सितम्बर 1947 में दिल्ली की प्रार्थना सभाओं में दिये गये महात्मा गांधी के भाषणों के कुछ अंश जो तत्कालीन परिस्थितियों की जानकारी देते हैं !



11 सितम्बर 1947 

जब मैं शाहदरा पहुंचा, तो मैंने अपने स्वागत के लिए आये हुए सरदार पटेल, राजकुमारी और दूसरे लोगों को देखा | लेकिन मुझे सरदार के ओठों पर हमेशा की तरह मुस्कराहट नहीं दिखाई दी | उनका मसखरापन भी गायब था | रेल से उतरकर मैं जिन पुलिस वालों और जनता से मिला, उनके चेहरों पर भी सरदार पटेल की उदासी दिखाई दे रही थी | क्या हमेशा खुश दिखाई देने वाली दिल्ली आज एकदम मुर्दों का शहर बन गई है ? दूसरा अचरज भी मुझे देखना बदा था | जिस भंगी बस्ती में ठहरने में मुझे आनंद होता था, वहां न लेजाकर मुझे बिड़लाओं के आलीशान महल में ले जाया गया | मुझे इसका जो कारण बताया गया, वह जानकर तो मुझे और भी दुःख हुआ | बताया गया कि वहां इस समय शरणार्थी लोग ठहराए गए हैं | उनकी जरूरत मुझसे कई गुना ज्यादा है | 

पंडित नेहरू और सरदार पटेल के साथ कायदे आजम जिन्ना, लियाकत अली साहब और दूसरे पाकिस्तानी नेताओं ने यह ऐलान किया था कि हिन्दुस्तानी संघ और पाकिस्तान में अल्पमत वालों के साथ बैसा ही बर्ताव किया जाएगा, जैसा कि बहुमत वालों के साथ | क्या हर डोमिनियन के हाकिमों ने यह मीठी बात दुनिया को खुश करने के लिए ही कही थी ? या इसका मतलब दुनिया को यह दिखाना था कि देखो हमारी कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं है और हम अपना वचन पूरा करने के लिए अपनी जान भी दे सकते हैं ? अगर ऐसा ही है तो मैं पूछता हूँ कि हिन्दुओं, सिक्खों, गौरव भरे आमिलों और भाईबन्दों को, अपना घर – पाकिस्तान – छोड़ने के लिए क्यों मजबूर किया गया ? क्वेटा, नबाब शाह और कराची में क्या हुआ ? पश्चिम पंजाब की दर्द भरी कहानियां सुनने और पढ़ने वालों के दिलों को तोड़ देती हैं | पाकिस्तान या हिन्दुस्तान संघ के हाकिमों के लाचारी दिखाकर यह कहने से काम नहीं चलेगा कि यह सब गुंडों का काम है | अपने यहाँ रहने वाले लोगों के कामों की पूरी जिम्मेदारी अपने सिर लेना हर डोमिनियन का फर्ज है | 

शहर के अपने दौरे में मैंने यह शिकायत सुनी कि शरणार्थियों को राशन नहीं मिलता, जो कुछ दिया भी जाता है, वह खाने लायक नहीं होता | इसमें अगर दोष सरकार का है, तो उतना ही दोष शरणार्थियों का भी है, जिन्होंने जरूरी कामकाज को भी रोक दिया है | अगर उन्होंने अपनी तमाम सच्ची शिकायतों को दूर करने के लिए सरकार पर भरोसा किया होता और कायदा पालने वाले नागरिकों की तरह बर्ताव किया होता, तो मैं जानता हूँ और उन्हें भी जानना चाहिए कि उनकी ज्यादातर मुसीबतें दूर हो जातीं | 

