पश्चिम बंगाल सरकार का मुखर समर्थन और केंद्र की आपराधिक चुप्पी : क्या रोहिंग्याओं को अब जागरुक देशवासी ही खदेड़ें ?



तीन महीनों के भीतर बरूईपुर के नजदीक स्थित कुरुली-हरादाहा में इनकी संख्या दस गुना बढ़ गई है । जहाँ जनवरी 2018 में, रोहिंग्याओं के केवल 8 परिवारों में महज 29 रोहिंग्या थे, अब यहाँ उनकी संख्या 41 परिवारों में 320 से अधिक हैं। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार 60,000 रोहिंग्या बंगलादेश सीमा पर पश्चिम बंगाल में प्रवेश का मौक़ा ढूंढ रहे हैं । जबकि तृणमूल कांग्रेस हिंदूओं पर जिहादी हमलों के लिए इन रोहिंग्याओं को राज्य में अधिकाधिक बसाने पर आमादा है और नतीजा यह कि रोहिंग्या हब के रूप में पश्चिम बंगाल जाना जाने लगा है । 

कोलकता से श्री उपानंद ब्रह्मचारी की विशेष रिपोर्ट 

विचारणीय प्रश्न है कि आखिर बंगाल की सत्तारूढ़ टीएमसी, पश्चिम बंगाल की भूमि पर अवैध रूप से आये रोहिंग्या घुसपैठियों को बढ़ावा क्यों दे रही है ? कहीं इसके पीछे राज्य के हिंदुत्व निष्ठ कार्यकर्ताओं को नुकसान पहुंचाने की नापाक जिहादी आकांक्षा तो नहीं है ? 

जब से हिंदुत्व का भाव पश्चिम बंगाल में प्रभावी होता दिखाई देने लगा है, टीएमसी के अल्पसंख्यक सेल के कुछ नेता बारौइपुर, कैनिंग, फाल्ता, बुड्ज बग्ज, बर्दवान, कूचबिहार, उत्तर दिनाजपुर, बीरभूम और अन्य स्थानों में इन रोहंगिया घुसपैठियों को शरण देने के काम में जुट गए हैं | इसके पीछे सुनियिजित साजिश है - बंगाल में बढ़ती हिंदुत्व शक्ति को खत्म करने के लिए एक जिहादी सेना को तैनात करना | 

हैदराबाद के कुख्यात एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मज्लिश इ इत्तेहादुल मुस्लमीन) के साथ मिलकर, टीएमसी के इन मुस्लिम नेताओं ने कई गैर सरकारी संगठन बनाये हैं, जिनके माध्यम से मध्य पूर्व और बांग्लादेश से रोहिंग्या शरणार्थियों के पुनर्वास के नाम पर अकूत धन एकत्रित किया जा रहा है | वास्तविकता तो यह है कि यह पैसा भारत की भूमि को इस्लामी झंडे के नीचे लाने के कुत्सित इरादे से आ रहा है | 

सावधान भारत – यह कपोल कल्पित धारणा नहीं, कठोर यथार्थ है ! 

12 मार्च को आयोजित एसएमएसी (राज्य मल्टी एजेंसी सेंटर) की एक उच्च स्तरीय बैठक में, पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों की समस्या और सीमा की स्थिति पर, यह खुफिया जानकारी साझा की गई कि 60,000 से अधिक रोहिंग्या पश्चिम बंगाल सीमा पार करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं | 

इतना ही नहीं तो बैठक में पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधियों ने राज्य में रोहिंग्या की बढ़ती संख्या और राज्य के कुछ हिस्सों में उनकी कॉलोनी को स्वीकार भी किया, किन्तु इसके लिए उन्होंने सीमा की सुरक्षा में बरती जा रही बीएसएफ की ढिलाई को दोषी ठहराया तथा आरोप लगाया कि सीमा सुरक्षा बल के कुछ लोग इन घुसपैठियों से मिले हुए रहते हैं । 

इसका प्रतिवाद करते हुए एक एसएमएसी अधिकारी ने फोरम में कहा कि "बीएसएफ की सतर्कता और सीमा पर लगातार गश्त के कारण ही ये रोहिंग्या भारत में प्रवेश नहीं कर सके। आखिर रोहिंग्या पैराशूट से तो आ नहीं सकते थे |” 

पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधियों के पास इस सवाल का कोई जबाब नहीं था कि आखिर कुछ एनजीओ और उनके एआईएमआईएम के सहयोगी बारुइपुर (कुरुली और हरादा), कूचबिहार (मासदलंगा), बुडजे बग्ज (फकीर बारी) आदि में रोहिंग्याओं के लिए कॉलोनी कैसे बना पाए । 

दक्षिण 24 परगना से प्राप्त जानकारी के अनुसार टीएमसी से जुड़े कई स्थानीय मुसलमान पीमे और गीतांजली हाउसिंग से मूल लाभार्थियों के स्थान पर रोहिंग्या मेहमानों को बसाने के लिए सिद्दत से जुटे हुए हैं । बर्धवान, उल्बेरिया, मालदा, मुर्शिबादाद, बीरभूम, दक्षिण और उत्तर 24 परगना के मदरसों में रोहंगिया बच्चों को सुनियोजित ढंग से आश्रय दिया जा रहा है। 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने रोहिंग्या भाइ, बहनों के लिए सहानुभूति जताने में कोई कंजूसी नहीं करतीं | उन्होंने पहले ही अपने दृष्टिकोण को व्यक्त किया है, 'सभी आगंतुक आतंकवादी नहीं होते' +। 

