शुजात की सच में ह्त्या हुई है, गिरोह में इतना सन्नाटा क्यों ? - संजय तिवारी

आतंकी अशरफ बानी के घर परिवार से लगायत उसकी शवयात्रा को अपना राष्ट्रीय पर्व बनाकर दिखाने वाले चैनलों को लगता है साप सूंघ गया है। गौरी लंकेश की ह्त्या पर छाती पीट पीट कर रोने धोने वालो का भी पता नहीं है। जंतर मंतर पर मोमबत्तियां जलाने वालो का भी कोई पता नहीं चल रहा। अब न तो कही मीडिया का गला घोटने जैसी बहस दिख रही है और न हीं वैसा जूनून जैसा गौरी लंकेश के समय दिखा था। अवार्ड वापस करने वाले लगता है भारत से बाहर चले गए हैं। अशरफ बानी को शहीद बताने वाले लगता है अब पाकिस्तान की नागरिकता ही पा चुके हैं। एक वास्तविक पत्रकार मारा गया है। आतंकवादियों ने मारा है लेकिन ऐसा सन्नाटा पसर गया है जैसे रबीश कुमार , बरखा दत्त , राजदीप आदि छुट्टियां मनाने चले गए है। हो सकता है वे सब अभी भारत में हो ही नहीं। हां , इंडिया में हो सकते हैं।

राइजिंग कश्मीर जैसे प्रमुख अखबार के सम्पादक शुजात बुखारी और उनके दो अंगरक्षकों की श्रीनगर के लाल चौक के निकट प्रेस एनक्लेव में राइजिंग कश्मीर के कार्यालय के बाहर अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। उनके दो निजी सुरक्षा अधिकारियों की भी हत्या कर दी गई थी। बुखारी को उनके पैतृक गांव में कल सुपुर्द ए खाक किया गया। कश्मीर में किसी पत्रकार की हत्या की यह चौथी घटना है। तीन दशक के हिंसा के दौर में शुजात बुखारी चौथे ऐसे पत्रकार हैं जिनकी हत्या की गयी है। इससे पहले 1991 में ‘असलफा’ के संपादक मोहम्मद शबान वकील की हिजबुल मजाहिद्दीन के आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। इसके चार साल बाद 1995 में बीबीसी संवाददाता युसूफ जमील बम धमाके में बाल बाल बच गए थे। यह विस्फोट उनके कार्यालय में हुआ था। इस घटना में एएनआई के कैमरामैन मुश्ताक अली मारे गए थे। नाफा के संपादक परवेज मोहम्मद सुल्तान की 2003 में हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों ने प्रेस एनक्लेव स्थित कार्यालय में गोली मार कर हत्या कर दी थी।

भारी बारिश के बीच शुजात का जनाजा उठा। जनाजे में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया, जिसमें उनके दोस्त और प्रशंसक भी शामिल थे। जिस समय वरिष्ठ एवं अनुभवी पत्रकार को सुपुर्द ए खाक करने की तैयारी चल रही थी, उस समय पाठकों के हाथ में राइजिंग कश्मीर का ताजा अंक था। अखबार के पहले पूरे पन्ने पर काले रंग की पृष्ठभूमि में प्रधान संपादक शुजात की श्याम श्वेत तस्वीर छपी थी। इस पन्ने पर एक संदेश लिखा है: जिन लोगों ने उन्हे हमसे छीन लिया है, उन कायरों से नहीं डरेंगे। जिन लोगों ने शुजात के अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया और परिजनों को सांत्वना देने उनके गांव गए, उनमें विपक्ष के नेता उमर अब्दुल्ला तथा भाजपा और पीडीपी के मंत्री शामिल हैं। इस बीच लेफ्टिनेंट जनरल ए के भट्ट (15 वीं कोर के कमांडर) ने कहा कि उनका आकलन है कि बुखारी को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर गोली मारी गई है। 

उन्होंने मीडिया से कहा कि मेरा आकलन है कि आईएसआई के इशारे पर इस काम को अंजाम दिया गया है। बाकी जांच में पता चल जायेगा। पुलिस ने एक वीडियो स्क्रीन जारी की है जिससे यह पता चलता है कि एक दाढी वाला व्यक्ति संपादक के वाहन के आंतरिक हिस्से का मुआयना कर रहा है। इस वीडियो को वहां एक राहगीर ने बनाया था। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि बुखारी की हत्या के बावजूद दैनिक का प्रकाशन उनके प्रति सबसे उचित श्रद्धांजलि है। उमर ने अखबार के पहले पन्ने की तस्वीर को साझा करते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘काम जारी रहना चाहिए, शुजात भी यही चाहते होंगे। यह आज का राइजिंग कश्मीर का अंक है। इस बेहद दुख की घड़ी में भी शुजात के सहयोगियों ने अखबार निकाला जो उनके पेशेवराना अंदाज का साक्षी है और दिवंगत बॉस को श्रद्धांजलि देने का सबसे सही तरीका है।’ इस जघन्य घटना पर शोक प्रकट करते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के लिए समय आ गया है कि वह ‘‘ जिद्दी रवैये को छोड़ें तथा देश हित में तत्काल कश्मीर नीति की समीक्षा करें।

द हिंदू समूह के अध्यक्ष एन राम ने कहा कि दिवंगत पत्रकार सरकार के आदमी नहीं थे, वह प्रतिष्ठान के भी आदमी नहीं थे और न ही उनकी चरमपंथी ताकतों के प्रति कोई सहानुभूति थी। शुजात ने 1997 से 2012 तक हिंदू के लिए काम किया था। राम ने एक टीवी चैनल के साथ साक्षात्कार में कहा, ‘उनका मानना था, मुझे लगता है, कि कश्मीर में चाहे जैसी भी समस्या हो वह उसके निदान की आवाज थे। यह हत्या चौंकाने वाली है क्योंकि ऐसा माना जाता था कि कश्मीर में पत्रकारों की हत्या नहीं होगी। दरअसल कश्मीर ही नहीं ,जहा भी भारत और भारतीयता पर हमले होते हैं वह समूचा गैंग सन्नाटे में चला जाता है लेकिन ज्योही उअन्के इंडिया पर आंच आती है ,वे आधी रात को सुप्रीम कोर्ट तक को जगा देते हैं। उनके इंडिया में हमारे भारत के लिए कोई जगह ही नहीं है।

संजय तिवारी
संस्थापक - भारत संस्कृति न्यास (नयी दिल्ली)
वरिष्ठ पत्रकार 

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