आजादी / विभाजन पूर्व के पन्द्रह दिन - ७ अगस्त, १९४७ - नेहरू जी द्वारा राजदूतों व राज्यपालों की नियुक्ति - प्रशांत पोळ



विभाजन निश्चित मानकर तथा पाकिस्तान के मुस्लिम नेशनल गार्ड द्वारा हिंदुओं एवं उनकी संपत्ति पर लगातार बढ़ते हमलों से चिंतित ‘पाकिस्तान हिन्दू महासभा’ के नेताओं ने अपना एक वक्तव्य सभी अखबारों में प्रकाशन हेतु जारी किया, जिसमें पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं से आग्रह किया गया कि ‘उन्हें मुस्लिम लीग के ध्वज का आदर एवं सम्मान करना चाहिए’. इसी के साथ पश्चिम पंजाब के मुस्लिम लीग के असेंबली पार्टी का नेता चुने जाने के अवसर पर इफ्तिखार हुसैन खान ‘मेमदोन’ को बधाई दी. इसी प्रकार ईस्ट बंगाल मुस्लिम लीग असेम्बली पार्टी का नेता चुने जाने पर ख्वाज़ा निजामुद्दीन का भी सार्वजनिक अभिवादन किया. 

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मास्को. 

सुबह के छः बजे तत्कालीन सोवियत संघ के लिए नियुक्त की गईं स्वतन्त्र भारत की पहली राजदूत श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित का विमान मॉस्को के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा. अगस्त का महीना मॉस्को निवासियों के लिए भले ही गर्मी का मौसम रहा हो, लेकिन विजयलक्ष्मी पंडित को वातावरण में ठण्डक महसूस हो रही थी. हवाईअड्डे पर उनके स्वागत के लिए स्वतन्त्र भारत का होने वाला, अशोक चक्र से सज्जित राष्ट्रध्वज फहराया गया. संभवतः भारत से बाहर अधिकारिक रूप से भारत का राष्ट्रध्वज फहराने की यह पहली ही घटना थी. 

सैंतालीस वर्षीया विजयलक्ष्मी, रिश्ते में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं, साथ ही उन्होंने अनेक बार स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर कारावास की सजा भुगती. कुशाग्र बुद्धि संपन्न विजयलक्ष्मी, जवाहरलाल नेहरू से लगभग ग्यारह वर्ष छोटी थीं. जब उनकी आयु इक्कीस वर्ष थी, उसी समय उन्होंने अपनी मर्जी से काठियावाड़ रियासत के जानेमाने वकील, रंजीत पंडित के साथ विवाह किया था. 

रूसी अधिकारियों ने इस भारतीय राजदूत का, अर्थात जवाहरलाल नेहरू की बहन का, गर्मजोशी एवं आत्मीयता से स्वागत किया. 

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दोपहर एक बजे के आसपास, दिल्ली से कायदे-आज़म जिन्ना को लेकर वाइसरॉय साहब का विशेष डकोटा विमान कराची के मौरिपुर हवाई अड्डे पर उतरा. विमान से जिन्ना, उनकी बहन फातिमा और उनके तीन सहयोगी उतरे. पाकिस्तान के निर्माता के रूप में, ‘प्रस्तावित पाकिस्तान’ की इस पहली यात्रा के अवसर पर मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं में कोई ख़ास उत्सुकता नहीं थी. इसीलिए जिन्ना का स्वागत करने के लिए बहुत ही थोड़े से कार्यकर्ता हवाई अड्डे पर आए थे. इन कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान और जिन्ना जिंदाबाद जैसे कुछ नारे जरूर लगाए, परन्तु उनकी आवाज़ में जोश लगभग नहीं के बराबर था. 

कायदे-आज़म जिन्ना के लिए, आजीवन उनके सपनों के देश, अर्थात पाकिस्तान में पहली बार आना, बड़ा ही निरुत्साहित करने वाला रहा. 

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वारंगल.... 

काकतीय राजवंश की राजधानी. एक हजार स्तंभों वाले मंदिर के लिए प्रसिद्ध स्थान और निज़ामशाही रियासत का एक बड़ा शहर. 

