साधना - मनोबल - ईश्वरेच्छा !



पटना में एक नाव यात्रियों को लेकर गंगा के एक किनारे से दूसरे किनारे की ओर जा रही थी | हवा बंद थी, लोग पसीना पसीना हो रहे थे | डांड चलाने वाले मल्लाह के कपडे तो पसीने से तर हो गए थे | कि तभी आसमान में मटमैले बादल उमड़ने लगे | देखते देखते बड़ी जोर की हवा चलने लगी और भयंकर बबंडर आया | प्रचंड हवा का ऐसा झोंका आया कि नाव हिचकोले खाने लगी | लगा कि नाव अब पलटी कि तब पलटी |

डरी हुई एक महिला अपने भयभीत छोटे से बच्चे को छाती से चिपकाए स्तन पान कराने लगी | एक चिमटा धारी बाबा भी नाव में बैठे थे, लोग बड़ी आशा से उनकी ओर ताकने लगे कि शायद कोई आश्वासन का शब्द सुनने को मिले | किन्तु साधू तो अपने आप में मशगूल थे, दीन दुनिया से बेखबर | ऐसी विकट स्थिति में यात्रियों के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं | सबको अपनी जान के लाले पड़े हुए थे | हवा का झोंका और तीब्र हुआ और बच्चे को दूध पिलाती मां भयभीत होकर आर्तनाद कर उठी | उसके मुंह से निकला –

हे भगवान् ! मेरी जान ले लो, लेकिन मेरे बच्चे को बचाओ ! हे दीनानाथ !

और मानो चमत्कार हो गया | उस मां के मुंह से शब्द निकले और जो हवा नाव को मानो आसमान में उडाये लिए जा रही थी, वह एकदम शांत हो गई | जैसे दौड़ता हुआ चक्का एकदम थम गया हो | देखते देखते नाव किनारे पर जा पहुंची | यात्री उतरने लगे, नाव में बैठे साधू की भी तंद्रा टूटी और एक गहन सांस के साथ उनके मुख से निकला – ओ..ओ..फ्फ

सामने टीले पर एक जटाजूटधारी साधू लंगोटी लगाए पद्मासन में बैठे थे | नाव बाले संत नाव से उतरकर सीधे टीले पर बैठे हुए साधू की तरफ बढे | पास पहुंचकर बोले – आज तो तुमने अपना सब कुछ खो दिया !वह साधू अचकचा कर इनका मुंह ताकने लगे | मुंह से तो कुछ नहीं बोले किन्तु मानो आँखे पूछ रही थी – क्या हुआ ?

नाव बाले साधू ने डांटते हुए कहा – “ताकता क्या है ? तुमने सामने की घटना को देखकर अपनी इच्छाशक्ति से हवा का बेग रोक दिया | माना कि उस मां की गुहार सुनकर तुम्हे उसकी गोद में बैठे बच्चे पर तरस आ गया और तुमने अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपने मनोबल से उसकी जान तो बचा ली. लेकिन तुमको नहीं मालूम कि यह हवा उस सिरजनहार की प्रबल प्रेरणा से चली थी, जो सबकी चिंता करता है |

एक जनहीन अगम्य टापू में एक बड़ा जहाज रेत में धंस गया था | जहाज में खाने पीने की सारी बस्तुएं भी समाप्त हो चुकीं थीं और वे लोग भूख प्यास से तड़प रहे थे | उसके यात्री पूरी कोशिश कर थक चुके थे कि किसी प्रकार जहाज वापस पानी में जा सके | उन लोगों की प्राण रक्षा के लिए ही यह इतनी प्रचंड हवा चली थी, किन्तु तुमने अपने मनोबल से उसे रोककर कुछ जानें तो बचा लीं, किन्तु जहाज के हजारों यात्रियों की जान जोखिम में डाल दी |

टीले वाले साधू भयभीत होकर संत के पैर पकड़ने दौड़े, किन्तु वे अपना चिमटा घुमाते हुए आगे बढ़ गए | जाते जाते बोले – तुमने परोपकार की धुन में अज्ञानवश गलती की है | पश्चाताप करो, और साधना करो, सफल परिश्रम होगे |

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें