एक असहाय कुष्ठ रोगी से – असंख्य कुष्ठ रोगियों के उद्धारक बने एक महान व्यक्ति की प्रेरक जीवन गाथा !



कठिनाइयों से घबराने वालों की कमी नहीं है, किन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जीवन में आने वाले कष्ट जिन्हें इतिहास पुरुष बना देते है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्योतिस्तंभ, प्रेरणापुंज बन जाते हैं | ऐसे विरले महापुरुषों में से एक थे स्व. सदाशिव गोविंदराव कात्रे, जिन्हें कात्रे गुरू जी के नाम से स्मरण किया जाता है | कात्रे जी ने न केवल अपने ही दुःखों को हराया, बल्कि उनका सामना करते हुए मानवता की सेवा का अनुपम इतिहास रच दिया । 

भारत के एक पिछड़े राज्य छत्तीसगढ़ के चांपा में एक विशाल कुष्ठ रोगी पुनर्वास केंद्र के संस्थापक सदाशिव गोविंदराव कात्रे खुद भी एक कुष्ठ रोगी थे, लेकिन उन्होंने अपनी पीड़ा को ही अपनी शक्ति बना लिया, और वे कुष्ठ रोग के खिलाफ युद्ध के अप्रतिम नायक बन गये। 

मध्य प्रदेश के गुना जिले का एक छोटा सा क़स्बा है आरोन, जहाँ गोविंद कात्रे और राधाबाई के घर हमारे कथा नायक सदाशिव का जन्म हुआ | तीन बहनों के बीच वे अपने माता-पिता के एकमात्र पुत्र थे। दुर्भाग्य ने बचपन से ही मुंह चिढाना शुरू कर दिया और जब वे महज 8 वर्ष के थे, उनके पिताजी का स्वर्गवास हो गया और स्वाभाविक ही उनके आगे की पूरी जिन्दगी एक भीषण संघर्ष बन गई। माध्यमिक शिक्षा के बाद ही, परिवार के उदरपोषण के लिए वे रेलवे में भर्ती हो गए | 

बचपन में ही उनका संपर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से आ गया और 1948 में जब गांधी ह्त्या का मिथ्या आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया, तब सदाशिव को भी 6 महीने कारावास का सामना करना पड़ा, उसी दौरान उनकी पत्नी बायोताई का निधन हो गया | 

लेकिन असली कष्ट तो वह होते हैं जो पराये नहीं अपने देते हैं | उनकी इस कष्टदाई परिस्थिति का लाभ लेकर उनकी एक बहन ने उनकी समस्त जमापूंजी और गहनों पर कब्जा जमा लिया जो वे जेल जाते समय, सुरक्षा की दृष्टि से उनके पास रख गए थे । लेकिन सबसे खराब अनुभव तब हुआ, जब सदाशिव को पता चला कि उन्हें कुष्ठ रोग ने घेर लिया है । जैसे ही उनके इस रोग के विषय में परिजनों और इष्टमित्रों को पता चला, एक एक कर सबने उनसे मुंह फेर लिया | धीरे-धीरे रोग का प्रभाव बढ़ता गया और उसी के साथ उनका शरीर भी विकृत होता गया । वे अपाहिज से हो गए | 

जरा कल्पना कीजिए उस व्यक्ति पर क्या गुज़री होगी जब उनकी अपनी पुत्री की ससुराल से उन्हें अपमानित कर निकाल दिया गया | पुत्री की आँखों से अविरल बहते आंसुओं से आहत, धनहीन, साधन हीन, अपनत्व विहीन सदाशिव को मजबूरन अंततः एक ईसाई मिशनरी के अस्पताल में शरण लेकर अपना उपचार प्रारंभ करवाना पड़ा । लेकिन जल्द ही उन्हें समझ में आ गया कि मिशनरियों का मुख्य उद्देश, सेवा नहीं धर्मांतरण है | जैसे ही उन्होंने ईसाई बनने से इनकार किया, मिशनरी ने उन्हें अस्पताल से बाहर धकेल दिया। 

निराश हताश सदाशिव ने तत्कालीन परमपूज्य सरसंघचालक गुरुजी से भेंट कर अपनी दुःखभरी कहानी सुनाई | और उसके साथ ही मानो उन्हें अपने जीवन का वास्तविक उद्देश्य मिल गया, उनका कायाकल्प हो गया, उनकी जिन्दगी ही बदल गई । और फिर देखते ही देखते एक साधारण कुष्ठ रोगी सदाशिव इस शैतानी बीमारी के खिलाफ संघर्ष के अप्रतिम और असाधारण योद्धा बन गए । 

एक छोटी सी कुटिया में, दो गंभीर रोगियों के साथ, सौन्थी के नजदीक स्थित घोगरा नाला कुष्ठ बस्ती में, कात्रे जी ने अपना पहला पुनर्वास केंद्र प्रारम्भ किया। पैरों में घावों के कारण कात्रे जी के लिए चलना फिरना दूभर था, इसलिए 60 वर्ष की उम्र में, उन्होंने साइकिल चलाना सीखी । हर रोज वे साईकिल चलाते हुए आसपास के गाँवों में जाते और अपने मरीजों के लिए भोजन और अन्य सामान एकत्रित करते । वे इस अवस्था में भी प्रतिदिन लगभग बीस किलोमीटर साइकिल चलाते, किन्तु इसके बाद भी उन्हें अधिकांशतः झिड़कियां और अपमान ही नसीब होता | लेकिन उनका होंसला अटूट था, उपेक्षा और अपमान की आग में तपकर वे कुंदन बनते गए | 

धीरे धीरे लोगों को उनकी तपस्या प्रभावित करने लगी | जैसे जैसे रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई, बैसे बैसे सहयोगी हाथ भी बढ़ने लगे | उन्हें दान में एक जमीन का टुकड़ा मिल गया, जिस पर अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर उन्होंने चार कमरे बना लिए । फिर तो देखते ही देखते परिसर में एक गौशाला भी स्थापित हो गई । और आज बेशक कात्रे गुरूजी हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके द्वारा स्थापित कुष्ठ निवारण संघ चांपा, 85 एकड़ में फैला हुआ है, और उसमें 300 से अधिक कुष्ठ रोगियों का उपचार हो रहा है । 

वर्तमान में, भारतीय कुष्ठ निवारण संघ चांपा में 150 जैव गैस संयंत्र हैं। केंद्रीकृत खेती के माध्यम से आवश्यकता की सभी वस्तुओं जैसे दालें, गेहूं, चावल आदि का उत्पादन स्वयं रोगियों द्वारा किया जाता है। आत्मसम्मान पूर्वक स्वावलंबन का अनुपम उदाहरण है यह तपोभूमि | कात्रे जी के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए, परिसर में उनकी एक मूर्ति भी स्थापित की गई है | 

एक असहाय व्यक्ति ने ठाना तो वह अपने जीवन में असंख्य रोगियों का सहायक बन गया | अपनों से भी अपमान झेलने वाले एक व्यक्ति ने अनगिनत परिवारों के सम्मान की रक्षा की । कात्रे गुरूजी की जीवन गाथा दर्शाती है कि चुनौतियां जीवन को दिशा दे सकती हैं ! 

सौजन्य: सेवागाथा
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