दूरद्रष्टा डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का सुझाव था – शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाएं

आजकल लोगों की दिलचस्पी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के विषय में जानने के प्रति बढ़ रही है। विशेषकर युवाओं में यह जानने की जिज्ञासा है कि डॉ. मुखर्जी ने 6 जुलाई 1901 को अपने जन्म से लेकर 23 जून 1953 को अपनी मृत्यु तक क्या क्या किया और कैसे श्रीनगर में रहस्यमय परिस्थितियों में उनका देहांत हुआ ।

महज 52 वर्ष के अपने संक्षिप्त जीवन काल में उनके आकर्षक और बहुआयामी व्यक्तित्व ने भारतीय जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है । जीवन के हर क्षेत्र में वे उत्कृष्ट थे। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने विगत 23 जून को मध्य प्रदेश में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपनी गहन श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा था कि – डॉ. मुखर्जी ने अपने जीवन काल में, विद्या, वित्त और विकास को लेकर जो मार्गदर्शन किया, वह कालजयी है, आज भी प्रासंगिक है ।

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी केवल 33 वर्ष की उम्र में कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे कम उम्र के कुलपति नियुक्त हुए । उस दौरान डॉ. मुखर्जी ने विश्वविद्यालय में कई सुधारों और परिवर्तनों की शुरुआत की, भारतीय भाषाओं की उन्नति के लिए काम किया, वैज्ञानिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा, भारतीय इतिहास और सभ्यता पर शोध, चीनी और बौद्ध अध्ययन केंद्र आदि शुरू किए और ब्रिटिश भारत के इतिहास में पहली बार, बंगाली में दीक्षांत भाषण देने के लिए गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को आमंत्रित किया ।

बाद के वर्षों में भी, श्यामा प्रसाद जी ने बेंगलुरू में भारतीय विज्ञान संस्थान जैसे देश के अग्रणी शैक्षणिक और शोध संस्थानों के साथ रूचि पूर्वक सहयोग करना जारी रखा। 1930 से 1952 तक देश भर के विश्वविद्यालयों में दिए गए उनके उद्बोधन गहन विचार और ज्ञान से भरे हुए थे। डॉ. मुखर्जी ने उच्च शिक्षा में नवाचार और स्वायत्तता की वकालत की, मूल शोध की आवश्यकता पर जोर दिया, और तर्क दिया कि प्रत्येक विश्वविद्यालय को अपने विशिष्ट क्षेत्र विकसित कर उनपर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

प्राथमिक और उच्च शिक्षा को मजबूत करने के लिए उनका मानना था कि शिक्षा और उद्योग को जोड़ने की आवश्यकता है। उनका यह विचार आज भी प्रासंगिक हैं। एक शिक्षाविद और एक ध्येयनिष्ठ राष्ट्रवादी के रूप में उनकी अत्याधिक प्रतिष्ठा से प्रभावित होकर पुडुचेरी के श्री अरबिंदो आश्रम की मां ने उन्हें महर्षि अरविंद के विचारों के प्रचार प्रसार के लिए खोले जाने वाले विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु, अप्रैल 1 9 51 में आयोजित श्री अरबिंदो मेमोरियल कन्वेंशन का अध्यक्ष नियुक्त किया ।

बंगाल के वित्तमंत्री के रूप में डॉ. श्यामा प्रसाद जी का प्रशासनिक कौशल और उनकी राजनीतिक समझबूझ सामने आई जब उन्होंने मुस्लिम प्रभुत्व वाली कृषक प्रजा पार्टी के साथ गठबंधन सरकार को सफलता पूर्वक संचालित किया, और मुस्लिम लीग को पूरी तरह से किनारे कर दिया, ताकि वे अपनी सांप्रदायिक राजनीति का जहर न फैला सकें | हालाँकि औपनिवेशिक प्रशासन ने पूरी कोशिश की कि यह प्रयोग असफल हो जाए, किन्तु डॉ. मुखर्जी ने सफलता पूर्वक अपने प्रशासनिक कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से निर्वाह करने में सफलता पाई ।

1947 से 1950 तक भारत के प्रथम उद्योग और आपूर्ति मंत्री के रूप में उनकी भूमिका में विकास के प्रति उनका प्रभावी द्रष्टिकोण सबके सामने आया । यही वह समय था जब उन्होंने औद्योगिक भारत की नींव रखने का काम किया । 1948 में स्वतंत्र भारत की पहली औद्योगिक नीति में उनके विचारों और दृष्टि का प्रतिबिंब दिखाई देता है । मंत्री के रूप में उनका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि बुनियादी औद्योगिक ढांचे में भारत को आत्मनिर्भर होना चाहिए। श्यामा प्रसाद चाहते थे कि भारत में बड़े उद्योगों के साथ साथ कुटीर उद्योग, हथकरघा और कपड़ा जैसे लघु उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। यही कारण है कि उद्योग मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में कुटीर और लघु उद्योगों की नींव रखी गई ।

उनके सभी कार्यों में, भारत को महान, आत्मनिर्भर और शक्तिशाली बनते देखने कि उनकी उत्कट अभिलाषा परिलक्षित होती है | पुरातन सभ्यता के आलोक में एक नया और ऊर्जावान भारत उनका स्वप्न था | आईये उनके जन्मदिवस पर हम उनके इस स्वप्न को साकार करने का संकल्प लें ।

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