भारत के हिन्दू सम्राट प्रथ्वीराज चौहान के अंतिम अवशेष कहाँ हैं ? भारत में या अफगानिस्तान में ?



अफगानिस्तान में गजनी से गारबेज जाने वाली सड़क पर स्थित है एक छोटा सा गाँव है देयक | यहाँ ही स्थित है भारत पर आक्रमण करने वाले गजनी के सुलतान मोहम्मद गौरी का मकबरा | इस मकबरे के बाहर ही एक छोटी सी कबर और बनी हुई है, जिस पर बोर्ड लगा हुआ है – यहाँ दफ़न है दिल्ली का काफिर राजा | 

यह काफिर राजा और कोई नहीं, बल्कि हमारे महानायक प्रथ्वीराज चौहान ही हैं | 

जैसा कि अधिकाँश भारतीय जानते हैं कि 17 बार मोहम्मद गौरी को पराजित कर और माफी देकर छोड़ देने वाले प्रथ्वीराज को अठारहवी वार गौरी के हाथों पराजित होना पड़ा और गौरी उन्हें गिरफ्तार कर गजनी ले गया, जहाँ क्रूरता पूर्वक उनकी आँखें फोड़ दी गईं और कैदखाने में मरने के लिए डाल दिया गया | 

प्रथ्वीराज और उनके कविमित्र चंद वरदाई ने बदला लेने की योजना बनाई और कवि ने मोहम्मद गौरी को बताया कि प्रथ्वीराज शब्दभेदी वाण चला सकते हैं | गौरी को भरोसा नहीं हुआ और उसने उनकी इस क्षमता की परीक्षा लेने की ठानी | प्रथ्वीराज के हाथों में धनुष वाण थमा दिए गए और एक घंटे पर प्रहार कर ध्वनी उत्पन्न की गई | प्रथ्वीराज के वाण ने उसे तुरंत ही बींध दिया | सुल्तान के मुंह से बेशाख्ता निकल पडा “वाह” | 

और यही उसके जीवन के अंतिम शब्द बन गए | कवि चंद वरदाई ने भी बिना देर किये अपने जीवन की अंतिम काव्य पंक्तियाँ पढीं – 

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, 

ता ऊपर सुलतान है, मत चुके चौहान ! 

चौहान नहीं चूके, सुलतान की “वाह” और कवि के मार्गदर्शन से उनका अगला तीर सीधे गौरी की छाती को बींध गया और गजनी का वह लुटेरा सुलतान जहन्नुम रसीद हुआ | 

चंद वरदाई और प्रथ्वीराज ने भी एक दूसरे को कटार मारकर अपना जीवन समाप्त कर लिया ! 

आजाद भारत के सेक्यूलर प्रधानमंत्री चच्चा नेहरू के इशारे पर बामपंथी इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास के इस शौर्य पृष्ठ को सिरे से नकार दिया और लिखा कि मोहम्मद गौरी की मृत्यु कुछ वर्षों बाद बीमारी से हुई | लेकिन गजनी वाले नहीं भूले और उन्होंने अपने सुलतान मोहम्मद गौरी के मकबरे के बाहर ही प्रथ्वीराज और उनके कवि मित्र चंदवरदाई को भी दफना दिया | इतना ही नहीं तो यह नियम भी बना दिया कि जो भी कोई जियारत करने या सालाना उर्स के मौके पर गौरी की कबर पर जाता है, तो वह पहले प्रथ्वीराज की कबर पर चप्पल मारता है | वे 900 साल से इस परंपरा को जारी रखे हुए हैं और हमारे प्रधान मंत्री राजीव गांधी और मनमोहन सिंह अफगानिस्तान गए तो उन्हें बाबर की कबर पर जाना तो जरूरी लगा, लेकिन प्रथ्वीराज के इस अपमान पर मौन साधे रहे | 

पहली बार यह तथ्य तब सामने आया जब भारतीय हवाईजहाज को आतंकी अपहरण कर कंधार ले गए और तत्कालीन विदेशमंत्री जसबंत सिंह यात्रियों को छुडाने वहां गए | उस समय यह घटना अखबारों की सुर्खियाँ बनी, किन्तु राजनेताओं में कोई चेतना जागृत नहीं हुई | 

हद्द तो देखिये कि चेतना किसमें जागृत हुई ? एक तथाकथित अपराधी में, कुख्यात डकैत से समाजवादी सांसद बनी फूलन देवी की ह्त्या के आरोप में सजा काट रहे शेर सिंह राणा में | 17 मई 1976 को उत्तराखंड के रुड़की में जन्मे शेरसिंह के पिता ठाकुर सुरेन्द्र सिंह राणा रुड़की के सबसे बड़े जमीदारो में एक थे। बेहद धार्मिक विचारों की महिला मां सत्यवती ने बचपन से ही शेरसिह को क्षत्रिय वीरो की कहानियां सुनाई थीं । 1981 में उत्तर प्रदेश के बेहमई गांव में फूलन ने अपने साथियों के साथ मिलकर 22 ठाकुरो को मार दिया और एक दुधमुही बच्ची को उसकी माँ की गोद से जबरन छीनकर जमीन पर पटक दिया,जिससे वो जीवन भर के लिए अपाहिज हो गई। राजनेताओं की मोटी चमड़ी उस समय भी सामने आई थी, जब यूपी के तत्कालीन सीएम वीपी सिंह ने ठाकुर होते हुए भी कोई कार्यवाही नही की। इतना ही नहीं तो जब पुलिस मुठभेड़ों में फूलन का ज्यादातर गैंग खत्म हो गया और वो जंगल जंगल जान बचाने को भटकरही थी, तब वोटबैंक की खातिर एक दूसरे ठाकुर मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री ठाकुर अर्जुन सिंह ने उसका सरेंडर करवा कर जान बचा दी ! इतने पर ही बस नहीं हुआ और यूपी के तत्कालीन मुख्यमन्त्री मुलायम सिंह यादव ने तो फूलन पर चल रहे सभी मुकदमे ही वापस ले लिए और उसे समाजवादी पार्टी में शामिल कर सम्मानित सांसद बना दिया । 