रोहिंग्याओं के समर्थन में 11 सितम्बर 2011 को कोलकाता में आयोजित मुस्लिम रैली। 


तृणमूल के पूर्ण समर्थन से मुस्लिम संगठनों ने म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार को रोकने और भारत में रोहिंग्याओं के उचित पुनर्वास की मांग को लेकर 11 सितंबर, 2017 को कोलकाता में एक बड़ी रैली का आयोजन किया। दिलचस्प बात यह है कि अखिल बंगाल अल्पसंख्यक छात्र संघ के तृणमूल समर्थक मोहम्मद नूरुद्दीन, पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधिर चौधरी, सीपीआईएम नेता सुजन चक्रवर्ती और फुरफुरा शरीफ पेराजाद तोहा सिद्दीकी ने एकस्वर से भारत में रोहिंग्याओं के समर्थन में आयोजित इस रैली में भाग लिया । दूसरे शब्दों में कहें तो भाजपा के अतिरिक्त पश्चिम बंगाल के सभी प्रमुख राजनैतिक दल रोहिंग्याओं के समर्थन में हैं | 

भारत और बांग्लादेश की 4,096 किमी लम्बी सीमा में से 2,217 किमी की सीमा पश्चिम बंगाल से लगी हुई है, जो कि सदा से अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों का सबसे पसंदीदा मार्ग रहा है | प्रायः स्वविकसित नेटवर्क और सीमा सुरक्षा बल की सहभागिता के माध्यम से। 

इचामती नदी और इसकी सहायक नदियां भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा के रूप में स्थित हैं। अधिकांश रोहिंग्या उत्तर 24 परगना, दक्षिण दिनाजपुर और कूच बिहार जिले से भारत में आते हैं। वे पेट्रोपोल, घोजाडंगा, हाकिमपुर, तारारी, अंग्रिल और हरिदासपुर से भी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार कर प्रवेश करते हैं। 

आजकल सुंदरबन डेल्टा (दक्षिण और उत्तर 24 परगना) में सर्बिरिया और संदेशखली की नदियों और जंगलों को पार कर पश्चिम बंगाल में प्रवेश करना रोहिंग्याओं द्वारा चुना गया है। 

केंद्र सरकार ने 9 अगस्त, 2017 को संसद को बताया था कि उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, यूएनएचसीआर में पंजीकृत 14,000 से अधिक रोहिंग्या भारत में रह रहे हैं। 

हालांकि, गैर सरकारी सूत्रों की मानें तो यह आंकड़ा करीब 40,000 का है, अर्थात चालीस हजार रोहिंग्या भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं, जिनमें से अधिकाँश जम्मू, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर, पश्चिम बंगाल और राजस्थान के मुस्लिम बहुल इलाकों में पनाह लिए हुए हैं । बैसे इसमें हैरत की बात ही कहाँ है ? आखिर बांग्लादेश से भारत में आये 2 करोड़ मुस्लिम घुसपैठिये भी तो भारत में अपने आप को छुपाये हुए हैं! 

अब, यदि ये 60,000 रोहिंग्या भी किसी प्रकार भारत प्रवेश पा गए, तो भारत की सुरक्षा और संप्रभुता पर खतरे के साथ साथ कानून और व्यवस्था पर भी गंभीर संकट के बादल छाएंगे । 

अराकन रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएएस) निश्चित रूप से जेएमएम (जमैट-उल-मुजाहिद्दीन-बांग्लादेश) और अंसारुल्ला बांग्ला टीम की सहायता से सभी रोहंग्या कॉलोनियों / पुनर्वास केंद्रों में अपने नेटवर्क का प्रसार करने का मौका नहीं गंवायेगी । 

इन सब तथ्यों को भली प्रकार जानते हुए भी, तृणमूल और उनकी रानी ममता बनर्जी बंगाल में हिंदूत्व की लहर को रोकने के लिए जिहादी तत्वों को प्रश्रय दे रही है और 'अल्पसंख्यक कल्याण' के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चलते हुए राज्य में रोहिंग्या मुस्लिम केंद्रों को बढ़ावा दे रही हैं। 

किन्तु सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि रोहिंग्याओं का निर्वाध प्रवेश बीएसएफ की नाक के नीचे से हो रहा है, जो कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है | आखिर रोहिंग्याओं के होंसले बीएसएफ के होते भी इतने बुलंद कैसे हैं? 

भारत में रोहिंग्याओं की बढ़ती तादाद के पीछे अगर तृणमूल का अँध समर्थन है तो भाजपा की आपराधिक चुप्पी भी एक कारण है, जिससे इन्कार नहीं किया जा सकता | देश का दुर्भाग्य है कि पक्ष और विपक्ष एक ही सिक्के के दो पहलू के रूप में दिखाई देने लगे हैं । 

क्या देश की अस्मिता, सुरक्षा और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए देर सबेर आम नागरिक द्वारा क़ानून हाथ में लेना ही एकमात्र उपाय शेष रहेगा ? कोई आज माने या ना माने किन्तु दिखाई यही देता है कि भारत के विभिन्न हिस्सों में जागरुक नागरिक इन अवैध और खतरनाक घुसपैठियों को स्वयं ही खदेड़ने हेतु कमर कसेंगे । 

राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों ही इस आलेख को गंभीरता से लें । 

साभार आधार: 

Destination WB: The Most Prospective Jihadi Hub for Rohingyas in India.

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