कारगिल विजय दिवस और हमारी चुनाव प्रणाली !



कारगिल विजय दिवस निश्चय ही हमारे वीर जवानों को वंदन करने का एक दिन है, किन्तु साथ ही विचार करने का अवसर भी | पाकिस्तान के साथ नातो यह हमारा पहला युद्ध था और निश्चित तौर पर इसे अंतिम भी नहीं कहा जा सकता | नवाज शरीफ के साथ मोदी सरकार ने शांति की इकतरफा पहल की भी थी, किन्तु वह सिरे नहीं चढी | भारत की ओर से शान्ति प्रयास भी पहली बार नहीं हुए | पूर्ववर्ती लगभग हर सरकार ने इसके प्रयत्न जारी रखे थे | 

प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1 9 फरवरी, 1 999 को दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू की और पोखरण परिदृश्य के बाद पहली बार उम्मीद जगी थी कि भारत-पाकिस्तान संबंध सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ेंगे। लेकिन पाकिस्तान तो 'पाकिस्तान' ठहरा, उसने उन उम्मीदों को कुछ ही महीनों में बिखेर दिया । मई के दूसरे सप्ताह में, लद्दाख के बटालिक क्षेत्र में एक स्थानीय चरवाहे ने कारगिल सेक्टर में गश्त का नेतृत्व कर रहे कैप्टन सौरभ कालिया को सूचित किया कि क्षेत्र में पाकिस्तान बलों द्वारा घुसपैठ की गई है । 

भारत ने तुरंत ऑपरेशन विजय लॉन्च किया और दो महीने के भीतर, सफलतापूर्वक जुलाई के अंत तक क्षेत्र को पुनः प्राप्त कर लिया। इलाके मुश्किल था, दुश्मन ऊंचाइयों से गोलीबारी कर रहा था, वहां एक जबरदस्त अंतरराष्ट्रीय दबाव था क्योंकि दोनों ही पड़ोसी देश परमाणु शक्ति संपन्न थे, फिर भी भारतीय सशस्त्र बलों ने बहादुरी से स्थिति को संभाला । वायुसेना के साथ थल सेना ने अप्रतिम युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया और अंततः नियंत्रण रेखा (एलओसी) में पाकिस्तानी सेना को वापिस जाने को मजबूर कर दिया। भारतीय वायुसेना ने अपने इस अभियान को “सफ़ेद सागर” नाम दिया था | यह पहला अवसर था जब 32 हजार फूट की ऊंचाई पर वायु सेना की शक्ति का दिग्दर्शन देश को हुआ | अंततः 26 जुलाई 1 999 को भारत ने आधिकारिक तौर पर जीत की घोषणा की और तब से उस तारीख को 'कारगिल विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है। 

पाकिस्तान ने प्रारम्भ में तो आदत के मुताबिक़ इस प्रकार की किसी घुसपैठ को नकारा, किन्तु बाद में नवाज शरीफ सरकार द्वारा जारी श्वेत पत्र में स्वीकार किया गया कि परवेज मुशर्रफ शासन काल में हुए, इस युद्ध में पकिस्तान के 453 सैनिक मारे गए थे | जबकि सचाई यह है कि इस युद्ध में 3,000 से अधिक मुजाहिदीन, अधिकारी और सैनिक मारे गए थे। 

भारतीय पक्ष की ओर से 527 सैनिकों ने वीरगति पाई और 1,363 घायल हुए । बाद में भारतीय सेना द्वारा टोलोलिंग हिल की तलहटी में द्रास में कारगिल युद्ध स्मारक निर्मित किया गया । 

ऑपरेशन विजय की सफलता के बाद, के सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में 2 9 जुलाई, 1 999 को समिति का गठन किया गया | समिति में लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) के.के. हजारी, बीजी वर्गीस और सतीश चंद्र सदस्य थे, जबकि सचिव राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (एनएससीएस) भी एक विनिर्दिष्ट सदस्य व सचिव के रूप में थे। इस समिति ने इन विन्दुओं पर विचार किया – 

कारगिल में खुफिया तंत्र की विफलता के कारण क्या थे? 

