हमारा सबसे बड़ा सरदर्द पकिस्तान, क्या सचमुच इतना बड़ा खतरा है ? - बलबीर पुंज



हमें यह तथ्य समझना होगा कि परमाणु हथियारों से लैस हमारे पश्चिमी पड़ोसी का एकमात्र ध्येय भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाना है और इसकी पूर्ति के लिए वह अपने परमाणु हथियारों के प्रयोग से भी हिचकिचाने वाला नहीं है | 

गुरुवार को पाकिस्तान के एक न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश शब्दों पर जरा गौर कीजिए - सरकार को लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के संस्थापक हाफिज सईद को 'परेशान' करने से बाज आना चाहिए और उन्हें अपनी 'सामाजिक कल्याण गतिविधियों' को जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए । और वह भी तब जबकि अमरीका ने सईद द्वारा बनाई गई राजनीतिक पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग को एक विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया है | अमरीका की घोषणा के तीसरे ही दिन पाकिस्तान के लाहौर उच्च न्यायालय का उपरोक्त आदेश सामने आया है । 

लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अमीनुद्दीन खान का उक्त निर्णय स्पष्ट दर्शाता है कि लश्कर ए तैयबा के सह-संस्थापक हैं और जमात-उद-दावा के मुखिया हाफिज सईद का पाकिस्तान में कितना रसूख है । 

अब जरा सईद द्वारा अपने भाषणों में व्यक्त किये जा रहे मंसूबों पर गौर कीजिए - 

" जब तक भारत बरकरार है, शांति की बात फिजूल है । उनके टुकडे टुकडे कर दो, इतना काटो कि वे तुम्हारे सामने घुटने टेककर रहम की भीख मांगें "। 

जम्मू और कश्मीर सरकार द्वारा जब अलगाववादी कश्मीरी नेता मसरत आलम भट्ट को गिरफ्तार किया गया, उस समय का सईद का भाषण भी काबिले गौर है - "जिहाद हर इस्लामी सरकार का फर्ज है ... पाकिस्तान सरकार ने भी हमेशा कश्मीरियों की आजादी के अधिकार का पुरजोर समर्थन किया है | मैं कहता हूं कि हमारी सेना कश्मीरियों और उनके जिहाद के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए क्या करेगी ... हम कश्मीरी लोगों की मदद में सरकार के साथ हैं ... हम इसे जिहाद कहते हैं। " 

यह स्थिति तो तब है, जबकि अप्रैल 2012 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने सईद पर 2008 में हुए मुंबई आतंकी हमलों में उसकी कथित भूमिका के लिए 10 करोड़ डॉलर का इनाम घोषित किया हुआ है, जिसमें छह अमेरिकियों सहित 164 नागरिक मारे गए थे | 

संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा, यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ, रूस और ऑस्ट्रेलिया ने भी लश्कर ए तैय्यबा पर प्रतिबंध लगा दिया है। हाल ही में भारत में हुई कई आतंकी घटनाओं में कथित रूप से शामिल होने के चलते सईद को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की सर्वाधिक वांछित सूची में सूचीबद्ध किया गया है। 

जो लोग पाकिस्तान को आंतरिक अराजकता से जूझते और बाहरी दुनिया में अलग थलग पड़ते देखकर चिंतित हैं, उन पाकिस्तान परस्तों को पूर्व राजनयिक और लेखक हुसैन हक्कानी की हालिया किताब, “Reimagining Pakistan: Transforming a Dysfunctional Nuclear State” अवश्य पढ़ना चाहिए | 

हक्कानी कोई भाड़े के टट्टू नहीं है | वे संयुक्त राज्य अमेरिका में इस्लामाबाद के राजदूत रहे थे, अतः उन्होंने अपने पूर्व प्रतिष्ठान को करीब से देखा और जाना है । वे एक उच्च कोटि के विद्वान हैं और पाकिस्तान को लेकर उनकी पीड़ा उनकी ही एक अन्य पुस्तक, “Pakistan: Between Mosque and Military” (मस्जिद और सेना के बीच पाकिस्तान) में साफ़ झलकती है । 

हक्कानी ने पाकिस्तान के विगत 70 साल के इतिहास का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि केवल तीन उदाहरण ऐसे हैं जब सरकार ने मौलवियों के दबाव को दरकिनार करते हुए देश के कानून को तरजीह दी । 

पहली घटना 1953 की है, जब तत्कालीन प्रधान मंत्री ख्वाजा नजीमुद्दीन ने मौलवियों की यह मांग अस्वीकार कर दी कि गैर मुसलमान विदेश मंत्री को हटा दिया जाए | किन्तु इसके बाद इस्लामी धर्मगुरूओं ने अन्य धर्मावलम्बियों के खिलाफ सार्वजनिक भावना को भड़काया । नतीजतन दंगे भड़के | सेना और न्यायपालिका के समर्थन से प्रधान मंत्री ने लाहौर में हुए उन दंगों को दबाया। दंगाई जो कहें वह क़ानून नहीं हो सकता, बल्कि वह है, जो संविधान सम्मत हो और जिसकी व्याख्या न्यायालय करे । 

