हमारी सांस्कृतिक पहचान राम और ये छद्म उदारवादी – गीता भट्ट



पायोनियर में प्रकाशित एक अंग्रेजी लेख का हिन्दी रूपान्तर 

हम दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता की सन्तान के रूप में जाने जाते हैं, अतः यह हमारा धर्म और कर्तव्य है कि हम न केवल रामायण की शिक्षाओं की रक्षा के लिए बल्कि उसके ऐतिहासिक अवशेषों को बचाए रखने हेतु कृतसंकल्प हों | 

कितनी हैरत की बात है कि एक बार फिर एक राष्ट्र के रूप में हमारी सांस्कृतिक पहचान न्यायालय की चौखट पर परीक्षा हेतु खडी दिखाई दे रही है | अब सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का मामले पर सुनवाई होने जा रही है। 

इस प्रकरण में फैसला कुछ भी हो, इस निर्विवाद तथ्य पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला कि राम नैतिकता के प्रतिमान थे, हैं और रहेंगे । फिर चाहे वह भारत के आमजन के मन में 'राम राज्य' की कल्पना को साकार करने की इच्छा हो, या फिर दैनिक जीवन में जन्म से मृत्यु तक सुख दुःख में राम को स्मरण किया जाना हो, राम हमारे देश के सामाजिक लोकाचार का पर्याय है। 

यह अवश्य है कि उक्त प्रकरण के नतीजे का देश की राजनीति पर गहरा असर पड़ सकता है । 

हमारी पुरातन सभ्यता का सार है – धर्ममार्ग का अनुशरण, एक ऐसी न्याय प्रणाली जिसमें कर्तव्य मुख्य है और नैतिकता सर्वोच्च, और वही राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण के लिए उपयोगी हैं। 

दो एकड़ जमीन का यह छोटा सा टुकड़ा आज राष्ट्रीय विमर्श का केंद्र बिंदु है । क्या राम मंदिर प्रकरण सचमुच भूमि का एक टुकड़ा प्राप्त करने का मामला भर है ? 

नहीं, यह हमारी विरासत के लिए हो रहा न्याय युद्ध है । दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता की सन्तान के रूप में, यह हमारे धर्म की रक्षा का प्रश्न है और इस नाते से हमारा पुनीत्त कर्तव्य है कि हम न केवल रामायण की शिक्षाओं का पालन करें बल्कि इसके ऐतिहासिक प्रमाण के अवशेषों की भी रक्षा करें । 

1785 में भारत भ्रमण पर आये एक ऑस्ट्रियन पादरी जोसेफ टिफेन्थलर ने अपनी पुस्तक, हिस्ट्री एंड जियोग्राफ्री ऑफ इंडिया में लिखा, कि मुगल शासकों द्वारा रोकने की भरसक कोशिश किये जाने के बाबजूद अयोध्यावासी हिन्दू इस स्थान पर आते रहे, क्योंकि उनका मानना था कि यह भगवान राम का जन्मस्थान है | 

उन्होंने लिखा है कि हिंदू समुदाय ने मस्जिद परिसर में राम चबूतरे के नाम से एक प्लेटफॉर्म का निर्माण किया | वे इसकी तीन परिक्रमा करते थे, तदुपरांत उसके सम्मुख साष्टांग दंडवत प्रणाम करते थे । 

उस स्थान पर एक मंदिर के अस्तित्व के प्रमाण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) द्वारा प्रस्तुत किये जा चुके हैं और अदालतों द्वारा बहुत पहले उन्हें स्वीकार भी किया जा चुका है। 2011 की जनगणना के अनुसार, अयोध्या शहर की कुल जनसंख्या लगभग 56,000 है, जिसमें 93 प्रतिशत हिंदू आबादी और 6.93 प्रतिशत मुसलमान है। 

यह एक ऐसा शहर है जिसमें करीब एक हजार मंदिर हैं और 20 से भी कम मस्जिद हैं (जिनमें से आठ को एएसआई द्वारा अधिग्रहित हैं, क्योंकि वहां कोई नमाज नहीं होती । 

जब शहर की इन मस्जिदों में कोई जाने वाला नहीं है, तो स्थानीय मुस्लिमों के लिए विवादित बाबरी मस्जिद का क्या महत्व है, सिवाय इसके कि यह उनके विजेता होने और हिन्दुओं को अपमानित करने का एक प्रतीक चिन्ह है । 

इस बीच छद्म उदारवादियों द्वारा, 'हिंदू' और 'हिंदुत्व' के बीच भेद पैदा करने का एक अजीब प्रयास किया गया है, जिसमें हिंदुत्व के प्रति आस्था को एक बुराई के रूप में पेश किया गया है। 

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की जन आकांक्षा को वे हिंदुत्व कहते हैं और इस इच्छा को परे धकेल कर उस स्थान पर एक अस्पताल बना देना उनकी नजर में 'हिंदू' की परिभाषा है | यह छद्म ब्रिगेड जोरशोर से एक ऐसा वातावरण बना देने में जुटी हुई है, जिसमें अयोध्या में राम मंदिर देखने की इच्छा रखने वाले भारत के बहुसंख्यक समुदाय को अपराध बोध से ग्रसित कर दिया जाए और उनके स्वाभिमान को चूर चूर कर दिया जाए । 

सेवाकार्य आम भारतीय की आस्था का अभिन्न अंग है और यही कारण है कि लोगों को दान के लिए अपने धन के एक हिस्से को अलग रखने या अच्छे कामों में लगाने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है | जैसे 'धर्मशालाओं' का निर्माण, समाज ऋण से मुक्त होने के लिए ही किया जाता था । लेकिन एक समुदाय अपनी पहचान, स्वाभिमान और विश्वास की भावना को कैसे दान कर सकता है? कोई भक्ति और आध्यात्मिक निष्ठा को किसी को कैसे विरासत में दे सकता है? 

1950 में भारत गणराज्य बनने से पहले भारत के पहले भारत के अंतिम गवर्नर जनरल रहे तथा भारत के प्रथम भारत रत्न से विभूषित स्व. सी राजगोपालाचारी ने लिखा है कि अगर कोई व्यक्ति राम और सीता, भरत, लक्ष्मण, रावण और हनुमान को कोई नहीं जानता, तो वह हिंदू धर्म को नहीं समझ सकता । 

उनका कहना था कि यह रामायण और महाभारत है, जिसने जाति, सामाजिक प्रथाओं और भाषा के इतने विविध स्वरुप होने के बाबजूद हमारे इस विशाल देश को एकता के सूत्र में बांधे रखा । महात्मा गांधी ने कहा कि देश की संस्कृति देशवासियों के हृदय और आत्मा में स्थित होती है। 



जबकि छद्म उदारवादियों ने आमजन के गौरव और राष्ट्र के शाश्वत सांस्कृतिक प्रतीक राम को अनिश्चित काल तक चलने वाले विवाद में धकेल दिया है, जो हमारे देश के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने बाने के साथ साथ पारस्परिक सौहार्द को भी बिखंडित कर रहा है । 

(लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर और इसकी शैक्षणिक परिषद की सदस्य हैं)
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