विश्व मानवता का त्राण केवल सनातन संस्कृति से ही संभव - संजय तिवारी !



केवल कानून बनाने भर से सामाजिक विकृतियाँ दूर नहीं होतीं | कानून तो सदा रहे हैं कि चोरी करने वाले को सजा मिलेगी, हत्यारों को फांसी मिलेगी, बलात्कार और ठगी के लिए भी सजा का प्रावधान है | किन्तु क्या क़ानून से या सजा के भय से अपराध रुके हैं ? क़ानून से सरकार संचालित हो सकती हैं, समाज के सञ्चालन के लिए आवश्यक है संस्कृति और संस्कार | यह काम सरकार के माध्यम से नहीं हो सकता, इसके लिए समाज को ही जागृत करना होगा |

भारत संस्कृति न्यास के संस्थापक और लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार श्री संजय तिवारी ने शिवपुरी के जलमंदिर सभागृह में भारत संस्कृति न्यास के कार्यकर्त्ता सम्मेलन और परिचर्चा को संबोधित करते हुए, उक्त विचार व्यक्त किये | 

श्री तिवारी ने कहा कि हमारा देश आस्थाओं का देश है, किन्तु दुर्भाग्य से आस्थाओ के ठगों ने हमे बहुत ठगा है | इन ठगों से बचने के लिए समाज में सांस्कृतिक चेतना होना आवश्यक है | हमारे आदर्श राम हैं, जिनके जीवन में दुःसह दुःख के अतिरिक्त कुछ नहीं रहा | किन्तु जो दुःख में भी कर्तव्य पालन से विमुख नहीं हुए | समाज को दिशा देने का काम एक दिन या कुछ वर्ष या एक जन्म का नहीं है, इसीलिए राम को एक बार फिर जन्म लेना पड़ा कृष्ण के रूप में | कृष्ण रूप में तो उन्होंने सामाजिक न्याय व्यवस्था कायम करवाने के लिए महाक्रान्ति ही रच डाली और महाभारत युद्ध में भीषण रक्तपात हुआ | किन्तु उस क्रांति का परिणाम इतना भर हुआ कि आगामी ढाई हजार साल तक देश मे कोई ख़ास गड़बड़ नही हुई | गड़बड़ तब प्रारम्भ हुई जब एक नए प्रकार की कबायली संस्कृति का हम पर आक्रमण हुआ । 

उसके बाद तो जिसने भी नया समाज बनाने की बात की, वह एक नया पंथ बनाकर चला गया । आज भी शिक्षा के नाम पर हम जो बाँट रहे है, पढ़ा रहे है, उससे आने वाली पीढ़ी के आगे अंधेरा ही अंधेरा है। अज्ञानता हमे मानव की जगह दानव बना रही है। पांच मंजिला इमारत के एक फ्लैट में पूरा जीवन गुजार देने वाले किसी युवक से क्या यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह अपनी सनातन संस्कृति के रक्षण के लिए कार्य कर पायेगा ? संस्कृति की बात करने के लिए सभी खड़े हो जाते है, किन्तु उन विद्यालय के प्राध्यापकों से पूछो वह सांस्कृतिक आयोजन के नाम पर परोस क्या रहे है ? फूहड़ नृत्य ! क्या उससे बच्चो में संस्कृति के प्रति लगाव या समझ बढ़ती है ? 

हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम की संस्कृति है, हम सभी को साथ लेकर चलने वाले लोग है,हमारा किसी से झगड़ा नही है। किन्तु जो साथ चलना ही न चाहे, क्या उसे जबरदस्ती साथ रखा जा सकता है ? एक समय था जब समाज निर्भय था, किन्तु आज हरेक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से डर लग रहा है। समाज को निर्भय और सक्षम केवल सनातन संस्कृति के तत्व ज्ञान के माध्यम से बनाया जा सकता है | इसी उद्देश्य से भारत संस्कृति न्यास के रूप में एक दीप जलाया गया है । इस दीपक से अनेक दीप जलें यही यही मेरी आशा है | हमारी संस्कृति विश्व पटल पर चमके यही हमारा लक्ष्य है। 

इस अवसर पर प्रख्यात सिने अभिनेता श्री अमित भार्गब ने कहा कि संस्कृति की रक्षा व उत्थान युवाओ के ही जिम्मे है,सभी को साथ मे लेकर भारत के नव निर्माण में अपनी भूमिका युवाओ को ही निभानी पड़ेगी।

लेखिका व कवियित्री गीतिका वेदिका ने अपने उद्वोधन का प्रारम्भ संस्कृति पर लिखी कविता के साथ करते हुए कहा कि संस्कृति ही हमारी धरोहर है,संस्कृति के लिए कार्य करते हुए हम गौरवशाली गाथा को स्मरण करते हुए पुनः सशक्त भारत बना सकते है। 

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सामाजिक कार्यकर्ता श्री हरिहर शर्मा ने कहा कि महर्षि वेदव्यास ने पाप और पूण्य की एकदम सरल परिभाषा दी है – परोपकाराय पुण्याय, पापाय पर पीडनम | दूसरों की मदद करना पूण्य है और दूसरों को पीड़ा पहुंचाना पाप है | यही भारतीय संस्कृति का मूल तत्व है | हमारी संसद के प्रवेशद्वार पर अंकित संस्कृत श्लोक भी इसी भावना को दर्शाता है | 

नत्वहम कामये राज्यं, न स्वर्गं न च पुनर्भवं, कामये दुःख तप्तानाम प्राणिनाम आर्त नाशनं | 

मैं न राज्य चाहता हूँ, न स्वर्ग या पुनर्जन्म | मेरी एकमात्र इच्छा है प्राणीमात्र के दुःख को दूर करना | हम किसी को दुखी नहीं करना चाहते, किसी को पीड़ा पहुँचाना हमारी संस्कृति नहीं है | किन्तु कोई अगर हमें पीड़ा पहुँचाने का प्रयास करे तो क्या चुप रहा जाए | हमारी संस्कृति इस कायरता का सन्देश नहीं देती | समाज में व्याप्त दुष्टता का सामना करने के लिए, समविचारी सज्जन शक्ति का संगठन आवश्यक है | भारत संस्कृति न्यास इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है | 

कार्यक्रम का सफल संचालन अभिभाषक अजय जी गौतम,अतिथि परिचय दिवाकर शर्मा,प्रस्तावना प्रदीप अवस्थी व आभार प्रदर्शन विजय जी भार्गव ने किया।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें