कर्नाटक के लिंगायत विवाद पर देश की प्रतिक्रिया !



जैसे ही कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को हिन्दू धर्म से प्रथक धर्म घोषित किया गया, सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा | लोगों के गुस्से की बानगी देखिये -

हिन्दू द्रोही पार्टी का खात्मा कब होगा?

लिंगायत हिन्दू नही है 

अगला कदम मराठा हिन्दू नही है राजपूत हिन्दू नही है जाट हिन्दू नही है ये हिन्दू नही है वो हिन्दू नही है?

इस पार्टी को नष्ट होना ही होगा अब।

टुकड़ो के खातिर इसकी चमचागिरी करने वाले भी नष्ट होंगे।लिंगायत को अलग धर्म बनाकर हिन्दुओ को तोड़ने की कोशिश का जबरदस्त असर तय है।अभी तक तो ये आरक्षण के लॉलीपॉप से जातियो को लड़वाते थे अब ये हिन्दू नही होने का फतवा देने लगे है।

कांग्रेस ने लिंगायत समाज को हिन्दू से अलग धर्म बनाने का कानून पास किया है कर्नाटक में...

जल्द ही
ब्राह्मण कायस्थ नाई ठाकुर बनिया यादव जाट पाटीदार हरिजन धोबी को भी हिन्दू से अलग धर्म का घोषित कर देगी 2019 चुनाव जीतने के लिए। ये लोग हिन्दू जाति को अलग धर्म बनाने का प्रयास कर चुनाव जीत के सपने देख रहे हैं।

लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने दे दिया.
और राहुल गांधी ये दावा करते हैं कि हम बांटने की राजनीति नहीं करते. 😉😃
दम है तो अहमदिया और कादियान को अलग धर्म का दर्जा देकर दिखाएं.
बरेलवी मसलक को अलग माने,
देवबंदी को अलग.
शिया और सुन्नी को इस्लाम में ही
अलग दर्जा देकर दिखाएं.
सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि हिंदुत्व जीवन शैली है, मनोदशा है.
लेकिन समझे तो वो जो हिंदू हो. जिसका बपतिस्मा वेटिकन में हुआ हो, उसकी समझ से ये बाहर की बात है.
यूं भी कांग्रेस भारत को बांटने के बाद से सिर्फ बांटने का ही काम करती रही है.
अगड़े, पिछड़े, दलितों को बांटना.
भिंडरावाला को आगे लाकर सिखों को बांटना.
श्रीलंका में दखल देकर तमिलों को बांटना.
इधर राम मंदिर का ताला खुलवाना और उधर शाहबानो मामले में कानून बनाना, बांटना ही तो था.
राहुल गांधी भी अपने पापा और दादी के पदचिह्नों पर हैं.
गुजरात में पटेलों को बांटने की कोशिश.
अब राजस्थान में राजपूतों को बांटने की कोशिश.
महाराष्ट्र में दलितों को सुलगाने की कोशिश.
और अब तो हद हो गई, लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता देना. इसमें खास बात ये है कि ये राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है.
खैर कांग्रेस को कानून, संविधान, परंपराओं, मर्यादा और क्षेत्राधिकार से कोई मतलब नहीं है. क्योंकि ये परिवार तो न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, संविधान सबको अपनी जागीर मानता है.
लेकिन बाटने की मानसिकता वालों और उसके गुर्गों सुन लो. हिंदू नहीं बंटेगा. हिंदू के टुकड़े नहीं होंगे. इतिहास की किताब खोलकर देख लो, जिसने बांटने की कोशिश की है, टुकड़े-टुकड़े हो गया... 

और सबसे बेहतर प्रतिक्रिया है डॉक्टर डेविड फ्राले की - 

एक ओर तो कांग्रेस नेता राहुल गाँधी और शशि थरूर स्वयं को हिन्दू घोषित करते हैं, वहीं दूसरी ओर हिन्दू को विभिन्न सम्प्रदायों में बांटकर ईसाई मिशनरीयों की रणनीति का अनुशरण करते हैं | यह पांडवों जैसा नहीं, असुरों जैसा कृत्य है | 


आईये अब इस मामले की तह तक जाने की कोशिश करते हैं -

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत और वीरशैव लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने की केंद्र से सिफारिश करने का फैसला किया है। इसके पूर्व राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस नागामोहन दास की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने लिंगायत समुदाय के लिए अलग धर्म के साथ अल्पसंख्यक दर्जे की सिफारिश की थी | कर्नाटक सरकार ने नागमोहन समिति की सिफारिशों को स्टेट माइनॉरिटी कमीशन ऐक्ट की धारा 2डी के तहत मंजूर कर लिया |
ख़ास बात यह है कि राज्य सरकार इस मामले में स्वयं कुछ नहीं कर सकती, उसे अब ये सिफारिश केंद्र सरकार के पास भेजनी होगी और अंतिम निर्णय केंद्र सरकार ही करेगी |
स्मरणीय है कि बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं। यह समुदाय राज्य में संख्या बल के हिसाब से मजबूत और राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली है। राज्य में लिंगायत/वीरशैव समुदाय की कुल आबादी में 17 प्रतिशत की हिस्सेदारी होने का अनुमान है। इन्हें कांग्रेस शासित कर्नाटक में बीजेपी का पारंपरिक वोट माना जाता है। 