मैं हुमायूं के मकबरे के पास मेवों की छावनी में भी गया था | उन्होंने मुझसे कहा कि हमें अलवर और भरतपुर रियासतों से निकाल दिया गया है | मुसलमान दोस्तों ने जो कुछ भेजा है, उसके सिवा हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं है | मैं जानता हूँ कि मेव लोग बड़ी जल्दी उभाड़े जा सकते हैं और गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं | लेकिन उसका यह इलाज नहीं है कि उन्हें न चाहने पर भी यहाँ से निकालकर पाकिस्तान भेज दिया जाए | उसका सच्चा इलाज तो यह है कि उनके साथ इंसानों जैसा बर्ताव किया जाये और उनकी कमजोरियों का किसी दूसरी बीमारी की तरह इलाज किया जाये | 

(सम्पादक – पाठक महानुभाव गौर करें कि हिन्दू शरणार्थी जो पाकिस्तान से लुटे पिटे आये उन्हें भंगी बस्ती में ठहराया गया और राशन की शिकायत करने पर गांधी जी ने उन्हें ही दोषी ठहराया | जबकि मेव गड़बड़ी करते हैं, यह मानते हुए भी, उनके साथ मानवीय व्यवहार की बकालत की |) 

27 सितम्बर 1947 

गांधीजी ने ग्रन्थ साहब से एक भजन पढ़ा और कहा कि वह गुरू अर्जुनदेव जी बनाया हुआ था, लेकिन हिन्दू धर्मग्रंथों के कई भजनों की तरह संतों के अनुयाई खुद भजन बनाकर भी उनमें गुरू का नाम दे देते था | उस भजन में यह कहा गया है कि आदमी भगवान को राम, खुदा बगैरा नामों से पुकारता है | कोई तीर्थ यात्रा करते और पवित्र नदी में नहाते हैं और कोई मक्का जाते हैं | कोई मंदिर में भगवान की पूजा करते हैं, तो कोई मस्जिद में उसकी इबादत करते हैं | कोई वेद पढ़ते हैं तो कोई कुरआन | कोई नीले कपडे पहनते हैं तो कोई सफ़ेद | कोई अपने को हिन्दू कहते हैं तो कोई मुसलमान | नानक कहते हैं कि जो सच्चे दिल से भगवान के नियमों को पालता है, वही उसके भेद को जानता है | हिन्दू धर्म में सब जगह यही उपदेश दिया गया है | इसलिए उन लोगों के पागलपन को समझना कठिन है, जो साढ़े चार करोड़ मुसलमानों को हिन्दुस्तान से बाहर करना चाहते हैं | 

एक आर्यसमाजी मित्र ने मुझे पत्र लिखकर कहा कि कांग्रेस पहले तीन बड़ी बड़ी गलतियाँ कर चुकी है | अब वह सबसे बड़ी चौथी गलती कर रही है | वह गलती कांग्रेस की इस इच्छा में है कि हिन्दुओं और सिक्खों के साथ मुसलामानों को भी हिन्दुस्तान में फिर से बसाया जाए | मैं कांग्रेस की तरफ से नहीं बोल रहा हूँ, फिर भी ख़त में जिस गलती के बारे में कहा गया है, उसे करने के लिए मैं पूरी तरह तैयार हूँ | मान लीजिये कि पाकिस्तान पागल हो गया है, तो क्या हमें भी पागल बन जाना चाहिए ? हमारा ऐसा करना सबसे बड़ी गलती और सबसे बड़ा अपराध होगा | मुझे विश्वास है कि जब लोगों का पागलपन दूर हो जाएगा, तो वे महसूस करेंगे कि मेरा कहना ठीक है और उनका गलत | 

राजकुमारी इस समय स्वास्थ्य विभाग की मंत्री हैं | वे सच्ची ईसाई हैं और इसलिए हिन्दू और सिक्ख होने का दावा करती हैं | वह सारी हिन्दू और मुस्लिम छावनियों में सफाई और तंदरुस्ती की देखरेख रखने की कोशिश करती हैं | चूंकि पहले पहल मुस्लिम छावनियों में जाने के लिए हिन्दुओं का मिलना करीब करीब असंभव था, इसलिए उन्होंने मुस्लिम छावनियों की सेवा के लिए ईसाई आदमियों और लड़कियों का एक गिरोह तैयार किया | इससे कुछ चिढ़े हुए और बेसमझ लोग ईसाईयों को डरा धमका रहे हैं, जिससे बहुत से ईसाईयों ने डर कर अपने घर छोड़ दिए हैं | यह भयंकर चीज है | राजकुमारी से यह जानकार मुझे खुशी हुई कि एक जगह हिन्दुओं ने गरीब ईसाईयों को रक्षा का वचन दिया है | मुझे आशा है कि सारे भागे हुए ईसाई जल्दी ही शान्ति से अपने घरों को लौट सकेंगे और उन्हें शान्ति से बेखटके बीमार और दुखी इंसानों की सेवा करने दी जायेगी | 

30 सितम्बर 1947 

आज मेरे पास मियाँवाली के कुछ भाई आये थे | अपने जिन दोस्तों को वे पाकिस्तान में छोड़ आये हैं, उनके बारे में उन्होंने अपनी चिंता जाहिर की | उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें डर है कि जो लोग पीछे रह गए हैं, उनका या तो जबरदस्ती धर्म बदल दिया जाएगा या भूखों मारकर या और किसी तरह से उनकी जान ले ली जायेगी और औरतों को भगाया जाएगा | उन्होंने पूछा कि क्या हिन्दुस्तानी संघ की सरकार का यह फर्ज नहीं है कि वह उन लोगों को इन सारी मुसीबतों से बचाए ? इसी तरह की बातें दूसरे हिस्सों से भी मेरे पास आई हैं | मैं मानता हूँ कि सरकार का यह फर्ज है कि जो लोग हिफाजत के लिए उसका मुंह ताकते हैं, उनकी वह हिफाजत करे, या स्तीफा दे दे | और जनता का भी फर्ज है कि वह सरकार के हाथ मजबूत करे | 

पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की हिफाजत करने के दो रास्ते हैं | सबसे अच्छा रास्ता यह है कि कायदे आजम जिन्ना साहब और उनके बजीर अल्पसंख्यकों में उनकी हिफाजत का विश्वास पैदा करें, जिससे उन्हें अपनी रक्षा के लिए हिन्दुस्तान की ओर न देखना पड़े | पाकिस्तान सरकार का फर्ज है कि जिन मकानों को अल्पसंख्यक छोड़ आये हैं, उनकी ट्रस्टी की तरह देखभाल करे | बेशक जबरदस्ती धर्म बदलने और औरतों को भगाने की घटनाएँ नहीं होना चाहिए | एक छोटी सी लड़की को भी, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, हिंदुस्तान या पाकिस्तान में अपने आप को सुरक्षित महसूस करना चाहिए | 

जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है, आप लोगों को नाराज करके भी मैं इस बात को दोहराना चाहूंगा कि हमारे धर्म की रक्षा करना हमारे ही हाथ में है | हरेक बच्चे को यह तालीम मिलनी चाहिए कि वह अपने धर्म के लिए अपनी जान दे सके | प्रहलाद की कहानी आप सब जानते हैं कि वह बारह साल की उम्र में कैसे अपने विश्वास के लिए अपने बाप के भी खिलाफ हो गया था | हर धर्म में ऐसी बहादुरी के उदाहरण मिलते हैं | औरतों को अबला कहना भूल है | जो औरत अपने विश्वास को मजबूती से पकडे हुए है, उसे अपनी इज्जत या अपनी श्रद्धा पर हमला होने का डर रखने की जरूरत नहीं है | मगर मान लीजिये कि वह इसमें कामयाब नहीं होती, तो क्या आप अपने धर्म को उसी तरह बदल देंगे, जिस तरह आप अपने कपडे बदल डालते हैं ? 

(सम्पादक – गांधी जी के इन प्रवचनों की पूरी पुस्तक मैंने पढी और जानते हैं – मेरी धारणा क्या बनी ? मेरी दृढ मान्यता है कि गोडसे ने बहुत बड़ा अपराध किया जो गांधी जी की ह्त्या की | विचार कीजिए कि अगर उसने यह दुष्कृत्य न किया होता, तो आज भारत में क्या गांधी नायक होते ?}
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