सुबह ग्यारह बजे वारंगल शहर के मुख्य चौराहे पर मिलने वाले चारों मार्गों से कांग्रेस के झंडे हाथों में लेकर नारे लगाते हुए लगभग सौ - सवासौ कार्यकर्ता चौराहे पर इकठ्ठे हुए. “निजामशाही को भारतीय संघ राज्य में विलीन करो” के नारे जोरशोर से लगाए जाने लगे. कांग्रेस कार्यकर्ताओं की इस भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे, वारंगल जिला कांग्रेस समिति के अध्यक्ष कोलिपाका किशनराव गारू. 

हैदराबाद राज्य कांग्रेस कमेटी के आदेशानुसार इन कार्यकर्ताओं ने भारत में विलीन होने के लिए निज़ाम के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया है. हैदराबाद राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष स्वामी रामतीर्थ ने जनता से अपील की है कि वे सत्याग्रह में शामिल हों. वे स्वयं भी काचिगुड़ा इलाके में सैकड़ों कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ नारेबाजी और प्रदर्शन में शामिल हैं. 

समूचे भारत में स्वतंत्रता की आहट सुनाई दे रही है. और इधर निज़ाम की रियासत का यह विशाल भूभाग अभी भी गुलामी के अंधेरे में ही है. रज़ाकारों के अमानुषिक अत्याचार को सहन कर रहा है...! 

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चक्रवर्ती राजगोपालाचारी अर्थात ‘राजाजी’ को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया . बंगाल के विभाजन के बाद राजाजी ‘पश्चिम बंगाल’ के पहले राज्यपाल बने . राजाजी काँग्रेस पार्टी के विराट व्यक्तित्व थे, लेकिन तत्कालीन प्रांतीय चुनावों में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा. इसके अलावा राजाजी की पहचान यह ‘विभाजन के विचार को अति-सक्रियता से आगे बढ़ाने वाले’ की थी. इस कारण बंगाल के लोगों ने इस निर्णय को पसंद नहीं किया. 

अपनी लायब्रेरी में बैठे यह खबर पढ़ते हुए शरदचंद्र बोस का दिमाग घूम गया. उन्होंने तत्काल एक वक्तव्य तैयार किया और सभी दैनिक समाचारपत्रों में प्रकाशन हेतु भेज दिया. शरद बाबू ने लिखा कि, ‘राजगोपालाचारी की नियुक्ति वास्तव में बंगाल का अपमान है. जिस व्यक्ति को मद्रास ने नकार दिया, चुनावों में परास्त कर दिया, उसी को हमारे सिर पर लाकर बैठाना कौन सी बुद्धिमत्ता है..?’ 

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दिल्ली में भारतीय सेना का मुख्यालय. 

भारत के कमाण्डर-इन-चीफ "सर क्लॉउड़ जॉन ऑचिनलेक" के सम्मुख एक बहुत ही महत्वपूर्ण नोटशीट पहुंची जिसमें प्रस्तावित स्वतंत्रता दिवस पर सभी राजनैतिक भारतीय कैदियों को मुक्त कर देने का उल्लेख था. इसमें लिखे ‘सभी भारतीय’ शब्द पर सर ऑचिनलेक की निगाह ठहर गई. इसका अर्थ यह कि, सुभाषचंद्र बोस की ‘ईन्डियन नेशनल आर्मी’ की ओर से लड़े हुए सैनिक भी...? ऑचिनलेक के दिमाग की नस फडकने लगती है. ‘सुभाषचंद्र बोस के सहयोगियों को छोड़ दें..? अंग्रेजों के सामने एक वास्तविक चुनौती पेश करने वाले ‘आज़ाद हिन्द सेनानियों’ को रिहा कर दें?? नहीं... कदापि नहीं. कम से कम १५ अगस्त तक तो ब्रिटिश सत्ता है ही, तब तक तो मैं उन्हें नहीं छोड़ने वाला.’ 

फिर उन्होंने अपने स्टेनो को बुलाया और धीमी किन्तु कठोर आवाज में उस पत्र का जवाब लिखवाने लगे – ‘अन्य सभी राजनैतिक बंदियों को रिहा करने में भारतीय सेना को कोई आपत्ति नहीं है. परंतू सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में बनी ‘इन्डियन नेशनल आर्मी’ के सैनिकों को छोड़ने पर हमारा प्रखर विरोध है’. 

