भ्रष्टाचार का कीर्तिमान स्थापित करने वाली – शिवपुरी की सिंध जलावर्धन परियोजना

एक ओर तो देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टोलरेंस की बात करते हैं, स्थानीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवपुरी विधायक व मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री यशोधरा राजे जी की ईमानदारी पर कोई उंगली नहीं उठा सकता, किन्तु सचाई यह है कि शिवपुरी की जनता को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने कि दृष्टि से प्रारम्भ की गई सिंध जलावर्धन परियोजना योजना महा भ्रष्टाचार के चलते दम तोड़ चुकी है | आईये इतिहास के झरोखे से झांककर देखते और समझते हैं पूरा प्रकरण - 

सत्तर के दशक में सबसे पहले कुछ स्थानीय उत्साही युवाओं ने शिवपुरी में दीवार लेखन अभियान चलाया– नहीं पियेंगे मल और मूत्र, सिंध लाओ बस एक ही सूत्र | इस नारे के पीछे यह तथ्य था कि शिवपुरी में पेयजल की आपूर्ति जिस चाँदपाटा तालाब से होती रही है, उसमें सीवर लाईन का गंद भी पहुंचता है | लगभग सौ वर्ष पुरानी शिवपुरी की सीवर लाईन जर्जर हो चुकी है, जिसका गंदा पानी स्थानीय नाले के माध्यम से चाँदपाटे में मिलता है | उसी को लक्ष्य कर यह मांग उठी थी | धीरे धीरे स्थिति बद से बदतर होती गई | लगातार बढ़ती हुई जनसंख्या और जंगल कट जाने के कारण वर्षा में आई कमी ने हालत यह कर दिए कि पेयजल समस्या विकराल से महा विकराल हो गई | चाँदपाटा से पेयजल आपूर्ति तो असंभव हो ही गई, शिवपुरी का भू जल स्तर भी जो सत्तर के दसक तक महज पचास साठ फुट था, बढ़कर हजार डेढ़ हजार को छूने लगा, नगर के प्रतिष्ठित परिवारों ने यहाँ से अपना कामधाम समेट कर अन्य शहरों का रुख करना प्रारम्भ कर दिया | 

स्थानीय नागरिकों की परेशानी और नाराजगी के तेवर देखकर स्थानीय सांसद और विधायक (दोनों सिंधिया) के प्रयत्नों से 31.03.2008 को सिंध जलावर्धन परियोजना योजना स्वीकृत हुई | उस समय योजना के लिए इकसठ करोड़ पिच्यासी लाख रुपये स्वीकृत हुए तथा समयावधि नियत की गई दो वर्ष | 26.09.2009 को यह कार्य मै. दोशियान लिमिटेड को सोंपा गया अर्थात उसे यह कार्य 24 माह में 25.09.2011 तक पूर्ण करना था | बस यहाँ से शुरू हुआ अफसर शाही और ठेकेदार की मिली भगत का खेल | 

कहा जाता है कि स्पेशल चार्टर्ड प्लेन से नगर पालिका के अधिकारियों को अहमदावाद बुलाकर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कराये गये | लगभग डेढ़ हजार पेज के इस एग्रीमेंट में क्या क्या लिखा है, यह वापड़े हस्ताक्षर करने वाले अधिकारियों को आज तक ज्ञात नहीं है | उन्हें तो बस हवाई यात्रा और अहमदावाद के शाही स्वागत से मतलब था | प्राप्त जानकारी के अनुसार detail project report में केवल pwd से पाइप लाइन डालने के लिए अनुमति लेने का उल्लेख है जबकि मडीखेडा से सतनबाड़ा के बीच 9.50 किलोमीटर फारेस्ट एरिया भी आता है, जिसका कोई उल्लेख एग्रीमेंट में नहीं था | स्थानीय जनता का आरोप है कि जानबूझकर यह कमी छोडी गई, ताकि समयावधि में कार्य पूर्ण न करने का बहाना पहले से तैयार रहे | और हुआ भी यही कि जैसे ही क्रियान्वयन एजेंसी ने फारेस्ट सीमा में पाइप लाइन बिछाने के लिए खुदाई आरम्भ की, नेशनल पार्क ने उस पर रोक लगा दी | स्थानीय विधायक यशोधरा जी ने अनथक परिश्रम किया, दिल्ली भोपाल की दौड़ लगाई और अंततः 19.04.2013 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कार्य प्रारम्भ करने की सशर्त अनुमति दी गयी | पुनः कार्य प्रारंभ हुआ किन्तु वन विभाग फिर आड़े आ गया और एजेंसी पर अनुमति की शर्तों का उल्लंघन करने के आरोप में 11.06.2013 को नेशनल पार्क द्वारा स्वीकृति को निरस्त कर दिया गया और एक बार तो लगा कि अब सिंध का पानी शिवपुरी कभी नहीं आ सकेगा | 

