उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव में नरेश अग्रवाल के कारण उलटफेर की संभावना |



पहले से ही संख्या बल में पिछड़ रहे सपा, बसपा और कांग्रेस गठबंधन को उस समय एक और करार झटका लगा, जब समाजवादी पार्टी के सांसद नरेश अग्रवाल ने अपने बेटे नितिन अग्रवाल के साथ भाजपा का दामन थाम लिया | स्मरणीय है कि नितिन अग्रवाल हरदोई से विधायक भी हैं | उधर अंतिम समय पर भाजपा के अपना एक अतिरिक्त प्रत्यासी भी मैदान में उतार दिया है । 

सर्व सम्मत चुनाव की संभावना समाप्त हो जाने के कारण अब उत्तर प्रदेश की दस सीटों के लिए 23 मार्च को मतदान होगा | बीजेपी के पास अपने आठ प्रत्यासियों को जिताने योग्य पर्याप्त संख्या है | किन्तु उसने अपने नौवें उम्मीदवार के रूप में गाजियाबाद की एचआरआईटी ग्रुप इंस्टीट्यूट्स के चेयरमैन अनिल अग्रवाल को मैदान में उतार दिया है, जिसके चलते बसपा उम्मीदवार भीम राव अम्बेडकर का जीतना अब मुश्किल हो गया है, जिन्हें सपा और कांग्रेस के विधायकों के समर्थन से राज्यसभा में जाने की उम्मीद थी । 

भाजपा के 311 विधायक और उसकी गठबंधन सहयोगी पार्टी अपना दल और सुहेलदेव की भारतीय समाज पार्टी के 13 विधायक हैं, इस प्रकार उनके कुल कुल 324 मत हैं। एक उम्मीदवार को जीतने के लिए 37 वोटों की आवश्यकता होगी, इस हिसाब से भाजपा के पास आठ उम्मीदवारों को चुनने के बाद भी 28 अतिरिक्त मत हैं, जो इसके नौवें उम्मीदवार अनिल अग्रवाल के पक्ष में जाएंगे। भाजपा ने अपनी यह चाल एकदम अंतिम समय में चली है | तीन स्वतंत्र विधायकों ने भी भाजपा के प्रति अपना झुकाव दिखाया है। 

इस बीच, 47 विधायकों वाली समाजवादी पार्टी ने जया बच्चन को राज्यसभा के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा है और अपने शेष वोट बसपा को स्थानांतरित करने का वादा किया है । नितिन अग्रवाल के भाजपा में जाने के बाद अब समाजवादी पार्टी के अतिरिक्त वोटों की संख्या केवल नौ रह गई है । 

कांग्रेस के 7 और बसपा के 1 9 आम विधायक हैं, इनके साथ 9 समाजवादी विधायकों के समर्थन के बाद भी बसपा के पास जीतने के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं है, यह भी अब स्पष्ट है । 

भाजपा खेमे में उत्साह का माहौल है और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे ने अपने सभी प्रत्यासियों की जीत का विश्वास व्यक्त किया है | 

किन्तु नरेश अग्रवाल के  दलबदल कर भाजपा में शामिल होने से भाजपा कार्यकर्ताओं में निराशा भी देखी जा रही है | सोशल मीडिया पर इसके समर्थन और विरोध की बयार सी चल रही है | कुछ प्रतिक्रियाएं -

हे भगवान अब क्या करें ?
ये नरेश अग्रवाल भी बीजेपी में आय मरे 😭
ये वही साहब हैं ना जो कहते थे -
व्हिस्की में विष्णु बसें , रम में बसे हैं राम
अब सबसे बड़े राष्ट्रवादी नरेश अग्रवाल पधारे निज धाम !

अब कोई कुर्सी परस्त कहे या मौक़ा परस्त, कोई फर्क नहीं पड़ता | राजनीति कोई ऋषियों का आश्रम नहीं, जो नीति की चर्चा हो | यहाँ तो केवल एक नीति चलती है - जीते का बोलबाला और हारे का मुंह काला |
आज हम भले ही बीजेपी नेतृत्व की आलोचना करें कि उन्होंने नरेश अग्रवाल को पार्टी में क्यों ले लिया, किन्तु कल जब राज्यसभा चुनाव में मायावती का प्रत्यासी पराजित होगा, और भाजपा को एक अतिरिक्त सीट मिलेगी, तब ताली कौन बजायेगा ? आप और हम ही ना ?
राजनीति नीति शास्त्र नहीं क्रूर गणित है, यहाँ तो - जो जीते वो सिकंदर |

इधर मायावती कमजोर, उधर अखिलेश को चोट,
राज्यसभा में भी बढ़ जाए एक वोट,
तो भले पाल लिया आस्तीन में एक और सांप,
निर्णय में नहीं कोई खास खोट 🤣😋

विरोधियों को डराने, आस्तीन में सांप पालो जरूर,
पर जहर उतारने का मंतर भी सीखा या नहीं हुजूर |
यह उस जंगल का सांप है, जहाँ फिजा में ही जहर था,
इसका संपेरा रामभक्तों का खूनी, जीता जागता कहर था |
सावधान करना फर्ज है, चंदवरदाई का,
मानो तो ठीक वर्ना आने वाला समय रुसवाई का !

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