इस प्रकार सुभाष बाबू के तमाम सहयोगी, जिन्होंने भारत को स्वतन्त्र करने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी, उस ‘आजाद हिन्द सेना’ के शूरवीर सैनिक, कम से कम १५ अगस्त तक तो नहीं छूटेंगे, यह निश्चित हो चुका था. 

उधर मद्रास सरकार ने दोपहर को एक सर्कुलर जारी कर दिया, जिसके अनुसार यह घोषणा की गई कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले मद्रास प्रांत के सभी लोगों को पांच-पांच एकड़ जमीन मुफ्त में दी जाएगी. १५ और १६ अगस्त को सार्वजनिक अवकाश की घोषणा भी इसी के साथ की गई. 

स्वतंत्रता के सूर्य को उगने में अब केवल एक सप्ताह ही बचा हैं.... 

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दोपहर के चार बजे हैं. मद्रास में स्थानीय सिनेमाघरों के मैनेजरों की एक बैठक चल रही है. स्वतंत्रता के सन्दर्भ में ही यह बैठक आयोजित की गई हैं. के सी आर रेड्डी सबसे वरिष्ठ थियेटर मालिक हैं. उन्होंने बैठक में प्रस्ताव रखा कि, - ’१५ अगस्त से सभी सिनेमाघरों में अंग्रेजों का, अर्थात ब्रिटिश सरकार का, राष्ट्रगीत नहीं बजाया जाएगा. उसके स्थान पर कोई भी भारतीय राष्ट्रीय विचारों का गीत बजाया जाएगा.’ यह प्रस्ताव सर्वानुमति एवं तालियों की गडगडाहट के साथ स्वीकार कर लिया जाता है. 

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उधर कराची की एक बड़ी सी हवेली में, श्रीमती सुचेता कृपलानी लगभग सौ-सवासौ सिंधी महिलाओं की एक बैठक ले रही हैं. ये सभी सिंधी स्त्रियां इतने असुरक्षित वातावरण के बावजूद इस बंगले पर एकत्रित हुई हैं. सुचेता कृपलानी के पति, आचार्य जे बी कृपलानी काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. काँग्रेस द्वारा विभाजन का निर्णय स्वीकार किए जाने के कारण सीमावर्ती इलाकों में जनमत बेहद क्रोधित है. अतः अपने गृह प्रांत में काँग्रेस के खिलाफ उबल रहे इस वातावरण को शांत करने के लिए दोनों पति-पत्नी के प्रयत्न जारी हैं. वे सभी सिंधी औरतें, सुचेता कृपलानी से शिकायत कर रही हैं कि वे कितनी असुरक्षित हैं. सिंधी स्त्रियों पर मुसलमानों के नृशंस अत्याचार के बारे में बता रही हैं. 

लेकिन इन महिलाओं के कथनों से सुचेता कृपलानी सहमत नहीं दिखतीं. वे आवेश में आकर अपना पक्ष प्रस्तुत करती हैं कि, “मैं पंजाब और नोआखाली में सरेआम घूमती हूं, मेरी तरफ तो कोई भी मुस्लिम गुण्डा, तिरछी निगाह से देखने की भी हिम्मत नहीं करता..? क्योंकि मैं ना तो भडकीला मेकअप करती हूं और ना ही लिपस्टिक लगाती हूं. आप महिलाएं लो-नेक का ब्लाउज पहनती हैं, पारदर्शी साडियां पहनती हैं. इसीलिए मुस्लिम गुंडों का ध्यान आपकी तरफ जाता है. और मान लीजिए किसी गुण्डे ने आप पर आक्रमण कर भी दिया, तो आपको राजपूत बहनों का आदर्श अपने सामने रखना चाहिए, ‘जौहर’ करना चाहिए...! 
(Indian Daily Mail – ७ अगस्त का समाचार. पहला पृष्ठ) 

उस बड़ी सी हवेली में बैठी, अपने प्राणों की बाजी लगाकर किसी तरह एक-एक दिन गिनने वाली, उन घबराई हुई सिंधी महिलाओं को सुचेता कृपलानी के इस वक्तव्य पर क्या कहें, समझ नहीं आ रहा था... वे अक्षरशः अवाक रह गई हैं. ‘एक राष्ट्रीय अध्यक्ष की पत्नी ये हमसे क्या कह रही हैं? ऐसे घोर संकट के समय क्या हम औरतें भडकीला मेकअप करेंगी? लो-कट ब्लाउज़ पहनेंगी? और क्या केवल इसलिए मुसलमान गुण्डे हमारी तरफ आकृष्ट होते हैं? और मान लो यदि वे हमारे साथ बलात्कार करने का प्रयास करें, तो क्या हमें राजपूत स्त्रियों के समान जौहर कर लेना चाहिए..?’ 
इस समय केवल काँग्रेस के नेता ही नहीं, बल्कि उनकी पत्नियां भी जमीनी वास्तविकता और मुस्लिम मानसिकता से कोसों दूर हैं... 

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लखनऊ.... 

स्टेट असेम्बली में मुख्यमंत्री का कार्यालय. मजबूत देहयष्टि के मालिक और घनी-मोटी मूंछों वाले गोविन्द वल्लभ पंत, अपने जिंदादिल स्वभाव के अनुसार हमेशा की तरह अपने सहयोगियों के साथ हंसी-मजाक सहित चर्चा कर रहे हैं. कैलाशनाथ काटजू, रफ़ी अहमद किदवई और पी एल शर्मा जैसे मंत्री उनके आसपास बैठे हैं. 

चर्चा का विषय है कि ब्रिटिश सत्ता द्वारा अपभ्रंश किए गए शहरों के, नदियों के नाम बदलकर उन्हें मूल हिन्दू नाम से पहचाना जाए. अंग्रेजों ने गंगा को ‘गैंजेस’ और यमुना नदी को ‘जुम्ना’ बना डाला था. पवित्र मथुरा नगरी का नाम अंग्रेजों ने ‘मुत्रा (Muttra) कर दिया था. इन सभी की पहचान इनके मूल नाम से ही होनी चाहिए. इस सन्दर्भ में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में इस समिति ने एक आदेश निकाला एवं तत्काल प्रभाव से नदियों-गांवों-शहरों के बदले हुए मूल नामों से ही लिखा जाए ऐसा घोषित कर दिया. 

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१७, यॉर्क रोड. जवाहरलाल नेहरू का वर्तमान निवास... अर्थात स्वतन्त्र भारत का वर्तमान मुख्य प्रशासनिक केन्द्र. 

अब शाम के छह बज चुके हैं और नेहरू विदेश मंत्री की भूमिका में आ गए हैं. पाकिस्तान को अस्तित्त्व में आने के लिए केवल एक सप्ताह ही बाकी रह गया है. इस पाकिस्तान में भारत का भी एक राजदूत होना अति-आवश्यक है. अभी तो बहुत से ऐसे काम हैं जिन्हें भारत-पाकिस्तान को आपसी सामंजस्य से पूरे करना है. हिंदुओं-सिखों के विस्थापन एवं उनकी समस्याओं का प्रमुख प्रश्न है, उसका भी हल निकालना है, इसलिए पाकिस्तान में तो भारत का राजदूत चाहिए ही. ऐसे में नेहरू के समक्ष एक नाम उभरा, श्रीप्रकाश का. 

श्रीप्रकाश प्रयाग से ही हैं. अर्थात नेहरू के इलाहाबाद से. इन्होंने अनेक बार स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया. ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में वे दो वर्षों तक जेल में रहे. श्रीप्रकाश एक विनम्र एवं स्पष्ट वक्ता व्यक्ति हैं. कैम्ब्रिज में उच्च शिक्षा प्राप्त इस सत्तावन वर्षीय व्यक्ति की प्रशासनिक क्षमता बेहतरीन है. अर्थात नवनिर्मित पाकिस्तान में भारत के पहले हाई कमिश्नर के रूप में, श्रीप्रकाश की नियुक्ति तय हुई. ११ अगस्त को कायदेआज़म जिन्ना पाकिस्तान की संसद में अपना पहला भाषण देने वाले हैं. उससे पहले ही श्रीप्रकाश को कराची जाकर रिपोर्ट करना आवश्यक हैं. 

अगले दो वर्ष तक पाकिस्तान से विस्थापित होने वाले लाखों हिंदु-सिखों का मुद्दा... पाकिस्तान का हठी, दबंग और उच्छृंखल स्वभाव... कश्मीर को हड़प करने संबंधी पाकिस्तानी चालबाजियां... ऐसे कई कठिन प्रश्नों-समस्याओं का सामना श्रीप्रकाश को ही करना था.
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