12.06.2013 को जलावर्धन योजना का समस्त कार्य बंद भी कर दिया गया | ध्यान दीजिये कि अनुबंध के अनुसार नगर पालिका बाध्य थी कि निर्माण एजेंसी को कार्य आरम्भ होने के पूर्व ही समस्त अनापत्ति प्रमाण पत्र दिए जाएँ | किन्तु प्रारम्भ से ही यह गंभीर अनियमितता बरती गई और शासकीय धन का बंदर बाँट चालू हो गया | सवाल उठता है कि सभी वांछित अनापत्ति न होते हुए भी कार्य प्रारम्भ कैसे हुआ और मुक्त हस्त से क्रियान्वयन एजेंसी को भुगतान का मीटर चालू हो गया | शायद इसीलिए नगर पालिका अधिकारियों का भरपूर सत्कार किया गया | बिना अनापत्ति के अनुबंध कैसे हुआ, यह प्राथमिक सवाल है | 

12.06.2013 को कार्य बंद होने के बाद वर्ष 2015 तक शासन-प्रशासन और नगर पालिका ने इस परियोजना की कोई सुध ही नहीं ली | शिवपुरी की जनता का धैर्य जबाब दे गया और यह आक्रोश आखिर फूट ही पड़ा | स्थानीय जागरूक नागरिकों ने एक संस्था बनाई “पब्लिक पार्लियामेंट” और इसके साथ ही शुरू हो गया “जल क्रांति सत्याग्रह” | 16 जून 2015 से 10 जुलाई 2015 (25 दिन) तक क्रमिक भूख हड़ताल हुई, जिसमें हजारों नागरिकों ने भाग लिया | भोपाल से दिल्ली तक सिंहासन हिल गए | मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने एक उच्चस्तरीय बैठक म.प्र. नगरीय निकाय के मुख्य सचिव से कर 6 माह के अन्दर योजना पूर्ण करके घरों तक पानी पहुँचाने का आदेश दिया और स्थानीय विधायिका एवं मंत्री महोदया यशोधरा राजे जी ने भी जल क्रांति के मंच पर आकर 6 माह में पानी घरों तक पहुँचाने आश्वासन दिया | आश्वासनों पर विश्वास कर जल क्रांति सत्याग्रह को स्थगित कर दिया गया | 

लेकिन किसे मालूम था कि राजनेताओं के छः माह इतने लम्बे होते हैं | वर्ष 2015 के उस आदेश के पश्चात योजना का कार्य आरम्भ तो हुआ किन्तु उसकी रफ़्तार इतनी सुस्त रही कि तीन वर्ष और बीत जाने के बाद भी आज दिनांक तक शिवपुरी वासियों के कंठ प्यासे हैं और एक बार फिर यह योजना दम तोडती दिखाई दे रही है | खास बात यह कि पाईप बिछ चुके है, किन्तु घरों तक पानी नहीं आ पाया है | कारण है गुणवत्ताहीन पाइपों का उपयोग | जैसे ही सतनबाड़ा फ़िल्टर प्लांट से मोटर द्वारा पानी शिवपुरी के लिए छोड़ा जाता है, जगह जगह से पाइप लाइन फूट जाती है पानी शिवपुरी पहुँचने के स्थान पर जंगल के पेड़ों को मिलने लगता है | कुछ मित्र मजाक में कहते भी हैं कि इस सूखे के समय में जंगल के पेड़ों को पानी देने के लिए ही यह योजना स्वीकृत हुई थी | 

