चंद्राबाबू नायडू की राजनीति या विश्वासघात ?



आजकल राजनैतिक क्षेत्रों में सर्वाधिक चर्चा चंदाबाबू नायडू को लेकर है, जिन्होंने मोदी सरकार के समक्ष आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग उठाई और न दिए जाने पर एनडीए से बाहर हो जाने की धमकी भी टिका दी | विपक्ष को तो मोदी सरकार पर निशाना साधने का एक मौक़ा मिल ही गया और उसने इस घटना को हाथों हाथ लिया और टीडीपी की इस मांग के सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिया । 

चंद्राबाबू की यह मांग उचित है या अनुचित, इस पर चर्चा करने के पूर्व, आईये जरा इस बात पर गौर करें कि आखिर यह विशेष राज्य का दर्जा होता क्या है? 

नरेन्द्र मोदी सरकार आने से पहले तक, करों के रूप में जो धन एकत्रित होता था, उसमें से 60 प्रतिशत राशि केंद्र के पास जाती थी, तथा शेष 40 प्रतिशत राज्य के लिए होती थी | उस दौरान विशेष राज्य का दर्जा उन राज्यों को दिया जाता था, जो भौगौलिक रूप से दुर्गम हैं, तथा जहाँ के निवासियों प्राकृतिक आपदाओं का सामना ज्यादा करना पड़ता है | । ऐसी परिस्थिति आने पर उन राज्यों में जो कर संकलित होता था, उसमें से 90% राज्य के पास रहता था तथा शेष 10% केंद्र को प्राप्त होता था | वोट बैंक राजनीति के चलते कई राज्यों को विशेष दर्जा देने के झूठे वायदे कई बार सोनिया गांधी जी की कांग्रेस ने किये, किन्तु बाद में उन पर कभी अमल नहीं किया । 

2014 में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद, 14 वें वित्त आयोग की मांगें स्वीकार कर ली गईं, जिसके परिणाम स्वरुप करों की राशि का विभाजन एकदम उलटा हो गया | अर्थात पहले जहाँ केंद्र को 60 प्रतिशत और राज्य को 40 प्रतिशत भाग मिलता था, अब राज्य को 60 प्रतिशत और केंद्र को 40 प्रतिशन अंश प्राप्त होता है । लोक कल्याण के लिए राज्य अधिक सक्षमता से कार्य कर पायें, इसलिए यह परिवर्तन किया गया । 14 वें वित्त आयोग ने ही अपने सुझावों में यह उल्लेख भी किया था कि टैक्स शेयरिंग अनुपात में यह परिवर्तन हो जाने के बाद "स्पेशल स्टेटस" की अवधारणा हटा दी जाए । देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की जानकारी में उक्त तथ्य है, इसके बाद भी महाज्ञानी माने जाने वाले चंद्राबाबू नायडू ने यह बेतुकी मांग उठाई है, यह अपने आप में हैरत की बात है । 

इतना ही नहीं तो जब आंध्रसरकार से यह पूछा गया कि आपको किस कार्य के लिए, कितने धन की आवश्यकता है – बताईये, तब इसका कोई उत्तर देने की जहमत भी राज्य सरकार ने नहीं उठाई । मोदी सरकार ने स्पष्ट रूप से 90-10 अनुपात को नकार दिया, किन्तु आवश्यकतानुसार राशि देने हेतु सहमती जताई, इसके बाद भी अगर चंद्राबाबू मोदी सरकार को निशाना बना रहे हैं तो स्पष्टतः उनके छुपे हुए राजनैतिक मंसूबे हैं । 

अब तक मोदी सरकार ने आंध्र प्रदेश के लिए क्या क्या किया, इस पर एक जागरुक नागरिक का ट्वीट प्रकाश डालता है – 

अंशुल सक्सेना✔ @AskAnshul 

मोदी ने आंध्र प्रदेश को क्या क्या दिया ? 

- नौसेना वायु स्टेशन 

- मिसाइल विनिर्माण 

- डीआरडीओ सुविधा 

- नोए रेंज 

- सैनिक केंद्र 

- बीईएल मैन्युफैक्चरिंग 

- हवाई अड्डे 

- 7 संस्थान 

- 950+ मेडिकल सीटें 

- डीडी केंद्र 

- एयर स्टेशन 

- पासपोर्ट केंद्र 

- अमरावती के लिए 2500 करोड़ रुपये 

और भी बहुत कुछ। 

राज्य के राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए केंद्र पहले ही 4,000 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुका है । इसके अतिरिक्त केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा घोषित किए गए नवीनतम विशेष वित्तीय पैकेज के माध्यम से आंध्र प्रदेश को 24,271.91 करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि भी केंद्र से मिलने जा रही है । इतना ही नहीं तो केंद्र सरकार की सहायता से संचालित परियोजनाओं (सीएपी) की राशि में भी 60 फीसदी से 90 फीसदी तक की बढ़ोतरी की गई है। केंद्र 2015-16 और 2016-17 के वित्तीय वर्षों की भरपाई के लिए 7,336 करोड़ रुपये देने के लिए सहमत हो गया है, साथ ही विशेष वित्तीय पैकेज के रूप में 2015 से 2020 तक सभी कैप और ईएपी योजनाओं में 30 प्रतिशत अतिरिक्त धन उपलब्ध कराने पर भी केंद्र ने सहमति व्यक्त की है। 

यह विशेष उल्लेखनीय है कि आंध्र प्रदेश दुनिया का इलेक्ट्रॉनिक वाहन केंद्र बनने के बस एक कदम दूर है। 

राष्ट्र के समग्र विकास के लिए, हर राज्य को समान रूप से विकसित किया जाना चाहिए और केंद्र सरकार को भी यही द्रष्टिकोण रखना चाहिए। आंध्र प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय - 137,376 रुपये है, जबकि उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय - 80,253 रुपये, बिहार की प्रति व्यक्ति आय - 63,200 रुपये है | क्या यह हैरत की बात नहीं कि एक धनी प्रदेश, विशेष राज्य का दर्जा मांगे ? अब सुविज्ञ पाठक महानुभाव ही बताएं कि मोदी जी को ब्लैकमैलिंग के सामने झुकना चाहिए, या यूपी, बिहार जैसे गरीब राज्यों को अधिक फंड प्रदान करना चाहिए ? 

सचाई यह है कि आजादी के बाद से अब तक, किसी भी राज्य को आंध्र प्रदेश से अधिक महत्व प्राप्त नहीं हुआ है। मोदी सरकार भी आंध्र प्रदेश के लिए अच्छे से अच्छा करती जा रही है। अब तक सत्ता में सहभागी रही तेलगू देशम पार्टी, अब जबकि लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव नजदीक हैं, तब जाकर विरोध के स्वर मुखरित कर रही है, यह सोची समझी रणनीति है । शायद रणनीति भी सही शब्द नही है, यह विश्वासघात है, मोदी सरकार की पीठ में छुरा मारने की साजिश है। 
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