न हाथी बदला लेना भूलता है और ना ही भारतीय - अमर शहीद उधमसिंह का पूण्यस्मरण


भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के प्रमुख क्रान्तिकारी सरदार उधम सिंह का नाम अमर है। आम धारणा है कि उन्होने जालियाँवाला बाग हत्याकांड के उत्तरदायी जनरल डायर को लन्दन में जाकर गोली मारी और निर्दोष लोगों की हत्या का बदला लिया, लेकिन सचाई यह है कि उन्होंने पंजाब प्रांत के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओ डायर को मारा था । 

जीवन वृत्त

26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में अनन्य राष्ट्रभक्त शेर सिंह का जन्म हुआ था | जी हाँ बचपन में शेर सिंह ही नाम था अमर शहीद ऊधम सिंह का | जब इनकी आयु महज दो वर्ष थी तब सन 1901 में इनकी माता जी और आठ वर्ष की आयु में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई मुक्तासिंह के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। अनाथालय में इन दोनों को उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। लेकिन दुर्भाग्य ने अभी भी पीछा नहीं छोड़ा और 1917 में बड़े भाई भी भगवान् को प्यारे हो गए | इसके साथ ही उधमसिंह पूरी तरह अनाथ हो गए, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए | 

इसी दौरान अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियाँवाला बाग़ में 13 अप्रेल 1919 को जनरल डायर ने निहत्थे, शांत लोगों की जनसभा में गोलियां चलाकर 379 लोगों को मार डाला और हजारों को घायल कर दिया | उधमसिंह जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। इस जघन्य हत्याकांड ने इस अनाथ तरुण उधमसिंह का ह्रदय विदीर्ण कर दिया | एक तरफ भाई की मौत का दुःख तो दूसरी तरफ अपने समाज बंधुओं पर यह जघन्य अत्याचार | राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग़ की शहीदी मिट्टी को हाथ में लेकर शपथ ली कि उनके जीवन का अब एक ही उद्देश्य है, बदला, इस जघन्य हत्याकांड का बदला | उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। किन्तु जलियाँवाला बाग़ काण्ड के मुख्य अपराधी रैजीनोल्ड डायर को प्रकृति ने ही स्वयं सजा दे दी और वह १९२८ में कई तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर अपनी मौत आप मर गया | इन्हे अपनी प्रतिज्ञा पूरी न कर पाने का बडा दुख हुआ। फिर उधमसिंह ने पंजाब प्रांत के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओ डायर को मार डालना तय किया । 

अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा।

जनरल डायर की गोली मारकर हत्या

उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका छः साल बाद 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को लंदन के काक्सटन हाल में रॉयल सेन्ट्रल एशियन सोसायटी ने जलियाँवाला बाग़ काण्ड को महिमामंडित करने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया | माइकल ओ डायर भी कार्यक्रम के मुख्य वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से पूर्व ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।

जैसे ही सभा प्रारम्भ हुई उधमसिंह ने माईकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं | दो गोलियां डायर के सीने में जा धंसी और उसकी मौके पर ही मौत हो गई | उधमसिंह ने भागने की कोई कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दी |  उधमसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। उन पर मुकदमा चला। अदालत में जब उनसे पूछा गया कि वह डायर के अन्य साथियों को भी मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया। उधम सिंह ने जवाब दिया कि वहां पर कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।

4 जून, 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। इस तरह यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया। 1974 में ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए.

जनरल डायर की मृत्यु और जलियांवाला बागकाण्ड का बदला लेने से भारत की आम जनता अत्यंत खुश हुई । नौजवानों ने जगह जगह सम्मेलनों में उधमसिंह जिन्दाबाद,उधमसिंह अमर रहे के नारे लगाए | किन्तु गांधी जी व नेहरु जी की प्रतिक्रियाएं इसके विपरीत थी। गांधी जी ने अपने समाचार पत्र हरिजन में लिखा था कि मै उधमसिंह के इस कार्य से अत्यन्त दुखी हूं। माइकल ओ डायर से हमारे मतभेद हो सकते है,किन्तु क्या हमें उनकी हत्या कर देना चाहिए? ये हत्या एक पागलपन में किया गया कार्य है और अपराधी पर बहादुरी के अहं का नशा सवार है। मै इस काण्ड पर खेद व्यक्त करता हूं। 

पं. नेहरु ने कहा कि मुझे हत्या का गहरा दुख है और मै इसे शर्मनाक कृत्य मानता हूं। और मजा देखिये कि इन्ही नेहरु ने १९६२ में पंजाब में भाषण देते समय कहा था कि मै उधम सिंह को नमन करता हूं। उधमसिंह ने फांसी का फन्दा स्वीकार करके हमें आजादी प्रदान की है।

केवल सुभाषचन्द्र बोस ने उधमसिंह के इस काण्ड की जमकर तारीफ की थी। उन्होने इस कृत्य को जायज ठहराया और कहा कि इस समय द्वितीय विश्वयुध्द में संलग्र ब्रिटेन की अस्थिरता का हमे फायदा उठाना चाहिए। युध्द के पश्चात अंग्रेज हमे आजादी दे देंगे। जैसा कि गांधी जी व नेहरु सोचते है,गलत है। ऐसा सोचकर हमे चुपचाप नहीं बैठना चाहिए। उन्होने कलकत्ता में आयोजित सम्मेलन में अपने भाषण में कहा कि उधमसिंह ने आजादी का बिगुल बजा दिया है।

विदेशों में प्रतिक्रिया- उधमसिंह द्वारा डायर की हत्या की योरोप में अच्छी प्रतिक्रिया हुई। खासकर जर्मनी ने खूब तारीफ की। जर्मनी में बर्लिन से निकलने वाले समाचार पत्रों में इस कृत्य को भारत की स्वतंत्रता की घोषणा कहा। जर्मनी रेडियो ने कहा कि नरसंहार से उत्पीडित व्यक्तियों की आवाज आज गोली की आवाज के रुप में आई है। जिस प्रकार हाथी बदला लेना नहीं भूलते ठीक इसी प्रकार भारतीय लोग भी बदला लेना नहीं भूलते हैं और बीस वर्ष बाद बदला लेकर एक भारतीय ने ये सिध्द कर दिया है। लन्दन टाईम्स ने उधमसिंह को स्वतंत्रता का लडाकू कहा तो दूसरे समाचार पत्र ने उसे निडर व निर्भीक कहा।

जय हिंद !!

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