6 जुलाई 1956 को उज्जैन के बडनगर में जन्मे स्व. अनिल माधव दवे वाल्यकाल से ही संघ के स्वयंसेवक थे | इंदौर के गुजराती कोलेज से उन्होंने ग्र...
6 जुलाई 1956 को उज्जैन के बडनगर में जन्मे स्व. अनिल माधव दवे वाल्यकाल से ही संघ के स्वयंसेवक थे | इंदौर के गुजराती कोलेज से उन्होंने ग्रामीण विकास और प्रबंधन में विशेषज्ञता के साथ, कामर्स में मास्टर उपाधि प्राप्त की | यही वह समय था जब वे जय प्रकाश जी के समग्र क्रान्ति आन्दोलन से भी जुड़े तथा महाविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए | वे NCC की एयर विंग के श्रेष्ठ केडेट भी थे |
अनिल जी ने राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ के भोपाल विभाग प्रचारक का दायित्व निर्वाह किया | राजनीति में आने के बाद उनकी सफलता की अलग ही कहानी है | 2003 में दिग्विजय सिंह जी की पंद्रह वर्ष से जमी हुई कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंकने में अनिल जी की प्रमुख भूमिका रही | उनके मार्गदर्शन में ही चुनाव कार्यालय “जावली” का श्रीगणेश हुआ और समस्त चुनावी व्यूह रचना की गई | दिग्विजय सिंह जी का “श्रीमान बंटाधार” का बहुचर्चित नामकरण उन्ही के दिमाग की उपज था |
सिंहस्थ के दौरान “वैचारिक महाकुम्भ” का आयोजन हो या सांची में धर्म धम्म सम्मलेन, या भोपाल में आयोजित हुआ राष्ट्र सर्वोपरि लोक मंथन, जितने भी वैचारिक आयोजन हुए, उनके पीछे अनिल जी दवे की प्रेरणा व भूमिका सन्निहित थी | उनका मानना था कि जो नदी प्यास बुझाती है, वही गंगा है | नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए उन्होंने 2005 में नर्मदा समग्र संगठन बनाया था।
वे अगस्त 2009 से राज्यसभा सदस्य रहे | 5 जुलाई 2016 को नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में उन्हें पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन के स्वतंत्र प्रभार के साथ केन्द्रीय राज्य मंत्री बनाया गया |
राजनीति में रहते हुए सामाजिक सरोकारों को प्राथमिकता देने वाले अनिल जी दवे ने अनेकों पुस्तकें लिखीं, जिनमें उनकी प्रतिभा के दिग्दर्शन होते हैं| उन्होंने सृजन से विसर्जन तक, चन्द्रशेखर आजाद, सम्भल कर रहना घर में छुपे हुये गद्दारों से, शताब्दी के पांच काले पन्ने, नर्मदा समग्र, समग्र ग्राम विकास, अमरकंटर टू अमरकंटक और बियाण्ड कोपेंहगन पुस्तकें लिखी हैं।
भोपाल के पत्रकार मित्र श्री मनोज जोशी के अनुसार अनिल जी सदा चौंकाने वाले ही काम करते थे-
1) पायलट बने और फिर संघ के प्रचारक हो गए। उनके कालेज के समय के एक मित्र ने व्यक्तिगत चर्चा में कहा था कि हमने जिस अनिल को कालेज में देखा है वह प्रचारक बन जाएगा यह कोई सोच भी नहीं सकता था।
2) 2003 के विधानसभा चुनाव में जिस जीत का सेहरा उमा जी के सिर पर बाँधा गया उसके शिल्पी अनिल जी ही थे। और उस जीत का आकार चौंकाने वाला ही था।
3) राजनीति में रहते हुए जिस तरह वह नर्मदा जी की सेवा में लगे थे, नर्मदा समग्र के उनके आयोजनों की भव्यता भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन समाज के एक वर्ग के लिए चौंकाने वाले ही उदाहरण हैं । क्या कोई नेता ऐसा भी कर सकता है ????
4) उनकी मृत्यु ने भी हम सबको चौंका दिया
6) और सबसे ज्यादा यदि कोई चौंकाने वाली बात थी तो उनकी वसीयत !!! खुद की स्मृति में कुछ भी नहीं !!!!
वस्तुतः आदर्श नायक अनिल माधव दवे की बसीयत (अंतिम इच्छा) में उनके आदर्श स्वयंसेवकत्व के दिग्दर्शन होते हैं –
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