पाकिस्तानी दुस्साहस की भारी कीमत हमें क्यों चुकानी पडी ? 

एलओसी को और अधिक सुरक्षित कैसे बनाया जा सकता है ? 

जम्मू-कश्मीर में लद्दाख के कारगिल जिले में पाकिस्तानी आक्रामकता की ओर अग्रसर घटनाओं की समीक्षा करना तथा ऐसे सशस्त्र घुसपैठों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए आवश्यक मानकों की सिफारिश करना । 

समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में प्राथमिक स्रोतों के आधार पर घुसपैठ के संबंध में कई स्पष्ट अवलोकन और सिफारिशें की गईं – 

खुफिया बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करना, 

पर्याप्त बजट के साथ रक्षा आधुनिकीकरण में तेजी लाना, 

नागरिक-सैन्य संपर्क तंत्र स्थापित करना 

युद्ध के दौरान रिपोर्टिंग के बारे में सैन्य अधिकारियों और मीडिया व्यक्तियों दोनों को संवेदनशील बनाना 

यह निश्चित रूप से हमारे बहादुर सैनिकों को सलाम करने का एक दिन है। साथ ही, यह कुछ कठिन प्रश्नों का समाधान करने का दिन भी है, जैसे कि हमें पाकिस्तान द्वारा इस गलत-साहसवाद की भारी कीमत क्यों देनी पड़ी, और मुझे । कारगिल में के आक्रामकता पर गर्म सार्वजनिक चर्चा की पृष्ठभूमि के खिलाफ गठित किया गया था। समिति के संदर्भ की शर्तें थीं: 

साथ ही यह महत्वपूर्ण टिप्पणी भी थी कि, "राजनीतिक, नौकरशाही, सैन्य और खुफिया प्रतिष्ठानों की दिलचस्पी स्पष्ट रूप से यथास्थिति में दिखाई देती है। शांति के समय राष्ट्रीय सुरक्षा प्रबंधन नेपथ्य में चला जाता है और यह स्थिति, युद्ध और प्रॉक्सी युद्ध के समय में बहुत नाजुक मानी जाती है। समिति दृढ़ता से महसूस करती है कि कारगिल का अनुभव, निरंतर प्रॉक्सी युद्ध और मौजूदा परमाणु सुरक्षा वातावरण को देखते हुए, राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली की सम्पूर्ण समीक्षा नितांत आवश्यक है | " और संभवत यही इस पूरी रिपोर्ट का सारतत्व भी था । कारगिल विजय दिवस का जश्न मनाते समय यह विचार करने की आवश्यकता है कि हम इस स्थिति को बदलने की दिशा में कितना आगे बढ़े हैं। 

समिति के उपरोक्त निष्कर्ष में राजनीति को लेकर जो टिप्पणी की गई है, उस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है | हमारे देश में शांतिकाल तो कभी रहता ही नहीं है | शत्रु देश से युद्ध की तो सम्भावना भर ही होती है, राजनैतिक युद्ध तो हर समय चलता रहता है | शायद ही कोई वर्ष ऐसा जाता हो, जब किसी राज्य में चुनाव या उपचुनाव न हों | अतः हम बाहरी शत्रु से मिलकर निबटने के स्थान पर लगातार कुर्सी युद्ध में लगे रहते हैं | हमें पाकिस्तान से सबक लेना चाहिए, जिन्होंने केंद्र और राज्य दोनों के चुनाव एक साथ कराकर एक मिसाल कायम की है | 

निरंतर चल रहे छद्म युद्ध और मौजूदा वातावरण को देखते हुए हर पल सजग और सतर्क रहने की आवश्यकता है | आज भी नियंत्रण रेखा पर आये दिन घुसपैठ जारी ही है, पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा निरंतर गोलीबारी की ही जाती है और कश्मीरी आतंकवादियों को खुले सहयोगी की उसकी भूमिका को देखते हुए, यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि अघोषित युद्ध कभी भी घोषित युद्ध में बदल सकता है । 

साभार आधार - ओर्गेनाईजर
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