उबलता पश्चिम बंगाल और भयभीत मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी |



जो लोग आग से खेलते हैं, उनके झुलसने की भी पूरी पूरी संभावना होती है | लगता है 2011 से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर यह बात कुछ ज्यादा सत्य सिद्ध होती दिखाई दे रही है। 

राज्य के शहरी और ग्रामीण इलाकों में भाजपा के बढ़ते प्रभाव से चिंतित होकर तृणमूल कार्यकर्ताओं ने इस बार बड़े पैमाने पर रामनवमी के जुलूसों में भाग लेकर, हिंदुत्व की लहर को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न किया | किन्तु वे यह भूल गए कि अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का जो विषवृक्ष उन्होंने लगाया है, उसका जहर भी उन्हें ही पीना पड़ सकता है | विगत रविवार को पुरुलिया, उत्तरी 24 परगना और हुगली में हुए संघर्षों में एक व्यक्ति की मौत हो गई और राज्य भर में पुलिस अधिकारियों सहित आधे दर्जन लोगों की गंभीर चोटें आईं । सीधी सी बात है कि हिंदुत्व के थोड़े भी समर्थन में जो खड़ा दिखाई देगा, उसे अतिवादी और दुर्दांत मुस्लिम अपना विरोधी मानेंगे | इस विषय में उनके लिए कोई अपना पराया नहीं है | 
राज्य में स्थिति की भयावहता का वर्णन यह चित्र बखूबी कर रहा है जिसमें आसनसोल-दुर्गापुर डीसीपी और आईपीएस अधिकारी अरिंदम दत्ता चौधरी गंभीर रूप से घायल हो गए थे और सोमवार को हुई घृणित हिंसा में उन्होंने अपना हाथ खो दिया ।



स्मरणीय है कि ममता बॅनर्जी की सरकार ने विगत 7 वर्षों में हर वह कार्य किया, जो रूढ़िवादी और धर्मांध मुस्लिम धार्मिक-राजनीतिक नेतृत्व ने उनसे करने को कहा | यहाँ तक कि पश्चिम बंगाल में अवैध प्रवासी बंगलादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई करने से साफ़ इंकार कर दिया । उन्होंने इस बात की भी रत्ती भर परवाह नहीं की, कि इससे राज्य का जनसंख्यात्मक संतुलन बिगड़ेगा | स्वाभाविक ही इसके खिलाफ आम जन में गंभीर प्रतिक्रिया हुई है तथा ममता बैनर्जी के खिलाफ बड़ी मात्रा में आलोचना और विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं । साथ ही इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलता भी दिखाई दे रहा है | 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा उनके विचार परिवार के सभी घटक संगठनों ने मिशन मोड़ में आकर हिंदू सांस्कृतिक परंपराओं को हाशिए पर रखने की प्रवृत्ति के खिलाफ जो जन जागरण अभियान चलाया, उसके बाद तो सामान्य नागरिकों में अपूर्व चेतना का संचार हुआ है | उसका ही नतीजा था तृणमूल कार्यकर्ताओं द्वारा राम नवमी के चल समारोह आयोजित करना । 

विगत वर्ष तक संघ / भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा ही राम नवमी के जुलूसों का आयोजन किया जाता था | इन जुलूसों के माध्यम से उत्पन्न होने वाली राजनीतिक चेतना तथा लाभ हानि के गणित ने तृणमूल पार्टी के कान खड़े कर दिये | उन्हें समझ में आ गया कि अब राज्य में कांग्रेस और वामपंथी हासिये पर पहुँच चुके हैं तथा आगे चलकर उनका मुख्य मुकाबला भाजपा से ही होने जा रहा है । 

पिछले 12 महीनों में, आरएसएस शाखाओं में भी तेजी से वृद्धि देखने में हुई है और साथ ही बीजेपी की विचारधारा, आंदोलन और केंद्रीय नेतृत्व ने लाखों लोगों को आकर्षित कर लिया है | भले ही अभी चुनावी कसौटी पर भाजपा की सफलता सामने नहीं आई है | किन्तु जन समर्थन दिखाई देने लगा है, जिसे भांपकर अनेक तृणमूल नेता, पाला बदलकर भाजपा के साथ दिखाई देने लगे हैं | 

विवश होकर तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी संगठन मानकर राम नवमी समारोह के माध्यम से स्वयं को “उदारवादी' बहुसंख्यक समुदाय” का प्रतिनिधि दर्शाने का निर्णय लिया । इस हेतु योजना बनाई गई, तथा जहाँ जहाँ तृणमूल कार्यकर्ताओं ने राम नवमी चल समारोह निकाले, वहां तो प्रशासन ने अनुमति दी, किन्तु जहाँ भी संघ / भाजपा कार्यकर्ताओं ने इस प्रकार के आयोजन करने का प्रयत्न किया, उन्हें निषेधाज्ञा का सामना करना पड़ा | कहीं शस्त्र प्रदर्शन के नाम पर तो कहीं किसी अन्य बहाने से आयोजनों को प्रतिबंधित किया गया । अब इस नीति को निरी बकवास नहीं तो क्या कहा जाए ? 

धार्मिक / सांस्कृतिक आयोजनों के अवसर पर अखाड़ों द्वारा हथियार प्रदर्शन कोई नई बात तो है नहीं | क्या सिखों की कृपाण पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है ? क्या ताज़िया जुलूसों के दौरान तलवार और जंजीरों द्वारा स्वयं को लहूलुहान कर लेने वाले मुस्लिमों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता हैं । 

पश्चिम बंगाल की दशा दुर्दशा को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि ममता बनर्जी आग से खेल रही हैं और इस खेल में वे तो झुलसने ही लगी हैं, पश्चिम बंगाल को भी उसकी कीमत चुकाना पड़ सकती है । 

इसी घबराहट का नतीजा है ममता बैनर्जी का तीसरे मोर्चे के लिए चलाया जाने वाला नया अभियान | वे स्वयं होकर, बिना किसी के बुलावे का इन्तजार किये, यहाँ तक कि संसद के सेन्ट्रल हाल में जाकर विरोधी नेताओं से मिल रही हैं | मोदी विरोधी दलों को मिलकर चुनाव लड़ने की नसीहत भी दे रही हैं | इसे कहते हैं – मान न मान, मैं तेरा मेहमान ! 

एक पुरानी कहावत भी है – कमजोर गुस्सा भारी | जो जितना कमजोर होता है, उतने ही तीखे तेवर दिखाता है | ममता के तीखे तेवर उनके भय और आतंरिक कमजोरी को प्रदर्शित कर रहे हैं |
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें