स्वागत योग्य है - मुस्लिम समाज में बढ़ते प्रगतिशील स्वर |


के. जमीदा, कुरान सुन्नथ सोसाइटी की महासचिव हैं | विगत दिनों उन्होंने केरल के सर्वाधिक बामपंथी हिंसा प्रभावित जिले कन्नूर में भाजपा द्वारा स्व. दीनदयाल उपाध्याय की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम में शिरकत करते हुए कहा कि देश में धर्मनिरपेक्षता का अस्तित्व सिर्फ तभी संभव है, जब कि देश में हिंदू परंपरायें बरकरार रहैं। 

स्मरणीय है कि जमीदा पर तीन तलाक के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा लाये गए कानून का समर्थन करने और इस्लाम में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने के कारण प्राणघातक हमले हो चुके हैं । जमीदा ने कहा कि मैं समाज को सुधारने की कोशिश कर रही हूं। दीनदयाल उपाध्याय और कुरान सुन्नथ सोसायटी के संस्थापक चेकनूर मौलवी ने भी इसी उद्देश्य के चलते अपने जीवन कुर्बान किये । स्व. दीनदयाल उपाध्याय की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हुई, आखिर उनकी गलती क्या थी? इसी प्रकार एक इंसान ने चेकन्नूर मौलावी को जान से मारने का फतवा सुनाया । और दुर्भाग्य यह कि अभियुक्तगण अपने अगले शिकार की तलाश में स्वतंत्र घूम रहे हैं। 

जमीदा ने वाम और तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवियों के दोहरे मापदंड पर सवाल उठाते हुए कहा कि पिछले दिनों ये लोग कवि क्यूरिपुझा श्रीकुमार के समर्थन में जुट गए थे, जबकि सचाई यह थी कि वे जिस कार्यक्रम में भाग लेने गए थे, उस कार्यक्रम के आयोजकों ने महज उन्हें बताया था कि वे लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहे हैं । आयोजकों ने कवि से आग्रह किया था कि वे बोलते समय उपस्थित जनों की भावनाओं का ध्यान रखें | किन्तु इस शालीन आग्रह को ह्त्या का प्रयत्न बताकर प्रस्तुत किया गया | अगर आयोजकों में एक भी व्यक्ति मुस्लिम होता, तो कुरेप़ुझा को इस तरह का समर्थन नहीं मिला होता। मेरे मामले में यही हुआ कि जिसने मुझे मारने की कोशिश की, वह एक मुस्लिम था, इसलिए कोई भी मेरे समर्थन में आगे नहीं आया । 

उन्होंने मुस्लिम लीग और एसडीपीआई जैसी मुसलमानों के लिए काम करने वाली पार्टियों पर हमला करते हुए कहा कि भाजपा और आरएसएस ऐसे संगठन हैं, जो सर्वधर्मसमभाव के लिए काम करते हैं और सभी धर्मों के लोगों का स्वागत करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर हिन्दू जातियों में नहीं बटे होते, तो भारत में इस्लाम की जड़ें जम ही नहीं पातीं और आज भी अगर हिन्दू, भारत को इस्लामिक देश बनता हुआ नहीं देखना चाहते तो उन्हें एकजुट होना चाहिए । 

इस कार्यक्रम की रिपोर्टिंग करते समय सहज जिज्ञासा हुई कि जमीदा जिन चकनूर मौलवी का जिक्र स्व. दीनदयाल जी के साथ कर रही हैं, आखिर वे सज्जन थे कौन ? और उनमें और स्व. दीनदयाल उपाध्याय में साम्य क्या है | गूगल पर जो जानकारी सामने आई, उसे पाठकों से साझा कर रहा हूँ - 

