथा इस मोर्चे की 17 फरवरी को एक विशाल रैली भी होने जा रही है, जिसमें बसपा प्रमुख मायावती एवं पूर्व प्रधान मंत्री एच.डी. देवगौड़ा शामिल होंगे। 

गठबंधन की शर्तों के अनुसार, बसपा कर्नाटक में 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि जेडी (एस) शेष सीटों पर चुनाव लड़ेगी। देवेगौडा की अध्यक्षता वाली जनता दल एस को इस नए गठबंधन से दलित वोट बैंक में सेंध लगने की उम्मीद है, जो कि कर्नाटक में 18 फीसदी है | तो दूसरी ओर बसपा को कर्नाटक चुनावों में जेडी (एस) की मदद से अपना खाता खुलने की उम्मीद है। 

इन सब उखाड़ पछाड़ के बीच आईये भूतकाल पर कुछ नजर डालें | विगत २०१३ के चुनाव में कांग्रेस को 121, बीजेपी को 40, जेडीएस को भी 40, केजेपी को 06 और अन्य को 16 सीटें मिली थीं | एक रोचक तथ्य यह है कि इस बार भाजपा ने जिन येदियुरप्पा को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया है, वे उस समय भाजपा के खिलाफ ताल ठोक रहे थे | उसकी भी एक अलग ही कहानी है | 

2006 में हुए कर्नाटक चुनाव में किसी भी राजनैतिक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका था, तब जेडी (एस) ने पहले कांग्रेस के साथ और फिर बाद में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई | समझौते के अनुसार एक एक वर्ष दोनों दलों के बारी बारी से मुख्यमंत्री रहना था तथा जेडी (एस) नेता कुमारस्वामी को 3 अक्टूबर 2007 को मुख्यमंत्री पद छोड़ना था। लेकिन जब समय आया, तो उन्होंने इनकार कर दिया। 

भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा सहित सभी मंत्रियों ने स्तीफा देकर कुमारस्वामी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लग गया | किन्तु एक महीने से भी कम समय में दोनों दलों में पुनः समझौता हो गया, नतीजतन 7 नवंबर को जद (एस) और भाजपा ने गठबंधन जारी रखने का निर्णय लिया और येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बन गए । 

येदियुरप्पा को कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में 12 नवंबर 2007 को शपथ दिलाई गई, लेकिन महज सात दिन ही वे अपने पद पर रह पाए, उसके बाद जेडी (एस) ने अपना समर्थन वापस ले लिया | 

किन्तु इस उठापटक का सीधा लाभ भाजपा को मिला व जन सहानुभूति के कारण 2008 में हुए चुनावों में उसे २२४ विधानसभा सीटों में से ११० पर सफलता मिली, जबकि पहले उसके मात्र ७९ विधायक ही चुने गए थे | जबकि जनता दल एस को विश्वासघात का फल यह मिला कि उसकी सीटें ५८ से घटकर २८ रह गईं | कांग्रेस की स्थिति में भी थोडा सुधार हुआ, लेकिन उसके कई दिग्गज चुनाव हार गए | 

येदियुरप्पा पुनः मुख्यमंत्री बने, किन्तु उनके भाग्य ने एक बार फिर दगा किया और जमीन आबंटन में भ्रष्टाचार के कथित आरोप में उन्हें पद छोड़ना पड़ा और उसके बाद २०१३ का चुनाव वे भाजपा से विद्रोह कर अलग पार्टी कर्णाटक जनता पार्टी बनाकर लडे | उन्हें सीटें तो महज 6 मिलीं किन्तु उनके कारण भाजपा की दुर्गति हो गई और उसके विधायकों की संख्या ११० से घटकर 40 रह गई | 

बाद में येदियुरप्पा को आरोपों में क्लीनचिट मिली और भाजपा में वापसी भी हुई | इतना ही नहीं तो वे अब भाजपा के मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार भी हैं | सीधी सी बात है कि राज्य में त्रिकोणीय संघर्ष होता आया है, जिसमें कांग्रेस, जनतादल एस व भाजपा ही मुख्य भूमिका में रहते हैं | बसपा का वहां कोई अस्तित्व ही नहीं है | कहने को तो कर्नाटक में दलित आबादी लगभग १८ प्रतिशत है, किन्तु 2004 में, बसपा को महज 1.74% ही वोट मिले थे, 2008 में यह वोट शेयर में 2.74% हुआ, किन्तु 2013 में फिर घटकर 0.91 प्रतिशत ही रह गया | 

इस बार बसपा केवल 20 उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारेगी और शेष सीटों पर जेडी (एस) को समर्थन देगी । इस गठबंधन को प्रचारात्मक कितना भी महत्व मिल रहा हो, किन्तु एक पुरानी कहावत ही याद आती है – नंगा क्या नहायेगा, क्या निचोडेगा | 

अपनी तुष्टीकरण नीति के कारण व्यापक असंतोष को झेलती सत्तारूढ़ कांग्रेस अब राहुल जी की मंदिर यात्राओं से कितनी प्रासंगिक रह पायेगी, यह तो परिणाम ही बताएँगे | एकजुट भाजपा के लिए भी यह चुनाव महत्वपूर्ण हैं, एक प्रकार से इन्हें २०१९ के चुनाव से पूर्व सत्ता का सेमीफाईनल माना जा रहा है |
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