किन्तु इस निर्णय का सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत और वीरशैव दोनों समुदाय को अल्‍पसंख्‍यक समुदाय का दर्जा दिए जाने के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश की है। जबकि इसके पूर्व तक स्वयं कांग्रेस के नेता और मंत्री अक्‍सर दोनों को अलग-अलग धर्म बताते रहे हैं। लेकिन यू टर्न लेकर राज्‍य सरकार ने वीरशैव को भी लिंगायत का हिस्‍सा बना दिया।' 

वीरशैवों का नेतृत्व करने वाले एक संत एवं बलेहोनुर स्थित रम्भापुरी पीठ के श्री वीर सोमेश्वर शिवाचार्य स्वामी ने कैबिनेट के इस फैसले की निंदा की है। उन्‍होंने आरोप लगाया कि कुछ लोगों की साजिश के बाद सिफारिश स्वीकार की गई लेकिन वीरशैव मिल कर इसके खिलाफ लड़ेंगे। 
आइए जानते हैं कि क्या है यह लिंगायत और वीरशैव प्रकरण - 
लिंगायत समाज मुख्य रूप से दक्षिण भारत में है. लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है. कर्नाटक की जनसंख्या में लिंगायत और वीरशैव समुदाय की हिस्सेदारी करीब 18 प्रतिशत है. इस समुदाय को बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है. 

कौन हैं लिंगायत और क्या हैं इनकी परंपराएं? 

लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है. कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं. पास के राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है. 

लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं | इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के परिणाम स्वरूप हुआ जिसका नेतृत्व समाज सुधारक बसवन्ना ने किया था, जो खुद ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे किन्तु जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था में विश्वास करते थे | 

लिंगायत सम्प्रदाय के लोग मूर्ति पूजा तो नहीं करते, किन्तु एक अंडाकार "इष्टलिंग" को धागे से अपने शरीर पर बांधते हैं | लिंगायत इस इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं और निराकार परमात्मा को मानव या प्राणियों के आकार में कल्पित न करके विश्व के आकार में इष्टलिंग को मानते हैं | 

लिंगायत पुनर्जन्म में भी विश्वास नहीं करते हैं. लिंगायतों का मानना है कि एक ही जीवन है और कोई भी अपने कर्मों से अपने जीवन को स्वर्ग और नरक बना सकता है. 

लिंगायत में शवों को दफनाने की परंपरा 

लिंगायत परंपरा में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया भी अलग है. लिंगायत में शवों को दफनाया जाता है. लिंगायत परंपरा में मृत्यु के बाद शव को नहलाकर बिठा दिया जाता है. शव को कपड़े या लकड़ी के सहारे बांध जाता है. जब किसी लिंगायत का निधन होता है तो उसे सजा-धजाकर कुर्सी पर बिठाया जाता है और फिर कंधे पर उठाया जाता है. इसे विमान बांधना कहते हैं. कई जगहों पर लिंगायतों के अलग कब्रिस्तान होते हैं. 

वर्तमान में बसवन्ना के अनुयायियों की दो धाराएँ चल रही हैं | एक का मानना है कि इष्ट लिंग और भगवान बसवेश्वर के बताए गए नियम हिंदू धर्म से बिल्कुल अलग हैं जबकि अन्य लोग मानते हैं कि बसवन्ना का आंदोलन भक्ति आंदोलन की ही तरह था और उसका मकसद हिंदू धर्म से अलग होना नहीं था | 

आम मान्यता ये है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही लोग होते हैं किन्तु वीरशैव शिव की मूर्ति पूजा भी करते हैं | भीमन्ना ऑल इंडिया वीरशैव महासभा के पूर्व अध्यक्ष भीमन्ना खांद्रे कहते हैं कि वीरशैव और लिंगायतों में कोई अंतर नहीं है |" 

कर्नाटक में लगभग 17 फीसदी लिंगायत को धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक का दर्जा देना एक लोलीपोप के समान है | कहा जा रहा है कि उन्हें अल्पसंख्यक आरक्षण का फायदा मिलेगा, किन्तु सवाल उठता है कि कैसे ? क्या अन्य अल्पसंख्यक समुदाय जैसे मुसलमान, ईसाई, जैन, बौद्ध और सिख, इसे आसानी से सहन कर लेंगे कि एक अगड़ी जाति उनके हक़ पर अधिकार जमाने आ जाए ? और प्रथक से देने का प्रयास किया तो कोर्ट बीच में आयेगा ही, जैसा कि अब तक होता आया है | कुल मिलाकर यह एक चुनावी शिगूफे के अलावा कुछ नहीं है | 

लिंगायतों का राजनैतिक रुझान - 

1980 के दशक में लिंगायतों ने राज्य के नेता रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा किया था | बाद में लिंगायत कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल के भी साथ गए | इसके बाद लिंगायत समुदाय ने फिर से कांग्रेस से दूरी बना ली और फिर से हेगड़े का समर्थन करने लगे | इसके बाद लिंगायतों ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को अपना नेता चुना, किन्तु जब बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो इस समुदाय ने बीजेपी से मुंह मोड़ लिया और नतीजा यह निकला कि कांग्रेस सत्ता में आ गई |

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