चकनूर मौलवी का प्रकरण यह आभाष देता है कि भारतीय मुस्लिम समाज में भी दो धाराएं चल रही हैं, एक तो वह जिसके कारण इस्लाम पूरे विश्व में बदनाम है, अर्थात दकियानूस और अठारहवीं सदी में जीने वाला समूह और दूसरा प्रगतिशील, जो इस्लाम की कुरीतियों और धार्मिक पुस्तक की पुरातन पंथी व्याख्या को पसंद नहीं करता | पीके मोहम्मद अबुल हसन, जो चकनूर मौलवी के नाम से लोकप्रिय हुए, इसी दूसरी धारा के प्रतिनिधि थे | कुख्यात मल्लापुरम के यह मौलवी जो अनुभव करते थे, उसे स्पष्टता से व्यक्त करते थे | मौलवी चकनूर कुरआन की गैर पारंपरिक व्याख्या करते थे, जिसके चलते पुरातनपंथी और कट्टर सुन्नी उनसे खासे नाराज रहने लगे | इन्होने मलयालम में लगभग 17 पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें कम्यूनल हार्मोनी उनकी अंतिम प्रकाशित पुस्तक थी | अंतिम कार्य कुरआन के मलयालम में अनुवाद का चल रहा था, किन्तु वह अधूरा रह गया और 29 जुलाई 1993 को वे रहस्यमय ढंग से गायब हो गए | उनकी पत्नी के अनुसार दो अज्ञात लोग उन्हें कहीं तकरीर के नाम पर बुलाने आये और उसके बाद वे गायब हो गए | सरकार ने उन्हें ढूँढने के पर्याप्त प्रयत्न किये, किन्तु वे नहीं मिले | यह केरल में 1990 का सर्वाधिक चर्चित और रहस्यपूर्ण मामला था | 

1936 में मल्लापुरम के एडाप्पल में जन्मे चकनूर बाल्यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे और २४ वर्ष की आयु में ही वे धार्मिक उपदेशक बन गए । उनके क्रांतिकारी विचारों ने जन सामान्य को काफी प्रभावित किया | उनका मानना था कि केवल कुरआन पर ही लोगों को आस्था रखना चाहिए और हदीसें चूंकि बाद में विभिन्न लोगों द्वारा लिखी गई हैं, अतः उनका कोई ख़ास महत्व नहीं है | उन्होंने यहाँ तक कहा कि अबू हुर्राह द्वारा की गई व्याख्या भी असंगत है | अपने विचारों के प्रसार के लिए उन्होंने कुरआन सुन्नत सोसायटी की स्थापना की, जो आज भी अस्तित्व में है | स्वाभाविक ही वे जल्द ही कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए | और नतीजा सामने आ गया | 

उनके लापता होने के बाद उनकी पत्नी ने न्याय के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी और सत्रह साल बाद, 2 9 सितंबर, 2010 को, सीबीआई की अदालत ने उनके लापता होने से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि चकनूर मौलवी की हत्या कर दी गई थी और उनका मृत शरीर ठिकाने लगा दिया गया था । कुल नौ आरोपियों पर मुक़दमा चला, किन्तु साक्ष्य के अभाव में आठ आरोपियों को बरी कर दिया गया | केवल उस एक व्यक्ति को दोषी मानकर सजा दी गई, जिसके साथ मौलवी आख़िरी बार गए थे | उसे हत्या, अपहरण, साजिश और सबूतों के विनाश का दोषी पाया गया। 

अपने निर्णय में न्यायाधीश ने कहा कि कुछ रूढ़िवादी मुस्लिम, चकन्नूर मौलवी के तथाकथित प्रगतिशील विचारों को बर्दाश्त नहीं कर सके | इन कट्टरपंथी लोगों में परंपरावादी सुन्नी मलयाली मुसलमान हैं, जो कथित तौर पर कोझीकोड के एक विशेष गुट के प्रति निष्ठा रखते हैं । अदालत के इस निर्णय से स्वाभाविक ही इस तथ्य की पुष्टि होती है कि इस्लाम में दो धाराएँ चल रही हैं, एक प्रगतिशील और दूसरी रूढ़िवादी | और इन दोनों के बीच टकराहट भी हो रही है | 

हर समझदार व्यक्ति चाहेगा कि मुसलमानों में भी सामाजिक सुधार का पक्षधर तबका प्रभावी हो, किन्तु क्या राजनीति ऐसा होने देगी ? अब चकनूर मौलवी को ही लीजिये, उन्होंने शाह बानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी समर्थन किया था । वह देश के उन चुनिन्दा मुस्लिम बुद्धिजीवियों में से एक थे, जिन्होंने कहा था कि शाह बानो के पूर्व पति को गुजारा भत्ता देना चाहिए । किन्तु सरकार ने सुधारवादी द्रष्टिकोण के स्थान पर रूढ़ीवाद को ही बल दिया |

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