पासपोर्ट प्रकरण हुआ गंभीर, प्रत्यक्षदर्शी के अपहरण का हुआ प्रयास !



जिस प्रत्यक्षदर्शी कुलदीप सिंह ने बहुचर्चित पासपोर्ट प्रकरण में तन्वी सेठ के झूठ की कलई खोली थी, कल उसका अपहरण किया गया | उसे अपहरण कर नेपाल ले जाया जा रहा था, किन्तु रास्ते में अवसर पाकर वह अपहरणकर्ताओं के चंगुल से बचकर पुलिस चौकी पहुँचने में सफल रहा | 

उसकी आपबीती उसके ही शब्दों में इस प्रकार है – 

मैं अपना आधार कार्ड प्रिंट करवाकर जब बेंक से आया एक लेटर लेने जा रहा था, तभी एक ग्रे कलर की स्कोर्पियो ने मेरे आगे आकर रास्ता रोका | गाडी से उतरे एक व्यक्ति ने आकर मुझे गाली दी और मेरे कमर में पिस्तौल लगाकर स्कोर्पियो में बैठने को कहा | आसपास सुनसान था, अतः मेरे पास उसकी बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था | मैंने अपनी बाईक साईड में लगाईं और उसके साथ बैठ गया | 

वे मेरे लिए पूर्णतः अपरिचित तीन लोग थे | मुझे दो लोगों ने अपने बीच में बिठाया और रुमाल पर कुछ लगाकर मेरे चेहरे पर लगाया, जिसके कारण मैं बेहोश हो गया | मुझे एक डेढ़ घंटे बाद होश तो आ गया, किन्तु मुझे बहुत कमजोरी महसूस हो रही थी | ये लोग पांच छः घंटे तक चलते रहे | उसके बाद उनके पास किसी का फोन आया, तो उन लोगों ने कहा कि हम इसको लेकर नेपाल आ रहे हैं | 

लखीमपुर खीरी के आगे एक ढाबे के पास उन लोगों ने गाडी रोकी और ड्राइवर तथा मेरे बाईं ओर बैठा व्यक्ति खाना पैक कराने नीचे उतरे | मेरे दाहिनी ओर बैठा व्यक्ति भी गाडी को लॉक कर पेशाब करने चला गया | उसे लग रहा था कि मैं नशे में हूँ, कुछ कर नहीं पाऊंगा | किन्तु मौक़ा देखकर मैंने गेट में लात मारी तो लॉक खुल गया और मैं वहां खड़े ट्रकों की ओट में लगभग सौ मीटर दौड़कर सड़क पर जाती एक बस में चढ़ गया | दस पंद्रह मिनट बाद ही संसारपुर क़स्बा आया, जहाँ की पुलिस चौकी में जाकर मैंने सारी घटना बताई | उसके बाद कड़ी सुरक्षा में उन्हें वापस लखनऊ लाया गया | 

स्पष्ट ही यह मामला उतना सामान्य नहीं है, जितना समझा जा रहा है | पासपोर्ट अधिकारी विकास मिश्रा ने भी अपने और अपने परिवार को सुरक्षा देने की मांग की है | इतना ही नहीं तो जिस अधिकारी ने जल्दबाजी में पासपोर्ट इश्यू किया, वह भी अपनी सलामती के लिए पुलिस से गुहार लगा रहा है | सब लोग घबराये हुए हैं |

सुषमा जी अपना दंभ त्यागें और विनम्रता से अपनी भूल स्वीकारें ! अन्यथा तो सब कुछ ईश्वराधीन है ही | अगर बुरा समय आ ही गया है तो तुलसी बब्बा कह ही गए हैं – 

प्रभु जाकर दारुण दुःख देही, ताकर मति पहले हर लेही ! 

हरिहर उवाच - 

इटली, फ़्रांस, लक्जमबर्ग और बेल्जियम, 

घूमकर लौटी, कहाँ वे कहाँ हम ! 

जिस स्टेशन पर मोहनदास बने महात्मा, 

उस पर भी घूमी यह पुण्यात्मा ! 

आते ही पहला काम निबटाया, 

फेसबुक पेज से रेटिंग ऑप्शन हटाया ! 

चिल्लाते रहो, गिराते रहो रेटिंग, 

तुम दो कौड़ी के पिद्दी, हमारी मुट्ठी में है किंग ! 

हे अहंकार की मूर्तिमंत स्वरूप, 

इसके कारण मिट गए बड़े बड़े भूप ! 

समय रहते समझ जाओ, 

वर्ना भाड़ में >>>>>>> भुन्जे चने खाओ
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