हाल ही में एक बार फिर सरकार ने यह स्पष्ट किया कि कानून वही है, जो अदालत कहे और उसी के अनुरूप सरकार ने उस मुमताज कादरी की मौत की सजा में कमी करने से इनकार कर दिया, जो गवर्नर का बॉडीगार्ड था और जिसने उनके उदार विचारों के कारण उन्हें गोली मार दी थी। 

लेकिन इन गिने चुने उज्वल प्रकरणों के बाद भी पाकिस्तान एक ऐसा देश है जहाँ केवल उसे ही सच्चा मुसलमान माना जाता है, जो गैर मुसलमानों की ह्त्या करे, और उनके पूजास्थलों को नष्ट करे । शायद यही कारण है कि हाफिज सईद जैसे लोग वहां पहली पसंद होते हैं । 

हक्कानी ने इस सड़ांध का जन्मदाता जनरल जिया को माना है, जिसने इस्लामीकरण को पाकिस्तान की विचारधारा के रूप में स्थापित किया था। जनरल ज़िया का स्पष्ट कथन था कि "अगर इस्लाम पाकिस्तान का मूल तत्व न होता तो हम अलग क्यों होते, भारत में ही रहते "। 

लेकिन इसी रास्ते ने पाकिस्तान को बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया है | जैसा कि हक्कानी कहते हैं: इस्लामीकरण ने मौलवियों को पहले सहयोगी बनाया और फिर देखते ही देखते वे रंगमंच के स्वामी बन गए । अब सेना के अधिकारी अपना कर्तव्य लिखित संविधान के अनुरूप नहीं, बल्कि इस्लाम के आधार पर सुनिश्चित करते हैं । 

हक्कानी के शब्दों में: "यह स्वीकार करते हुए कि पाकिस्तान एक ऐसा नवगठित राष्ट्र राज्य है जो अगर आगे बढ़ता, तो इतिहास रच सकता था ..." लेकिन उसके नेताओं द्वारा इसका प्रयास नहीं किया गया । पाकिस्तान में स्कूल के छात्रों को इतिहास की किताबों में सभी गैर-मुसलमानों, विशेषकर हिंदूओं और भारत के खिलाफ ही पढ़ाया जाता है | 

हक्कानी ने कहा, " पाकिस्तानी नेताओं और देश के अधिकांश बुद्धिजीवियों ने 'पाकिस्तान की विचारधारा' दो खम्बों पर टिकाने को प्राथमिकता दी – पहला इस्लाम और दूसरा भारत के प्रति शत्रुता । एक बार ऐसा होने के बाद, पाकिस्तान को अपनी भूमिका बस यही समझ में आती है कि उसे ईश्वर ने इस्लाम की खातिर शेष भारत को जीतने की ज़िम्मेदारी सोंपी है । 

इसलिए भारत के निर्दोष लोगों की हत्याओं, तोड़फोड़ और यहां तक ​​कि परमाणु हथियारों के प्रयोग को भी उस देश के लोग उचित मानते है। यही कारण है कि नवंबर 2008 को मुंबई में हुई घटनाओं के बाद हाफिज सईद भारत और शेष दुनिया के लिए एक आतंकवादी हो सकता है, लेकिन पाकिस्तान में वह एक नायक की तरह शान से सड़कों पर घूमता है। 

पाकिस्तान ने उसे आरोपी बनाकर मुक़दमा चलाने का संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय दबाव का भी पुरजोर विरोध किया है, यहाँ तक कि उसकी खातिर वह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भी पिछलग्गू बन गया और चीन के सम्मुख अपनी संप्रभुता का भी आत्मसमर्पण कर दिया है, क्योंकि वही एकमात्र ऐसा बड़ा देश है जो उसके आतंकी नेता का बचाव करता है | 

हमें इस तथ्य की अनदेखी नहीं करना चाहिए कि हमारा पश्चिमी पड़ोसी, परमाणु हथियारों से न केवल लैस हैं, बल्कि यह मानता है कि उसका एकमात्र कर्तव्य है भारत को इस्लामी राष्ट्र में बदलना और अपनी इस ऐतिहासिक भूमिका को निभाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता हैं। सचाई यह है कि अमेरिका अनिच्छा से पाकिस्तानी ब्लैकमेल के सामने झुकता है, कि कहीं ये हथियार सईद जैसे लोगों के हाथों में न पहुँच जाएँ । हक्कानी का दो टूक निष्कर्ष है कि: "पाकिस्तानियों ने स्वयं को अपना सबसे खराब दुश्मन साबित किया है।" 

लेकिन उसका यह निष्कर्ष हमारे किस मतलब का ? पाकिस्तान का यह शत्रुभाव क्या हमें कभी चैन से रहने देगा ? 

(लेखक एक राजनीतिक टीकाकार हैं और बीजेपी के पूर्व राज्यसभा सांसद हैं) 

सौजन्य: पायनियर
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