यह स्थिति तो तब है, जबकि तीन मोटरों में से केवल एक को चालू किया जाता है | अगर तीन मोटरों को एक साथ चालू करके पानी सतनवाडा से पम्प किया जाए, तो इन पाईपों का क्या हश्र होगा, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है | योजना के अनुसार इसी पानी से शिवपुरी शहर की टंकियां भी भरनी हैं, और यह तभी संभव है, जब तीनों मोटर एक साथ चालू कर पानी पम्प किया जाये, जोकि अब संभव ही दिखाई नहीं देता |

गौर करने वाली बात यह भी है कि detail project report में जिस जीआरपी पाइप (जिसका उपयोग इस परियोजना में किया गया है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह पाइप ठन्डे देशों में प्रयोग किया जाता है जो उच्च तापमान सहन करने के योग्य नहीं है) को एम एस पाइप, सी वन पाइप एवं डी वन पाइप से बेहतर बताया गया और वर्ष 2040 तक इन पाइप के माध्यम से जल प्रदान करने की बात detail project report में कही गयी उन पाइपों पर २२ अप्रैल २०१८ को ENC के द्वारा आपत्ति दर्ज करायी जा चुकी है | 

अब सबसे अहम विषय – 

2009 से आरंभ हुई इस योजना पर स्वीकृत राशि की तुलना में लगभग दूना व्यय हो चुका है और 2 वर्ष में पूर्ण होने वाली यह योजना 9 वर्ष बीत जाने के बाद पूरी तरह पटरी से उतर चुकी है | अब तो यही हो सकता है कि इस योजना के असफल क्रियान्वयन और विलम्ब के लिए दोषियों के विरुद्ध आर्थिक अपराध का प्रकरण दर्ज कर उन्हें दण्डित किया जाए | पानी तो मिलने से रहा, क्योंकि गुणवत्ता विहीन पाईप बदले बिना पानी आ नहीं सकता और दुबारा पाईप बिछाना माने फिर न जाने कितने वर्ष और कितने करोड़ रुपये का नया फंड | शिवपुरी की जनता एक बार फिर “पब्लिक पार्लियामेंट” के बेनर तले जल क्रांति सत्याग्रह कर रही है, प्रतिदिन क्रमिक भूख हड़ताल जारी हो चुकी है | शासन प्रशासन की तानाशाही तो देखिये कि कोई तनाव न होते हुए भी धारा 144 लगा रखी है, ताकि माईक द्वारा धरना स्थल से कोई वक्ता अपनी बात आम जन तक ना पहुंचा पाए | लेकिन क्या इस प्रकार दबाकर जन आक्रोश की अभिव्यक्ति रोकी जा सकती है ? आन्दोलन के अगले चरण में धारा 144 का उल्लंघन कर जेल भरो आन्दोलन चालू हो सकता है | शासन को जन भावना को समझते हुए समझदारी दिखाना चाहिए | बैसे भी यह चुनाव का वर्ष है | 

सिंध जलावर्धन योजना के प्रारम्भ से अब तक पदस्थ रहे नपा के जन प्रतिनिधि व अधिकारी, जिनके माध्यम से सौ करोड़ रूपये व्यय किये गए – जंगल के पेड़ों को पानी देने के लिए - 

1. राम निवास शर्मा (CMO) 

2. जगमोहन सिंह सेंगर (अध्यक्ष) 

3. रिशिका अष्ठाना (अध्यक्ष) 

4. जे.पी.पारा (नपा इंजिनियर) 

5. के.एम. गुप्ता (नपा उपयंत्री) 

6. एस.के मिश्रा (नपा उपयंत्री) 

7. रणवीर कुमार (CMO)

8. कमलेश नारायण (CMO) 

9. मुन्नालाल कुशवाह (अध्यक्ष) 

10.गोविन्द प्रसाद भार्गव (CMO)

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