क्या सचमुच हम आज भी गुलाम हैं – योगेश मिश्र के कुछ झुलसाते सवाल



सोशल मीडिया पर आजकल श्री योगेश मिश्रा का भारत की आजादी और संविधान विषयक एक वीडियो वायरल हो रहा है | बैसे तो यह विषय पूर्व में भी स्व. राजीव दीक्षित ने उठाया था, किन्तु योगेश जी का अभिमत भी कुछ नयापन लिए हुए है | प्रस्तुत है आलेख की शक्ल में कुछ अंश – 

द्वितीय विश्वयुद्ध हो चुका था, ब्रिटेन पूरी तरह तबाह हो चूका था, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द सेना के बाद आजाद हिन्द सरकार का गठन कर लिया था और उस सरकार को विश्व के ग्यारह देशों ने मान्यता दे दी थी | आजाद हिन्द सरकार ने अपना एक बैंक स्थापित कर दिया था, जिसने आजाद हिन्द सरकार की मुद्राएँ प्रकाशित करना प्रारम्भ कर दिया था | चालीस हजार लोगों को उन्होंने अपनी आजाद हिन्द फ़ौज में भर्ती कर लिया था और इम्फाल तक उनका कब्जा हो चुका था | बंगाल का हर इंसान नेताजी के स्वागत के लिए अपने दरवाजे पर हथियार लेकर खड़ा था की नेताजी की फ़ौज आयेगी और मैं उनके साथ सेनानी बनकर अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए निकल पडूंगा | 

फरवरी 1946 में हमारे देश के अन्दर नौसेना ने विद्रोह कर दिया था | नौसेना ने अंग्रेज परस्ती से इन्कार कर दिया था |अप्रैल 1946 में ब्रिटिश इण्डिया की पुलिस ने हड़ताल कर दी थी, जुलाई में डाक विभाग ने हड़ताल कर ब्रिटिश दासता से इन्कार कर दिया था | अगस्त 46 में रेलवे ने हड़ताल का नोटिस दे दिया था | 1946 में जो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे, वे एटली 1964 में भारत आये और बंगाल के राज्यपाल भवन में रुके, तब उन्होंने कहा की हिन्दुस्तान को आजाद करना हमारी मजबूरी थी | 

सच कहा जाए तो भारत की आजादी का श्रेय भारत के नेताओं को कम, एडोल्फ हिटलर को ज्यादा जाता है | अगर हिटलर ने द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन की अर्थ व्यवस्था को ध्वस्त न कर दिया होता, नेताजी को आजाद हिन्द सरकार बनाने एक लिए बाध्य न किया होता तो आज भी देश पर ब्रिटिश हुकूमत ही होती | यह उस समय की वैश्विक परिस्थिति थी, जिनमें भारतीय संविधान बना | 

नेहरू जी ने संविधान निर्माण के लिए छः कमेटियों का गठन किया, एक कार्यकारिणी समिति का गठन किया, जिसमें भीमराव अम्बेडकर के साथ आसफ अली, के.एम. मुंशी, के. डी शाह, के. शांताराम, हुमांयू कबीर, बी. आर. गाडगिल शामिल थे | इन सात लोगों ने मिलकर भारत के संविधान के प्रारूप को रचा था | 27 अक्टूबर 1947 को समिति के सचिव बी. एन. राव ने भारत के संविधान का प्रारम्भिक प्रारूप रखा, जिसके अन्दर 446 अनुच्छेद थे, और 13 अनुसूचियां | 

हमारे यहाँ कहा गया कि संविधान में विश्व के बड़े बड़े देशों से बड़ी बड़ी चीजें ले ली गईं किन्तु सचाई यह है की पार्लियामेंट्री सिस्टम ब्रिटेन से लिया गया, जिसके हम गुलाम थे | मौलिक अधिकार, संविधान की सर्वोच्चता, संघवाद, वित्तीय आपदा, ये सब हमने अमरीका के संविधान से लिए | अब अमरीका का संविधान भी प्रकारांतर से ब्रिटिशों का ही संविधान है, जिन्होंने वहां से स्पेनिश को भगा दिया था, अतः ब्रिटेन का ही तो उपनिवेश था अमरीका | अमरीका का वास्तविक मूल निवासी, रेड इन्डियन, आज अमरीका में नहीं है | तीसरा केनाडा वह भी ब्रिटिश उपनिवेश, चौथा आयरलैंड वह भी ब्रिटिश उपनिवेश, आस्ट्रेलिया, ब्रिटिश उपनिवेश, पश्चिम जर्मनी, ब्रिटिश उपनिवेश, हमने बाहर से लिया क्या ? हमने सब कुछ वहां से ही लिया, वह ही लिया, जो ब्रिटिश गवर्नमेंट चाहती थी | 

भारत के संविधान की दुहाई देने वाले यह बताएं कि संविधान में भारत को राष्ट्र के स्थान पर राज्य कहकर क्यों संबोधित किया गया है ? जहाँ तक मैं समझता हूँ, इसका एकमात्र कारण यह है कि आज भी भारत, ब्रिटिश कोमन वेल्थ के दायरे में ब्रिटिश उपनिवेश है, इसीलिए हम जापान, चाईना, रसिया, में तो राजदूत नियुक्त करते हैं, किन्तु ब्रिटेन में हाई कमिश्नर (उच्चायुक्त) नियुक्त करते हैं | इतना ही नहीं तो पाकिस्तान, श्रीलंका आदि जितने भी कोमन वेल्थ के सदस्य देश हैं, हर जगह उच्चायुक्त ही नियुक्त करते हैं | क्योंकि आज भी हम ब्रिटिश उपनिवेश ही हैं | 

आज तक हमारे देश में नागरिक को ही डिफाइन नहीं किया गया | नागरिक शब्द की ही डेफीनेशन हमारे संविधान में नहीं है | संविधान के पीछे विधि की शक्ति होना चाहिए, भारत के संविधान का लीगल फ़ोर्स कहाँ है | ब्रिटिश पार्लियामेंट के अनुमोदन के बाद यह संविधान हमारे देश में लागू हुआ है, यह कैसा मजाक है ? यह भारतीय लोगों की देन नहीं है, बल्कि ब्रिटेन के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 की देन है | भारतीय पार्लियामेंट में बैठे हुए लोग ब्रिटिश विधिक शक्ति के अधीन हम पर शासन करते हैं | 

अब एक मौलिक प्रश्न – अगर हम वस्तुतः स्वतंत्र हैं तो संविधान के अनुच्छेद 333 के तहत भारतीय संसद में दो अंग्रेजों को रखने की बाध्यता क्यों है ? दो अंग्रेजों को अनिवार्यतः राष्ट्रपति नामित करेगा, उसके बिना संसद नहीं चलेगी, यह संवैधानिक बाध्यता है | 

आज भी संविधान के अनुच्छेद ८ में जिन २२ भारतीय भाषाओं का उल्लेख है, उनमें अंग्रेजी कहीं नहीं है | लेकिन फिर भी हमारी पार्लियामेंट, कार्यपालिका, न्यायपालिका सब दूर अंग्रेजी का ही बोलबाला है | सब प्रोसिडिंग इंग्लिश भाषा में रखने के लिए बाध्य हैं | क्यों ? 

क्योंकि वह ब्रिटेन की राजभाषा है और आप उसके उपनिवेश हो |

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