हिन्दू और मुस्लिम - समस्या और समाधान - जी श्रीधरन



जहाँ भी मुस्लिम प्रभावी संख्या में होते हैं, वहां उनका शत्रुतापूर्ण रुख स्पष्ट दिखाई देता है | शेष स्थानों पर जहाँ वे अपेक्षाकृत कम संख्या में होते हैं, उनके मनोभाव तो यही रहते हैं, किन्तु चतुराई से छुपाये जाते हैं | उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन का एक बहुत ही तर्कसंगत और देशभक्तिपूर्ण तरीका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव राव सदाशिवराव गोलवलकर ने सुझाया था कि उन्हें स्पष्टरूप से समझाया जाए : 

"प्यारे दोस्तों, अब पुराने मुगल बादशाही के दिन बीत चुके हैं। अंततः अब हम सबको यहां भाइयों के समान रहना होगा, क्यूंकि हम इस राष्ट्रीय जीवन में सह-भागीदार हैं। आखिरकार, आपका और हमारा वंश एक ही हैं, हमारे रक्तसम्बन्ध हैं | फर्क सिर्फ इतना है कि हमारे पूर्वजों में से कुछ को उन मुगल, तुर्क और अन्य विदेशी नस्ल के लोगों ने तलवार के जोर पर इस्लाम अपनाने को विवश कर दिया था । अब, उन विदेशी आक्रमणकारियों के साथ अपने आप को मानसिक रूप से जोड़कर उनके नक्शेकदम पर चलने का प्रयास करने का कोई मतलब नहीं है। ऐसी सभी अलगाववादी यादों को भूल कर स्वयं को इस भूमि का ही पुत्र समझें | इसके बाद इस देश के महान सपूतों का सम्मान करने और अनुशरण करने का प्रयास करें जो हमारी मातृभूमि और हमारी संस्कृति की स्वतंत्रता और सम्मान के लिए लड़े। तब मामला बहुत आसान हो जाएगा । ऐसे प्रकरण पूरे विश्व में हुए हैं | उदाहरण के लिए, नोर्मन्स ने इंग्लैंड में आक्रमणकारियों के रूप में प्रवेश किया । स्थानीय लोग अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उनके खिलाफ खड़े हुए। लेकिन बाद में, दोनों ने एक साथ मिलकर भविष्य में हुए सभी आक्रमणों का सामना किया। और वे आज भी एक एकीकृत जीवन जी रहे हैं। " 

- एमएस गोलवलकर, बंच ऑफ़ थॉट्स, पेज 142 

आरएसएस के द्वितीय सरसंघचालक श्री एमएस गोलवलकर के अनुसार तुष्टीकरण से समस्या का हल नहीं निकल सकता, राष्ट्रीय एकात्मता पाने का उपरोक्त तरीका ही कारगर हो सकता है । 

तुष्टीकरण की नीति के परिणाम हम कश्मीर में देख ही रहे हैं, जहाँ अलगाववादियों का आव्हान निशान-ए-मुस्तफा है (इस्लामी शासन व्यवस्था), क्योंकि वहां के लोगों का काफी बड़ा भाग, भारत के बहुसंख्यक हिन्दू समाज का हिस्सा नहीं बनना चाहता । वहां कई हिंदू मंदिरों को अपवित्र और ध्वस्त कर दिया गया, लेकिन कहीं से कोई भी विरोध का स्वर सुनने को नहीं मिला । इसी तरह के चेतावनी भरे संकेत केरल से भी मिल रहे हैं, जहां मुस्लिम आबादी 26 प्रतिशत से अधिक है। हाल ही में वायरल हुए एक वीडियो में एक नव-सलफ़ी कट्टर मुजाहिद बालूसरी, 10 वर्षों में केरल को 'इस्लामी देश' में बदलने की बात करता दिखाई देता है। उग्रवादी मुस्लिम समूहों के विरोध के कारण, आधुनिक मलयालम के जनक थुंचथु रामानुजन एज़ुथचन की मूर्ति उनके जन्मस्थान मलप्पुरम में स्थापित नहीं की जा सकी, क्योंकि उनके अनुसार "मूर्ति पूजा" इस्लाम की भावना के विरुद्ध है | लेकिन राज्य की मीडिया और बौद्धिक समुदाय कट्टरवाद की इस बढ़ती समस्या को सिरे से नकारते हैं। 

मुस्लिम सहअस्तित्व 

मुस्लिम एकीकरण पश्चिम में एक गर्म मुद्दा बन गया है | एक टीवी परिचर्चा में, विख्यात पाकिस्तानी पत्रकार नजम सेठी ने स्वीकार किया कि पाकिस्तानियों के विपरीत, भारतीयों (स्वाभाविक ही हिन्दू) को पश्चिम में पसंद किया जाता है, क्योंकि वे "मेजबान आबादी के साथ आसानी से घुलमिल जाते हैं" । एक अन्य टीवी कार्यक्रम में, पाकिस्तानी विद्वान डॉ. हसन निसार ने भी प्रकारांतर से लगभग यही बात कही और स्वीकार किया कि उनके देशवासी पश्चिम के लोगों के साथ सहअस्तित्व में नहीं रह पाते । यूट्यूब के अनेक वीडियो में कई अनिवासी पाकिस्तानी यह कहते देखे सुने जा सकते हैं कि वे शर्मनाक परिस्थितियों से बचने के लिए अक्सर स्वयं को भारतीय (या हिन्दू) दर्शाने की कोशिश करते हैं। 

ब्रिटेन के समानता और मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष ट्रेवर फिलिप्स ने चेतावनी दी थी कि "बहुसंस्कृतिवाद की विफल नीति" के कारण, ब्रिटिश मुस्लिम "राष्ट्र के भीतर एक राष्ट्र" बन रहे हैं । फिलिप्स ने ब्रिटिश मुस्लिमों के बीच हुए एक सर्वे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ब्रिटेन के सम्मुख, मुस्लिमों सहित हम में से अधिकांश के विश्वासों को युवा पीढी द्वारा त्याग देने का खतरा है | उन्होंने एकीकरण के लिए नए सिरे से प्रयत्न किये जाने की आवश्यकता जताई । 

यूरोप में बहुसंस्कृतिवाद विफल हो गया है | फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने 2011 में कहा था, "हमारे मुस्लिम साथियों को अन्य धर्मावलम्बियों के साथ रहकर अपने धर्म का पालन करने का अभ्यस्त होना चाहिए .. लेकिन यह तभी संभव है जब फ्रांसीसी इस्लाम हो नाकि फ्रांस में इस्लाम ।" 

शशि थरूर भारतीय लोकाचार और हिंदू धर्म की प्रशंसा तो करते हैं, किन्तु उन्हें बहुसंस्कृतिवाद की प्रेरणा यूरोपीय संस्कृति से मिली है। वे अपने बौद्धिक मायाजाल से, बहुसंस्कृतिवाद के विचारों को हिंदू धर्म पर थोपकर उसे भ्रष्ट करने का प्रयास करते है। सभी मामलों में, पश्चिमी बहुसंस्कृतिवाद नेहरू की धर्मनिरपेक्षता के समान है। थरूर, उनके नेता राहुल गांधी और उनकी पार्टी नेहरू युगीन धर्मनिरपेक्षतावाद के निर्लज्ज समर्थक हैं। 

धर्मनिरपेक्षता की गलत व्याख्या 

नेहरू जी की धर्मनिरपेक्षता के खोखलेपन का खुलासा स्वर्गीय के एम मुंशी ने स्वयं नेहरू जी को एक पत्र लिखकर किया था: "धर्मनिरपेक्षतावाद के नाम पर, धर्मनिरपेक्ष मानवतावाद या साम्यवाद द्वारा प्रायोजित धर्म विरोधी शक्तियां, धार्मिक कृत्यों और धर्मनिष्ठा के खिलाफ निंदा अभियान चलाते हैं, विशेषकर बहुसंख्यक समुदाय में । " 

मुन्शी ने आगे लिखा : "कभी-कभी धर्मनिरपेक्षता को किस प्रकार हिंदू धर्म से एलर्जी हो जाती है, यह सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण से संबंधित कुछ प्रकरणों से स्पष्ट हुआ है । ये दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ बहुसंख्यक समुदाय में निराशा की भावना पैदा कर रही है। अगर इसी प्रकार इस शब्द 'धर्मनिरपेक्षता' का दुरुपयोग जारी रहा तो ... यदि सांप्रदायिक संघर्ष में हर बार गुण दोष पर विचार किये बिना बहुसंख्यक समाज को ही दोषी ठहराया जाता रहा तो, अगर बनारस, मथुरा और ऋषिकेश जैसी हमारे पवित्र तीर्थस्थल औद्योगिक मलिन बस्तियों में परिवर्तित होते रहे तो पारंपरिक सहिष्णुता के झरने सूखेंगे। " 

चुनावी माहौल में यद्यपि थरूर के नेता राहुल गांधी मंदिरों में बार-बार जा रहे हैं, लेकिन हिंदू इसके पीछे छुपी राजनीति को समझने में काफी बुद्धिमान हैं। 

धर्म हिंदूत्व का केंद्र बिंदु है और हर हिन्दू धर्म रक्षा को अपना कर्तव्य मानता है (धर्मो रक्षति रक्षितः – जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उनकी रक्षा करता हैं)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता श्री जे नंदकुमार के अनुसार, हिंदुत्व, सनातन धर्म को इंगित करने के लिए सही शब्द है, न कि हिंदूइज्म | "इज्म" का अर्थ है "विचारों की बंद किताब या हठधर्मिता या अंध विश्वासियों का एक समूह"। शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास, स्वामी विवेकानंद, बाल गंगाधर तिलक, गांधीजी और गुरुजी गोलवलकर ने अपने-अपने तरीके से हिंदु धर्म की रक्षा करने का काम किया । वे नेहरू या ईएमएस नंबूतिरिपाद की तरह नहीं थे, जो हिंदू कहे जाने पर शर्मिंदा होते थे। 

18 9 7 में रामकृष्ण मिशन के संस्थापक दस्तावेज में स्वामी विवेकानंद ने कहा था: "अगर भारत एक विदेशी धर्म को गले लगाता है, तो भारतीय सभ्यता नष्ट हो जायेगी । क्योंकि जो भी हिंदू धर्म से बाहर निकलता है वह न केवल हमारे लिए खो जाता है, बल्कि हमारा एक और दुश्मन बढ़ जाता है। "गांधीजी धर्मांतरण के कट्टर आलोचक थे और इस पर प्रतिबंध चाहते थे। किन्तु वे एक पागल सांप्रदायिक नहीं थे। 

सौजन्य: ओर्गेनाईजर
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