धर्मनिरपेक्षों की प्रिय संस्था एएमयू के छात्रों की काली करतूतें !



क्या आप जानते हैं कि सिमी की स्थापना कहाँ हुई थी ? किसने इसका प्रारम्भ किया था ? और इसका मूल मकसद क्या था ? 

तो जबाब भी जान लीजिये | सिमी की स्थापना अप्रैल 1977 में आज की सर्वाधिक चर्चित संस्था अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के ही छात्रों ने की थी, और उनका नेता था - मोहम्मद अहमदुल्ला सादिक | सिमी अर्थात स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट अर्थात छात्रों का इस्लामी आंदोलन | इसके घोषित सिद्धांत थे – 

केवल अल्लाह हमारा भगवान है, 

कुरान हमारा संविधान है, 

मोहम्मद हमारा नेता है, 

जिहाद हमारा रास्ता है, 

शहादत हमारी इच्छा है। 

स्वाभाविक ही इस संगठन को बार-बार प्रतिबंधित किया गया, किन्तु यह मनोवृत्ति बनी रही, उसी का प्रमाण है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का ताजा जिन्ना विवाद । यह दावा खोखला है कि इस संस्थान ने मुस्लिम युवकों का कोई कल्याण किया है, यहाँ से उन्हें मिली है केवल और केवल मजहबी कट्टरता और गैर मुसलमानों के प्रति बेइंतहा नफ़रत की तालीम और नतीजतन गुमराह नौजवानों की लम्बी श्रंखला यहाँ पनपी है | 

सिमी की कट्टरपंथी सोच के चलते 1980 के दशक के प्रारम्भ में जब फिलिस्तीन लिबरेशन संगठन के नेता यासर अराफात की भारत यात्रा हुई तब इन लोगों ने उसका यह कहकर विरोध किया कि वे पश्चिम के हाथों बिके हुए हैं । लगभग उसी समय, सिमी ने पूरी तरह से अयातुल्ला रूहौला खोमेनी के नेतृत्व में कट्टरपंथी ईरानी क्रांति का समर्थन किया। सिमी का ही चरमपंथ रूप है - जमात-ए-इस्लामी हिंद । 

शुरूआत में तो सिमी का कहर केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित रहा, किन्तु जल्द ही एएमयू के छात्रों ने इसकी जड़ें भारत के पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों तक पहुंचा दीं । सिमी ने धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की अवधारणाओं को खारिज किया, और इस्लामिक शासन (शरीयत) की स्थापना हेतु एक खलीफा को बहाल करने के लिए पवित्र (और हिंसक) युद्ध पर जोर दिया। जल्द ही, इसके बदसूरत चेहरे को नजर अंदाज करना 'धर्मनिरपेक्ष' सरकार को भी कठिन हो गया | 2001 में पहली बार और उसके बाद फिर दो बार बेमन से सिमी पर प्रतिबंध लगाया गया, किन्तु सरकार द्वारा दी गई "अपर्याप्त सामग्री" के आधार पर अगस्त 2008 में दिल्ली उच्च न्यायालय ट्रिब्यूनल द्वारा तीसरा प्रतिबंध हटा लिया गया, जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तुरंत यथावत कायम कर दिया गया । तब तक इंडियन मुजाहिदीन के साथ सिमी के संबंधों का भी सार्वजनिक खुलासा हो चुका था। 

एएमयू केवल सिमी का जन्मदाता ही नहीं है, बल्कि यहाँ की नस नस में भारत सरकार के प्रति नफ़रत का जहर भरा हुआ है | सितंबर 2000 में जब एक सीआईडी अधिकारी राजन शर्मा अपने कर्तव्य पालन हेतु एएमयू पहुंचे, तो उन्हें विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा परिसर में स्थित छात्रावास में बंधक बनाकर इतनी बेरहमी से पीटा गया, कि उनका जबड़ा टूट गया । चिकित्सा रिपोर्टों के मुताबिक, शर्मा को गंभीर यातनायें दी गई थीं । और बेशर्मी की पराकाष्ठा देखिये कि छात्रों ने माफी मांगना तो दूर, उलटा आरोप लगाया कि अधिकारी को अपने आगमन की पूर्व सूचना देनी चाहिए थी । गोया बिना सूचना दिए आने वाले पुलिस अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार उनकी नजर में जायज था | 

क्यूं चाहते थे वे पूर्व सूचना? शायद इसलिए ताकि वे अपनी राष्ट्र-विरोधी या असामाजिक गतिविधियों से सम्बंधित सामग्रियों को छिपा सकें ! 

2013 में आतंकवादी अफजल गुरू की फांसी के खिलाफ एएमयू छात्रों (कश्मीरी मूल के) ने संस्थान के परिसर में एक मूक मार्च आयोजित किया था। उन्होंने 'जस्टिस हेंगड' नामक पुस्तिकाएं वितरित की, जोकि उन्हें जेएनयू के 'ब्रेक इंडिया' गिरोह ने उपलब्ध कराई थीं । उन्होंने मौलाना आजाद पुस्तकालय में अफजल गुरू की फांसी के समय नमाज पढ़कर उसके लिए दुआ मांगी । एएमयू के तत्कालीन प्रशासन ने इस स्पष्ट राष्ट्र विरोधी कृत्य को रोकने के लिए रत्ती भर भी कोशिश नहीं की । 

2016 में उरी में हुए आतंकवादी हमले के समय एएमयू में पढ़ रहे एक कश्मीरी छात्र मुदस्सर यूसुफ ने भारतीय सैनिकों को लेकर सोशल मीडिया पर एक अपमानजनक पोस्ट प्रसारित की, जिसके बाद उसे मजबूरन एएमयू प्रशासन को निष्कासित करना पड़ा। एक अन्य कश्मीरी छात्र मनन बशीर वानी तो सीधा आतंकवादी समूह हिजबुल मुजाहिदीन में शामिल हो गया । बाद में, भूविज्ञान विभाग के संकाय प्रमुख ने 'वानी को' बंदूक छोड़ने और मुख्यधारा में लौटने की अपील की। पूरे देश में हो रही आलोचना के बाद विश्वविद्यालय को बेकफुट पर आना पड़ा और बाद में एक बयान जारी कर अराष्ट्रीय गतिविधियों के प्रति 'जीरो टोलरेंस' नीति की घोषणा की । 

अब भला सेक्यूलर किस मुंह से इस तथ्य को नकारेंगे कि "एएमयू आतंकवादी कट्टरतावाद का प्रजनन स्थल है" ? जिन्ना के प्रति समर्थन और भारत के राष्ट्रपति का विरोध इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त है | अफजल गुरू जैसे आतंकवादियों का समर्थन करना और एक हिंदू राजा की जयंती आयोजित करने से इनकार करना, जिन्होंने संस्था के लिए जमीन दान की थी, एक और उदाहरण है। 

साभार आधार - 

AMU’s dark side which secularists refuse to acknowledge readily

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