इससे आहत शेर सिंह राणा ने 25 जुलाई 2001 को दिल्ली के लुटियंस ज़ोन में तत्कालीन सांसद फूलन देवी की दिन दहाड़े हत्या कर दी । इसके बाद शेर सिंह राणा और उनके साथियोँ को दिल्लीकी तिहाड़ जेल भेज दिया गया और वहां ही समाचार पत्रों के माध्यम से उसकी जानकारी में हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के अपमान की यह गाथा मालूम हुई | 

उसे लगा कि अगर पृथ्वीराज चौहान की समाधी को इस प्रकार जूते - चप्पल मारकर लगातार अपमानित किया जा रहा है, तो यह तो समूचे भारत, भारतवासियों और भारत के गोरवशाली इतिहास को बेइज्जत करना है और इसका प्रतिकार होना चाहिए | बहुत सोच विचार के बाद उसने इस कार्य के लिए जेल से भागने का फैसला कर लिया | 17 फरवरी 2004 को शेर सिंह राणा जेल से रफुचक्कर हो गये | जेल से भागने के बाद शेर सिंह राणा अपने भाई के सहयोग से पहले रांची पहुँचे और वहां से एक फर्जी पासपोर्ट के सहारे बंगला देश | दिसम्बर 2004 में शेर सिंह राणा दुबई से काबुल , काबुल से कंधार और कंधार से गजनी पहुंचे| यह कोई साधारण बात नहीं थी | तालिबानियों के उस गढ़ में मालूम पड़ जाने पर कोई हिन्दू जिन्दा नहीं रह सकता था | किन्तु दृढ निश्चयी शेरसिंह राणा एक माह तक वहां रूककर पृथ्वीराज चौहान की समाधी को खोजते रहे | और अंततः वह वहां पहुँच ही गए | 

शेर सिंह राणा ने देयक गाँव जाकर पृथ्वीराज चौहान की समाधी का अपमान अपनी आँखों से देखा और अपने कैमरे में कैद भी किया | उस वर्फ से ढके इलाके में दो महीने के अथक प्रयास के बाद शेर सिंह राणा का मकसद पूरा हुआ और वे समाधी से प्रथ्वीराज और चंदवरदाई के अवशेष खोदकर हिन्दुतान ले ही आये | अपने इस कृतित्व की उन्होंने विडियो फिल्म भी बनाई | उसके बाद क्षत्रिय सभा ने बेवर कानपूर हाई वे के बीच, जिला - गाज़ियाबाद (उत्तरप्रदेश) के पिलखुआ नामक कस्बे में एक महासम्मेलन आयोजित किया और शेर सिंह राणा की पूज्य माता सत्यवती राणा के कर कमलो द्वारा वीर शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान की समाधी बनवाई और वहां वे अवशेष स्थापित किये | अपना मकसद पूरा हो जाने के बाद 17 मई 2006 को राणा ने एक बार फिर कोलकाता के एक गेस्ट हाउस में आत्मसमर्पण कर दिया, किन्तु सेक्यूलर सरकार ने उसे गिरफ्तारी दर्शाया | शेर सिंह राणा को जब कोर्ट में पेश किया तो कोर्ट शेर सिंह राणा जिन्दावाद के नारों से गूंज गया | कोर्ट में उपस्थित भारी जनसमूह राणा की एक झलक पाने को बेकरार था | 

लेकिन सरकार को क्या कहें, जो न तो यह मान रही कि प्रथ्वीराज के अवशेष अफगानिस्तान में है, न यह कि वे भारत में वापस आ गए | दूसरे शब्दों में कहें तो सरकारों को इससे कोई लेना देना ही नहीं है | आखिर प्रथ्वीराज के नाम पर वोट कितने मिलेंगे ?

मुलाहिजा फरमाईये कि सिरसा निवासी एक एडवोकेट पवन पारीक ने पीएमओ से 05 नवंबर 2014 को आरटीआई के जरिये पृथ्वीराज चौहान के अंतिम अवशेषों के संबंध में जानकारी मांगी, किन्तु भारत सरकार ने इस मामले में कोई जानकारी नहीं होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया । इसके बाद वकील पारीक ने 19 जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसी विषय में पत्र लिखा । पत्र लिखने के महज दस दिनों के अंदर ही पीएमओ से जबाब आया कि इस दिशा में आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं । और किया यह गया कि सूचना के अधिकार के तहत जानकारी देने के लिए काबुल स्थित भारतीय दूतावास को उनका लेटर फॉरवर्ड कर दिया गया । किन्तु आज दिनांक तक हुआ हवाया कुछ नहीं | 

दरअसल यह उनकी प्राथमिकता भी नहीं है | भारतीय विदेश मंत्रालय की प्राथमिकता तो धर्मान्तरित मुस्लिम महिला को हिन्दू नाम से पासपोर्ट दिलवाना है, राष्ट्रीय गौरव और राष्ट्रीय महानायक तो बेकार की बातें हैं | गढ़े मुर्दे क्यूं उखाड़े जाएँ | प्रथ्वीराज चौहान की अस्थियाँ भारत में हों या अफगानिस्तान में, रहेंगी तो अस्थियाँ ही | उनकी समाधी पर जूते बरसें या फूल क्या अंतर पड़ता है ? 

शेरसिंह राणा द्वारा निर्मित विडियो - 

Sher Singh Rana Afganistan Video


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